साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) मार्च -2014
कहानी:गुस्ताख़ दिल / डॉ. सुमन सिंह,बनारस
चित्रांकन वरिष्ठ कवि और चित्रकार विजेंद्र जी |
‘‘दो दिन से बुखार है।‘‘ सुबकते हुए औरत ने कहा ।
‘‘दिखाया क्यों नही?‘‘निशांत के इस प्रश्न का औरत से चिपके मैले-कुचैले लडके ने जवाब दिया, ‘‘बाबू सारा सामान भी बेच-खोंच कर पी गए ।‘‘
लड़का माँ के पल्लू से खेल रहा था।उसके गंदे चेहरे पर मासूमियत का नामोनिशान नही था। उसमे कुछ ऐसा नही था जिसे देखकर दया-माया जैसा कोई भाव उपजे। निशांत को ऑफिस जाने के लिए देर हो रही थी, उसने कमरे के सदस्यों पर एक उचाट नजर डाली और चल पड़ा। नौकरी का पहला दिन जिसके लिए उसने कितनी तपस्या और इंतजार किया था, जो बहुत हद तक संतोषप्रद रहा। उसके बॉस उदार स्वभाव वाले थे और सहकर्मी मिलनसार। ऑंफिस से घर लौटते समय उसे सुबह वाली घटना याद आने लगी। जब वह घर पहॅॅॅुचा तो देखा कि मुहल्ले में सभी के घर बिजली है। सिवाय उस घर के ,जिसमें सुबह-सुबह महाभारत छिड़ी थी। वह उस के घर के सामने से गुजर रहा था कि, एक बिलखता हुआ स्त्री स्वर उसके कानों में पड़ा, जिसे सुनकर वह आगे नही बढ़ सकता था।वह घर के अंदर गया, एक मोमबत्ती के टिमटिमाते प्रकाश में वही सुबह वाली औरत और उसके तीनों बच्चे सिकुडे.-सिमटे बैठे रो रहे थे। खाट पर पड़ा लड़का बेचैनी से हाथ-पैर पटक रहा था। उसके कदमों की आहट से उठी कई जोड़ी नजरों को वह महसूस कर रहा था। अंधेरे में भी निशांत दर्द और भूख से बिलबिलाते बच्चों की पीड़ा को मन की ऑंखों से देख सकता था। उसने कुछ रुपए जेब में से निकाल कर औरत की ओर बढ़ाते हुए कहा-‘‘लो बच्चों को कुछ खिला-पिला दो, इस बच्चे को डॉंक्टर को दिखा दो।‘‘औरत ने रुपए थाम लिए और निशांत लौट आया।
उस अजनबी शहर में एक अनजान औरत की मदद करते समय वह थर-थर कांॅंप रहा था। उसका मन जहॉं उस औरत के दुःख में शामिल होने से सुकून महसूस कर रहा था। वहीं एक अज्ञात डर भी उसे सता रहा था,कि अगर मुहल्ले वालों ने उसको कुछ उल्टा-सीधा कह दिया तो ? पर इस भय के साथ भी उसकी उदारता बनी रही। वह अब उस औरत की मदद करते-करते उसके बारे में कई बातें जान गया। उस औरत का नाम लक्ष्मी था, जिसके दो लड़कियां और दो लडके थे। शुरू-शुरू में उसके पति का बिजनेस बहुत अच्छा चलता था बाद में इतना घाटा हुआ कि बिजनेस के साथ -साथ पति भी बर्बाद हो गया। बच्चों पर जान छिड़कने वाला और पत्नी से अथाह प्यार करने वाला पति दिन-ब-दिन कर्ज और शराब में डूबता गया और देखते ही देखते सारा कुनबा दुर्भाग्य का शिकार हो गया। निशांत का अब उस घर से एक आत्मीय संबंध जुड़ गया।घर की रौनक वापस आ गयी,बच्चे स्कूल जाने लगे। लक्ष्मी सजने-सॅंवरने लगी और उसका पति उससे डरने लगा, क्योंकि पत्नी के हाथ ‘निशांत‘ नाम का एक अमोघ हथियार आ गया था ,जिसके बल पर वह पति को तरह-तरह से डरा-धमका कर भगा देती।
