साहित्य-संस्कृति की त्रैमासिक ई-पत्रिका
'अपनी माटी'
वर्ष-2 ,अंक-14 ,अप्रैल-जून,2014
जनता की रोटी
ब्रेख्त की कविताओं के कुछ अनुवाद
निर्णय के बारे में
तुम जो कलाकार हो
और प्रशंसा या निन्दा के लिए
हाज़िर होते हो दर्शकों के निर्णय के लिए
भविष्य में हाज़िर करो वह दुनिया भी
दर्शकों के निर्णय के लिए
जिसे तुमने अपनी कृतियों में चित्रित किया है
जो कुछ है वह तो तुम्हें दिखाना ही चाहिए
लेकिन यह दिखाते हुए तुम्हें यह भी संकेत देना चाहिए
कि क्या हो सकता था और नहीं है
इस तरह तुम मददगार साबित हो सकते हो
क्योंकि तुम्हारे चित्रण से
दर्शकों को सीखना चाहिए
कि जो कुछ चित्रित किया गया है
उससे वे कैसा रिश्ता कायम करें
यह शिक्षा मनोरंजक होनी चाहिए
शिक्षा कला की तरह दी जानी चाहिए
और तुम्हें कला की तरह सिखाना चाहिए
कि चीज़ों और लोगों के साथ
कैसे रिश्ता कायम किया जाय
कला भी मनोरंजक होनी चाहिए
वाक़ई तुम अँधेरे युग में रह रहे हो।
तुम देखते हो बुरी ताक़तें आदमी को
गेंद की तरह इधर से उधर फेंकती हैं
सिर्फ़ मूर्ख चिन्ता किये बिना जी सकते हैं
और जिन्हें ख़तरे का कोई अन्देशा नहीं है
उनका नष्ट होना पहले ही तय हो चुका है
प्रागैतिहास के धुँधलके में जो भूकम्प आये
उनकी क्या वक़अत है उन तकलीफ़ों के सामने
जो हम शहरों में भुगतते हैं ? क्या वक़अत है
बुरी फ़सलों की उस अभाव के सामने
जो नष्ट करता है हमें
विपुलता के बीच
अनुवाद-वरिष्ठ कवि नीलाभ
ईश्वर का सायंकालीन गीत
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जब शाम की धुन्ध भरी नीली हवा परमपिता ईश्वर को जगाती है
वह देखता है अपने ऊपर तने आकाश को निरवर्ण होते और
आनन्दित होता है इस पर। फिर सृष्टि का महान कीर्तन
तरोताज़ा करता है उसक कानों को और आहलाद से भर देता है उसे :
डूबने के कगार पर बाढ़ग्रस्त वनों की चीख़
लोगों और साज-सामान के बेपनाह बोझ से दबे
पुराने, धूसर मकानों की कराह।
जिनकी ताक़त छीन ली गई है
उन चुके हुए खेतों की हलक़-चीरती खाँसी।
धरती पर प्रागैतिहासिक हाथी की कठिन और आनन्द-भरी ज़िन्दगी के
अन्त को चिह्नित करने वाली पेट की विराट गड़गड़ाहट।
महापुरुषों की माताओं की चिन्तातुर प्रार्थनाएँ।
बर्फ़ीले एकान्त में आमोद-प्रमोद करते श्वेत हिमालय के
दहाड़ते हिमनद ।
और बर्टोल्ट ब्रेख्त की वेदना जिसके दिन ठीक नहीं गुज़र रहे
और इसी के साथ:
वनों में बढ़ते हुए पानी के पगलाए गीत।
फ़र्श के पुराने तख़्तों पर झूलते, नींद में डूबे लोगों की धीमी साँसें।
अनाज के खेतों की हर्ष भरी बुदबुदाहट, अन्तहीन प्रार्थनाओं मे अम्बार लगाती हुई
महापुरुषों के महान भजन ।
और बर्टोल्ट ब्रेख्त के शानदार गीत, जिसके दिन ठीक नहीं गुज़र रहे
अनुवाद-वरिष्ठ कवि नीलाभ
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इन्साफ़ जनता की रोटी है ।
कभी बहुत ज़्यादा, कभी बहुत कम ।
कभी ज़ायकेदार, कभी बदज़ायका ।
जब रोटी कम है; तब हर तरफ़ भूख है ।
जब रोटी बदज़ायका है; तब ग़ुस्सा ।
उतार फेंको ख़राब इन्साफ़ को—
बिना लगाव के पकाया गया,
बिना अनुभव के गूँधा गया !
