शोध:रामविलास शर्मा के सन्दर्भ में गांधीजी का साम्राज्यविरोधी आन्दोलन/बिजय कुमार रविदास

                 साहित्य-संस्कृति की त्रैमासिक ई-पत्रिका           
    'अपनी माटी'
         (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
    वर्ष-2 ,अंक-14 ,अप्रैल-जून,2014

चित्रांकन :शिरीष देशपांडे,बेलगाँव 
डॉ.रामविलास शर्मा एक मार्क्सवादी आलोचक हैं | उनके लेखन में साम्राज्यवाद एक बहुत बड़ा मुद्दा रहा है | संभवतः हिंदी साहित्य में प्रेमचंद के बाद डॉ.रामविलास शर्मा दूसरे ऐसे बड़े साहित्यकार है जिन्होंने साम्राज्यवाद का वैचारिक स्तर पर जीवन भर विरोध किया | यहीं कारण है कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने महात्मागांधी जी पर लिखने की योजना बनाई, यह सोचकर कि गांधीजी अपने समय में जिस विश्वव्यापी पूंजीवादी व्यवस्था में किया था, वह सम्भवतः अगली शताब्दी में भी कायम रहेगी |”1 इसमें कोई संदेह नहीं है कि गांधीजी ने अंग्रेजी राज में जिन समस्यायों का सामना किया था, वह आज भी हमारे सामने है | इसलिए गांधीजी ने साम्राज्यवादी शक्तियों से लड़ने के लिए जो कारगर उपाय बताये थे वह वर्तमानकालीन भारत के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं | डॉ.रामविलास शर्मा, गांधीजी के साम्राज्यविरोधी आन्दोअल पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं गांधीजी भारतीय समाज में परिवर्तन चाहते थे | वे भारतीय मानस को बदलना चाहते थे | वे जाति प्रथा से टकराते है, पूंजीवाद का विरोध करते है और साम्राज्यवाद का डटकर मुकाबिला करते हैं | उन्होंने विदेशीपूंजी के बारे में जो कुछ भी लिखा है वह आज के भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं | इसलिए जो लोग भी देश को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं, उन्हें विदेशी पूँजी के बारे में गांधीजी के विचारों का  गहराई से अध्ययन करना चाहिए|”2

गांधीजी ने अपने साम्राज्यविरोधी  अभियान में सबसे पहले देसी पूँजी के ऊपर ध्यान दिया हैं | क्योंकि साम्राज्यवादी शक्तियां अपना प्रभुत्व बनाये रखने के लिए सबसे पहले आर्थिक व्यवस्था पर चोट करती है | इसलिए गांधीजी देश की आर्थिक आधार पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं | उनका मानना है कि हमारा देश तभी विकाश कर सकता है जब हम अपने देश की पूँजी को बहार जाने से रोक सके और उसका उपयोग यहाँ के कुटीर उद्योग धंधों में लगायें | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी स्थिति बदली नहीं है | देसी पूँजी का विदेश जाना अब भी बंद नहीं हुआ है बल्कि इसका स्वरुप दिन प्रति दिन और भी विकराल होते जा रहा है | आज तरह तरह की विदेशी मल्टीनेशनल कंपनियां हमारे देश में अपना पावं पसारे जा रही है और देश का पैसा लूटकर  विदेश लिए जा रही हैं | विदेशी कम्पनिओं के बढ़ते हुए  इस वर्चस्व के कारण हमारे देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ सी गयी है | इस सन्दर्भ में गाँधी जी ने देशी पूँजी के ऊपर जो विचार व्यक्त किये थे, उसे डॉ.शर्मा अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं और लिखते हैं –“1947 के पहले भारतीय जनता की कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा बहार चला जाता था | वह सिलसिला अब भी जारी है | गांधीजी ने, और उनसे पहले दादा भाई नौरोजी ने, इस बात पर बार बार जोर दिया था कि जब तक भारत से धन का विदेश जाना बंद नहीं  किया जाता तब तक यह देश उन्नति नहीं  कर सकता | गांधीजी ने अपने समय की साम्राज्यवादी व्यवस्था की जो विशेषताएं बताई थीं , वे महाजनी पूँजीवाद के चलन के बावजूद आज भी बहुत कुछ उसी तरह कायम हैं | इसलिए उन्होंने समकालीन परिस्थितियों से उबरने के  लिए जो मार्ग बताया था, वह आज भी महत्वपूर्ण है |”3

