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'अपनी माटी'
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
इस अप्रैल-2014 अंक से दूसरे वर्ष में प्रवेश
'अपनी माटी'
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
इस अप्रैल-2014 अंक से दूसरे वर्ष में प्रवेश
चित्रांकन:रोहित रूसिया,छिन्दवाड़ा |
(1)
मुझे फिर वही ख़्वाब आने को है
सिले ज़ख्म दिल के खुल जाने को है
दोस्ती,प्यार और अपनापन
ये रिश्ते फख्त जी बहलाने को है
रोशनी खुलकर नहीं आती यहाँ
लगता है छाँव धूप को सताने को है
दर्द बढ़ रहा है आज मुसलसल
खुशी कोई इस तरफ आने को है
बाज़ार में खरीददार नहीं कोई
जज़्बात दिल के बिक जाने को है
कुछ यूँ करो आफताब दिखे अंधेरों में
जागे परिंदे शाखों पर चहचहाने को है
घुटता रहता हूँ मैं घर की चार दीवारों में
और लोग यहाँ रोशनी में नहाने को है
और लोग यहाँ रोशनी में नहाने को है
सजा ज़िंदगी और मौत इंसाफ है
मुफ़लिसो ज़माना यही बताने को है
गालिब की जुबां समझते हैं जो लोग
'सिफ़र' इन्हीं को ये ग़ज़ल सुनाने को है
कौटिल्य भट्ट ‘सिफ़र’
मूल रूप से राजगढ़,मध्य प्रदेश के हैं.
चित्तौड़गढ़,राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं
पठन-लेखन में रूचि मगर
छपने-छपाने में अरूचि संपन्न युवा साथी हैं
गुजरात,मध्यप्रदेश और राजस्थान में
बहुत घुमक्कड़ी की है।
राजस्थान सरकार के रजिस्ट्रार विभाग
में निरीक्षक के पद
पर सेवारत हैं
मोबाइल-09414735627
ई-मेल:kautilya1576
|
महोदय,
जवाब देंहटाएंअपनी माटी से एक सोंधी सी सुगंध बहर के जाती तो है
वे हैं कहीं मशगूल, पर पूरी फसलें यहां लहलहाती तो हैं ।
जिन्हें नहीं है भरोसा अपनी जमीन का वे जाएं घर छोड़ यह देश, विदेश
देखों वहां दूर आम्र-कुंञ्जों में आज भी वह प्रेम का संगीत गुनगुनाती तो है ।
जिंदगी कहीं भी ले जाए हमें, हम जाने को हरदम तैयार बैठें हैं यारों
पर इस छप्पर तले चिड़िया अपने बच्चों के संग फुदक चह-चहाती तो है ।
लाख चाहेंगे वे कि इस जमीन पर हज़ारों लकीरें खींच कर अलग करें
एक समंदर की लहर किनारे आ के पल में उसे मिटा के चली जाएगी ।
कुछ समझ आ जाती रहबरदारों को तो इस माटी को माटी कहने पर
एक बार में ही उनके अक्ल के परदे खुलते, रौशनी उनके घरों में जाती ।
किन्तु जिन्हें नहीं अपनी माटी की परख सोने की सड़कें बनाके क्या होगा
आखिर मीठा पानी तो इस माटी के हृदय में है, वहीं से हमें लाना होगा ।
फकीर बनना जरुरी है ताकि माटी की जान से जान मिला सको तुम
वर्ना पल में सोना, पल में चांदी बन जाओगे, पर माटी को तरसोगे ।
आओ इस माटी का हक अदा करें और माटी के शब्द को ले कर चलें
रास्ते में होथेलियों पे क्यारियां सज जाएंगी और फूल वहीं मुस्कुराएंगे ।
बढ़िया पंक्तिया है बधाई
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