कालुलाल कुलमी की पुष्कर यात्रा

मनुष्य रहस्यों को भेदने में कभी हिचकता कभी डरता सदा ही आगे की और बढ़ता रहा है। वह प्रकृति के हो या जीवन के हर रहस्य को वह भेदता रहा है। उसने जीवन संघर्ष के भीतर से ही जीवन का रस सींचा है! वह सदा ही आगे की और बढ़ता रहा है। मनुष्य ने अपने श्रम के बल पर पृथ्वी को सुन्दर बनाया। अजमेर से पुष्कर का सफर! अरावली को भेदती हुई बस चल रही है। कभी बस में अरावली में तो कभी अरावली में बस ! दोनों एक दूसरे को भेदती हुई रास्ता बना रही है। यह पर्वत भी बड़ा अजीब है। किसी दिग्गज की तरह खड़ा है। कितनी ही सदिया बीती कितने ही मौसम आये गये पर वह है कि आज भी वहीं अटल है। 

 यहां अपको नीचे से पूरा पहाड़ और उपर से पूरा शहर दिखता है । इतनी गर्मी में बस अपनी राह पर चल रही और मारवाड़ी लोग बस में गप्पें  मार रहे। गले में सोना पहने शादी-विवाह की बहार में मानों उसी की कोई लेन देन चल रही। एक भरी पूरी दुनिया है यहां। पुष्कर पहंुचे! फिर घाट को तलाशा! पैदल वहां पहंुच गये। यह पुष्कर का घाट जिसमें पानी नहीं के बराबर था। यह देश बड़ा ही अजीब है। घर में कुछ हो या न हो आपको गोदान तो करना ही है। आदमी धार्मिक स्थलों पर जाकर बड़ा ही भाव विभोर हो जाता है। उसको क्या लगता  िक वह अपने कर्मों का लेखा जोखा यहीें करने वाला है। कहां गये तो भई गंगा नहाने गए। बाबा मर गये तो गरुड़ पुराण का पाठ करा रहे हैं। यहां वही हो रहा है। पण्डितों ने अपने अलग-अलग घाट बना रखे हैं।इधर का उधर और उधर का इधर! उपर से कहते कि हम यहां पैसों के लिए नहीं बैठे हैं। आप देदे अपनी मर्जी से !

आपने पाप धूल जायेंगे! क्हीं पर पूजा हो रही तो कहीं पर पंडित मंत्र पढ़ते हुए पैसा मांग रहा है। तो कहीं पर फूल और नारियल में कमीशन पर बात कर रहा है। यहां कोई कम न्यारे-वारे नहीं होते! आप  किसी भी धर्म स्थली पर जाए। वहां आपको अजीब तरह का व्यापार नजर आएगा। सभी लगे हैं। सुबह से ही ये लोग अजीब तरह की प्रक्रियाएं लिए हुए अपने यजमानों की खोज में लग जाते हैं। हर  तरह का आंतक पैदा करते हुए! बड़े ही वाचाल होते हैं ये लोग! सवित्री घाट पर महिलाएं आती हैं। पैसोवाली औरतें हैं पर कुछ अभाव है जिनके कारण वे यहां आती हैं। और सोचती हैं कि कुछ काम बन जाएगा। ऐसे यजमान पंडितों को बहुत ही लुभावने लगते हैं। ये वे लोग है जो किसी ईश्वर के नाम पर सबसे ज्यादा झूठ बोलते हैं। पुष्कर के घाट पर यजमानों का इन्तजार करते ये धर्म के ठेकेदार सुबह से शाम हिसाब करते हैं। वहां शुद्धता के नाम पर क्या है? पानी का अकाल है! झील में पानी बहुत कम है जो है उसे भी पंडों ने गंदला कर रखा है। अपने आचार विचार से!

किसी भी धर्मस्थली पर जाये आपको ये लोग कुत्तों की तरह लड़ते हुए मिलेंगे! यजमान पाते ही खुश! हरेक का फिक्स है। हफता वसूली बराबर होती है। इतनी प्रदूषित जगह पर भी लोग अपने को पवित्र करने जाते हैं। वैसे भी पर्यटन के नाम पर जिस तरह का खेल शुरु हुआ है वह कोई कम विचित्र है। वहां सब कुछ बिकता है। विदेशी सेलानी आपकी संस्कृति देखने आते हैं या आपके बाजार को! संस्कृति के नाम पर बाजार ही है। पुष्कर की जमीन पर वह धर्म की चादर में हैं। 


कालुलाल कुलमी
(केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं पर शोधरत कालूलाल
मूलत:कानोड़,उदयपुर के रेवासी है.)
वर्तमान पता:-
महात्मा गांधी अंतर राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,
पंचटीला,वर्धा-442001,मो. 09595614315




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