चित्रकार:अमित कल्ला,जयपुर |
‘‘हमें क्या आपत्ति हो सकती है बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी निहित है’’ पूरी हिन्दू रीति-रीवाजों के अनुसार मोहित और शैल का विवाह सम्पन्न हुआ।विवाह को दो साल हो गये,उनके निजी संबंधो में अभी भी कॉलेज के दिनो जैसी ही मिठास थी। एक दिन ऑफिस से लौटकर मोहित शैल से कहने लगा मैंने पासपोर्ट बनवा लिया है बस वीजा लगना बाकि है हम दोनों न्यूजीलैंड जायेंगे और वहीं जाकर अपने व्यपसाय और आगे ले जायेंगे।
’’हाँ ठीक ही सोचा है तुमने ,मै तुम्हारे इस फैसले से सहमत हुँ।
अब वह दोनो न्यूजीलैंड चले गये। ’’मेरा रेस्तराँ तो यहाँ पर ठीक ठाक चल पड़ा है।पाश्चात्य भोजन के साथ-साथ लोग भारतीय भोजन का भी स्वाद चख रहे हैं’’
शैल ने भी एक बुटीक खोल ली थी।शैल अब पेट से थी और मोहित बहुत खुश था। उनके दो संतानो ने एक साथ जन्म लिया, बेटा और बेटी।मोहित घर देर से लौटने लगा। उसके वहाँबहुत से मित्र बन गये थे या यह कह लो लफंगे यार।
’’तुम आज भी पीकर लौटे हो ,तुम्हें शर्म नहीं आती। घर से दूर विदेश में हमारा तुम्हारे सिवा है ही कौन, बच्चों पर क्या असर पड़ेगा।’’
’’पहले तुम अपना मुहँ बन्द करो , सारा का सारा नशा उतार दिया। तुम से अच्छी तो बार वाली है कम से कम मुझे प्यार तो करती है।’’
मेहित लाने क्यों लगने लगा था कि शैल अब उससे प्यार नहीं करती। यह बहस का सिलसिला अब रोज़ जैसी बात हो गयी थी।
’’जैसे ही तुम्हारे पिता ज आते हैं तुम दोनों अपने कमरे में जा कर पढ़ाई किया करो।’’ मासूम बच्चे भी रोज़ की लड़ाई से डरने लगे थे। वे सहमे हुए हर दिन बाप के आते ही पढ़ने चले जाते परंतु उनकी माँ की चिल्लाने की आवाजों से वे पढ़ नहीं पाते और उनका बचपन उनसे आँख-मिचौनी का खेल खेल रहा था।
’’ अब तो तम्हारा पापा दो-दो दिन गायब रहते है क्या पता...................’’
जब उनकी माँ ऐसा कहती तो बच्चे डर जाते कि कहीं उनके पापा उन्हें छोड़कर न चले जायें।
’’माँ तुम पापा को कुछ न कहा करो करने दो जो करते हैं घर में होते हैं तो इन बातो का तो डर नहीं रहता ’’
शैल की बेटी अब सयानी होने लगी थी। ’’पापा जब घर नहीं आते तो मुझे डर रहता है,चिन्ता होती है,वो हमसे प्यार करें या न करें पर हम उनसे बहुत लगाव करते हैं लेकिन पापा कब समझेंगे। कहीं हमें भी ऊग न होने लगे प्लीज़ सम्भल जाओ पापा ’’ ’मोहिनी’ सोचती है तो आँसूओं की धारा बहने लगती है।
’’मोहिनी जा दरवाजा खोल शायद तुम्हारे पापा आये होंगे’’ वह दरवाजा खोलने बहुत खुशी से जाती है,फिर एक सिहर कर रह जाती है, ’’आज फिर वही भयावनी,दिल को डराने वाली ध्वनियों का सिसिला तो नहीं होगा।’’
’’आज फिर पापा पीकर लौटे हैं भाई घर पर नहीं है मैं अपने कमरे में जाती हुँ’’
बर्तनों के गिरने, माँ के चिल्लाने ,रोने,नहीं करो जैसी आवाज़े तो कील की वारों जैसा था।
’’ दरवाजा बन्द है मैं देख तो नहीं सकती परंतु माँ की पीड़ा समझती हुँ ।’’
’’अब मुझे तुम्हारे साथ रहने की कोई रूचि नहीं रही है तुम मुझे छोड़कर क्यों नहीं चले जाते ? ताकि मैं मस्ती कर सकूँ।’’तुम्हारी उमर मस्ती करने की है क्या बेटी ब्याहने लायक हो गई है। कैसे बाप हो तुम ।’’
अगले दिन सुबह होते ही मोहित आवाज़ लगाता है ’मोहिनी’ यहाँ आओ, मोहिनी खुश होती है उसे पापा बुला रहें है वह जाती है। उसका बाप अपनी बेटी को भी नहीं छोड़ता।गंदी नज़र से देखता है और कहता है,’’ तुम्हारी माँ कहती है तुम जवान हो गयी हो। ’’
मोहिनी में पिता का स्पर्श और एक बुरी नज़र वाले को समझने की समझ आ गई थी। वह रोती है और सारी बात माँ को बताती है। उसकी माँ अब और सचेत रहने लगती है। एक पल के लिए भी बेटी को अकेला नहीं छोड़ती।बाहर वालों से तो बचा जा सकता है परंतु घर के राक्षस से कैसे बचा जाय ।उनकी परेशानियाँ और बढ़ती जा रही थी।दोनों बच्चें पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहे थे। बेटे को तो जैसे अब किसी का डर-सा ही नहीं रहा था पूरा दिन अवारा लड़को के साथ घूमता रहता । माँ के साथ ऊँची आवाज में बात करता।
’’पहले तुम्हारा बाप कम था क्या ?’’
’’मैं जब भी किताबें लेकर कुछ पढ़ने की कोशिश करती हुँ तो मेरी आँखों के सामने माँ का सूजा हुआ चेहरा घूमने लगता है ’’न जाने क्यों शैल इतनी असहनीय पीड़ा सह रही थी।शायद भारतीय नारी होने के नाते सात फेरो वाली परम्परा को जबरन ढोने का कर्तव्य निभा रही थी।एक दिन मोहिनी डरी हुई अपने मामू को फोन कर सब कुछ सुना देती है।’’मामू प्लीज़ मेरी मम्मा को बचा लो ’’
शैल का भाई बिना बताये ही उनके यहाँ आता है तो आगे मोहित नशे में धूत शैल को गाली-गलोच करता,बालो से पकड़ा हुआ कमरें की ओर खींच रहा था।’’ यह सब क्या तमाशा है, और तु शैल कब से यह सह रही है।चल मेरे साथ ।’’
रजनी शर्मा
अध्यापिका
हिन्दी आर्मी पब्लिक स्कूल,
नगरोटा
पता-हाउस न. डी-74,गली न. 5,
अप्पर शिव नगर जम्मू।
फोन न. 9906169337
ई-मेल:rajnis325
|
’’मम्मा पता नहीं पापा हमें याद करते हैं या नहीं मगर हमें आज भी उनसे उतना ही प्यार है।’’
मेहित के माता-पिता देहावसन हो चूका था और भाई तो अपने परिवार के साथ व्यस्त थे।’’कोई किसी का भी नहीं होता सब अपना ही सोचते हैं यह नहीं कि भाई बीमार है खाना-पानी ही पूछ लें।आज अगर शैल होती तो.......................’’
मोहित अतीत की स्मृतियों में खो सा जाता है और फिर फूट-फूट कर रोने लगता है परन्तु उसे चूप कराने के लिण् कोई नहीं ।’’शैल मुझे कितना समझाती थी परन्तु मैं उसे समझने के बजाय उसे मारता-पीटता, राक्षसों-सा व्यवहार करता। काश्!मैं समझा गया होता।अकेलापन मुझे काटने के दौड़ता है
एक टिप्पणी भेजें