सब कुछ ठीक -ठाक चल रहा था। लक्ष्मी निशांत के लिए खाना बनाकर उसके कमरे पर रख आती। झाडू-पोछा ,बर्तन, कपड़े सब साफ कर करीने से सजा आती। शुरू -शुरू में मुहल्ले वालों ने लक्ष्मी को सहारा देने वाले निशांत को भलामानस ,उदार जैसे मधुर-संबोधनों से नवाजा लेकिन धीरे-धीरे वे उन दोनों के बीच क्या संबंध हो सकता है ? को लेकर खोजबीन करने में परेशान रहने लगे। उसके पति को भला-बुरा कहने लगे। उसे भडकाने लगे कि पत्नी की नकेल कस कर रखे। लेकिन बात की बात में बात बहुत ही बढ गयी थी, जो निशांत के कानों में भी पहुॅंच चुकी थी, लेकिन जाने क्यों वह लक्ष्मी की मदद करने,उसके साथ हॅंसने-बोलने से खुद को रोक नहीं पाता था। जब वह सोचता कि वह लक्ष्मी से नहीं मिलेगा तो अजीब सी बेचैनी उसे घेर लेती। जब कुछ दिनों के लिए एक जरुरी काम से उसे अपने शहर जाना पड़ा था तो, वह चौबीसों घंटे लक्ष्मी के बारे में ही सोचता रहता था। कभी मरियल सी लगने वाली लक्ष्मी पर जैसे यौवन दुबारा मेहरबान हो गया था। वह सुंदर लगने लगी थी। जिसे देखकर मुहल्ले वालों के सीने परसाँप लोटने लगा और निशांत की ऑखों में मोहिनी छा गयी थी। इस मोहिनी में धिरी निशांत की ऑंखें खुलीं तो उसे आभास हुआ कि उसकी कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा लक्ष्मी के परिवार पर खर्च हो जा रहा है। लक्ष्मी के बच्चे उसे अपना पिता समझने लगे हैं जबकि उसे उन बच्चों पर सिर्फ दया आती थी। उसे यह कतई मंजूर नही था कि वे उसे पिता तुल्य समझें। कभी-कभी अकेले में वह अपने आप से जिरह करता कि उसने लक्ष्मी से यह कैसा संबंध स्थापित कर लिया है? न तो वह स्वयं को उसका प्रेमी पाता न ही पति के रुप में अपनी कल्पना कर पाता। धीरे-धीरे लक्ष्मी के प्रति उसका आकर्षण घोर सांसत में बदलने लगा। वह लक्ष्मी को अपनी सहकर्मियों के पते बताने लगा कि वह उनके घर खाना बनाने जाए, झाडू-पोछा बर्तन करने जाए। लक्ष्मी को किसी और के घर काम पर जाना गॅंवारा नही था पर वह समझ गयी थी कि, उससे निशांत का मोह भंग हो गया है सो उसने चुपचाप खुद को दूसरों के घर के कामों में झोंक दिया। निशांत उससे मिलता रहा पर इस मिलने में आत्मीयता न के बराबर थी। उसकी वाणी मे, व्यवहार मे मालिकाना दंभ साफ झलकता। लक्ष्मी से ऊबकर,छूटकर निशांत ने राहत की सॉंस ली। उसने प्रण किया कि जीवन में अब दुबारा कभी भी भावुकता में पड़कर इस तरह के संबंध नहीं बनाएगा। अब अपनी तनख्वाह के पूरे पैसों का वह मालिक था, उन्हे जैसे चाहे वैसे खर्च कर सकता था। उसे लक्ष्मी को त्याग देने के बाद परमानंद का अनुभव हो रहा था, जिसमें ऊभचूभ उसके दिन-रात सानंद बीत रहे थे, लेकिन इस आनंद को साझा करने की उसकी अब
तीव्र इच्छा होने लगी उसकी ऑंखें दुनियाभर की लडकियों में वह सुंदर-सलोना चेहरा तलाशने लगीं ,जो उसकी जीवन संगिनी बनने के सर्वथा योग्य हो। ढूॅंढते-ढूंढते निशांत को अपनी जीवन संगिनी मिल ही गयी। चॉंदनी नाम था उस लडकी का जो उसके ही अभिन्न मित्र की बहन थी।पढी-लिखी आजाद ख्यालों वाली उस लडकी को जैसे दूध में गुलाब घोलकर रचा गया था,पलाश से होठो पर दहकती हॅंसी, शोख नजर, उसे देखते ही प्रेम कर बैठा था निशांत। मॉं-बाप का इकलौता बेटा था वह ,उसके चुनाव को उन्होंने सहर्ष सहमति दे दी।
