केदारनाथ जी अग्रवाल |
इस पुस्तक में दूधनाथ सिंह ने केदार की कविता को नये द्रष्टिकोण से देखने का प्रयास किया है। केदार को रामविलासजी ने ग्रामीण कामचेतना का कवि कहा। प्रगतिशील काव्यधारा और केदारनाथ अग्रवाल नाम की पुस्तक में केदार की राजनीतिक कविताओं के संकलन के माध्यम से उनका मूल्यांकन किया है। शमशेर ने उनका मूल्यांकन सहज सजगता का कवि कह कर किया है वहीं राजेश जोशी उनको दुरूह सहजता का कवि कहते हैं। केदार की कविताई में यह सरलता दुरूहता लिये है तभी केदार का काव्य सरल दुरूह है। इस कवि को जिसने पकड़ लिया पकड़ लिया और जो चूक गया सौ चूक ही गया। केदार की कविता और केदार को अलग करके नहीं देखा जा सकता। केदार प्रतिभा में अपने बिन्दु पर अकेले हैं। वे जिस सरलता से अपनी बात को कविता में सम्प्रेषित कर जाते हैं वह उनको सरल से कठिन बनाता है।
पांव पुजाना और पांव दुखाना। यहां कविता कहां है? यहां कविता भी है और उसके भीतर गहरी व व्यंग्यधर्मिता भी! निराला कहते हैं कि मैं वसंत का अग्रदूत हूँ । केदार कहते हैं कि तुम हमारे हाथ हो और हम तुम्हारे हाथ है। केदार की कविता उस सीधी लकीर की तरह है जिसे खींचना सबसे कठिन होता है। इस पुस्तक की भूमिका को पढ़ते हुए केदार की कविता के कई रेशे खुलते हैं। वह उनकी प्रतिभा का रेशा हो या फिर उनकी कविता की संवाद परखता हो! प्रतिभा का पहला और अंतिम लक्षण होता है कि वह एक ही भूगोल और एक ही समय में कार्यरत रहती हुई भी वह एक दूसरे से सर्वथा भिन्न रूप-रंग में प्रकट होती है और सिर्फ दृश्य-रूप में ही नहीं , अभिव्यक्ति के ढॉंचे में ही नहीं,अपनी सौंदर्य-चेतना में ही नहीं, अपनी अंतर्वस्तु में भी वह सर्वथा अलग होती है। प्रतिभा अनुगामी नहीं होती, न ही वह लीक पीटती है। प्रतिभा का सर्वांत लक्षण है अपने बिन्दु पर अकेला होना। पृसं-८
केदार अपने बिन्दु पर अकेले हैं और उनका यह अकेलापन न तो संतप्त है न ही अभिशप्त है। यह उनकी रचनात्मकता का अकेलापन है। जहां वे समय की धार में धसकर खड़े हैं। जहां दूसरे लोग गिरे हैं वहां वे हरे के हरे हैं और अपनी राह पर चल रहे हैं। अज्ञेय कहते हैं ‘राह जिसकी है/ उसी की है।‘ पृसं-8
केदार ने अपने समय की हर युगांतकारी घटना पर लिखा। वह आजादी का आन्दोलन हो या फिर विभाजन और आजादी और आजादी के समय दिखाये सपने किस तरह धूमिल होते गए। एक गरीब को खबर ही नही कि आजादी क्या है उसे अपनी भूख की चिंता है वह पेट खलाये फिरता है। केदार को मेहनत करनेवालों पर सबसे अधिक भरोसा है पर उनकी चिंता यह है कि उनको उनकी मेहनत का पूरा पूरा मेहनताना मिले। वे बंजर को उर्वर बना सकते हैं तो अपने अधिकार भी ले सकते हैं।
हमारे हाथ में हल है
हमारे हाथ में बल है
कि हम बंजर को तोड़ेंगे
बिना तोड़े न छोड़ेगे। पृसं-१४
हमारे पास हुनर है और उसको करने की साध भी है! ऐसे में हम अपनी राह पर चलेंगे। हम सौंदर्य की सृष्टि करेंगे। निराला को अपने ही वर्ग ने धोखा दिया! असल सवाल यह बनता है कि समाज में परिवर्तन कैसे होगा! उसके लिए आप को समाज के मनोविज्ञान को परखना होगा आपको उसकी सामाजिक गतिविधि को समझना होगा। आप कानून बनाकर समाज को नैतिक नहीं बना सकते! जब तक की वह मूल्य समाज की जीवन शैली न बन जाए थोपने से वह नहीं चलेगा। केदार कहते हैं
‘ठहर जाओ
यहीं क्षण भर
एक गहरी सॉस लो-
निःश्वास छोड़ो
मौन खोये पत्थरों पर
हाथ फेरो,
ऑख खोले
भुरभुरा आकाश हेरो,
होंठ से सुनसान चूमो।
इस जगह पर वह मिली थी
जो प्रकृति की उर्वशी थी।‘ पृसं-20
‘सब जो है
उनका नहीं है
जिनका
आज है
सब जो है
उनका है
जिनका आज नहीं है‘ पृसं-२४
ये कैसी लूट है कि इसमें उनको कुछ नहीं मिलता जो दिन रात खटते हैं! वे परजीवी इतना हड़पते हैं कि बाकी लोग यो ही रह जाते हैं। इस तंत्र में ये कैसी लूट है! केदार अपने भीतर ही उलझनों को आप ही समेटते है वे पाठकों पर उसका कोई बोज नहीं छोड़ते मुक्तिबोध की तरह उनके यहां उलझाव नहीं सुलझाव है। केदार के लिए कविता राजनीति नहीं है वह उनके लिए सांस्कृतिक परिष्कार है। ऐसे में केदार की कविता परिष्कार की कविता है।
‘मैं लड़ाई लड़ा रहा हूँ मोरचे पर!
