फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़ैज़ साहेब की कुछ ज़रूरी नज़्में
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बोल कि लब
आज़ाद हैं
तेरे
बोल कि लब
आज़ाद हैं
तेरे
बोल ज़बाँ अब
तक तेरी
है
तेरा सुतवाँ जिस्म
है तेरा
बोल कि जाँ
अब तक्
तेरी है
देख के आहंगर
की दुकाँ
में
तुंद हैं शोले
सुर्ख़ है
आहन
खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों
के दहाने
फैला हर एक
ज़न्जीर का
दामन
बोल ये थोड़ा
वक़्त बहोत
है
जिस्म-ओ-ज़बाँ
की मौत
से पहले
बोल कि सच
ज़िंदा है
अब तक
बोल जो कुछ
कहने है
कह ले
मुझ से पहली
सी मोहब्बत
मेरे महबूब
न माँग
मुझसे पहली सी
मुहब्बत मेरी
महबूब न
माँग
मैंने समझा था
कि तू
है तो
दरख़्शाँ है
हयात
तेरा ग़म है
तो ग़मे-दहर का
झगड़ा क्या
है
तेरी सूरत से
है आलम
में बहारों
को सबात
तेरी आँखों के
सिवा दुनिया
में रक्खा
क्या है?
तू जो मिल
जाए तो
तक़दीर निगूँ
हो जाए
यूँ न था,
मैंने फ़क़त
चाहा था
यूँ हो
जाए
और भी दुख
हैं ज़माने
में मुहब्बत
के सिवा
राहतें और भी
हैं, वस्ल
की राहत
के सिवा
अनगिनत सदियों के
तारीक बहीमाना
तिलिस्म
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख़्वाब
में बुनवाए
हुए
जा-ब-जा बिकते हुए
कूचा-ओ-बाज़ार में
जिस्म
ख़ाक में लिथड़े
हुए, ख़ून
में नहलाए
हुए
जिस्म निकले हुए
अमराज़ के
तन्नूरों से
पीप बहती हुई
गलते हुए
नासूरों से
लौट जाती है
उधर को
भी नज़र
क्या कीजे
अब भी दिलकश
है तेरा
हुस्न मगर
क्या कीजे!
और भी दुख
हैं ज़माने
में मुहब्बत
के सिवा
राहतें और भी
हैं वस्ल
की राहत
के सिवा
मुझसे पहली सी
मुहब्बत मेरी
महबूब न
माँग
नौहा
मुझको शिकवा है
मेरे भाई
कि तुम
जाते हुए
ले गए साथ
मेरी उम्रे-गुज़िश्ता की
किताब
उसमें तो मेरी
बहुत क़ीमती
तस्वीरें थीं
उसमें बचपन था
मेरा, और
मेरा अहदे-शबाब
उसके बदले मुझे
तुम दे
गए जाते-जाते
अपने ग़म का
यह् दमकता
हुआ ख़ूँ-रंग गुलाब
क्या करूँ भाई,
ये एज़ाज़
मैं क्यूँ
कर पहनूँ
मुझसे ले लो
मेरी सब
चाक क़मीज़ों
का हिसाब
आख़िरी बार है
लो मान
लो इक
ये भी
सवाल
आज तक तुमसे
मैं लौटा
नहीं मायूसे-जवाब
आके ले जाओ
तुम अपना
ये दहकता
हुआ फूल
मुझको लौटा दो
मेरी उम्रे-गुज़िश्ता की
किताब
नसीब आज़माने के
दिन आ
रहे हैं
नसीब आज़माने के
दिन आ
रहे हैं
क़रीब उनके आने
के दिन
आ रहे
हैं
जो दिल से
कहा है
जो दिल
से सुना
है
सब उनको सुनाने
के दिन
आ रहे
हैं
अभी से दिल-ओ-जाँ
सरे-राह
रख दो
के लुटने लुटाने
के दिन
आ रहे
हैं
टपकने लगी उन
निगाहों से
मस्ती
निगाहें चुराने के
दिन आ
रहे हैं
सबा फिर हमें
पूछती फिर
रही है
चमन को सजाने
के दिन
आ रहे
हैं
चलो 'फ़ैज़' फिर
से कहीं
दिल लगाएँ
सुना है ठिकाने
के दिन
आ रहे
हैं
WAH
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