उत्सव
तड़पता तट
भागती मीन
बिसुरती नदी
पसीने-पसीने पानी
बता रहा-
फ़िर उत्सव
विसर्जन ?
विष-अर्जन ?
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अर्थ
अर्थ के अर्थ
में
जीवन के क्या
अर्थ हुए
।
रसोइयाँ हुई स्याह
/ वीरान
और बाज़ार सज
गए,
दो जिस्म, थे
एक जान,
नदी के तट-बंध हुए
।
चिता पर सिकतीं
रोटियाँ,
मज़ार पर बाज़ार
लगे,
मज़लूमों की मज़बूरी,
ओहदेदारों के शौक
हुए ।
अर्थवान समृद्ध बनने,
खण्डित कर घर
परिवार,
नोटों का झाड़
उगाने,
हम घाणी के
बैल हुए
।
अनाचार, दंभ, विलासिता,
परिवेश जनित जन्म-घुट्टी,
बचपन बना मशीन
,
और खिलौने बंदूक
हुए ।
छोड़ संस्कार, शालीनता,
शाँति,
जुटाते रुतबा, ताकत,
मन-रंजन, मति-भंजन से,
आदर्श सब रावण
हुए ।
राम निवास बांयला
ग्राम सोहन पुरा,
पोस्ट : पाटन
जिला : सीकर (राजस्थान)
केन्द्रीय विद्यालय मे
वरिष्ठ शिक्षक
बोनसाई (कविता संग्रह),
हिमायत (लघु
कथा संग्रह)
मो. : 09413152703
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