साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) फरवरी-2014
वह तो नानी की भी नानी
पर चूहों का सरदार निराला
बड़े बड़ों को धूल चटाता
बिल्ली जब भी प्लान बनाती
सफल नहीं वह हो पाती
फिर उसने एक प्लान बनाया
हाँ एक अच्छा प्लान बनाया
सुबह सवेरे बिल्ली मौसी ने
झट अपना दरबार लगाया
चूहों के सरदार को उसने
फ़ौरन अपने यहाँ बुलाया
बोल पड़ी थी बिल्ली रानी
आओ आओ चूहे राजा
मैं अपनी कुछ बात सुनाऊं
अपने दिल का हाल सुनाऊं
बहुत साल से चूहे खाकर
मैंने ढेरों पाप कमाए
नौ सौ चूहे पूरे खाकर
अब है मेरी आँख खुली
अब मैंने हज करने का
सुन्दर सा है प्लान बनाया
अब मै करुँगी शाकाहार
तुम हो चूहों के सरदार
तुम कुछ शाकाहार ले आओ
तुम ही पहला कौर खिलाओ
मुझको अपना दोस्त बनाओ
मुझसे बिल्कुल मत घबराओ
चूहों का सरदार था भोला
पर था थोड़ा सीधा टेढ़ा
भाँप गया बिल्ली की चाल
जान गया वह दिल का हाल
जैसे ही वह कौर खिलाता
बिल्ली का आहार बन जाता
बोल पड़ा वह – ‘बिल्ली मौसी
तुम हो पूरी धुन की पक्की’
प्लान तुम्हारा अच्छा है
हज जाना भी पक्का है
हज जाना है, बिल्कुल जाओ
पर पहले तीरथ कर आओ
कल रात को शुभ मुहूर्त है
पर साथ में चंद्र ग्रहण है
चंद्र दर्शन नहीं है करना
आँख में पट्टी बाँध कर रखना
मैं जब तुमको आवाज़ लगाऊं
दौड़कर मेरे पीछे आना
गंगासागर ले जाऊँगा
तुमको स्नान करवाउंगा
अगले दिन थी बिल्ली तैयार
कर रही थी इन्तज़ार
इतने में आवाज़ थी आयी
बिल्ली रानी दौड़ के आओ
देर हुई अब जल्दी आओ
शुभ मुहूर्त है जाने को अब
तुमको शीघ्र पहुंचना होगा
चंद्रग्रहण न तकना होगा
बिल्ली की आँख पर पट्टी थी
देख नहीं वह सकती थी
चूहे ने आँख खुली रखी
दौड़ दौड़ कर चलता जाता
रास्ता भी समझाता जाता
चूहा बढ़ा कुएं की ओर
पीछे पीछे थी बिल्ली रानी
आगे चूहों का सरदार
चूहा पहुँचा कुएं के पास
धीरे से उसने रास्ता बदला
बिल्ली ने जैसे कदम बढ़ाया
खुद को कुएं के अन्दर पाया
कुआं बहुत ही गहरा था
पानी भी उसका ठंडा था
काँप रही थी बिल्ली रानी
अब आयी थी अक्ल ठिकाने
गुर्रा कर गुस्से से बोली
यह तो धोखा है सरदार
मुझे मारने की है चाल
अब मैं कैसे बाहर आऊँ
बोला चूहों का सरदार
माना मैंने धोखा है यह
पर जैसे को तैसा है यह
मैं तुमको एक बात बताऊँ
तुम्हारी दादी ने भी मेरे दादा से
कुछ ऐसी ही बात कही थी
कुछ ऐसी ही बात कही थी
मेरे दादा थे भोले – भाले
वे उनकी बातों में आये
व्यर्थ ही अपनी जान गँवाए
मैं यदि वह गलती दुहराता
मैं भी अपनी जान गँवाता
महामूर्ख भी कहा ही जाता
तो ऐसा है बिल्लो रानी
थी तो तुम भी बड़ी सयानी
पर धोखेबाज़ी सदा न चलती
अपनी जूती अपने सिर पड़ती
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अंडे का पेड़
बबलू था एक भोला बच्चा
वह तो था सीधा व अच्छा
पर थोड़ा था अक्ल का कच्चा
फिर भी था वह धुन का पक्का
एक सुबह टीचर ने उसकी
उसको था विज्ञान पढ़ाया
बीज से पौधा पैदा है होता
बीज यदि मिट्टी में बो दो
खाद पानी और हवा उसे दो
तो वह पौधा है बन जाता
अगले दिन उसकी टीचर ने
एक नया था पाठ पढ़ाया
अंडे से मुर्गी पैदा है होती
बबलू ने जब बात सुनी तो
आइडिया एक दिमाग में आया
जैसे तैसे जब घर पहुंचा
फ़ौरन फ्रिज की ओर था लपका
थोड़ा ताका, थोड़ा झाँका
एक अंडा था लिया निकाल
दौड़ पड़ा वह हो बेहाल
जल्दी से वह बाग में पहुंचा
एक छोटा सा गड्ढा था खोदा
अंडे को उसमे था खोंसा
और ऊपर से मिट्टी भर दी
फिर उसको था जल से सींचा
ऐसा करके घर को लौटा
अब रोज़ सुबह वह बाग में जाता
गड्ढे पर वह नज़र गड़ाता
ऐसे बीत गया दो हफ्ता
पर अंडे का पेड़ न निकला
न ही उससे मुर्गी निकली
सोच रहा था प्यारा बबलू
अंडा शायद था बेकार
या फिर टीचर करते बकवास
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महँगाई की मार
महँगाई की मार पड़ी तो
सेठ करोड़ी मुस्काता है
उसको अब तो लाभ दोगुना
होता नज़र साफ़ आता है
पर बेचारे रामदीन का
कलेजा मुँह को आता है
क़र्ज़ लिया था खेती हेतु
मौसम ने मुँह चिढ़ाया था
थोड़ा बहुत जो फसल हुई थी
सेठ ने सस्ते में उठाया था
सब कृषकों का अन्न क्रय कर
पूरा गोदाम भर डाला था
रामदीन पथराई आँखों से
सोचता ही रह जाता है
पर कोई भी साफ़ रास्ता
उसे नज़र नहीं आता है
कैसे अदा करे वह कर्जा
कैसे उसका ब्याज भरे
कैसे अपने दो छोटे बच्चों
के पेट में कुछ दाने डाले
कैसे अपनी करे दवाई
दमा दिनों दिन बढ़ता है
पत्नी के आँसू उसको
रोज़ रुलाते जाते हैं
अम्मा की आँखों का मोतिया
फटने को आ जाता है
हर बार उसका आपरेशन
होते होते रह जाता है
नहीं सूझता अब तो कुछ भी
रामदीन खिसियाता है
पर व्यवस्था का कसा शिकंजा
उसे जकड़ता जाता है
आत्महत्या करने का
उसका मन हो आता है
पर समस्या का हल
फिर भी नज़र नहीं आता है
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सुंदर भावों को संजोए शिक्षाप्रद कविताएँ।
जवाब देंहटाएंभोली और मासूम।
- पाण्डेय अनिक
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