विवाह हुआ। निशांत के जीवन का नया दौर शुरु हो गया। उसका दाम्पत्य बहुत सुखद और संतुष्ट था। पर उपर बैठा वह कारसाज निशांत की जिन्दगी की इस एकरसता से संतुष्ट नही था। उसने निशांत के हॅंसते-खेलते दाम्पत्य में फिर एक बार अजीबो-गरीब रंग बिखरे दिये, जिसमें सब गड्ड-मड्ड हो गया। हुआ ये कि निशांत के घर के बगल में एक नये किरायेदार रहने आए । पति-पत्नि और बच्ची। बच्ची निशांत की बिटिया की हम उम्र थी। सो दोनो मॉंओं के संबंध भी
इतने मधुर हो गए कि दोनो परिवारो का एक दूसरे के यहॉं आना-जाना शुरू हो गया। कभी किसी के घर कुछ खास पकवान बनता तो वह दूसरे के घर पहुॅचा आता। कभी किसी के घर का कोई सदस्य बीमार होता तो, दूसरा परिवार पूरी रात उसकी सेवा-सुश्रूषा में बिता देता। जब कोई लम्बी छुट्टी पर जाता तो, दूसरा उसके घर की रखवाली करता, यानि एक ऐसा प्रगाढ़ रिश्ता दोनों परिवारों के बीच बन गया था, कि दोनों एक-दूसरेे पर ऑंखमूॅंद कर विश्वास करते और एक दूसरे को भरपूर सहयोग देते ।निशांत की पड़ोसन उसे भाई साहब कहती और जब पति काम के सिलसिले में घर से बाहर रहते तो वह कुछ कामों के लिए निशांत का सहारा लेती जैसे बाजार से जरूरत के सामान की खरीददारी, बच्ची की पेरेन्ट्स-टीचर मीटिंग के लिए वह निशांत से साथ चलने को कहती और निशांत की पत्नी भी खुशी-खुशी उसे पति के साथ जाने की अनुमति दे देती। इस बीच किसी को रंचमात्र भी अंदेशा नही था कि इन सहयोगी रिश्तो में एक नया रिश्ता भी पनप सकता है। लेकिन गुपचुप तरीके से इन दोनो परिवारो के बीच एक नए-नवेले रिश्ते ने जन्म ले लिया हुआ यॅूं कि निशांत की पत्नी गंभीर रूप से बीमार हो गई और कुछ दिन के लिए मायके चली गयी। निशांत का खाली घर उस काटने दौडे़ उससे पहले ही, पड़ोस की भाभी उस घर में जब-तब आकर उसका मनोबल बढ़ा जातीं और उसकी हर सुख-सुविधा की सामग्री जुटा कर रख आतीं। फोन पर निशांत की पत्नी को प्रतिदिन का विवरण बताती और महाभारत के संजय की तरह उस तक निशांत के जीवन की पल-पल की खबर पहुॅचातीं।
सुमन सिंह
एस-8/108 आर-1 डी,आई,जी
कॉलोनी ,खजुरी वाराणसी
मोबाइल न0-9889554341
ई-मेल:ssingh445@gmail.com
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पर नियति को चैन कहॉं?पत्नि बनी पड़ोसन निशांत की बच्ची को तरह-तरह के कष्ट देने लगी,जिससे निशांत आजिज आ गया और अपनी बेटी को अपने मॉं-बाप के पास रहने के लिए भेज दिया।एकबार फिर अपने वर्तमान जीवन से ऊबे-खीझे निशांत की अनमनी नजर सुकून की तलाश में भटकने लगी। इंटरनेट की आभासी दुनिया में घंटों विचरने के बाद, कुछ फेसबुकीय प्रेम संबंधों के जुडने-टूटने के बाद पड़ोस में आए नये परिवार की सुन्दर गृहणी पर जा टिकी। और----और---- अब और क्या ? आप खुद ही समझदार हैं। एक नई कहानी की जीवंत कल्पना कर सकते है।
KAHANI KA MANOVAIGYANIK TARTAMY ACHCHA HAI LEKIN HAWAS KI BHUKH KO HI JYADA UKERA GAYA HAI LAGATA HAI PATR NISHANT MANSIK VIKAR SE GRASIT PATR HAI.YADI NISHANT KO MANSIK DRIRTHATA KE SATH PRASTUT KIYA JATA TO KAHANI ME ROCHAKATA AA JATI AUR KAHANI SANDESH PARAK BAN JATI.APNE KALPANA KO JO MANOVAIGYANIK ADHAR DIYA HAI. WAH HREIDAY SE SARAHANIYA HAI.
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