मई -2013 अंक (यह रचना पहली बार 'अपनी माटी' पर ही प्रकाशित हो रही है।)
(3)भाई की शादी
भाई की शादी है
निकासी का वक़्त
घोडी तैयार है
तैयार हैं बाजे वाले
बाराती सजे हैं
मगर घर के भीतर
कोठारी में छिपकर
बड़े भाई रो रहे हैं
रो रही हैं बहनें
आँगन में जार-जार
बड़ी बुढियां उनको
संभालने में जुटी हैं
बाहर पिता बैठे हैं
हताश और लुटे पिटे
बूढी दादी धीमे-धीमे
उनसे कुछ कह रही है
बीच-बीच में आँखों को
पल्लू से पौंछती
पर यह माँ कहाँ है ?
वह तो अपने बेटे की
नज़र उतार रही है
बलैया ले रही है
घोड़ी को दाना
नाइन को बेस
कुम्हारिन को कलशों का नेग
दे रही है
वह माँ
जो चलेगी थी
बरसों पहले दुनिया से।
(4) पेड़
काटे जा रहे हैं पेड़
जो तना है
वह कटेगा
(5) तेरा हँसना
तेरा हँसना
एक युद्ध
पूरी सड़ी के विरुद्ध
(6) वेश्या नहीं
अक्सर उसे देखा मैंने
खाना बनाते देखा
चूल्हा जला हुआ होता
कड़ेली चढ़ी हुई
वह रोटी बेलती
सेकती
और छाबड़ी में रखती जाती
पास ही बच्चा खेल रहा होता
बकरी चार रही होती
दो चार बार उसे
पंसारी के यहाँ
सौदा सूत लेते देखा
एक दिन मिली वह-बदहवास
शायद अस्पताल से लौट रही थी
उसके हाथ में दवाइयां थीं
और गोद में बच्चा
जिसके पांसू तेज तेज चल रहे थे
अचानक वह रोने लगा
तो सत्वर उसने
आँचल की ओट देकर उसे
छाती से लगा लिया
मैंने बहुत चाहा
कि उसे देखकर मुझमें उत्तेजना जगे
कई बार,मन ही मन
अनावृत भी किया
मगर हर बार
वह रोटी पोते दिखी
या सौदा सूत लेते
या अस्पताल से लौटते
एक लाचार भारतीय स्त्री
जबकी भद्रजन
आँख मार कर कहते हैं
बड़ी चालू चीज़ है
बहुत धाँसू माल है।
(ये कवितायेँ राजस्थान के प्रतिबद्ध रचनाकार कवि विनोद पदरज के कविता संग्रह 'कोई तो रंग है' से पाठक हित में साभार यहाँ ली जा रही हैं जो असल में सन 2002 में प्रकाहित हुआ था।उनकी कविताओं में उनके जीवन और जीवन संघर्ष की झलक साफ़ तौर पर देखी जा सकती हैं।वे ग्रामीण जीवन शैली और आम आदमी के जीवन में बहुत बारीक ढंग से झाँकते हुए उसे कविता की शक्ल देते हुए प्रतीत हुए हैं। बहुत नए ढ़ंग से विषयों को उठाते हुए उनमें देशज शब्दों का उपयोग कर विनोद पदरज ने कविता में जान फूंकी है।उनकी कवितायेँ श्रम के सौन्दर्यशास्त्र से प्रभावित हैं और संवेदनाओं के धरातल पर पाठक को खासे ढ़ंग से झकझोरती है।संग्रह में कवि का फोटो नहीं छपा है।परिचय भी सादगी संपन्न।फोन नंबर अब काम नहीं करता है।डाक के पते का मालुम नहीं।आदमी बड़ा है ये बात हम कह सकते हैं।वो भी तब जब कवितायेँ पढ़ ली गयी हैं।-सम्पादक )
(1 ) सरोकार
जड़ों में पैठे हुए थे पिता
खाद और पानी होते हुए लगातार