गांधीजी 
डॉ.रामविलास शर्मा ने गाँधीजी के विचारों का मूल्यांकन करते समय अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को रेखांकित किया हैं | जैसे कि हम सब जानते हैं भारत में अंग्रेज व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे और बाद में छल कपट एवं बल प्रयोग से पूरे भारत पर अपना अधिकार जमा लेते हैं | अपना प्रभुत्व बनाये रखने के लिए सबसे पहले तो उन्होंने यहाँ के उद्योग धंधों एवं कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया और फिर इंग्लैंड में तैयार की गयी वस्तुओं को भारतीय बाजार में कम मूल्य में बेचना शुरू किया इस तरह देखते ही देखते अंग्रेजों ने यहाँ की आर्थिक व्यवस्था को बर्बाद करके उसे अपने हाथों में ले लिया | अंग्रेजों की इस आर्थिक कूटनीति का पर्दाफास करते हुए गांधीजी कहते हैं –“गांवों के उद्योग धंधे, जैसे कि हाथ कताई, नष्ट कर दिए गए हैं और इस कारण किसानों को साल में कम से कम 4 महीने बेकार रहना पड़ता है | हस्त कला कौशल के अभाव में उनकी बुद्धि मंद होती जा रही है | जो हुनर इस तरह नष्ट हो गए हैं | उनके बदले में और देशों की भांति, कोई नया धंधा भी नहीं मिल सका है |”4 वास्तविकता तो यह है कि भारत की अंग्रेजी सरकार ने हिंदुस्तानिओं को न केवल उनकी स्वाधीनता से वंचित कर दिया है, बल्कि उसने जनता के शोषण को ही अपना आधार बनाया है और हिंदुस्तान को आर्थिक,राजनीतिक,सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से तबाह कर दिया है |”5 असल में इस साम्राज्य ने हम पर  इतने अधिक अत्याचार किये हैं कि उसके झंडे के नीचे रहना ईश्वर के प्रति द्रोह करना है |”6 गांधीजी अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति से अच्छी तरह परिचित थे | वे जानते थे भारत में अंग्रेज शोषण के दम पर अपने साम्राज्य का विस्तार करके ,यहाँ का धन लूट कर विदेश ले जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने लेखों में बार बार अंग्रेजी साम्राज्य की आलोचना की हैं |

रामविलास जी 
अंग्रेज भारत में अपने साम्राज्य की नीवं मजबूत करना चाहते थे क्योंकि भारत ब्रिटिश साम्राज्य के भवन का कलश था और उसकी नीवं का मजबूत पत्थर भी”7 इसलिए ब्रिटिश राज में इस देश का जितना शोषण हुआ उतना उससे पहले कभी नहीं हुआ गांधीजी मुग़ल बादशाहों का उदहारण देते हुए कहते हैं ---मुग़ल बादशाहों का राज्य एक तरह से विदेशी राज्य माना जाता है | किन्तु जैसी दुर्दशा भारत की आज है, वैसी मुग़ल बादशाहों के ज़माने में कभी नहीं रही | इसका कारण यह है कि उस समय भारत का अपना व्यापार और उद्योग था तथा मुग़ल बादशाह भी अपने सुखोपभोग के लिए जिन जिन साधनों का उपयोग करते थे, उनका निर्माण हमारे देश के कारीगर ही करते थे जिससे इस देश का  धन इस देश में रहता था |”8लेकिन ब्रिटिश राज में स्थितियां ठीक इसके विपरीत है | ब्रिटिश राज में अंग्रेज इस देश के हित को दरकिनार करके सारा धन इंग्लैंड भेज देते थे, जिसके कारण यहाँ की अर्थ व्यवस्था लचर सी हो गयी थी  इसलिए  गांधीजी ने अपने अनेक लेखों में बार बार अंग्रेजो के आने के बाद भारत के व्यापार और उद्योग धंधों के नाश होने की बात कही हैं | वे भारतवासियों से हमेशा कहा करते थे कि –“बाहर का माल मत खरीदो, अपने यहाँ उद्योग धंधों का विकास करो | पुराने उद्योग धंधों को फिर से नया जीवन दो, स्वदेशी आन्दोलन चलाओ |  अंग्रेजी माल की खपत भारत में बंद हो जाएगी तो साम्राज्य का आर्थिक आधार निर्बल हो जायेगा | अंग्रेज भारतवासियों से समझौता करने करने के लिए विवश होंगे |”9 यह थी गांधीजी की साम्राज्यविरोधी नीति | जिसके एवज में उन्होंने पूरे भारत में स्वदेशी आन्दोलन चलाया एवं स्वदेशी वस्तुओं को भारतवासियों के लिए उपयोगी बताया | जिससे देश की जनता आत्मनिर्भर हो सके और देश का पैसा देश में रहे, बहार न जाए

