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'अपनी माटी'
इस अप्रैल-2014 अंक से दूसरे वर्ष में प्रवेश
आलेख:राजभाषा पत्रकारिता
का विकास/रेशमा पी.पी
राजभाषा पत्रकारिता का अर्थ, स्वरूप एवं प्रयोजन
चित्रांकन:रोहित रूसिया,छिन्दवाड़ा |
राजभाषा पत्रकारिता,
पत्रकारिता के जगत में एक नई संकल्पना है। सरकारी संगठनों, उपक्रमों और
राष्ट्रीयकृत बैंकों से राजभाषा पत्रिकाएँ निकलती हैं। देश की प्रगति के लिए जब से
योजनाबद्ध तरीके से विकास-कार्यक्रम चला है, सामान्य जनता तक उसकी उपलब्धि को
पहुँचाने के लिए सरकार के विभिन्न विभाग, स्वायत्तशासी निगमों तथा आयोगों ने अपनी
पत्रिकाएँ प्रकाशित करनी शुरू कर दी हैं। चूँकि पत्रिकाएँ सरकारी दफ्तरों से,
सरकारी खर्च से, सरकार की विकास-यात्रा से सामान्य जन का परिचय कराने के लिए
प्रकाशित की जाती हैं, इसलिए इन्हें सरकारी संबोधन दिया गया है। इन पत्रिकाओं का
जीवन-मूल्य उनकी प्रचारात्मक क्षमता है।
राजभाषा पत्रिका में
प्रयुक्त हिन्दी का स्वरूप देखा जाए तो मुख्यतः संस्कृतनिष्ठ हिन्दी,
उर्दू-मिश्रित हिन्दी, अंग्रेजी-मिश्रित हिन्दी का रूप प्रयोग किया जाता है।
राजभाषा पत्रकारिता में
प्रकाशित विषय-वस्तु मुख्ततः साहित्येतर है। पत्रिका अपने-अपने कार्मिकों को
लक्ष्य में रखकर प्रकाशित की जाती है, साथ ही राजभाषा-संबंधी नियमों-अनुदेशों को
भी प्रकाशित किया जाता है। पत्रिका की विषय-वस्तु मुख्यतः तकनीकी, वैज्ञानिक,
प्रौद्योगिकी, प्रचारात्मक, शोध-संबंधी आदि हैं। राजभाषा पत्रिका की भाषा औपचारिक
होती है, इसलिए आम जनता के बीच साहित्यिक पत्रिकाओं की तरह इनकी पहुँच नहीं हो
पाई। राजभाषा पत्रिका में प्रयुक्त शब्दावली का विश्लेषण प्रमुखतः सामान्य
शब्दावली – हिन्दी संस्कृत (तत्सम, तद्भव) मिश्रित पारिभाषिक शब्दावली, हिन्दी
विदेशी भाषा मिश्रित आदि के आधार पर किया जा सकता है। संस्कृत (तत्सम, तद्भव),
विदेशी भाषा मिश्रित आदि शब्दावली के बारे में अगले अध्याय में वर्णन किया जाएगा।
पारिभाषिक शब्दावली के बारे में देखा जाए तो पारिभाषिक शब्दों को अलग-अलग
दृष्टियों से कई वर्गों में रखा जा सकता है। कुछ विद्वानों ने पारिभाषिक शब्दावली
पर विचार किया है। ‘सामाजिक विज्ञानों की पारिभाषिक शब्दावली का समीक्षात्मक अध्ययन’ (1968 में प्रकाशित, पृ. 10)
में डॉ. गोपाल शर्मा ने पारिभाषिक शब्द तीन प्रकार के माने हैं –“पूर्ण पारिभाषिक, मध्यस्थ
और सामान्य।”1 किन्तु यह मान्यता उचित नहीं है
क्योंकि सामान्य शब्द पारिभाषिक शब्द होते ही नहीं हैं। फिर उन्हें पारिभाषिक शब्द
का एक प्रकार कैसे माना जा सकता है? इसी प्रकार प्रसिद्ध विद्वान राजेन्द्र लाल
मिश्र ने 1877 में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध पुस्तिका ‘A Scheme for
the rendering of European Scientific Terminology into the Vernaculars of India’ में शब्दों के कुछ प्रकार
गिनाए हैं
“1. सामान्य शब्द कभी-कभी
पारिभाषिक शब्द के रूप में प्रयुक्त होते हैं। जैसे – सिर, पेड़, लोहा, ज्वर।
1.
