साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) फरवरी-2014
चित्रांकन:इरा टाक,जयपुर |
(1)
ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा मिला न था
जिसकी तलाश थी वो किनारा मिला न था
हरगिज़ उतारते न समन्दर में कश्तियां
तूफ़ान आया जब भी इशारा मिला न था
बदनामियां घरों में दबे पांव आ गईं
शोहरत को घर कभी भी, हमारा मिला न था
आगाज़ करती रात का मैं भी सफ़र का
क्या
रौशन करे जो शाम, सितारा मिला न था
खामोशियां भी दर्द से ‘देवी’ पुकारतीं
हम-सा कोई नसीब का मारा मिला न था
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(2)
लगती है मन को अच्छी, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी
आवाज़ है ये दिल की, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
ये नैन-होंट चुप है, फिर
भी सुनी है हमने
उन्वां थी गुफ़्तगू की, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
ये रात का अँधेरा, तन्हाइयों का आलम
ऐसे में सिर्फ़ साथी, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
नाचे हैं राधा मोहन, नाचे है सारा गोकुल
मोहक ये कितनी लगती, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
है ताल दादरा ये, और राग भैरवी है
सँगीत ने सजाई, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
मन की ये भावनायें, शब्दों में हैं पिरोई
है ये बड़ी रसीली, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
अहसास की रवानी, हर एक लफ्ज़ में है
है शान शायरी की, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
अनजान कोई रिश्ता, दिल में पनप रहा है
धड़कन ये है उसीकी, शाइर ग़ज़ल तुम्हारी.
दो अक्षरों का पाया
जो ज्ञान तुमने ‘देवी’
उससे निखर के आई, शायर ग़ज़ल तुम्हारी.
देवी नागरानी
पता: 9-डी॰ कॉर्नर व्यू सोसाइटी,
15/33 रोड, बांद्रा ,
मुंबई 400050
फ़ोन: 09987938358
" अनजान कोई रिश्ता, दिल में पनप रहा है " देवी नागरानी जी अच्छी और खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएं---- डॉ. उमेश चन्द्र शुक्ल
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