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'अपनी माटी'
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
इस अप्रैल-2014 अंक से दूसरे वर्ष में प्रवेश
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शोध:राम की शक्ति-पूजा, एक दृष्टिकोंण /अंजू कुमारी(अलीगढ़)
चित्रांकन:रोहित रूसिया,छिन्दवाड़ा |
‘राम की शक्ति-पूजा’ निराला जी की कालजयी रचना है। इस कविता का कथानक तो प्राचीन काल से सर्वविख्यात रामकथा के एक अंश से है, किन्तु निराला जी ने इस अंश को नए शिल्प में ढाला है और तात्कालिक नवीन संदर्भों से उसका मूल्यांकन किया है। युग की प्रवृत्ति के अनुसार कवि कथानक की प्रकृति में भी परिवर्तन लाता है। यदि निराला जी ‘राम की शक्ति-पूजा’ कविता के कथानक की प्रकृति को आधुनिक परिवेश और अपने नवीन दृष्टिकोण के अनुसार नहीं बदलते तो यह कविता केवल अनुकरण मात्र और महत्त्वहीन होती। प्रकृति में परिवर्तन कवि विशेष भाव-भूमि पर पहुँचने के लिए करता है और इसके लिए कवि नए शिल्प का गठन करता है। कथानक की प्रकृति के संबंध में बच्चन सिंह के विचार कुछ इसी प्रकार है,-‘‘कथानक की अपनी स्वतंत्र सत्ता तो होती है, किंतु उसकी सुनिर्दिष्ट प्रकृति नहीं मानी जा सकती । रामचरितमानस की स्वतंत्र सत्ता है। लेकिन वाल्मीकीय रामायण में उसकी एक प्रकृति है। रामचरितमानस में दूसरी और साकेत में तीसरी।’’1 इस प्रकार निराला ने कथानक तो रामचरित ही लिया है किन्तु उसको अपने परिवेश की प्रकृति में ढाला है। यह कथानक अपरोक्ष रूप से अपने समय के विश्व युद्ध पर दृष्टिपात कराता है, जहाँ घनघोर निराशा में कवि साधारणजन के हृदय में आषा की लौ दिखाने की कोशिश की है, जो राम-रावण के युद्ध के वृत्तांत से ही संभव थी।
निराला जी |
‘‘जब सभा रही निस्तब्धः राम के स्तिमित नयन
छोड़ते हुए, शीतल प्रकाश खते विमन
जैसे ओजस्वी शब्दों का जो था प्रभाव
उसमें न इन्हें कुछ चाव, न कोई दुराव,
ज्यों हो वे शब्द मात्र, - मैत्री की समनुरुक्ति,
पर जहाँ गहन भाव के ग्रहण की नहीं शक्ति।’’3
निराला की इस कविता का रचना काल सन् 1936 है अर्थात् प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात का समय। इस कविता में युद्ध के मध्य उत्पन्न मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें राम के चरित्र के रुप में केवल मानवीय रुप उभरकर पग-पग पर सामने आया है, जो प्राचीन रामकथा की रुढ़ियों को तोड़ नवीन दृष्टिकोंण को परिभाषित कर रहा हैः-
‘‘ स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संषय,
रह रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय; ’’4
‘‘ कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार
असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।’’5
‘‘ भावित नयनों से सजल गिरे दो मुक्ता दल,’’6
‘‘ बोले रघुमणि-‘‘ मित्रवर , विजय होगी न समर,’’7
‘‘अन्याय जिधर, हे उधर शक्ति ! ‘‘कहते छल-छल
हो गये नयन , कुछ बूँद पुनः ढलके दृगजल,
रुक गया कण्ठ।’’8
स्पष्ट है कि निराला ने अपनी कविता में मनोवैज्ञानिक भूमि का समावेश कर उसे एक नवीन दृष्टिकोंण दिया है। बंगला कृति ‘कृतिवास’ की कथा शुद्ध पौराणिकता से युक्त अर्थ की भूमि पर सपाटता रखती है, लेकिन निराला ने यहाँ अर्थ की कई भूमियों का स्पर्श किया और उसमें युगीन-चेतना, आत्मसंघर्ष का भी बड़ा प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है।
नाटकीयता के संदर्भ में यदि देखा जाये तो निराला ने उसका भी प्रभाव उक्त कविता में बिखेरा है, जो पूर्व में किसी अन्य कवि ने अपने काव्य में वर्णित नहीं किया। संपूर्ण हनुमान का परिदृश्य आधुनिक नाटकीय दृष्टिकोंण का नमूना है, जो विकरालता और प्रचण्डता का रुप धारणकर सामने आया है।निराला ने प्रकृति को रीतिकालीन कवियों की भाँति कामनीय रुप में न चित्रित कर उसे शक्तिरूपा दुर्गा के रुप में ढाला है। नवीन प्रयोग के रुप में निराला ने भूधर को पुरुष का प्रतीक न दिखाकर पार्वती के रुप में चित्रित कर नवीन दृष्टिकोंण दिया है:-
‘‘सामने स्थिर जो यह भूधर
शोभित-शर-शत -हरित-गुल्म-तृण से श्यामल सुन्दर
पार्वती कल्पना है इसकी, मकरन्द-बिन्दु ,
गरजता चरण-प्रान्त पर सिंह वह नहीं सिन्धु ,
दशदिक -समस्त है हस्त। ’’9
इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘राम की शक्ति-पूजा’ में निराला ने अपनी मौलिक क्षमता का समावेश किया है। इसमें कवि ने पौराणिक प्रसंग के द्वारा धर्म और अधर्म के शाश्वत संघर्ष का चित्रण आधुनिक परिवेश की परिस्थितियों से संबंद्ध होकर किया है। कवि ने मौलिक कल्पना के बल पर प्राचीन सांस्कृतिक आदर्शों का युगानुरुप संशोधन अनिवार्य माना है। यही कारण है कि निराला की यह कविता कालजयी बन गयी है।
संदर्भ सूची
1- सिंह, बच्चन, क्रान्तिकारी कवि निराला, विश्वविद्यालय प्रकाशन चौक वाराणसी, संस्करण: 1992 ,पृ0 सं0-77.
2- मिश्र, डाँ. शिवकुमार, आधुनिक साहित्य सृजन और समीक्षा, नंददुलारे बाजपेयी,प्रकाशन, एस0 सी0 वसानी, संस्करण 1978, पृ0 सं0 48.
3- शर्मा रामविलास, राग-विराग, लोक भारती प्रकाशन, 15-ए, महात्मा गाँधी मार्ग, इलाहाबाद-1, ग्यारहवाँ संस्करण, 1986, पृ0 सं0 98.
4-वही, पृ0 सं0 94.
5-वही, पृ0 सं0 94.
6-वही, पृ0 सं0 95.
7-वही, पृृ0 सं0 98.
8-वही, पृ0 सं0 98.
9-वही, पृ0 सं0 101
शोधार्थी
हिन्दी-विभाग,
हिन्दी-विभाग,
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अलीगढ़
अलीगढ़
आपकी विवेचना सहज और प्रवाही है। सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी विवेचना सहज और प्रवाही है। सुन्दर
जवाब देंहटाएंbadhai ! sundar lekh.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर लेख जय श्री राम
जवाब देंहटाएंआप का प्रयोग सराहनीय है पढ़कर अच्छा लगा वैसे मैं खुद काशी हिंदू विस्वविद्यालय में हिंदी साहित्य का छात्र हूँ और अध्ययनरत हूँ
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