वे शब्द जो सामान्य शब्द के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं
तथा पारिभाषिक शब्द के रूप में भी, किन्तु मानविकी के क्षेत्र में ये
अर्धपारिभाषिक कहे जा सकते हैं। जैसे – मांसपेशी, पंखुरी, रवा आदि। यह विवादास्पद
है कि इन्हें विज्ञान का शब्द मानें या सामान्य भाषा का।
2.
इसमें योगरूढ़ शब्द आते हैं। निर्माण के समय ये शब्द
वस्तुओं के विशिष्ट गुणों के द्योतक थे, किन्तु अब इनका पुराना व्युत्पत्तिजनक
अर्थ लुप्त हो गया है और अब ये नाम मात्र
रह गए हैं। जैसे – कुनैन, आक्सीजन आदि।
3.
वनस्पतिविज्ञान तथा प्राणिविज्ञान में प्रयुक्त द्विपदीय नाम जो मूलतः व्युत्तपत्ति की दृष्टि से सार्थक थे, किन्तु
अब उनके दोनों शब्द केवल ‘वंश’ और ‘जाति’ के द्योतक हो गए हैं।
4.
वे तकनीकी शब्द जो अब भी अपना व्युत्पत्तिपरक अर्थ देते
हैं। जैसे – रवाकरण (क्रिस्टलाइजेशन), अंकुरण (जर्मिनेशन) आदि।
5. समस्तपदीय शब्द – इसमें एक
या दोनों शब्द अपना व्युत्पत्तिपरक अर्थ देते हैं। जैसे – सल्फ्यूरिक अम्ल। इस
वर्ग के शब्द शरीर रचना विज्ञान या रसायनशास्त्र के होते हैं।”2
पारिभाषिक
शब्द ऐसे शब्द को कहते हैं, जो विषय-विशेष में प्रयुक्त हो, जिसकी किसी विषय या
सिद्धांत के प्रसंग में सुनिश्चित परिभाषा हो, जिसकी अर्थ-परिधि सुनिश्चित हो तथा
अन्य पारिभाषिक शब्दों से अपने अर्थ और
प्रयोग में स्पष्टतः
अलग हो।
डॉ.
दिनेश प्रसाद सिंह ने प्रयोग के आधार पर पारिभाषिक शब्दावली को दो वर्गों में
बाँटा जा सकता है3:-
“क. पूर्ण पारिभाषिक
एवं
ख. अर्ध
पारिभाषिक”3
क. पूर्ण पारिभाषिक :-
ऐसी शब्दावली जिनका प्रयोग
विभिन्न शास्त्रों में केवल पारिभाषिक शब्दावली के रूप में ही होता है। यथा –
भाषाविज्ञान में ध्वनि, ग्राम में दशमलव आदि।
ख. अर्ध पारिभाषिक :-
अर्ध पारिभाषिक शब्द उन
शब्दों को कहा जा सकता है जो सामान्य और पारिभाषिक, दोनों रूपों में प्रयुक्त होते
हैं। अर्थात् सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त होने के अलावा किसी क्षेत्र-विशेष के
संदर्भ में भी उनका इस्तेमाल पारिभाषिक शब्द के रूप में किया जाता है। उदाहरण के
लिए हम ‘आदेश’, ‘दावा’, ‘रस’ आदि शब्दों को ले सकते
हैं।
राजभाषा पत्रिकाओं के लेखन
में पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। विज्ञान के क्षेत्रों की
पत्रिकाओं में शब्दावली के निर्माण में बहुत सारी कठिनाइयाँ हैं। इन सारी
कठिनाइयों को दूर करने के लिए अक्टूबर, 1961 में डॉ. दौलत कोठारी की अध्यक्षता में
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical
Terminology) की स्थापना की गई। सरकारी स्तर पर शब्दावली-निर्माण और समन्वय कार्य में इससे
पहले कुछ कदम उठाये जा चुके थे। सन् 1950 में सरकार ने वैज्ञानिक बोर्ड की स्थापना
की थी और उसे पूरे देश के लिए समान शब्दावली-निर्माण का कार्य सौंपा था।
अप्रैल, 1960 में जारी किये
गए राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार, शिक्षा मंत्रालय ने अक्टूबर, 1961 में वैज्ञानिक
एवं तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की।
राजभाषा पत्रिका का प्रयोजन
राजभाषा पत्रिका केन्द्र
सरकार के कार्यालयों, उपक्रमों, राष्ट्रीयकृत बैंकों आदि कार्यालयों से निकलती है।
केन्द्र सरकार के कार्यालयों से निकलने वाली पत्रिकाओं का प्रयोजन कार्यालय के
