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'अपनी माटी'
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
इस अप्रैल-2014 अंक से दूसरे वर्ष में प्रवेश
'अपनी माटी'
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
इस अप्रैल-2014 अंक से दूसरे वर्ष में प्रवेश
चित्रांकन:रोहित रूसिया,छिन्दवाड़ा |
1
रहा जो अनछुआ अब तक, छुआ जाए !
नहीं जिनका कोई, उनका हुआ जाए !
बनी रहमत, कभी लौटी, नहीं देखा,
न जाने, किस जहाँ मेरी, दुआ जाए !
मेरा मिलना तेरे मिलने पे निर्भर है,
ये मग़रूरी का मौसम है, मुआ जाए !
जुए के खेल सा ये इश्क़ है 'तरकश'
तो खेला क्यूँ नहीं फिर ये जुआ जाए !
2.
जब ज़रूरत हो दख़ल देना ज़रूरी है !
अब रियाया को बदल देना ज़रूरी है !
बात ये बस बात बन के रह नहीं जाए,
साथ सच का दरअसल देना ज़रूरी है !
जब कभी मंज़िल पुकारे नींद में आ के,
बाँध के बिस्तर को चल देना ज़रूरी है !
इश्क़ का कर्ज़ा लिया है तो चुकाओ भी,
सूद है सो है, असल देना ज़रूरी है !
हो ख़यालों की गली में कोई हंगामा,
लब को अपने तब ग़ज़ल देना ज़रूरी है !
ज्ञान 'तरकश' बाँटते रहते हो जब देखो,
ख़ुद को पर पहले अकल देना ज़रूरी है !
आभार....
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया त्रिवेदी जी
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