एक तने की तरह तनी थी माँ
फूलों,पत्तियों और हरियाली के लिए व्याकुल
आँधी ,पानी और धूप का अंधा प्रवाह
झेलती हुई
और खुरदरी और खुरदरी
होती हुई हर बार
मैंने नहीं की आसमान से दोस्ती
नहीं किया हवा से प्यार
सीधे नीचे झुका
और ज़मीन में समा गया
जड़ और तना दोनों होते हुए।
(2 )बहन
ज्यादा मत हँसा कर
नहीं तो दुःख पायेगी
बरजती थी माँ
छोटी बहन को
अब नहीं हँसती बहन
उस तरह से
जिस तरह से
खिलखिलाती
उड़ रही है भानजी
बल्कि डांटती हैं
नासपीटी
बंद कर
ज्यादा खिलखिलाएगी
तो जीते जी मर जायेगी
और उदास हो जाती है
ना जाने किन स्मृतियों में खो जाती है।
(3)भाई की शादी
भाई की शादी है
निकासी का वक़्त
घोडी तैयार है
तैयार हैं बाजे वाले
बाराती सजे हैं
मगर घर के भीतर
कोठारी में छिपकर
बड़े भाई रो रहे हैं
रो रही हैं बहनें
आँगन में जार-जार
बड़ी बुढियां उनको
संभालने में जुटी हैं
बाहर पिता बैठे हैं
हताश और लुटे पिटे
बूढी दादी धीमे-धीमे
उनसे कुछ कह रही है
बीच-बीच में आँखों को
पल्लू से पौंछती
पर यह माँ कहाँ है ?
वह तो अपने बेटे की
नज़र उतार रही है
बलैया ले रही है
घोड़ी को दाना
नाइन को बेस
कुम्हारिन को कलशों का नेग
दे रही है
वह माँ
जो चलेगी थी
बरसों पहले दुनिया से।
(4) पेड़
काटे जा रहे हैं पेड़
जो तना है
वह कटेगा
(5) तेरा हँसना
तेरा हँसना
एक युद्ध
पूरी सड़ी के विरुद्ध
(6) वेश्या नहीं
अक्सर उसे देखा मैंने
खाना बनाते देखा
चूल्हा जला हुआ होता
कड़ेली चढ़ी हुई
वह रोटी बेलती
सेकती
और छाबड़ी में रखती जाती
पास ही बच्चा खेल रहा होता
बकरी चार रही होती
दो चार बार उसे
पंसारी के यहाँ
सौदा सूत लेते देखा
एक दिन मिली वह-बदहवास
शायद अस्पताल से लौट रही थी
उसके हाथ में दवाइयां थीं
और गोद में बच्चा
जिसके पांसू तेज तेज चल रहे थे
अचानक वह रोने लगा
तो सत्वर उसने
आँचल की ओट देकर उसे
छाती से लगा लिया
मैंने बहुत चाहा
कि उसे देखकर मुझमें उत्तेजना जगे
कई बार,मन ही मन
अनावृत भी किया
मगर हर बार
वह रोटी पोते दिखी
या सौदा सूत लेते
या अस्पताल से लौटते
एक लाचार भारतीय स्त्री
जबकी भद्रजन
आँख मार कर कहते हैं
बड़ी चालू चीज़ है
बहुत धाँसू माल है।
vinod ji ki kavithaeim achi lagi.
जवाब देंहटाएंजॆसी सहज-सादी कविताएं मुझे प्राय: पसंद आती हॆं, ये कविताएं वॆसी ही हॆं। पहली बार पढ़ी हॆं आपकी कविताएं। बधाई कवि को ऒर आभार संपादक के प्रति।षां कविता 5 तेरा हँसना में ’सड़ी’ शब्द का क्या आशय ऒर अर्थ हॆ?--दिविक रमेश
जवाब देंहटाएंशायद टाईपिंग मिस्टेक है।
हटाएंशुद्ध शब्द 'सदी' है
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