कर्मचारियों एवं अधिकारियों का ही है। कर्मचारियों की अपनी सृष्टि कुछ भी हो,
पत्रिका में छपवाने के लिए दे सकते हैं। इस प्रकार की पत्रिका आम जनता तक नहीं
पहुँचती। यह अपने कार्यालय एवं अन्य केन्द्र सरकारी कार्यालयों तक ही सीमित रहती
है।इस प्रकार की पत्रिका
कर्मचारियों को हिन्दी के प्रति एक उत्साहवर्धन भी है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के
लिए कार्यालयों के हिन्दी विभाग में ऐसी पत्रिकाएँ निकालना जरूरी है। केन्द्र
सरकार के कार्यालयों से आने वाली पत्रिकाओं की भाषा ज्यादातर संस्कृतनिष्ठ होती
है।
डॉ. आर. एस. सर्राजु लिखते
हैं - “केन्द्र या राज्य सरकार
के कार्यालयों में सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों और नीतियों को कार्यान्वित
करने के लिए जो कार्यवाही की जाती है, उसी को प्रशासनिक कार्यवाही और इस कार्यवाही
में प्रयुक्त शब्दावली को प्रशासनिक शब्दावली कहा जा सकता है।”4 इस प्रकार की पत्रिकाओं की
भाषा भी प्रशासनिक होती है।
डॉ. आर. एस. सर्राजु के
शब्दों में - “प्रशासनिक और
कार्यालयीन हिन्दी में जहाँ एक ओर संस्कृत के तत्सम शब्दों को अंग्रेजी प्रशासनिक
शब्दावली के पर्यायों के रूप में स्वीकार किया गया है, वहीं दूसरी ओर प्रत्ययों को
जोड़कर नवीन शब्दों का भी निर्माण किया गया है। उदाहरण के लिए –Pay – वेतन, Consolidation – समेकन, Delay – विलंब, Department – विभाग, Fair copy – स्वच्छ प्रति, Action – कार्रवाई, Justification – औचित्य आदि संस्कृत शब्द
प्रशासन और कार्यालय के क्षेत्र में अंग्रेजी शब्दों के पर्यायवाची शब्दों के रूप
में स्वीकृत किये गए हैं।”5
तत्सम, तद्भव शब्दों के
अलावा कुछ विदेशी शब्दों को भी पारिभाषिक शब्दावली में स्थान दिया गया है। डॉ. आर.
एस. सर्राजु लिखते हैं –“जहाँ तक विदेशी शब्दों का प्रश्न है, प्रशासनिक शब्दावली के अंतर्गत हिन्दी
में उर्दू भाषा के माध्यम से अरबी-फारसी के अनेक शब्दों ने अपना स्थान सुनिश्चित
कर लिया है। यही नहीं, अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं के अनगिनत शब्द भी अपना
स्थान ग्रहण कर चुके हैं। Resignation – इस्तीफा, Recommendation – सिफारिश, Draft – मसौदा, Office – दफ्तर, Grievance – शिकायत, Fine – जुर्माना, Concession – रियायत, Condone – माफ करना, Hardly – मुश्किल से, Affairs – मामले आदि अरबी-फारसी मूल
के शब्द हिन्दी की प्रशासनिक, कार्यालयी शब्दावली में दिखाई देते हैं।”6 इस प्रकार की शब्दावली
कार्यालयों द्वारा अपनाने के कारण राजभाषा पत्रिकाओं के लेखकयही इस्तेमाल करते
हैं। अधिकतर कार्यालयों में राजभाषा की कार्यान्वयन समिति द्वारा पत्रिका का
काम-काज देखा जाता है।
संदर्भ
ग्रंथ सूची
1.
भोलानाथ तिवारी एवं महेन्द्र चतुर्वेदी; पारिभाषिक शब्दावली : कुछ समस्याएँ, पृ. 14
2.
वही, पृ. 18
3.
डॉ. दिनेश प्रसाद सिंह; प्रयोजनमूलक हिन्दी और पत्रकारिता, पृ. 260
4.
डॉ. आर.एस. सर्राजु; प्रयोजनमूलक हिन्दी : स्थिति, संदर्भ और
प्रयुक्ति विश्लेषण, पृ. 26
5.
वही, पृ. 28-29
6.
वही, पृ. 29
रेशमा पी.पी
शोधार्थी, हिंदी विभाग
अंग्रेजी एवं विदेशी
भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद
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