डॉ.शर्मा, गांधीजी के इस  स्वदेशी आन्दोलन को पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं वे लिखते हैं –“  गांधीजी देख रहे थे की विदेशी माल के बहिष्कार से भारतीय उद्योग धंधों को प्रोत्साहन मिलेगा और उन्होंने इसका स्वागत किया | स्वदेशी आन्दोलन के साथ राष्ट्रीयता की भावना भी जोर पकड़ेगी, यह बात भी उनके सामने स्पष्ट थी |”10 गांधीजी स्वदेशी आन्दोलन को व्यापक रूप से फैला देना चाहते थे | भारतवासियों को स्वदेशी के प्रति जाग्रत करते हुए उन्होंने यह बताया की स्वदेशी के सिद्धांत का पालन करने से छोटे देश भी अपनी स्वाधीनता कायम रख सकते हैं | इस संबंध में उन्होंने यूरोप के छोटे छोटे देशों का उदहारण दिया | वे कहते हैं यूरोप के कई देश आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र देश हैं क्योंकि वे स्वदेशी के सिद्धांत का अनुगमन करते हैं | प्रत्येक स्वतंत्र देश अपने तरीके से स्वदेशी का अनुगामी है | स्विट्जर्लैंड और डेनमार्क अपने अपने लोगों के अनुकूल धंधों की रक्षा करते हैं और उनमे किसी भी विदेशी को हस्तक्षेप नहीं करने देते |”11 सिर्फ इतना ही नहीं एक समय इंग्लैंड को भी स्वदेशी का कानून बनाकर वहां के लोगों को स्वदेशी पालन करने के लिए बाध्य किया गया था | गांधीजी लिखते --महारानी एलिजाबेथ के समय में इंग्लैंड को भी स्वदेशी के व्यवहार पर निर्भर रहना पड़ता था | यहाँ तक कि उसे कानून बनाकर स्वदेशी वस्तुओं का व्यवहार अनिवार्य कर देना पड़ा था |”12 गांधीजी चाहते थे कि –“भारतवासी अपने आप को सुधार लें, स्वंय अपनी जरूरत का माल पैदा करने लगें ...................अंग्रेज तरह तरह से करोड़ों रूपये हर साल भारत से खींचकर विलायत भेंज  रहे थे | धन के इस निर्यात को रोके बिना भारत अपनी दशा में कोई परिवर्तन न कर सकता था | यहाँ की धन जन शक्ति के सहारे अंग्रेज केवल भारत पर अधिकार न किये हुए थे, वरन् भारत के सहारे वे एशिया में, और संसार के अन्य भागों में, अपने साम्राज्य का विस्तार भी कर रहे थे |”13

अंग्रेज भारत में व्यापार करने के अलावा जमींदारी भी करते थे | ब्रिटिश सरकार बंगाल,चंपारन और असाम में हजारों बीघा जमीन पर कब्ज़ा करके उसमे फसलें उगाया करती थी किन्तु वहां देखें तो मजदूर भारतीय ही थे | सारा व्यापार दबाव या लालच दिखाकर किया जाता था | मानव स्वभाव पर साम्राज्यवादी व्यवस्था का जो असर हुआ था,उसके बारे में गांधीजी लिखते हैं – “इस प्रणाली के अंतर्गत बर्बरता का पोषण किया गया है और मानव स्वभाव को पतन के गर्त में ढकेल दिया गया है | और यह सब सिर्फ इसलिए किया गया है कि इस गरीब देश का जिसके बारे में मेरी इच्छा ऐसा मानने की होती है कि वह किसी समय मानव शक्ति तथा धन धान्य से भरा पूरा था ---शोषण करने और इसकी सम्पति लूटकर अपना घर भरने पर कटिबद्ध एवं अल्पसंख्यक समुदाय के व्यापारिक हितों के लिए बलात् छीनी गई सत्ता को कायम रखा जाए |”14 गांधीजी की दृष्टि में  पूरी साम्राज्य व्यवस्था रोग से पीड़ित है और वह एकदम सड़ चुकी है |इसलिए अब जरुरी है की इससे सरे सम्बन्ध तोड़ लेने चाहिए |
अंग्रेजी सरकार, भारत में दमन करने के लिए और अपना साम्राज्यावादी प्रभुत्व बनाये रखने के लिए अधिकाधिक मात्रा में फौज का इस्तेमाल करती थी | इस फ़ौज में बहुत बड़ी संख्या इसी देश के जवानों की होती थी | गांधीजी ये नहीं चाहते थे की इस देश के जवान सेना में भरती  होए या किसी अन्य तरह से अंग्रेजो की मदद करें , वे भारत के जवानों को संबोधित करते हुए कहते हैं –“यह बात किसी भी भारतीय की राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के खिलाप है कि वह एक ऐसी शासन प्रणाली के अधीन असैनिक और खासकर सैनिक सेवा करे  जिस प्रणाली ने भारत को आर्थिक,नैतिक तथा राजनीतिक दृष्टियों से पतन के गर्त में गिरा दिया है, जिसने सैनिकों तथा  पुलिस का उपयोग राष्ट्रीय आकांक्षाओं का दमन करने के लिए किया हो (है),जैसा की रौलेट अधिनियम के खिलाप होने वाले आन्दोलन के समय किया, और जिसने (भारतीय) सैनिकों का उपयोग अरबों,मिस्रियों,तुर्कों और जिन दूसरे राष्ट्रों ने भारत का कुछ भी नहीं बिगाड़ा, उन सबकी स्वतंत्रता का अपहरण करने के लिए किया है | हमारा विचार यह भी है की हर भारतीय सैनिक और असैनिक कर्मचारी का कर्तव्य है की वह सरकार से सारे सम्बन्ध तोड़ ले और अपनी जीविका का कोई और साधन ढूंढें |15

