आलेख:हिन्दी और कन्नड़ कहानियों के सन्दर्भ में मुस्लिम नारी संघर्ष / सिराजोदिन

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भारतीय समाज अनेक धर्म-जातियों और अलग-अलग संस्कृतियों में विभाजित है। यहाँ हर धर्म के अपने-अपने आचार-विचार अलग होने के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पहलू भी अलग-अलग है। हर धर्म एवं समाज में  पितृसत्तात्मक व्यवस्था अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए  हर रोज स्त्रियों पर दबाव, शोषण, अत्याचार करता है। पितृसत्तात्मक समाज में नारी के प्रति सारी धारणा दो मूलभूत तत्वों से बनी है- भय और घृणा। उसके साथ रहे बिना कोई चारा नहीं है, लेकिन वह एक ऐसी मानसिकता रखने वाला आदमी है जो कभी भी खूँखार हो सकता है। इस व्यवस्था में आदमी खूँखार होने पर स्त्रियों पर अपनी क्रुरता एवं आक्रमकता से शोषण, अत्याचार करता है और अपने स्वार्थ के लिए उनके व्यक्तित्व समाप्त करने का प्रयास एवं अधिकारों से वंचित रखता है।

          भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अन्तर्गत नारी को सिर्फ़ एक वस्तु, संभोग और सन्तान की इच्छा पूरी करनेवाली मादा समझा जाता है। यहाँ सेवा, उपयोग और वफादारी के बदले पुरुष स्त्री को उसी तरह सजाता, सुरक्षा देता और उसकी जिम्मेदारी लेता है। दूसरी ओर आज के समय एवं सन्दर्भ की ओर नज़र डाले तो देख सकते है कि पुरुष कितना कामुकता एवं वासना का आदी बन गया है। समाज के कोण से देखें तो बलात्कार ही मात्र ऐसा अपराध है जिसमें समाज की दृष्टि बलात्कार करनेवाले अपराधी के स्थान पर बलात्कार की शिकार हुई स्त्री पर टिकती है, कभी-कभी स्त्री ही दोषी ठहराई जाती है। सामाजिक अपमान स्त्री के हिस्से में आता है। आज के समय में बलात्कार का प्रश्न सौ पर्दों में छिपाने का विषय नहीं रह गया है, रोजाना देश में कई न कई ऐसे प्रकरण सामने आ रहे हैं। परंतु सरकार एवं समाज की मानसिकता में अधिक फर्क नहीं आया है। समाज में ऐसे व्यक्तियों को जो अपनी मानवता को भूलकर नीव एवं घिनौने कार्य करने लगा है उसे हमारी कानून व्यवस्था कड़ी सी कड़ी सज़ा देना चाहिए। सरकार ने तो कई नियम और कानून तो बनाए है लेकिन सभी पुरुषसत्ता के पक्ष में है। जब भी कोई राजनेता या कानून के रखवाले अपनी टिप्पणी करते है तो सिर्फ़ स्त्रियों पर ही नियमों की बात करते हैं। न की दोषियों को कड़ी सी कड़ी सज़ा दिलाने पर।

          समाज में स्त्री और पुरुष एक सिक्के के दो पहलू की तरह है। इस व्यवस्था में हम स्त्रियों की आज़ादी, सम्मान एवं उनके अधिकारों की तो बात करते है लेकिन प्रैक्टिकल में करने से पीछे रह जाते है। भले ही कुछ लोग स्त्रियों की आजादी, सम्मान एवं अधिकारों का समर्थन करते हो या उनके हर कदम पर कदम मिलाकर चलते हो या उनके संघर्ष में साथ देते हो। लेकिन अक्सर देखा जाता है पितृसत्तात्मक मानसिकता, हमारे आचार-विचार नारी के संबंध में विरुद्ध है। सबसे पहले पितृसत्तात्मक व्यवस्था में सभी को अपना नज़रिया बदलना चाहिए। अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए। आज हर समाज में स्त्रियाँ अपना जीवन एक संघर्षात्मक ढंग से जी रही है। कदम-कदम पर शोषण, अत्याचार, हिंसा आदि अनेक ऐसे अत्याचार हैं जो समाज में इन पर हो रहे है। अत: कहने का तात्पर्य यह है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था के हर धर्म में, हर जाति एवं वर्ग में स्त्रियाँ शोषित, पीड़ित है। कहीं इन्हें अबला समझकर प्रताडित किया जाता है तो कहीं धर्म के नाम पर । इसी तरह मुस्लिम समाज में भी स्त्री का जीवन संघर्षात्मक है। वह अपनी आज़ादी, अपनी अस्मिता, अपनी पहचान एवं अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए वह हर क्षेत्र में संघर्ष कर रही है।

          मेहरुन्निसा परवेज की कयामत आ गई हैकहानी में मुस्लिम परिवेश, उसकी सामाजिक विडम्बनाओं को व्याख्यायित करने वाली एक महत्वपूर्ण कहानी है। इस कहानी में मुस्लिम समाज में स्त्री के ज़िन्दागी की घुटन और शादी-ब्याह के पुराने पड़ चुके रिवाजों का उल्लेख करती है। नजमा अपनी भतीजी रन्नो के निकाह में बहुत समय बाद अपनी आपा राबिया के घर जाती है। राबिया आपा का बदला हुआ रूप देख कर अपनी पुरानी स्मृतियों में खो जाती है। ये वही राबिया आपा थी जिन्हे एहसान भाई से प्यार था मगर रूढ़िवादी मुस्लिम समाज में वे उसे व्यक्त नहीं कर सकती थी और ऐसे समाज में कुँवारी माँ होना ही कयामत थी। वह कहती है-सब कयामत के आसार है, शक्कर मीठी नहीं रहेगी, लोग नाच-गानों में मस्त रहेंगे, पक्के मकान होंगे, कुँवारी लडकियाँ पेट भरेंगी, नमक महंगा होगा, सब कयामत के आसार है।”[1]

          नासिरा शर्मा की कैदघरकहानी ने एक मध्यवर्गीय मुस्लिम स्त्री के अकेलेपन को अभिव्यक्त किया है, जिसके लिए उसका अपना घर ही कैदखाना बना हुआ है। वकीलन बी का पति रात बारह से पहले घर नहीं आता है। वकीलन बी अकेली पड़ जाती है। पति का कहना है कि उन्होंने शादी ही इसलिए की थी कि वे घर की ज़िम्मेदारी सँभाले, ताकि वे चैन से नोट कमा सकें। वकीलन बी को इस घर की चार दिवारी में जैसे पिंजरे में कैद पंछी की तरह रहना मेहसूस होता है। उसे अपना मायका याद आता है। अपने बचपन के दिन याद आते हैं जहाँ वे पूरी तरह से पंछी की तरह आज़ाद थी। यहाँ वकीलन बी को अपनी आज़ादी के लिए हाथ फ़ैलाने पड़ते है। वह कहती है- कोई मेरी परवाह नहीं करता। कोई समझता कि मैं इस घर में कितनी घुटती हूँ, मुझे आज़ादी चाहिए, ताज़ा हवा चाहिए।”[2] यह कहानी मुस्लिम समाज में स्त्री के पारिवारिक संघर्ष, उसके घुटन एवं आज़ादी की चाहत को दिखाती है।

          ‘संगसारकहानी के माध्यम से नासिरा शर्मा ने मुस्लिम समाज में स्त्री की नियति का उल्लेख किया है। असिया की एक छोटी सी भूल पुरुष-प्रधान समाज के लिए बहुत बड़ा पाप मानी जाती है और इसकी इसकी एक ही सज़ा हो सकती है संगसारयानि पत्थरों से मार-मार कर उसके प्राण ले लेना। आसिया की माँ अपनी बड़ी बेटी आसमा से कहती है कि- मर्द सीगा भी करेगा, ब्याहता के रहते दूसरी शादी भी करेगा और बाहर भी जाएगा, उसे कौन रोक सकता है? लोग थू-थू भी करेंगे तो फ़र्क नहीं पड़ता, मगर औरत यह सब करेगी तो न घर की रहेगी न घाट की।”[3] आसिया को अपना जीवन जीने के लिए पूरी-पूरी आज़ादी चाहिए, सदियों से चले आ रहे रूढ़िवादी संस्कृति एवं संस्कारों से संपूर्ण मुक्ति चाहिए। वह बेखौ़फ़ शब्दों में कहती है- आपका पुराना कानून नई परेशानियों का हल नहीं जानता। मरते घुटते इंसान को मदद नहीं पहुँचाता, इसलिए आप ज़िन्दगी को खौफ़ की दीवारों से चिन देना चाहते हैं, ताकि इंसान एक बार मिली ज़िन्दगी भी खुलकर न जी सके।”[4]

