साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) फरवरी -2014
चित्रांकन:इरा टाक,जयपुर |
नए साल की आहट पाकर
इन गुलाब की पंखुड़ियों पर
जमी
ओस की बुँदकी चमकी
नए साल की आहट पाकर
उम्मीदों की बगिया महकी
रही ठिठुरती
सांकल गुपचुप
सर्द हवाओं के मौसम में
द्वार बँधी
बछिया निरीह सी
रही काँपती घनी धुँध में
छुअन किरण की मिली सबेरे
तब मुँडेर पर चिड़िया चहकी
दर-दर भटक रही
पगडंडी
रेत-कणों में
राह ढूँढती
बरगद की
हर झुकी डाल भी
जाने किसकी
बाँट जोहती
एक उदासी ओढे थी जो
नदिया की वह धारा हुमकी
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हाकिम निवाले देंगे
गाँव-नगर में हुई मुनादी
हाकिम आज निवाले देंगे
सूख गयी आशा की खेती
घर-आँगन अँधियारा बोती
छप्पर से भी फूस झर रहा
द्वार खड़ी कुतिया है रोती
जिन आँखों की ज्योति गई है
उनको आज दियाले देंगे
सर्द हवाएँ देह खँगालें
तपन सूर्य की माँस जारती
गुदड़ी में लिपटी रातें भी
इस मन को बस आह बाँटती
आस भरे पसरे हाथों को
मस्जिद और शिवाले देंगे
चूल्हे हैं अब राख झाड़ते
बासन भी सब चमक रहे हैं
हरियाई सी एक लता है
फूल कहीं पर महक रहे हैं
मासूमों को पता नहीं है
वादे और हवाले देंगे
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जिन्होंने मुझे प्रकाशन योग्य समझा- निर्झर टाइम्स में नियमित प्रकाशन; वारिस ए
अवध, लखनऊ उर्दू अखबार में गजलें व लेख प्रकाशित; जन माध्यम, लखनऊ में रचनायें व
लेख प्रकाशित; उजेषा टाइम्स, मासिक पत्रिका में नियमित प्रकाशित।‘अनुभूति एवं अभिव्यक्ति’, ‘नव्या’, ‘पूर्वाभास’,
‘नवगीत की पाठशाला’, ‘प्रयास’, ‘गर्भनाल’ आदि ई-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित
मुझे स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट गीतों में समकालीनता की विसंगतियों का सुन्दर और सफल चित्रण। बृजेश नीरज के मोहक गीतों के चयन के लिए बधाई -जगदीश पंकज
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