बिना बास-मिठास वाला
भूरा-पपड़ियाया इन्साफ़
बहुत देर से मिला बासी इन्साफ़ ।
अगर रोटी ज़ायकेदार और भरपेट है
तो खाने की बाक़ी चीज़ों के लिए
माफ़ किया जा सकता है
हरेक चीज़ यक्-बारगी तो बहुतायत में
नहीं हासिल की जा सकती है न !
इन्साफ़ की रोटी पर पला-पुसा
काम अंजाम दिया जा सकता है
जिससे कि चीज़ों की बहुतायत मुमकिन होती है ।
जैसे रोज़ की रोटी ज़रूरी है
वैसे ही रोज़ का इंसाफ़ ।
बल्कि उसकी ज़रूरत तो
दिन में बार-बार पड़ती है ।
सुबह से रात तक काम करते हुए,
आदमी अपने को रमाए रखता है—
काम में लगे रहा एक क़िस्म का रमना ही है ।
कसाले के दिनों में और ख़ुशी के दिनों में
लोगों को इन्साफ़ की भरपेट और पौष्टिक
दैनिक रोटी की ज़रूरत होती है ।
चूँकि रोटी इन्साफ़ की है, लिहाज़ा दोस्तो,
यह बात बहुत अहमियत रखती है
कि उसे पकाएगा कौन ?
दूसरी रोटी कौन पकाता है ?
दूसरी रोटी की तरह
इन्साफ़ की रोटी भी जनता के हाथों पकी होनी चाहिए ।
भरपेट, पौष्टिक और रोज़ाना ।
अनुवाद : सुरेश सलिल
उनकी बातें
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खाने की टेबल पर जिनके
पकवानों की रेलमपेल
वे पाठ पढ़ाते हैं हमको
'संतोष करो, संतोष करो ।'
उनके धंधों की ख़ातिर
हम पेट काट कर टैक्स भरें
और नसीहत सुनते जाएँ
'त्याग करो, भई, त्याग
करो ।'
मोटी-मोटी तोन्दों को जो
ठूँस-ठूँस कर भरे हुए
हम भूखों को सीख सिखाते
'सपने देखो, धीर धरो ।'
बेड़ा ग़र्क देश का करके
हमको शिक्षा देते हैं
'तेरे बस की बात नहीं
हम राज करें, तुम राम भजो ।'
अनुवाद-अज्ञात
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मेरा छोटा लड़का मुझसे पूछता हैः क्या मैं गणित सीखूँ?
क्या फायदा है, मैं कहने को होता हूँ
कि रोटी के दो कौर एक से अधिक होते हैं
यह तुम जान ही लोगे।
मेरा छोटा लड़का मुझसे पूछता हैः क्या मैं फ्रांसिसी सीखूँ?
क्या फायदा है, मैं कहने को होता हूँ
यह देश नेस्तनाबूद होने को है
और यदि तुम अपने पेट को हाथों से मसलते हुए
कराह भरो, बिना तकलीफ़ के झट समझ लोगे।
मेरा छोटा लड़का मुझसे पूछता हैः क्या मैं इतिहास पढूँ?
क्या फायदा है, मैं कहने को होता हूँ
अपने सिर को जमीन पर धँसाए रखना सीखो
तब शायद तुम जिन्दा रह सको।
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जनरल तुम्हारा टैंक एक मजबूत वाहन है
जनरल तुम्हारा टैंक एक मजबूत वाहन है
वह रौंद डालता है जंगल को
और कुचल डालता है सैंकड़ों आदमियों को
लेकिन उसमें एक खराबी है-
उसे एक ड्राइवर चाहिए
जनरल तुम्हारा बम-वर्षक बहुत मजबूत है
वह हवा से तेज उड़ता है और ढोता है
हाथी से भी अधिक।
लेकिन उसमें एक खराबी है
उसे एक मिस्त्री चाहिए
जनरल आदमी कितना उपयोगी है
वह उड़ सकता है और मार सकता है
लेकिन उसमें एक खराबी है
वह सोच सकता है
जर्मन कवि,लेखक और नाट्य निर्देशक ब्रेख्त |
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