साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) मार्च-2014
चित्रांकन वरिष्ठ कवि और चित्रकार विजेंद्र जी |
ग़ज़ल -1
जब से जेब में सिक्कों की खनक है।
तबसे उसके रवैये में कुछ फ़रक़ है।
आँखों में न जाने कौनसी चमक है।
ये करवटें नहीं तड़प है मेरे दर्द की,
अन्दर ज़माने पहले की कसक है।
रौशनी का मंज़र ख़ुशगवार लगा होगा,
हवाएँ ही जानें लपटों में कैसी दहक है।
ख़ून में मेरे मिला हुआ जो तेरा नमक है।
ग़ज़ल -2
बेअसरों पे कितना असर कर रहे हैं।
क्यों यहाँ लोग इतना ग़दर कर रहे हैं।
मेरी मंजिल मेरे ख़्वाब के साथ टूटी,
पाँव मेरे अब भी सफ़र कर रहे हैं।
पीकर शरबतों को प्यास ही दे गए,
फ़िर क्यों जाम मेरी नज़र कर रहे हैं।
अब जो होना है सो होगा कहते जाते हैं,
वो दिल में फ़िर भी फ़िकर कर रहे हैं।
दो रोटी के डर में बसर कर रहे हैं।
'तन्हा' को न देखो यूँ हैरत से यारों,
आँखों को अपनी समंदर कर रहे हैं।
ग़ज़ल -3
हरेक शख्स की गंदी नज़र पहचानता हूँ।
रोज़ भटकता हूँ सारा नगर पहचानता हूँ।
जिन राहों से गुज़रा हूँ मंजिल की तलाश में,
तमाम ख़ार और पत्थर पहचानता हूँ।
आज पैरों पे खड़ा हूँ तो सब साथ आ गए,
कल जहाँ लगी थी वो ठोकर पहचानता हूँ।
मुझको पता न दो कॉलोनी के मकान का,
बस फुटपात पर बने घर पहचानता हूँ।
मिला दिया ज़हर हर चीज़ में चालाकी से,
कैसे ख़रीदूँ मैं इनका असर पहचानता हूँ।
डूबा हूँ गहराइयों में बिना किसी खौफ़ के,
मौजों से क्या डरूं समंदर पहचानता हूँ।
ग़ज़ल -4
कभी बसता था जो हमारे ही घरानों में।
वो फ़न आज बिक रहा है दुकानों में।
पहुँचे थे बुलन्दियों पर ख़ुद के हुनर से,
अब फिसल रहे हैं नीचली ढलानों में।
दलालों ने हक़ उसका यूँ झपट लिया,
जैसे चील चूज़ा ले उड़े आसमानों में।
रूबरू उसे न पता चला फ़न का सौदा,
ऊँचे दामों में बिका विलायती ज़ुबानों में।
ताखों या संदुकों में धूल में दफ़्न पड़े हैं,
तमग़े जो मिले थे उसे गए ज़मानों में।
‘तन्हा’ हुनर मारता रहा भूख मारने को,
वो अब काम करता है कारख़ानों में।
मोहसिन 'तन्हा'
स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष
एवं शोध निर्देशक
जे. एस. एम्. महाविद्यालय,
अलीबाग- 402201
ज़िला - रायगढ़ (महाराष्ट्र)
ई-मेल khanhind01@gmail.coमो-09860657970
डॉ. मोहसिन खान अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई। थोड़ी और मेहनत की आवश्यकता है ।
जवाब देंहटाएंvery good,Dr.Mohsin... Samsaamyik likhte ho,isi tarah k prayaso ki jarurat hai...Dr.Dhirendra Kerwal
जवाब देंहटाएंउमेश जी और धीरेन्द्र जी आप दोनों का बहुत शुकरिया । उमेश जी और भी अधिक परिश्रम कर रहा हूँ । हर रोज़ कोशिशों में ही गुज़र रहा है !!!
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें