कविताएँ:कौशल किशोर

अगस्त-2013 अंक 

इन्तजार

एक 

सबको है इन्तजार
तानाशाह को है युद्ध का इन्तजार
जनता को है मुक्ति का इन्तजार
सवाल एक सा है दोनों तरफ
कि कैसे खत्म हो
यह इन्तजार ?

दो 

हम इतिहास के कैसे लोग हैं
जिनका खत्म नहीं होता इन्तजार
जब कि हमारी ही बच्ची
दवा के इन्तजार में
खत्म हो जाती है
सिर्फ चौबीस घंटे के भीतर ।

तीन 

हमारा ही रंग
उतर रहा है
और हम ही हैं
जो कर रहे हैं इन्तजार

कि कोई तो आयेगा उद्धारक
कोई तो करेगा शुरुआत
कोई तो बांझ धरती को
बनायेगा रजस्वला
किसी से तो होगा वह सब कुछ
जिसका हम कर रहे हैं इन्तजार


अपनी सुविधाओं की चादर के भीतर से झांकते 
बच्चों को पढ़ाते 
मन को गुदगुदाते
इन्द्रधनुषी सपने बुनते
पत्नी को प्यार करते

फिर इन सब पर गरम होते
झुंझलाते
दूसरों को कोसते 
सारी दुनिया की 
ऐसी तैसी करने के बारे में सोचते
हम कर रहे हैं 
इन्तजार..............


चार 

 कहती हो तुम
 मैं प्रेम नहीं करता

 जिंदगी हो तुम
 कैसे जा सकता हूँ दूर 
 अपनी जिंदगी से

 यह दिल जो धड़कता है
 उसकी प्राणवायु हो तुम

 मेरे अंदर भी जल तरंगें उठती हैं
 हवाएं लहराती हैं
 पेड़ पौधे झूला झूलते हैं
 उनके आलिंगन में
 अपना ही अक्स मौजूद होता है

 चाहता हूँ 
 तुम्हारा हाथ अपने हाथ में ले 
 घंटों बैठूं
 बातें करुं
 बाँट लूँ हंसी खुशी 
 सारा दु:ख दर्द

 मैं तुम्हारे बालों को 
 हौले हौले सहलाऊं
 तुम्हारे हाथों का प्यारा स्पंदन 
 अपने रोएदार सीने पर 
 महसूस  करुं
 बस इंतजार है इस दिन का
 कैसा है यह इंतजार
 कि खत्म ही नहीं होता 

 कैसे खत्म हो यह इंतजार
 बस इसी का है इंतजार.......।

(जन संस्कृति मंच के संस्थापकों में एक तथा जसम के प्रथम राष्ट्रीय संगठन सचिव।पहल, उत्तरार्ध, युग परिबोध, उत्तरगाथा, जनमत,  वर्तमान साहित्य, पुरुष, हंस, कथादेश, इसलिए, आइना, रविवार, प्रारुप, युवा, शरर, निष्कर्ष, जनसत्ता, अमृत प्रभात, हिन्दुस्तान, अमर उजाला, आज, जनसंदेश टाइम्स, श्री टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा, डेली न्यूज, अन्ततः, छपते छपते आदि दर्जनों पत्र-पत्रिकाओ में रचनाएं प्रकाशित।संपर्क: एफ.3144, राजाजीपुरम, लखनऊ.226017,फोन : 09807519227 ,ई मेल:kaushalsil.2008@gmail.com)



3 टिप्पणियाँ

  1. मै बौंडा डूबन डरा
    रहा किनारे बैठ.

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  2. अच्छी और सार्थक कवितायें ....

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  3. बहुत ही सुन्दर कविताएं।
    " हमारा ही रंग
    उतर रहा है
    और हम ही हैं
    जो कर रहे हैं इन्तजार"
    बहुत ही भावुक परन्तु गंभीर पक्तियाँ हैं।
    स्वयं शून्य

    जवाब देंहटाएं

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