साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) जनवरी-2014
चित्रांकन:निशा मिश्रा,दिल्ली |
क. हिंदी क्षेत्र:- हिंदी क्षेत्र में प्रमुख रूप से हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आते हैं। गौण रूप से पंजाब के कुछ भाग अबोहर तथा फ़ज़िल्का और महाराष्ट्र के कुछ भाग इसमें आते हैं।
ख. अन्य भाषा-क्षेत्र:- इसमें कर्नाटक तथा आंध्र के दक्खिनी हिंदी वाले भाग और कलकत्ता, मुम्बई, शिलांग तथा अहमदाबाद आदि भारत के अहिंदी भाषी क्षेत्र के बड़े नगरों में बिखरे हुए कुछ हिंदी भाषी छोटे-छोटे क्षेत्र आते हैं।
ग. भारतेतर क्षेत्र:- भारत के बाहर नेपाल, त्रिनिदाद, सूरीनाम, फिजी, मॉरीशस, अमेरिका, ब्रिटेन, मलेशिया, सिंगापुर हॉगकॉग, चीन आदि कई देशों में भी हिंदी भाषी हैं। 01
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का परचम अब लहरा रहा है। त्रिनिदाद, सूरीनाम, फिजी, दक्षिण अफ्रीका एवं मॉरीशस में हिन्दी की जड़ें गहरी हुई हैं, तो रूस, जापान ,अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, कोरिया, चीन आदि देशों ने हिन्दी की शक्ति को जाना और स्वीकारा है। वैश्वीकरण के इस दौर में जहाँ भारत एक अच्छा उपभोक्ता है, तो फिर उस बाजार की भाषा जाने बिना विक्रेता का लाभ कैसे संभव है ! प्रमाण यह है कि विश्व के लगभग एक सौ पचास विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा है। आज सम्पूर्ण विश्व में दो सौ पचास करोड़ से अधिक भारतवंशी रहते हैं, उन सबकी संपर्क-भाषा हिन्दी है। इसी हिन्दी के साथ वे एक भारतीय के रूप में जाने जाते हैं और हिन्दी भाषा के साथ ही भारतीय संस्कृति के संवाहक बनते हैं। वे भारत के किसी भी कोने या क्षेत्र से आए हों, उनकी सम्पर्क भाषा हिन्दी है। इंटरनेट, मोबाइल ,सेटेलाईट फोन आदि में इस समय अंग्रेजी लिपि में हिन्दी लिखी जा रही है। इंटरनेट पर हिन्दी के अनेक पोर्टल हैं। फेसबुक, आरकुट, ट्विटर ब्लॉग आदि पर सभी लोग बखूबी हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं। बीच के समय में हिगंलिश का हउआ भी खड़ा किया गया-‘‘हिन्दी का स्वरूप बिगड़ रहा है-हिन्दी का अंग्रेजीकरण हो रहा है। हिन्दी कुछ दिनों में लुप्त हो जायेगी आदि, आदि।’’ भाषा के विकास के अध्येता अच्छी तरह से जानते हैं कि भाषा का एक मात्र कार्य सम्प्रेषण है। इसकी विकास-गति कठिन से सरल की ओर हैं। यह व्याकरणिक स्तर पर कम और प्रकार्य अथवा व्यावहारिक स्तर पर अपना प्रभाव अधिक छोड़ती है। आज के समय में जब हिंगलिश के स्वरूप में हिन्दी एक नया रूप ले रही है, भले ही यह स्वरूप मानक न हो, लेकिन विकास का एक चरण है और लोकप्रियता का कारण भी यही है।
प्राचीन काल में वैदिक और संस्कृत के रूप-परिवर्तन में भी कमोबेश यही हालात थे, वैदिक संस्कृत बुधजन समाज की भाषा रही और लोक की भाषा, जिसमें स्थानीय प्रभाव थे, वह लौकिक भाषा के रूप में आज की हिन्दी अनेक बोलियों भाषाओं की जननी बनी। अभी भी हिन्दी-पंजाबी, हिन्दी-तेलगु, हिंन्दी-बांगला, हिन्दी-पंजाबी, हिन्दी-छत्तीसगढ़ी, हिन्दी-मराठी आदि अनेक रूप बने हैं और स्वीकृत हैं। हिन्दी और उर्दू मिलकर हिन्दोस्तानी है। तो फिर हिन्दी और अंग्रेजी के समन्वय पर बवाल क्यों ? यही हिन्दी देश-विदेश तक लोकप्रिय हो रही है।
विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रवासी साहित्यकारों, हिंदी सेवियों, हिंदी के विदेशी विद्वानों की सक्रिय भागीदारी से हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप हमारे समक्ष आता है। विभिन्न कार्यक्रमों में प्रस्तुत रिपोर्टों के अनुसार युवा पीढ़ी हिंदी को अमेरिका में खूब अपना रही है। वहाँ रहने वाले प्रवासी भारतीयों के बच्चे अपनी जड़ों से यानि भारत से संबंध जोड़ने के लिए हिंदी सीखना चाहते हैं। विदेश के लगभग 74 विश्वविद्यालय हिन्दी में पीएच.डी. करा रहे हैं। इस प्रकार हिंदी के प्रचार, प्रसार के साथ-साथ स्वाभाविक रूप से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रसार भी हो रहा है।
‘‘एक भाषा-समुदाय में कई बोलियाँ हो सकती हैं, जो आपस में एकरूप नहीं होतीं। इन बोलियों के व्याकरण भी भिन्न हो सकते हैं, इसलिए भाषा-समुदाय की भाषा एकरूपी न होकर विषमरूपी होती है। यद्यपि ये भिन्नताएँ इतनी अधिक नहीं होतीं कि समीप की बोलियों की पारस्परिक बोधगम्यता में बाधा पड़े।’’ 02
हिंदी साहित्य के माध्यम से भी हिंदी विश्व-संदर्भी बन रही है। हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर रूसी तथा अन्य भाषाओं में भी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का विशद अनुशीलन हुआ है। प्रयोगधर्मी साहित्यकार विष्णु प्रभाकर की कृतियाँ न केवल भारत में ही लोकप्रिय हैं, बल्कि भारत से बाहर उनकी अनेक कृतियाँ रूसी तथा अन्य भाषाओं में अनुदित और चर्चित होकर विभिन्न साहित्यिक संकलनों में शामिल की गई हैं। सन 1978 में सूरदास की कालजयी कृति ‘सूरसागर’ के कुछ पद ‘कृष्णायन’ शीर्षक से जर्मन, रूसी तथा अंग्रेजी भाषाओं में अनुदित होकर दो खण्डों में प्रकाशित हुए।
विश्व में नये अन्तर्राष्ट्रीय संदर्भों में हिन्दी जानने वालों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-प्रथम- वे देश, जहाँ हिंदी भाषा भाषी क्षेत्र के भारतीय श्रमिक लगभग 110 वर्षों पहले पलायन कर गये थे और आज वहाँ के प्रमुख नागरिकों के रूप में उनकी गणना होती है। फिज़ी, मॉरीशस, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिडाड आदि। ये देश भोजपुरी-अवधी मिश्रित हिंदी में बोलते हैं और इनकी संख्या भी बहुत अधिक है। द्वितीय- ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, नार्वे कव अप्रवासी भारतीय हैं, इनमें दक्षिणी-पूर्वी एशिया के बर्मा, थाइलैण्ड, सिंगापुर, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, केन्या आदि देशों में बसे अप्रवासियों को भी शमिल किया जा सकता है। नेपाल की आधी से अधिक जनसंख्या हिंदी से परिचित है। थाइलैण्ड में हिंदी जानने वालों की संख्या लगभग 10 लाख है। विदेशों में बसे भारतवंशियों ने अपने घर की भाषा भोजपुरी-अवधी आदि से अपनी अस्मिता को जोड़े रखा है।
हिन्दी विश्व की सबसे अधिक समझी और बोली जाने वाली दूसरी भाषा है। दूसरी भाषा बनाने वाले सर्वेक्षण की रिपोर्ट का जिक्र यहाँ आवश्यक है। इस सर्वेक्षण में हिन्दी की उपभाषाओं को शमिल नहीं किया जाता है। डॉ0 जयंती प्रसाद नौटियाल के अनुसार -‘‘हिन्दी जानने वालों की संख्या अब एक अरब, दस करोड़ तीस लाख है। इसके बाद भी हिन्दी को सबसे अधिक पढ़ी-बोली जो वाली भाषा के रूप में दूसरा क्रम दिया गया है। अब विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्ययन और अध्यापन की व्यवस्था है।’’ अमेरिका के 75 (पचहत्तर) विश्वविद्यालयों में हिन्दी-शिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था है। अमेरिका में दो करोड़ से अधिक भारतीय मूल के लोग निवास कर रहे हैं। अमेरिका में हिन्दी में काम करने वाली संस्थाए हैं- क- अर्न्तराष्ट्रीय हिन्दी समिति, ख- विश्व हिन्दी समिति, ग- हिन्दी न्याय तथा अमेरिका में प्रकाशित हिन्दी पत्रिकाएँ -(1) विश्व (2) सौरभ (3) क्षितिज (4) हिन्दी जगत आदि प्रमुख हैं।
