साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
नवम्बर-2013 अंक
- मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ के पचास साल
- ''बहुत कुछ है जिसे हम आदिवासी समाज के इतिहास एवं जीवन से सीख सकते हैं''- हरीराम मीणा
- पटना में ‘मैनाघाट के सिद्ध एवं अन्य कथाएँ’ पर विमर्श
- विजयदान देथा के निधन से हमने लोकजीवन के दुर्लभ रचनाकार को खो दिया है
- डॉ. परमानन्द श्रीवास्तव का निधन
- इरोम शर्मिला की भूख हड़ताल के तेरह साल
- भाषा से ही जीवित रहती है संस्कृतिः डॉ भाटी
- ''बदलते वक़्त के साथ कदम मिलाने की कोशिश करते हैं ''-गुलज़ार
- अपने मत पर अडिग रहने वाले दूरदर्शी सम्पादक राजेन्द्र यादव को श्रद्धांजलि
- पाँचवी अरविन्द स्मृति संगोष्ठी
- राजेन्द्र यादव को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि
- राजेन्द्र यादव का बड़ा योगदान है
- राजेन्द्र यादव के निधन से मर्माहत बिहार प्रलेस
- धर्मनिरपेक्षता लोकतंत्र का मूल
- प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी सेवा सम्मान से अंलकृत
- प्रतिरोध का सिनेमा @ रामपुर उत्सव
- उदयपुर फिल्म सोसाइटी की “मासिक फिल्म स्क्रीनिंग” का आगाज़
- ‘राष्ट्रीय क्षितिज पर कोसी अंचल की युवा हिन्दी कविता’
- कविता और उसके कथ्य, भाषा व शैली के बदलावों को परखने की जरूरत है@ कालाकुंड
- साहित्य के केन्द्र में मनुष्य है- रमाकांत मिश्र
- ''दुष्यंत की कहानियां बिल्कुल नए जमाने की सच्चाइयों का संधान करती हैं''-रामेश्वर राय
- ‘‘हमारा इतिहास आधा देवताओं और आधा राजा रानियों ने घेर रखा है, हमारी पंरपरा है कि हम चित्रण को देखने के आदी रहे हैं।''- अशोक भौमिक
- ''स्त्री विमर्श के दौरान सबसे ज्यादा जरूरत है तो परम्परा से चले आ रहे पुरुष निर्मित संजाल को समझने की है। ''-प्रो. रोहिणी अग्रवाल
- ''हमें अपने काम, अपनी राजनीति और अपनी सेक्सुअलिटी को भी अलग-अलग न करके उन्हें एक साथ जोड़कर देखना चाहिए ''-मणीन्द्रनाथ ठाकुर
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