जन्म 1939, मृत्यु 2013. बीसवी शताब्दी के सबसे मशहूर कवियों में सीमस हीनी का नाम गिना जाता है. वे मश्हूर आयरशि कवि, अनुवादक, नाटककार एवं प्रवक्ता थे. उनका चौदह काव्य संग्रह .चार गद्य संग्रह एवं दो नाटक प्रकाशित.वे आक्सफोर्ड विश्विद्यालय में कविता के प्रोफेसर थे.16 पुरस्कारों से अलंकृत जिनमें प्रमुख हैं इ एम फोस्टर पुरस्कार, आयरशि पेन पुरस्कार, टी एस एलियट प्राइज, डेविड कोहन पुरस्कार और प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार.
इनकी कविताओ में उनकी पैदाइश, पड़ौस, तत्कालीन समाज एवं राजनैतिक गतिविधियां द्रष्टव्य हैं. देहाती जीवन के ताने बाने से बुनी उनकी कविताएं एक अलग तेवर की हैं. प्रस्तुत है चर्चित बहुभाषा अनुवादक एवं कवि डॉ संतोष अलेकस द्वारा अनूदित सीमस हीनी की कुछ कविताएं जिसमें मानवीय रिश्तों का पुट द्रष्टव्य है-संपादक
अनुयायी
मेरे पिताजी
हल से काम करते थे
उनका कंधा
पूरी तरह खुले पाल की तरह थी
उनकी बातों से
घोड़ा तनाव में आ जाता था
वे विशेषज्ञ
हैं , जहाज का पर फिट करते
साथ में
नुकीला भीतरी तल्ला भी
एक ही बार
छूने से सतह खुल जाता टूटे बिना
पसीने से
तरबतर उनकी टीम मुडकर
वापस जमीन की
ओर लौटती है
उनकी दृष्टि जमीन
पर थी
वे हल रेखा को
रेखांकित करते
मैंने उनकी
खूंटी से ठोकर खाया
और उनके पालिश
किए गए सतह पर गिरा
कभी वे मुझे
अपने पीठ पर उठाते
कभी मैं उपर
उठता कभी गिर पड़ता
मैं बड़ा होकर
हल चलाना चाहता था
एक आंख बंद
करता, भुजा को कडा करता
मैं तो खेत
में केवल उनकी परछाई का
अनुगमन करता
मैं उपद्रवी
था, ठोकर खाता, गिरता
हमेशा बकते
रहता
लेकिन आज मेरे
पिताजी मेरे पीछे पीछे
भटकते हैं
जाने का नाम ही नहीं लेते
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गवाही
यांक के आने
पर
हम सुअरों को
मार रहे थे
मंगलवार की
सुबह , धूप थी
कसाईखाने के
बाहर खून .
मेन रोड से
उन लोगों को
चीखने की आवाज
सुनार्इ दी
होगी .
आवाज रूक गई
फिर
उन लोगों ने
हमें
ग्लोब और
एप्रन से पहाड़ी से उतरते हुए देखा .
वे दो
पंक्तियों मे थे , कंधों पर बंदूकें ले बढ रहे हैं
कवचित कार व
टैंक और खुला जीप .
सूर्यताप से
झुलसे हाथ और बांह.
बिना अस्त्र
के
नोरमांडी के
लिए मेजबानी करते हुए.
हमें नहीं
मालूम था कि
वे कहां जा
रहे थे , युवकों सा खड़े रहे .
वे रंगीन
मिठाईयों के गोंद व टयूब
उछाले हमारी
तरफ .
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मध्यावधि
पूरी सुबह
मैंने कॉलेज के रोगी कक्ष में बिताया
कक्षाओं की
समाप्ति की सूचना देती घंटियों को
गिनते हुए
दो बजे को
मेरे पड़ोसी मुझे गाड़ी में
घर ले गए
डयोढ़ी में
मैंने रोते पिता से मिला
उन्होंने
हमेशा शव यात्रा को अपने हिसाब से आयोजित की
विशालकाय जिम
इवान्स ने कहा कि यह बड़ा झटका है
मैं जब अंदर
पहुंचा बच्चा रोया , हंसा और खिलौने
को तोड़ दिया
बूढों ने मेरा
हाथ मिलाया
तो मैं व्याकुल
हो उठा
उन लोगों ने
कहा “ हमें माफ कर दो ”
अपरिचितों को कहते
हुए सुना कि मैं घर का बड़ा लड़का हूं
घटना के वक्त स्कूल
में था .
मां मेरे हाथों को
थामे हुए थी
उसकी आंखें नम थी .
दस बजे एंबूलेन्स
पहुंची
शव पर नर्सों द्वारा
पटिटयां बांधी गई थी
दूसरे दिन सुबह मैं
अपने कमरे की ओर गया
बिस्तर के एक छोर पर
बर्फ की बूंदें
दूसरे पर मोमबत्तियां
थी
छह हफतों में मैं
पहली बार उनसे मिल रहा था
वे ज्यादा पीला हो
चुके थे
उसके बाएं कनपटी में
चोट थी
वे चार फुट के बक्से
में ऐसे लेटे थे
मानो अपने ही बिस्तर
में लेटे हो .
गाडी़ ने उसे ऐसे ठोक
दिया
कि शरीर में किसी
प्रकार का दाग भी नहीं रहा .
चार फुट का बक्सा
हर साल के लिए एक एक
फुट
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लगे रहो
मेरे प्यारे भाई
तुम्हारी अच्छी स्टेमिना है
तुम लगे रहो, तुम्हारा
बडा़ ट्रेकटर
हीरे को खींचता है.
तुम लोगों की तरफ हाथ
हिलाते हो
हल्ला मचाते हो,
हंसते हो .
तुम नई सड़कों पर गाडी़
चलाते हो
पुराने को खुला रखते
हो
तुमने वादक के फर की
थैलियों को निकाला
फिर तैयार होकर रसोई
से मार्च किया .
लेकिन तुम मृत को
जीवन नहीं दे सकते
या फिर सही को गलत
नहीं स्थापित कर सकते.
तुम्हें कभी कभी
खूंटी से बांधे गए
रस्सी के साथ देखा
हूं.
गोशाला में तुम अपनी
बारी का इंतजा़र करते हो
गोबर का बास आता है.
तुम सोचते हो बस इतना
ही
जो शुरू में था अब है
और रहेगा.
फिर अपने आंखों को
मलते हुए
और दरवाजे के उपर हमारा
पुराना ब्रुश पाकर
तुम लगे रहते हो
संतोष अलेक्स
कवि और अनुवादक
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