साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) मार्च-2014
चित्रांकन वरिष्ठ कवि और चित्रकार विजेंद्र जी |
हेमंत शेष का कथा संग्रह
‘रात का पहाड़’
वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर
पुस्तकालय-संस्करण 2012,
मूल्य 200/- पृष्ठ संख्या: 148
ISBN 978-93-80441-09-2
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‘गंवई-बस यात्रा’ एक बानगी: और अंत में प्रार्थना हे ईश्वर!! इस बस को ठसाठस इतना भर दो कि यह किसी तरह चले तो सही... और मैं स्वाधीन, सम्प्रभुतावादी समाजवादी गणतंत्र भारत के एक सौ दो नागरिकों के साथ ग्राम हर्सोला तहसील मंडावर जिला अलवर पहुँच सकूँ!
इन कथाओं में यदा-कदा एक और लक्षण दर्शनीय होता है, कुछ प्रवृत्ति के रूप में और कुछ अनुभव के रूप में. अपने जीवन के कई दशक जब हेमंत शेष ने एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अनेक दायित्वों का पालन किया है और कर रहे हैं तो भला उनका साहित्य इससे कैसे अछूता रह सकता है. ‘घंटी’, ‘झाड़ू’, ‘कार्य-कारण’, ‘शिकायत’ एवम ‘मुहावरा: चार’ आदि उन चंद कथाओं में हैं जो इस क्षेत्र में उनके गहन, व्यापक और सूक्ष्म अनुभवों को चित्रित करती हैं. लेखक एक अजूबी प्रतिभा के फलस्वरूप किसी भी स्त्री/पुरुष के मस्तिष्क में अस्थायी तौर पर निवास करने की क्षमता रखता है और उसके विचारों को सरलतम रूप में हम तक पहुंचाता है. हालाँकि यह एक जटिल-प्रक्रिया है किन्तु इसकी जटिलता कथा को कहीं भी क्लिष्ट नहीं करने पाती है, यहाँ एक उद्धरण आवश्यक प्रतीत होता है, ‘मुहावरा: चार’ से, ट्रक पूरा भरा हुआ था और बरेली जा रहा था.पूछने पर ड्राइवर ने कहा- इस में बांस भरे हैं बाबू साब! मैंने उससे कहा- यार !इस कहानी में नया कुछ भी नहीं.हमारे राजस्थान में बहुत से आई.ए.एस अफसर ऐसे हैं जो पशुपालन सचिव के रूप में ऊँटों का अध्ययन करने ऑस्ट्रेलिया वगैरह जाते रहते हैं. कुछ कथाएँ पाठक को हलके से गुदगुदाती हुई लगेंगी जैसे, ‘शब्द’, ‘माँ’, ‘हिंदी’, ‘साहित्य’, ‘बदलाव’ ‘दरवाज़ा’ आदि. ये सभी लेखक की मौलिक साहित्यिक चुहल हैं जो एक मीठा सा अनुभव छोड़ जाती हैं. इसका एक नमूना शब्द नामक कहानी में देखा जा सकता है. अंग्रेजी का ‘प्लीज़’ शब्द कई बार हिन्दुस्तानी दांपत्य में काम नहीं करता! कुछ कथाओं में निचले और असहाय तबके के प्रति लेखक ह्रदय द्रवीभूत हो उठा है और उनकी दशा/दुर्दशा का सटीक एवं मार्मिक प्रस्तुतीकरण किया है, जैसे, दर्जी, रुदाली, कार्य-कारण: एक, आदिवासी, बलात्कार आदि. इन कथाओं के साथ न्याय करने का एक मात्र साधन इनको पढ़ना ही होगा. क्योंकि शब्दों के कितने भी जाल बुने जाएँ पर शायद वे इन कहानियों की आत्मा को छू भी न सकेंगे. लेखक हम में से ही, हमारे बीच का ही एक जागरुक नागरिक है जो हमारी ही तरह प्रगतिशील जीवन की कई कठिनाइयों से रोजाना दो-चार होता है और अपने इन अनुभवों को बिना किसी लाग-लपेट साझा किया है, ‘सब्जियां’ और ‘भूमंडलीकरण’ आज के समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं. हम अपने जीवन के इस कदर आदी हो चुके हैं कि हमने कुछ विशेष बातों की अनदेखी सीख ली है और हमारे मन ने स्थायी बहाने तलाश लिए हैं. शहरी जीवन का साइड-इफेक्ट. इस संग्रह की कई कहानियां आपके मस्तिष्क को लम्बे समय तक झकझोरने वाली हैं. जिसका अनुभव मुझे अभी तक हो रहा है. इस दृष्टि से ‘रिसर्च’, ‘हिंदी साहित्य’, ‘आदिवासी’ आदि कथाएँ प्रमुख और अमूल्य हैं. आदिवासी नामक कहानी से एक संक्षिप्त अंश:भूखे आदिवासी हमेशा इतना अच्छा नाचते हैं कि मॉरिशस और कांगो के राष्ट्रपति उनके लिए खड़े हो कर तब तक ताली बजाते हैं जब तक वे समूह में नाचते-नाचते लबे राजपथ से ओझल नहीं हो जाते... बाजारवाद और विज्ञापन का हमारे जीवन के ताम संवेदी क्षेत्रों में जो दखल हुआ है और जिस गहराई से इनकी जड़ें हमारे समाज में फ़ैल चुकी हैं उसे लेखक ने बाज़ार : एक और बाज़ार : दो में बेहतरीन ढंग से कहा है. हिंदी साहित्य की परम्पराओं और हिंदी के साहित्य-समाज पर भी लेखक ने कुशलतापूर्वक व्यंग्य-बाण चलाएं हैं. ‘आलोचक’, ‘कहानीकार’, ‘हिंदी-साहित्य’ आदि में इन्हें पढ़ने का आनंद ही अनोखा होगा. समग्रता से यदि इस संग्रह पर दृष्टि डालें तो पाएँगे कि यह कथाएँ एक अद्भुत कलेवर के साथ प्रस्तुत की गई हैं. कहीं पर लेखक ‘लड़कियां’ नामक कहानी के माध्यम से स्त्री-मन की गहराइयों की थाह लेता है, उनकी सूक्ष्मतम क्रियाओं/प्रतिक्रियाओं पर ऐसे व्यापक और पैनी दृष्टि डालता है कि स्वयं स्त्रियाँ भी इसे स्वीकारने से कोई गुरेज़ न कर सकेंगी. जीवन का व्यापक अनुभव लेखनी में और भी उभर कर आया है. ‘तस्वीर’ कहानी के माध्यम से लेखक एक बच्चे के मस्तिष्क में उतनी ही सहजता से प्रवेश करता है जितनी वह उन ‘इक्यासी हज़ार लड़कियों’ के मस्तिष्क में विचरण कर रहा था.
आभार आपका और भावना जी का !
जवाब देंहटाएंप्रो.(डॉ.) सुधा सिंह, नोएडा ने ये इस समीक्षा पर मुझे ये टिप्पणी लिखी थी- "अद्भुत कहानियां हैं हैं और अद्भुत समीक्षा की है भावना ने .....बहुत बधाई... आप दोनों को..."
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