          जयश्री रॉय की कहानी हव्वा की बेटीमें लेखिका ने राहिला के माध्यम से मुस्लिम समाज में स्त्री के आत्मसंघर्ष एवं उसकी मजबूरीयों को दिखाया है। स्त्री की आजादी की कामना को उल्लेख किया है। राहिला जानवी से कहती है- अच्छा जानवी हम चिड़िया होती तो? तो हम हवा में उड़ते फिरते, डाल-डाल पर चहकते गातेये बुर्के का पिंजरा तो नहीं होता। पिंजरे में पंछी भी होते है, हर पंछी की किस्मत में पिंजरा नहीं होता मगर औरत की तो पैदाईश ही पिंजरे में होती है माँ की कोख से कब्र तक।”[5] राहिला अपनी 12 साल की लड़की माहिरा को पढ़ाना चाहती है, उसके सपनों को साकार बनाना चाहती है। उसे समाज में हर तरह से आज़ादी दिलाना चाहती है लेकिन उसका सपना अधुरा रह जाता है। धर्म के नाम पर कठमुल्लाओं के कानून, नियम का शिकार होती है। भारतीय समाज में किसी भी धर्म ग्रंथों में भले ही स्त्रियों का सम्मान, अधिकार एवं स्वतंत्रता की बात कही गई हो लेकिन पितृसत्तात्मक व्यवस्था में पुरुष ने अपने स्वार्थ के लिए स्त्री को अपने कानून एवं नियमों में जकड़ा है।

          आज हमारे समाज में यह प्रथा है कि यदि पुरुष या स्त्री किसी कारणवश कोई गलती करती है तो समाज में सिर्फ स्त्री को ही हेय दृष्टि से देखा जाता है। परंतु वास्तविक रुप में इस्लामिक सिद्धांतों के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों बराबर है। किसी प्रकार का निर्णय लेने का अधिकार दोनों को बराबर है। यहाँ दो महत्वपूर्ण बातें जो स्त्री की विशेषताओं को बतलाती है - एक तो स्त्री ही समाज को बनाए रखने में या समाज की जन्मदात्री है। दूसरी विशेषता यह है कि स्त्री की सारी स्थिति एहसासवर है। कुरआन में कहा गया है- मैं तुममें से किसी कर्म करने वाले का कर्म व्यर्थ नहीं करुंगा, पुरुष हो या स्त्री तुम सब एक दूसरे से हो।”[6]  स्त्रियों के प्रति आदर की भावना इस्लाम धर्म की अहम तालिम है। कुरआन में जगह-जगह पर समान अधिकार की बात कही गई है। स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार है। वे किसी भी दिशा में उनसे कम नहीं हैं और उनको पुरुषों पर वैसा ही अधिकार है जैसा कि पुरुषों का उन पर।

          भारतीय समाज में स्त्री को सिर्फ वासना को तृप्त करने का साधन माना जाता है। मेहरुन्निसा परवेज़ की पत्थर वाली गलीकहानी में जेबा का बलात्कार होता है। वह शारिरिक और मानसिक रुप से पीड़ित होती है। इसी कहानी में जेबा के पिता अफ़ीम की तस्करी करता है। शराब के नशे में वह अपनी पत्नि को अपने दोस्त के साथ बाँटता है। लेकिन जब जेबा की माँ उसके दोस्त के बच्चे की माँ बन जाती है तब वह उसकी पिटाई करता है और उसे घर छोड़ने के लिए मजबूर करता है।[7] समकालीन समाज में मनुष्य दूसरे ग्रहों पर पहुंचने की तैयारी कर रहा है ; तकनीकी वैज्ञानिक क्रांति असंभव को संभव बना रही है। सामाजिक जागरुकता ऊँचाई पर है लेकिन दूसरी ओर रुढ़िगत मानसिकता से ग्रस्त मुस्लिम समाज में स्त्रियों की दयनिय स्थिति हैं। 

          सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर इस समाज की बात करें तो हम पाएँगे कि भारतीय मुस्लिम समाज आर्थिक एवं सामाजिक रुप से पिछड़ा समुदाय है। कन्नड के लेखक अब्दुल हमीदकी कहानी निम्म हागे नानूमें मस्जिद के मौलवी साहब के माध्यम से इस समाज की आर्थिक परिस्थिति को दिखाया है। इस कहानी में मौलवी साहब गांव की एक मस्जिद में इमामत(नमाज़ पढा़नेवाला) करते है। गांव के सभी लोगों को धार्मिक मूल्य एवं जीवन मूल्यों के बारे में मार्गदर्शन करते है। लेकिन अपने बहन के विवाह एवं दहेज के पैसे इकठ्ठा करने के लिए वह मस्जिद की नौकरी छोड़ कर शहर में जाकर एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करते है। लेखक ने इस कहानी में एक मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार की आर्थिक स्थिति को उल्लेखित किया है। साथ-साथ आर्थिक परिस्थिति के कारण धार्मिक मूल्यों में आए बदलाव को प्रस्तुत किया है।[8] ‘मसीदिगे बंदा संतकहानी में मुस्लिम समाज के धार्मिक विश्वासों का उल्लेख किया है। गांव की एक मस्जिद में आए हुए एक अजनबी आदमी को सभी गांव वाले उसे धर्म गुरू समझ कर उसकी सेवा करते हैं। हुसैन कहता है- निजवागियु नाउ धन्यरु,इवर सेवे माडिदरे हुविनोंदिगे नारु कुड़ा स्वर्ग के होगु वंते ऐ खादरी होगु मनेयिंदा नाष्टा तेगेदुकोंडु बा, हागेये बाबन्नना अंगड़ीयिंदा वंदु एलेनीरु, स्वल्प बालेहन्नु तंदु गुरुगलिगे कोडु”[9] अर्थात सच में हमारा जीवन सार्थक हुआ, इनकी सेवा करने से हम सब फुलों के साथ खुशबू की तरह स्वर्ग में जाएंगे। ऐ खादरी घर जाकर नाष्टा और बाबु भाई के दुकान से इन के लिए नारियल पानी और केले लाओ। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मुस्लिम समाज की धार्मिकता, विश्वास एवं मानवियता को दिखाया है।

          अंतत: हम कह सकते है कि भारतीय समाज में मुस्लिम समुदाय रुढ़िवादी परंपरा में ग्रस्त एवं आर्थिक परिस्थितियों के कारण पिछड़ा हुआ समाज है। साथ-साथ इस समाज में स्त्री का संपूर्ण जीवन दु:ख और संघर्ष की गाथा है। स्त्रियों को अपने अधिकार स्वत: नहीं मिलते बल्कि उसे लड़कर हासिल करने पड़ते है। भारतीय समाज में पुरुष स्त्री को अपनी इच्छानुसार बदलना चाहता है, जैसे स्त्री की कोई इच्छा एवं अस्तित्व ही न हो। मुस्लिम समाज की अभिव्यक्ति हिंदी कहानीयों  में काफी व्यापक स्तर पर और कुछ कन्नड कहानियों में हुई है। हिंदी के नासिरा शर्मा, मेहरुन्निसा परवेज़, इस्मत चुगताई, अब्दुल बिस्मिल्लाह, असगर वजाहत, राही मासूम रजा, यशपाल और कन्नड के सारा अबूबकर, अब्दुल हमीद, भानु मुश्ताक, मास्ती व्यंकटेश अय्यंगार जैसे अनेक साहित्यकारों के साहित्य में मुस्लिम समाज का यथार्थवादी रुप मिलता है।

संदर्भ ग्रंथ:
1.     मुस्लिम परिवेश की विशिष्ठ कहानियाँ- विजयदेव झारी, नफ़ीस आफ़रीदी, पृ.सं-65
2.     बुतखाना, कहानी संग्रह- नासिरा शर्मा, पृ.सं-155
3.     संगसार, कहानी संग्रह- नासिरा शर्मा, पृ.सं-119
4.     संगसार, कहानी संग्रह- नासिरा शर्मा, पृ.सं-119
5.     हव्वा की बेटी- जयश्री राय, हंस- अगस्त 2013, पृ.सं. 57
6.     कुरआन- अनु. मुहम्मद फारुख खाँ, आयत 195, पृ.सं. 92
7.     पत्थर वाली गली-  मेहरुन्निसा परवेज़, पृ.सं.53,54
8.     Biligode: collection of short stories in kannada, Nimma hage naanu – Abd. Hameed. Page no- 1-7
9.     Biligode: collection of short stories in kannada, Masidige banda sant – Abd. Hameed. Page no- 65 

सिराजोदिन
शोधार्थी हिन्दी विभाग,
मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी,
हैदराबाद-500032
Email-ssiraj29@gmail.com
Mob-08977215681
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4 टिप्पणियाँ

  1. मुस्लिम विमर्श के बारे में अधिक जानकारी के लिए sirajsamay.blogspot.com

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  2. मुझे आप का लेख पसंद आया. मैं मेहेरुन्निसा परवेज़ पर शोधकार्य कर रही हूँ.
    उनके बारे में अगर आप के पास कोई भी जानकारी है तो कृपया मेरे इमेल dr.saba.shireen@gmail.com पर संपर्क करे

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  3. मुझे आपका लेख अच्छा लगा ।
    मै मुस्लिम स्त्री कथा साहित्य पर शोध करना चाहती हूं ।अगर आपके पास इससे संबंधित जानकारी हो तो कृपया मेरी email meenakshigiribest@gmail.com
    पर सम्पर्क करें।

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