अमेरिका बहुजातीय, बहुभाषी राष्ट्र है। वहाँ विविध संस्कृतियाँ, विविध जातियाँ आकर बसीं, जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप के लोग सबसे अधिक है। वहाँ मुख्य भाषा अंग्रेजी के साथ स्पेनिश बोली जाती है। अमेरिका में भारतीय उपमहाद्वीप के लाखों लोग भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका एवं नेपाल से आकर बसे हैं। इन लोगों की संप्रेषण भाषा हिंदी ही है तथा इनके यहाँ आने का कारण उच्च शिक्षा,व्यापार तथा अच्छी नौकरियाँ हैं। वैसे तो ये लोग देश के अलग-अलग क्षेत्रों में बसे हुए हैं, परंतु न्यूयॉर्क ऐसी जगह हैं, जिनमें बसे ये लोग विशुद्ध भारतीय लगते हैं। अमेरिका में बसने वाली भारतीय जनसंख्या की सघनता वाले क्षेत्रों में अमेरिकी सरकार ने किसी न किसी रूप मेंहिंदी को मान्यता प्रदान करा दी है। अमेरिका में भारतीय किसान भारतीय सब्जियों का उत्पादन करके भारतीय नामों से ही बाजार में बेचते हैं। अमेरिका में बसने वाले हिन्दी के रचनाकारों के कुछ नाम- गुलाब खण्डेलवाल, उषा प्रियंवदा, इंदुकांत शुक्ला, सुषम बेदी, उमेश अग्निहोत्री आदि अनेक लोग हैं । जापान बुद्ध के देश के प्रति इसी भाव के कारण हिन्दी जानने और रचनाओं के अनुवाद जापानी में हो रहे हैं। हिन्दी को जापानी में पढ़ाने के लिए पुस्तकें लिखी जा रही हैं। प्रेमचंद, अज्ञेय, डॉ. जयप्रकाश कर्दम, डॉ. श्यौराज ’बेचैन’ आदि की रचनाओं के अनुवाद हो रहे हैं। जापान में बनी रामायण की एनीमेशन फिल्म तो लोकप्रिय हुई। हिन्दी भाषा के प्रो0 अकीय ताकाहाशी, प्रो0 फुजीई, योशिफुमी, मिजनू आदि जापानी विद्वानों का नाम लिखते हुए मुझे गौरव की अनुभूति हो रही है। प्रो0 तोमिया निजीकानी, कनाड़ा, ब्रिटेन- सभी पत्रिकाएं प्रकाशित कर रहे हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए समितियाँ बनी हुई हैं। मॉरीशस और नेपाल तो हिन्दू राष्ट्र हैं। मॉरीशस में हिंदी का काफी प्रचार, प्रसार है, पाठशाला, विद्यालय तथा प्रशिक्षण कॉलेज हैं। 01 नवम्बर 2001 में फिनिकस शहर में विश्व हिंदी सचिवालय का शिलान्यास किया गया। मॉरीशस निवासी भोजपुरी भाषी हैं। हिंदी भाषा का यहाँ सम्मान है। मॉरीशस में महात्मा गाँधी संस्थान ने हिंदी की उच्च शिक्षा का समुचित प्रबंध किया है। सन 1998 से हिंदी का डिप्लोमा कोर्स, सन 1990 से बी.ए. ऑनर्स हिंदी और सन 2001 से एम. ए.हिंदी का प्रावधान किया है। हिंदी और फ्रैंच का संयुक्त ऑनर्स कोर्स मॉरीशस विश्वविद्यालय द्वारा चलाया जाने वाला महत्वपूर्ण कोर्स है। 03
डॉ. उदयवीर सिंह
स्कूली व्याख्याता हैं,
हापुड में शोध परिषद्
और
प्रेरणा साहित्य समिति में
उपाध्यक्ष हैं
संपर्क :ए-12-यूजी-2,
दिलशाद कॉलोनी,
दिल्ली-110095
|
सन्दर्भ :
1. हिंदी भाषा, डॉ. भोलानाथ तिवारी, किताब महल इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 2005
2. भाषा-समुदाय के संदर्भ में हिंदी -मोहन लाल सर, हिंदी का सामाजिक संदर्भ - सं.रवींद्रनाथ श्रीवास्तव, रमानाथ सहाय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, पेज 19
3. आधुनिक साहित्य, जुलाई-दिसम्बर-2012, दिल्ली, सं. आशीष कुमार, पेज 69
साभार
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