वर्धा! कौन सा वर्धा, बारा वर्धा! वह तो गुजरात में है। नहीं यह गांधीजी का वर्धा है महाराष्ट्र में हैं। एक बार वर्धा के महात्मागांधी विश्वविद्यालय के विवादों को लेकर पत्रकार भाषा सिंह ने रिपोर्ट बनायी उसमें उन्होंने वर्धा को गुजरात में ही बताया। खैर वह तथ्यात्मक भूल थी, जिसको उन्होंने सुधार लिया होगा। हम गांधी जी के वर्धा की बात कर रहे हैं। वर्धा सेवाग्राम! यह पहली बार अपने यहां की यात्रा करनेवालों को बहुत परेशान करता है ट्रेन कहां रूकेगी वर्धा या सेवाग्राम! जो हो यात्रा में ऐसा होता है। इस तरह की परेशानिया आती रहती हैं उससे कोई यात्रा करना बंद नहीं करता।
खैर गांधीजी का यह शहर ड्राई सिटी के नाम से भी जाना जाता है। रसपान करनेवाले इस शब्द से बहुत गहरे परिचित होते हैं। सूखा शहर! गांव और शहर की संधिरेखा का बसा यह शहर बहुत छोटा है। पर उतना ही खोटा है। यहां गांधी जी का आश्रम सेवाग्राम में हैं। वह पिछले साल निलाम होते होते बचा। सरकार ने कर्जा दिया उससे वह बच गया। वहां बहुत शांति है। यह शेगांव सेवाग्राम की वह जमीन है जहां से गांधी जी ने आजादी की लड़ाई की कई योजनाए बनायी और उनको अमली जामा पहनाया। वह जमीन ड्राई हो गई है। यहां शराब बंदी के लिए बड़े-बड़े आंदोलन होते हैं। पुलिस जिसके नाम से हर कोई डरता है वह अक्सर शराब पकड़ती है। क्योंकि यहां शराब बंदी है और शराब लाना कानून के खिलाफ है। पकड़ाने के बाद वह शराब कहां जाती है यह पुलिस ही बता सकती है। इस ड्राई सिटी में मदिरा बहती है। इस पर प्रतिबंध लगाने का मौका गांधीजी ने दिया और हमारी आज की पीढ़ी कितनी आधुनिक है के दोनों को निभा ले जा रही है।
गांधीजी के नाम पर तो कभी भी कोई भी तमाशा किया जा सकता है। अभी हाल ही में किसी विदेशी लेखक ने गांधीजी पर किताब लिखी और तमाशा खड़ा हो गया। मोदी जी ने फटाक से किताब पर प्रतिबंध लगा दिया। उसको यह खबर ही नहीं थी कि किताब में क्या है? बस गांधी जी के असली भक्त हम ही है और गांधीजी को कोई बदनाम करे वह हम नहीं होने देंगे, हम चाहे उसी गुजरात में कितनी ही हत्याएं करा दे! केन्द्र सरकार क्यों चुप रहती। ऐसे में इन गांधीजी के सरकारी दामादों को चुप कराने के लिए गांधीजी के पोते और तमाम रचनाकारों ने कहा किसी भी किताब पर प्रतिबंध लगाने से वह तथ्य खत्म नहीं होता। उस पर बहस होनी चाहिए और तथ्य का काट तथ्य ही होना चाहिए। गांधीजी के नाम पर वोट लेना है तो कुछ तो करना ही होगा। आपकोे याद हो तो एक दो साल पहले गांधीजी की कुछ वस्तुए निलाम हो रही थी भारत सरकार ने अपने दाव के लिए शराब विक्रेता विजय माल्या से विशेष आग्रह किया और माल्या ने उसकी अनुपालना करते हुए गांधीजी की वे वस्तुएं भारत की जमीन पर ला धरी।सरकार ने इस तरह अपनी इजजत बचायी। इसी से गांधीजी की वर्तमान कीमत आंकी जा सकती है!
हर शहर गांव का अपना मिजाज होता है। वह मिजाज उसे दूसरे शहर गांव से अलग करता है। इस शहर का भी है। यहां गीताई मंदिर है। जिसके चारों और पत्थरों पर गीता मराठीभाषा में लिखी हुई है। पास ही विश्वशांति स्तूप है। राष्ट्र भाषा प्रचार समिति भी यही है। जहां बाबा नागार्जुन से लेकर भदंत आनन्द कौसल्यायन तक रहे। हिन्दी के नाम पर खाने वालों के लिए यह बहुत ही उरर्वक जगह है। राष्ट्र भाषा पढ़ने वही लोग आते हैं जो नहीं जानते। वे पूर्वोतर के लोग है। जिनका कहना है कि आजादी से पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे और अब हम भारत के गुलाम है। वहां आर्मी क्या कर रही है वह भारत सरकार जानती है। इसकोे वह राष्ट्र-राज्य के निर्माण के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया के रुप में देखते हुए ही कर रही है। यहां से दस किलोमीटर पर विनोबा भावे का आश्रम है। जिन्होंने भूदान जैसा महत्वपूर्ण आंदोलन चलाया था और आपातकाल को शांति पर्व की संज्ञा दी थी। इस तरह यह संतो-फकिरो की जमीन है और दूसरी तरह ड्राई सिटी।
यह कितना बड़ा विरोधाभास है। भारतीय मानस जिसे अपनी प्रवृति में ही आध्यात्मिक कहा जाता है! उसे तो यहां साक्षात आनंद मिलेगा। क्या पवित्र भूमि है। यह शहर आज भी गांधी और विनोबा के मूल्यों को जी रहा है। जिस तरह भारत अपने तंत्र में समाजवादी राज्य है पर वास्तव में वह संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। फिर गांधी जी को संघन यादों का हमसफर बनाने के लिए गांधीजी के नाम पर एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय भी खोल दिया गया। उसका अपना अलग इतिहास है। वह विश्वविद्यालय बनाया ही गया ज्ञान के नवीन अन्वेषण के लिए। लेकिन शुरू से ही विवादों में रहा। जो हो वर्धा को अपनी असली पहचान के साथ लोगों ने जाना है। कई दिग्गज साहित्यकार यहां आने से इस वजह से भी कतराते हैं कि यार ड्राई सिटी है क्या भरोसा सूखे शहर में रस मिले मिले या नहीं मिले। लेकिन इतना तय है कि अगर कोई मन से यहां आना चाहे तो उसको किसी की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। वह आये और अपनी निगाह से देखे।
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