स्मरण: ओमप्रकाश वाल्मीकि की याद में रविकांत की दो कविताएँ

साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका            'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati )                 दिसंबर-2013 


चित्रकार:अमित कल्ला,जयपुर 
                                                         
                                               ओम प्रकाश वाल्मीकि को याद करते हुए

(1)
जन्म के त्यागी- तेवारी
सोचते होंगे
जायेगा ये चूहड़ा
नरक सीधा !

पढ़कर पोथियाँ, धर्म-पुराण हमारे
कर दिए सब नष्ट-भ्रष्ट,
सत्यानाश !
और,
उठाता है सवाल इन पर
मनु पर,
जबान चलाता है,
घोर कलियुग!

ठीक किया था मनु ने!
कान में डाला था सीसा पिघलाकर
काट ली थी जबान
निकाल ली थीं आँखें
कर दिया था अंधा, अपाहिज
इन अछूतों, चांण्डालों को।

जब-जब ध्रष्टता की शम्बूकों ने
उतार दी गरदन
हमारे ईश्वर ने
ले लिए अंगूठे एकलव्यों के
गुरू द्रोण ने।

अरे!
फिर भी उग आया
इसका अगूंठा
दिखाने लगा आँखें
करने लगा बराबरी
बदजात, बदजबान
घोर कलियुग!
नरक जायेगा, नरक!!

लेकिन, वाल्मीकि जी!
तुमने तो तोड़ डाले मठ और गढ़ सब
कर दिया खण्डित ईश्वर सनातन
उखाड़ फेंका धर्म का पहिया
चकनाचूर कर दिए स्वर्ग और नरक।

फिर भला! तुम कहाँ जा सकते हो?
वाकई,
तुम बिखर गये हो शब्दों में
जो बहने लगे हमारी
धमनी शिराओं में
तुम समाए हो हमारे सपनों में
देते हौंसला फूले और अम्बेडकर का
हमारी कौम उठाएगी सिर
तुम्हें याद करते हुए .........।


(2)
तुम शब्दों में हो
कविता- कहानियों में हो।
और,
सबसे ज्यादा
अपनी आत्मकथा
‘जूठन’ मंे।

तुम्हारे शब्द, तुम्हारे जीवन की तरह
ठूंठ हैं, कंटीले हैं
दग्ध लोहे की तपिश है इनमें
क्योंकि, इनमें
समाया है ‘सदियों का संताप’।

तुम्हारे शब्दों में है,
दासता की पीड़ा
अमानुषता ढोने का दंश
 मुक्ति की बेचैनी
और
ब्राह्मणवाद की
काल-कोठरी को
तहस-नहस करने का साहस
व्यवस्था को चीरने वाला आक्रोश....
और
एक इनकार भरी चीख
‘बस्स ! बहुत हो चुका’।

कबीर, फूले, अम्बेडकर
के खून की गर्मी
उनके माथे की सलवटें
उभर आईं तुम्हारे शब्दों में।

तुमने बूझे सवाल
तो लग गई आग
‘दूसरी परंपरा’ में भी।

तुमने मांगा हिसाब
तो, बनारसी पान
की लाल जुबान से
चूने लगी नफरत
डायलेक्टिक की खाल ओढ़े
‘घुसपैठिए’ सरदार
दुबकने लगे अपनी
जाति की खोह में।

बखूबी जानते हैं हम
तुम्हारे शब्दों की तासीर
तुम्हारी भाषा में शामिल हैं हम
तुम्हारे शब्दों को ‘सलाम’!

रविकांत
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
मो0 नं0 9451945847

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