मई-2013 अंक
(समस्त चित्र स्वतंत्र पत्रकार श्री नटवर त्रिपाठी के द्वारा ही लिए गए हैं-सम्पादक )
(यह रचना पहली बार 'अपनी माटी' पर ही प्रकाशित हो रही है।)
(समस्त चित्र स्वतंत्र पत्रकार श्री नटवर त्रिपाठी के द्वारा ही लिए गए हैं-सम्पादक )
प्रायः यह कहा जाता है कि खेती आजकल लाभ का उपक्रम नहीं है। किन्तु राजस्थान चित्तौड़गढ़ के जीतावल ग्राम के खेतिहर श्याम सुन्दर ने इस धारणा को निर्मूल किया है। ऐसे में कोई महज दो बीघा भूमि में तापमान की विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बना कर गुलाब की खेती में 20-25 बीघा जितनी उपज ले-ले, केवल एक वर्ष में 8-10 लाख रूपयों से अधिक की खेती दो-ढ़ाई लाख के खर्च के उपरान्त कमा ले, तो सुनने वाले लोग आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। यूं तो साल में साधारणतः दो फसलें ली जाती है, प्रगतिशील किसान कहीं-कहीं तीन-तीन फसलें भी बोते हैं। परन्तु इस किसान की साधारण लाल मिट्टी वाली जमीन में बारह मास गुलाब के फूल खिलते हैं और साल में 275-300 दिन गुलाब के फूल बाजार में बिक्री के लिए भेजे जाते हैं।
चित्तौड़गढ़ में फूलों की खेती क्षेत्र में नवाचार की अविश्वसनीय दस्तक इस मामूली किसान ने दी है। बारह मास इनके बगीचे में गुलाब की कलियां चन्द्रकला सी खिलती है। यहां इनके ग्रीन हाउस में लाल सूर्ख, पीले, सफेद, गुलाबी, नारंगी और बहुरंगी गुलाब सदा ही आंख मिचौनी करते लगते हैं।यह किसान और कोई नहीं चित्ताड़गढ़ के जीतावल ग्राम का बिजली का डिप्लोमाधारी श्याम सुन्दर शर्मा है जो जीवन में कई नौकरियां छोड़ अधेड़ आयु में आठ साल बागवानी का अनुभव लिए ग्रीन हाउस में गुलाब की सफल खेती को अन्जाम दे कर जिले और राज्य स्तर पर आगे की पंक्ति में खड़ा है। इस किसान ने यही कोई दो वर्ष पहले जयपुर उद्यानिकी विभाग की सलाह और सहयोग से एक-एक हजार मीटर के दो ग्रीन हाउस बनाये। इनमें ड्रिप सिंचाई व उपजाऊ मिट्टी का प्रबन्ध किया। भूमि को उपचाररत कर कीटाणु रहित किया और पूणे जाकर डच गार्डन के बगीचों और किसानों की तज़बीज को गहराई से देखा-समझा। उन किसानों की सलाहनुसार बैंगलोर से गुलाब के पौधों की कलमें साढ़े नो-नो लाख रूपये की लागत से बनवाये तथा भूमि में आवश्यक मिट्टी डलवाई, उपचारित किया और एक-एक कर दो ग्रीन हाउस में 19 कतारों में 17 से.मी. की दूरी पर एक-एक बेड में दो-दो पौधों के हिसाब से 4-4 कुल 8 हजार गुलाब की कलमें रोप दी।
ग्रीन हाउस में गुलाब की उच्च खेती की तकनीक का शतप्रतिशत इस्तेमाल करते हुए धूप और गर्मी के तापमान को कम करने और अनुकूलता के निकट तापमान बनाये रखने में सफलता हांसिल की और गुलाब के फूलों की अच्छी उपज लेने का सपना अपने धन के विनिययोजन के एक वर्ष उपरान्त ही प्राप्त कर लिया। सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली और तापमान को बनाए रखने के लिए प्रतिदिन और प्रतिधंटा मिस्ट और आवश्यकतानुसार स्प्रिंकलर पद्दति का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रणाली से कम भूमि में अधिक उपज लेने, कम पानी, कम मजदूरी और कम लागत से बेहतर गुणवत्ता का लाभ उठाया जा रहा है। इन पौधों पर मकड़ियों, फंगस, फड़के, सफेद मक्खी आदि के आक्रमण से बचाव के लिए इनके पास उपयुक्त तकनीक, साधन-सुविधाएं और ज्ञान उपलब्ध है।