अंग्रेजी सरकार की फिजूलखर्ची पर गांधीजी ने जनवरी  1930 के यंग इंडिया में एक अच्छा   लेख जारी किया था | इस लेख में गांधीजी ने एक तरफ  अंग्रेजी सरकार की अनावश्यक खर्च पर तीखी आलोचना व्यक्त की हैं तो दूसरी तरफ भारतीय जनता को क़र्ज़ के तले दबी हुयी  बताया हैं वे कहते हैं –“ हमारे देश की आर्थिक स्थिति का जिसे ज्ञान है, वह जानता है कि यह सरकार कितना फिजूलखर्च करने वाली है और जनता कर्ज के कैसे भयानक बोझ के तले पिसी जा रही है | यह भी सब जानते हैं कि देश के हित को एक ओर रखकर इस देश में विदेशियों को कैसी कैसी (व्यापारिक) सुविधाएँ दी गयी हैं |”16 डॉ.शर्मा ,गांधीजी के इस लेख को विकाशील भारत के लिए बहुत ही  महत्वपूर्ण मानते हैं | गांधीजी के इस वक्तव्य पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वे लिखते हैं –“स्वाधीन भारत की सरकारें कम फिजूलखर्च करने वाली नहीं रहीं | सरकारी तामझाम और बड़े आदमियों की सुरक्षा पर लाखों रूपये खर्च किये जाते हैं | जनता कर्ज के भयंकर बोझ के तले पिसी जा रही है, यह बात पराधीन भारत की जनता के लिए सही थी और स्वाधीन भारत की जनता के लिए भी बहुत हद तक सही है | अमीरों और खाते पीते लोगों की संख्या बढ़ गयी है परन्तु गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या अब भी बहुत बड़ी है | जनता की कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा कर्ज लिए हुए धन के सूद के रूप में, और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माल की खपत से मुनाफे के रूप में, बाहर जाता है | महाजनी पूंजीवाद पिछड़े हुए देशों को, विकाश के नाम पर, कर्ज दे कर उनसे सूद प्राप्त करता है | यह उसकी आमदनी का मुख्या साधन है | विदेशी साहूकारों को धनी बनाने में स्वाधीन भारत की सरकारें मानों एक दूसरे से होड़ करती रही हैं |”17

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अंततः, गांधीजी वर्तमान भारत के लिए रजनीतिक और सांस्कृतिक आन्दोलन के लिए प्रासंगिक हैं | डॉ.रामविलास शर्मा ने गांधीजी के साम्राज्यविरोधी आन्दोलन का मूल्यांकन वर्तमानकालीन भारत के परिप्रेक्ष्य में किया हैं | गांधीजी का मूल्यांकन करते समय उन्होंने यह बताया है कि परतंत्र भारत में गांधीजी अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने व्यवहारिक जीवन में साम्राज्यवाद और पूँजीवाद का खुलकर विरोध किया | उन्होंने भारत में समाज सुधार करने के अलावा साम्राज्यवादी व्यवस्था को भी चुनौती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | गांधीजी पूंजीवादी लोकतंत्र के बदले एक ऐसा लोकतंत्र कायम करना चाहते थे जो जनता के हित में हो | जब भी लोग पूंजीवादी लोकतंत्र के बदले जनता के लोकतंत्र की मांग करेंगे तब उन्हें किसी किसी रूप में गांधीजी के बताये हुए मार्ग पर चलना होगा |

सन्दर्भ सूची
1.शर्मा, रामविलास, गाँधी आम्बेडकर लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएं ,प्रथम संस्करण 2000,वाणी प्रकाशन नई दिल्ली -2,पृष्ठ संख्या -23
2.उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या भूमिका से (5)
3. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –24
4. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –34,35
5. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –34
6. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –182
7. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –27
8. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –30
9. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –24,25
10. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –28
11. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –30,31
12. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –30
13. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –27
14. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –183
15. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –186
16. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –32
17. उपर्युक्त ,पृष्ठ संख्या –32,33

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