मई -2013 अंक
जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू
विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली) की रंगमचीय
गतिविधियाँ हम सबके लिए हमेशा
से गहरे
आकर्षण का
विषय रही
है। सच
कहूँ तो
हम यहाँ
जितना कक्षाओं
में सीखते
है उससे
कहीं अधिक
बाहरी गतिविधियों,
विशेषकर नाटकों
से सीखते
है। कुलदीप
कुणाल लिखित
और सतीश
मुख्तलिफ निर्देशित
‘एकलव्य उवाच’
ऐसा ही
एक नाटक
है।
एकलव्य (शिष्य) और द्रोणाचार्य (गुरू) के महाभारतकालीन मिथक से हम सभी परिचित है लेकिन ‘एकलव्य उवाच’ नाटक उन मिथकीय घटनाओं के माध्यम से आधुनिक सन्दर्भ में आदिवासियत को पड़तालने की सफल कोशिश करता है, इतिहास को उलटने का काम करता है। नाटक आदिवासियत को, आदिवासियों की प्रतिभा को स्वीकारते हुए उनके पक्ष में खड़ा होकर उस इतिहास लेखन पर सवालिया निशान खड़ा करता है, जिनमें सिलसिलेवार ढंग से हाशिए की अस्मिताओं को हाशिए पर रखे जाने के महानतम षड़यन्त्र रचे गए। फिर चाहे वो प्राचीनकाल वाल्मीकी की मिथकीय ‘रामायण’ हो या फिर आधुनिक काल की जवाहरलाल नेहरू की ‘भारत एक खोज’।
एकलव्य (शिष्य) और द्रोणाचार्य (गुरू) के महाभारतकालीन मिथक से हम सभी परिचित है लेकिन ‘एकलव्य उवाच’ नाटक उन मिथकीय घटनाओं के माध्यम से आधुनिक सन्दर्भ में आदिवासियत को पड़तालने की सफल कोशिश करता है, इतिहास को उलटने का काम करता है। नाटक आदिवासियत को, आदिवासियों की प्रतिभा को स्वीकारते हुए उनके पक्ष में खड़ा होकर उस इतिहास लेखन पर सवालिया निशान खड़ा करता है, जिनमें सिलसिलेवार ढंग से हाशिए की अस्मिताओं को हाशिए पर रखे जाने के महानतम षड़यन्त्र रचे गए। फिर चाहे वो प्राचीनकाल वाल्मीकी की मिथकीय ‘रामायण’ हो या फिर आधुनिक काल की जवाहरलाल नेहरू की ‘भारत एक खोज’।
नाटक : ‘एकलव्य उवाच’,
लेखक : कुलदीप कुणाल,
निर्देशक : सतीश मुख्तलिफ
|
‘एकलव्य उवाच’ नाटक
में एकलव्य
नान का
यह शख्स
हमारे समाज
की क्रूरतम
जातीय व्यवस्था
से जद्दोजहद
करते हुए
अपनी प्रतिभा
के बूते
अपनी एक
अलग और
विशिष्ट पहचान
बनाता है।
वह किसी
का पिछलग्गू
या नकलची
नहीं है।
वह नये
रास्तों का
ईजाद करता
है। उसके
द्वारा पूर्णतः
वैयक्तिक प्रयासों
से अर्जित
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के मुकाम को
प्रतिगामी व्यवस्था अपने खतरे के
रूप में
देखती है
और परम्परागत
मिथकों का
इस्तेमाल करते
हुए छलना
चाहती है...
लेकिन नयी
पीठी का
एकलव्य अब
व्यवस्था के
सड़ान्ध मारते
उन तमाम
फफोले को
पहचान चुका
है। वह
द्रोणाचार्य को अँगूठा दिखाने में
कामयाब रहता
है।
पुखराज जाँगिड़
युवा आलोचक हैं।
राष्ट्रीय मासिक ‘संवेद’ और
‘सबलोग’ के सहायक संपादक,
ई-पत्रिका ‘अपनीमाटी’
व ‘मूक आवाज’ के
संपादकीय सहयोगी है।
दिल्ली विश्वविद्यालय से
‘लोकप्रिय साहित्य की अवधारणा और
वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास’
पर एम.फिल. के बाद
फिलहाल
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
के भारतीय भाषा केन्द्र से
साहित्य और सिनेमा के
अंतर्संबंधों पर पीएच.डी. कर रहे है।
संपर्क:
204-E,
ब्रह्मपुत्र छात्रावास,
पूर्वांचल,
जवाहलाल नेहरू विश्वविद्यालय,
नई दिल्ली-67
|
बहुत कम संसाधनों
में इतनी
अच्छी नाटक
प्रस्तुति अपने आप में बहुत
बड़ी बात
है। दरअसल
हम एक
ऐसे ज्वालामुखी
के क्रेटर
पर खड़े
होकर ऐसे
भविष्य के
सपने देख
रहे है
जो किसी
भी पल
हमारे समूल
अस्तित्व को
हमेशा-हमेशा
के लिए
राख के
ढेर में
तब्दील कर
सकता है।
तिस पर
विडम्बना यह
कि हम
इसे जानकर
भी अनजान
है। इन
सबके प्रति
आगाह करते
हुए यह
नाटक हमारे
सपनों में
जान डालने
का काम
करता है,
एक तरह
से संजीवनी
(मिथक वाली
नहीं)...
शुक्रिया भाई।
जवाब देंहटाएंनमस्कार सर एक जानकारी चाहिए एकलव्य उवाच नाटक जो कुलदीप कुणाल द्वारा लिखा गया और सतीश सर द्वारा निर्देशित किया गया कहा प्राप्त हो सकता है,और यह किस प्रकाशन से प्रकाशित है
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें