साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) जनवरी -2013
पीठ पर सदियों को लादे
पीठ पर सदियों को लादे
आखिर कितना चल सकते हो
झुकना लाज़िमी है एक दिन
तो बोझ थोड़ा कम क्यों नहीं कर लेते
या हमेशा के लिए उतार क्यों नहीं देते
और रख लो एक सलीब
आने वाले कल की
पीठ की दु:खती रगों को
कुछ तो सुकून मिलेगा
कुछ तो सहलाए जाने का अहसास होगा
यूं भी आज का वक्त
पीठ पर बोझा ढोते बंधुआ मजदूर का नहीं रहा
फिर क्यों खुद को असहाय दर्शाते हो
करो खुद को पीठ पर लदी
बरसों से चुभती
सड़ी-गली मान्यताओं के आलिंगन से मुक्त
सड़ी-गली मान्यताओं के आलिंगन से मुक्त
सुकून का अहसास
हर मोड़ पर
हर चेहरे पर
हर अक्स पर तारी होगा
लाशों के ढेर पर राजनीति की रोटियाँ कभी पेट नहीं भरा करतीं
बस जरूरत है तो इतनी
अपनी सोच की रुबाइयों में
दो बूँद मोहब्बत की भर दो
फिर देखना खिलती खिलखिलाती मुहब्बत के कँवल कैसे मुस्काते हैं
यूँ भी सदियों के आसमानों पर आज के सितारे रोशन नहीं होते
आज के सितारों को जरूरत है तो बस अपने आसमाँ की ……
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बंधुआ मजदूरी
१
ज़िन्दगी शर्त सी
अपनी बनायी राह
पर ही चलती है
और हम
बिना शर्त के
चलने को मजबूर
एक किस्म ये भी हुआ करती है बंधुआ मजदूरी की .........
अपनी बनायी राह
पर ही चलती है
और हम
बिना शर्त के
चलने को मजबूर
एक किस्म ये भी हुआ करती है बंधुआ मजदूरी की .........
२
ये जो लगा लेती हूँ
माँग मे सिंदूर और माथे पर बिन्दिया
पहन लेती हूँ पाँव मे बिछिया और हाथों में चूडियाँ
और गले में मंगलसूत्र
जाने क्यों जताने लगते हो तुम मालिकाना हक
शौक हैं ये मेरे अस्तित्व के
अंग प्रत्यंग हैं श्रृंगार के
पहचान हैं मुझमे मेरे होने के
उनमें तुम कहाँ हो ?
जाने कैसे समझने लगते हो तुम मुझे
सिंदूर और बिछिया में बंधी जड़ खरीद गुलाम
जबकि ……. इतना समझ लो
हर हथकड़ी और बेडी पहचान नहीं होती बंधुआ मजदूरी की
३
ये जो समझ के पाँव में पड़ी हैं
परम्पराओं , संस्कृति और सभ्यताओं और धर्म की बेड़ियाँ
कुंद कर दिया है समाज की धार को
और हम कुएं के मेंढक से
सिर्फ टर्र टर्र करे चले जाते हैं
बिना कोई शोध किये
बिना कोई आंकलन किये
ढोए जाते हैं बासी संस्कृतियों की
बासी मान्यताओं को हर युग में
फिर चाहे वो उस युग में प्रासंगिक हों या नहीं
यूं भी बिना आईना देखे
दूसरे की नज़र से देखने की आदत ही
हमें ले चलती है बंधुआ मजदूरी की एक और किस्म की ओर …
निवास:
डी ---19 , राणा प्रताप रोड
आदर्श
नगर ,दिल्ली---110033
प्रकाशित साझा काव्य संग्रह
:
1)“टूटते सितारों की उडान “,2)“स्त्री होकर सवाल करती है “,3)"ह्रदय तारों का स्पंदन" ,4) शब्दों के अरण्य मे,5) प्रतिभाओं की कमी नहीं,6) कस्तूरी,7) सरस्वती सुमन ,8) नारी विमर्श के अर्थ,9) शब्दों की चहलकदमी,10) त्रिसुगन्धि काव्य संकलन,11) बालार्क
1)“टूटते सितारों की उडान “,2)“स्त्री होकर सवाल करती है “,3)"ह्रदय तारों का स्पंदन" ,4) शब्दों के अरण्य मे,5) प्रतिभाओं की कमी नहीं,6) कस्तूरी,7) सरस्वती सुमन ,8) नारी विमर्श के अर्थ,9) शब्दों की चहलकदमी,10) त्रिसुगन्धि काव्य संकलन,11) बालार्क
मेरी रचनाओं को अपनी माटी पर स्थान देने के लिये संपादक मंडल की हार्दिक आभारी हूँ ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचनाएँ. वंदना जी. बधाई है.
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