जुलाई-2013 अंक
ख़्वाबों को बनते बिखरते देखा करते है
वो जिनके अपने ख़्वाब हुआ करते हैं
हमने देखे है ऐसे कमजर्फ भी दुनिया में
जो पास जलते घर को हवा दिया करते हैं
इंसान बनाने बंद कर दिये है आजकल
खुदा भी अब सिर्फ खुदा बनाया करते हैं
कौन रोता है ग़ैरों की खातिर यहाँ पर
खुद के दर्द को याद कर सब रोया करते हैं
जो बोलता नहीं उसे बोलना मत सिखाओ
आँसू बुजुगों के यही बात दोहराया करते हैं
नज़र ना लगे सफ़ेद पैरहन को किसी की
ये लोग करतूते हमेशा काली किया करते हैं
ख़्वाबों में भी उनके आने से आंखे नम हुई 'सिफर'
आँसू, यादों से अपने मरासिम यूँ निभाया करते हैं
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