जिन्दगी की फौज मेरी शक्तिशाली
मैं जिसे लेकर यहॉ पर आ डटा हूँ
घुडसवारों पर जिसे अभिमान है
पैदलों का सिंधु जिसके साथ है‘ पृसं-९९
अपने को नेतृत्व के काबिल बनाना और अपनी जनता पर भरोसा करना अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है। हर दौर में एक बहाव होता है वह उस दौर को प्रभावित करता है और प्रभावित होता है। बाजार के इस दौर में अन्ना हजारे के आन्दोलन को किस तरह हवा मिली और कैसे वह कहां से कहां पहुंच गया। उसी आन्दोलन के डर से क्या हुआ कि तत्काल निर्णय किये और उनका क्या हुआ! सारा कुछ गालमेल कर दिया! सत्ता हर युग में मोरचा अपने पास रखती है ऐसे में कितना भी अंधेरा हो साहित्य अपना काम करता है। वह अंधेरे के गीत गाता है मौन नहीं रहता! केदार साहित्यकारों से कहते हैं तुम क्यों डरते हो तुम्हारे हाथ में बल है फिर तुम डरते क्यों हो। तुम तो तलवार के धनी हो फिर डरते हो! तुमको मुक्त होकर लिखना है मुक्त हो कर बोलना है! उनको आदमी के वेश में आदमी के पुतले दिखते हैं तब केदार का दिल दरकता है वे समाज में व्याप्त नैतिकता के नाम पर अनैतिकता को देख प्रतिवाद करते हैं।
यह कवि छोटी-छोटी घटनाओं पर लिखता है। अपने को अपने आसपास खोजता है। पेड़ इनके पहरुए हैं। चिड़िया काल को चुनौती देती हैं। भंवर को पार करती हैं। किसानों और मजदूरों का गीत इनको बहुत सुहाता है काटो काटो करबी , हमारे हाथ में बल है हमारे हाथ में हल है। हम सौंदर्य की सृष्टि करेंगें!
जो हमारे साथ है
वह
हमारे हाथ है
कर्म के करतार है
रुचिर
रचनाकार है पृसं-२०६
यह मोरचे पर इसी वजह से लड़ता है कि इसको कर्म पर सबसे अधिक भरोसा है। बोडम लोगों को यह कवि कहीं भी स्वीकार नहीं करता! कठिन से कठिन कार्य को वह अपने बल पर करता चलता है यदि दशरथ माजी अपने बल पर पहाड़ खोद सकता है। तब जनता के बल पर क्या असंभव है!
खड़ा पहाड़ चढ़ा मैं
अपने बल पर।
ऊपर पहुंचा
मैं नीचे से चलकर।
पकड़ी ऊंचाई तो ऑख उठाई
कठिनाई अब
नहीं रही कठिनाई। पृसं-२०९
मनुष्य अपने रास्ते खुद बनाता है। हर युग में वह अपने बल पर नये-नये क्षितिज पार करता है। केदार श्रम करनेवाले मनुष्य के गायक कवि है। अपने समाज के यथार्थ को चित करते हुए यह कवि हकलाता नहीं है। यह कवि ओट में खड़ा बोलता है यह ओट शब्दों की है न कि छुपकर बोलने की है।
पुस्तक:-'ओट में खड़ा मैं बोलता हूँ':- केदारनाथ अग्रवाल
चयन-संपादन: दूधनाथ सिंह,साहित्य भण्डार प्रकाशन इलाहबाद प्रसं-2011
मूल्य-300 रुपये
समीक्षक
कालुलाल कुलमी
(केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं पर शोधरत कालूलाल
मूलत:कानोड़,उदयपुर के रेवासी है.)
वर्तमान पता:-
महात्मा गांधी अंतर राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,
पंचटीला,वर्धा-442001,मो. 09595614315
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