डच श्रेणी के उच्च गुणवत्ता वाले गुलाब की बाजार में सदा मांग बनी रहती है परन्तु त्योहारों, उत्सवों और शादी-विवाह में गुलाब के ताजे, खिले-खिले डच गुलाब के फूलों का आकाश बड़ा ऊंचा होता है। चित्तौड़गढ़ से हर रोज ये गुलाब के फूल मांग के अनुसार जयपुर, उदयपुर, अजमेंर और भीलवाड़ा के फूल बाजार में भिजवाते हैं जहां से नियत समय में इनके खाते में पैसा जमा हो जाते हैंं। फूलों के इस बगीचे से प्रतिदिन औसतन 30 से 40 गुच्छे (बंच) जिनमें प्रति गुच्छा 20-20 फूलों की टहनियां होती है, फिनिशिंग, कटिंग और ग्रेडिग की जाती है, औसतन 600 से 800 गुलाब टहनियों सहित बाजार भिजवाए जाते हैं। इस प्रकार प्रति गुच्छा 100 से 125 रू. और औसतन 5 से 7 हजार रूपया प्रति दिन फूलों के बदले नकद मिल जाता है। करीब डेढ़ लाख रूपया सालाना मजदूरी और कीटनाशक दवाओं और रासायनिक खादों व बिजली आदि पर खर्च आता है। परिवार में तीन सदस्य और दो मजदूर मिल कर इन दोनों ग्रीन हाउस में काम करते हैं।
उदयपुर स्थित महाराणा प्रताप कृषि प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय से राज्य स्तर पर और जिला प्रशासन द्वारा जिला स्तर पर पुरस्कृत इस प्रगतिशील किसान ने अपने बागवानी के तर्जुबे के अनुसार उसकी शेष भूमि में 1500 अमरूद, और के नींबू फल लगा कर मजबूत आर्थिक आधार खड़ा किया है। उसे आगामी वर्ष में अमरूद का व्यावसायिक लाभ मिलना प्रारंभ हो जाएगां। इस बगीचे में भी ड्रिप सिंचाई का प्रबन्ध किया जिससें अपने बोरवेल से 5-6 घण्टे पावर से समुचित 20 बीघा की फसलों को पानी मिल जाता है और लगभग 400 रूपया प्रतिदिन ऐसे मजदूरी कार्य पर होने खर्च से निजात मिल जाती है। किसान ने अपने बगीचे पर ही घर बनाया है और घर से ही बगीचे की देखरेख करता है। उसका मानना है कि राजस्थान में तो इसकी शुरूआत है किन्तु बैंगलोर और पूणें में तो सड़कों के किनारे-किनारे हजारों एकड़ में ग्रीन हाउस में फूलों और सब्जियों की अपरिमित करोड़ों रूपये की उपज विदेशों में निर्यात होती है।
इस किसान के घर-कुटुम्ब में खेती नहीं, मां-बाप, भाई-बहन सबके सब नौकर पेशा। खुद ने भी आधी से ज्यादा जिन्दगी भारत में सरकारी, अर्द्ध सरकारी, मिलेट्री, हेवीवाटर और देश के बाहर संयुक्त अरब गणराज्य में गुज़ारी। पारिवारिक दुविधा से भारत आना पड़ा। बाद में यहां बसो-ट्रकों का धन्धा उखड़ गया। आधी जिन्दगी की कमाई से चित्तौड़गढ़ के गांधीनगर इलाके में गंभीरी नदी के किनारे थोड़ी जमीन ली। वहां अमरूद का बगीचा रंग लाया। किन्तु गृहस्थी की गाड़ी खींचने के लिए अपने बगीचे के अमरूद अपने हाथ ठेले गाड़ी में बेचने लगे। मण्डी में 4-5 रुपया और ठेले पर 10-12 रुपया किलो जो अमरूदों से मिलता था। विदेश की अच्छी और आराम की कमाई के आगे यह भी दुरुह लगा। तीन वर्ष पहले बगीचे को बेच दिया और ढ़ाई वर्ष पूर्व चित्तौड़गढ़ से 15 किलोमीटर दूर उदयपुर सड़क मार्ग पर 20 बीघा जमीन खरीद ली। ऊबड़-खाबड़ और ऊसर जमीन को खेती योग्य बनाया। सुरक्षा के लिए कंटीले तारों की बाड़ लगाई। उन्नत खेती प्रारंभ की।
(समाज,मीडिया और राष्ट्र के हालातों पर विशिष्ट समझ और राय रखते हैं। मूल रूप से चित्तौड़,राजस्थान के वासी हैं। राजस्थान सरकार में जीवनभर सूचना और जनसंपर्क विभाग में विभिन्न पदों पर सेवा की और आखिर में 1997 में उप-निदेशक पद से सेवानिवृति। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। कुछ सालों से फीचर लेखन में व्यस्त। वेस्ट ज़ोन कल्चरल सेंटर,उदयपुर से 'मोर', 'थेवा कला', 'अग्नि नृत्य' आदि सांस्कृतिक अध्ययनों पर लघु शोधपरक डोक्युमेंटेशन छप चुके हैं।
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चित्तौड़गढ़
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(यह रचना पहली बार 'अपनी माटी' पर ही प्रकाशित हो रही है।)
thanks
जवाब देंहटाएंnatwar tripathi
Gulab ki Kheti ke Barai mai jankari Deve
जवाब देंहटाएंGulab ki Kheti ke Barai mai jankari Deve
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