साहित्य-संस्कृति की त्रैमासिक ई-पत्रिका
'अपनी माटी'
वर्ष-2 ,अंक-15 ,जुलाई-सितम्बर,2014
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चित्रांकन:उत्तमराव क्षीरसागर,बालाघाट |
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कुछ शब्द
टूटकर
गिरे
होठों से
पड़े
होठों से
कानों में
अनर्थ हो गया
कुछ बातें
लिखी
कलम ने
पढी
जानकारों ने
सवाल,
बवाल
हो गया
जो
लिखा
पढ़ा
अनजान
पाठकों ने
कमाल हो गया
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सनद रहे!
मैं
तुम्हारी मांनिद
बाज़ार से
खरीद कर लाया गया
गमले में लगा
पौधा नहीं हूं
जो तुम्हारे
मालिक के
हाथ के
लोटे के सींचे
और देखभाल से
फल फूल रहा हो
मैं
बिना किसी
दया, कृपा
अपने- आप
ज़मीन में उगा
वह बीज हूं
जिसे प्रकृति ने खुद
पाला- पोषा
बड़ा किया है
यहां
कुछ भी
दिखावटी
बनावटी
सजावटी नहीं
धरती के नीचे
गहरे, बहुत गहरे
दूर दूर तक फैली
बहुत मजबूत हैं
मेरी जड़ें
मेरी ज़मीन
मेरा हरापन
मेरी खिलन
तुम्हारी किसी भी
खुरापात से
टूटने, बिखरने
सूखनेवाला नहीं हूं
सनद रहे!
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मछलीमार
समंदर की
मछलियों को
मालूम है
अपनी नियति
वे कितनी भी
मचा लें
उछल- कूद
उनकी नहीं चलनी
उनके दिन गिनती के हैं
उन्हीं के बीच हैं
उन्हें निगल जाने को
आमदा बड़ी मछलियां
खुद समंदर
बच भी गयीं जो
पानी के भीतर
पानी के बाहर
खड़े हैं ताक मे
मुस्तैदी से फैलाए
अपने- अपने जाल
सारे मछलीमार
ज़िंदा कि मुर्दा
छोटी कि बड़ी
कैसी भी.....
मछलियां
फंसनी चाहिए
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वे अर्जुनों के आचार्य हैं
मत पूछो
भूलकर भी उन से
अपने लक्ष्य
सफलता
हासिल करने के
तरीके, नुस्खे
गंतव्य तक
पहुंचानेवाले
रास्तों और
दुश्वारियों के
बारे में
अगर वाकिफ हो
उनके दोगले
चरित्र और
मक्कारियों की
फितरत से
जैसे ही उन्हें
लगेगी भनक
वे सबसे पहले
खोदेंगे गढ्डे
लगाएंगे अटंगी
देंगे धक्के
गिरा देंगे चुपचाप
और पता भी न लगने देंगे
वे अर्जुनों के आचार्य हैं
हमे कुछ भी नहीं देवाल
उल्टे
हम से
हमीं को छीन लेंगे
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कविता क्या है
वह
जो वे और उनके मित्र लिखते हैं
कहानी क्या है
वह
जो वे और उनके मित्र लिखते हैं
आलोचना क्या है
वह
जो वे और उनके मित्र लिखते हैं
और वह जो
मैं- आप लिखते हैं
पता नहीं
जब मैं- आप मर जाएंगे
हमारे शोक संदेश
तस्वीर पर आयीं
टिप्पणियों-
पसंद से पता चलेगा
जीते- जी तो
कविता मार्केट के
असूचीबद्ध शेयर हैं
जिनके भाव
न तो दिखते हैं
न कोई पूछता हैं
कोई जानकार- मित्र
जान ले तो जान ले
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ये फेसबुक क्या है
बेशर्मी और बेहयाई से
हम बुध्दिजीवी लोगों का द्वारा
बिना किसी
कानून- कायदे
फुल्ल
लाग- लपेट के साथ
एक दूसरे की
कमीज़े- तमीज़ें
ताक रख
कुत्ता फज़ीती
कुत्ता घसीटी के साथ
नंगा होने- करने का
खुला मैदान.....
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नवनीत पाण्डॆ
जन्मःसादुलपुर (चुरु).शिक्षाः एम. ए.(हिन्दी), एम.कॉम.(व्यवसायिक प्रशासन), पत्रकारिता -जनसंचार में स्नातक। हिन्दी व राजस्थानी दोनो में पिछले पच्चीस बरसों से सृजन।
प्रकाशनः हिन्दी- सच के आस-पास (कविता संग्रह) यह मैं ही हूं, हमें तो मालूम न था (लघु नाटक) प्रकाशित व जैसे जिनके धनुष (कविता संग्रह) शीघ्र प्रकाश्य, राजस्थानी- लुकमीचणी, लाडेसर (बाल कविताएं), माटीजूण (उपन्यास), हेत रा रंग (कहानी संग्रह), 1084वें री मा - महाश्वेता देवी के चर्चित बांग्ला उपन्यास का राजस्थानी अनुवाद।
पुरस्कार-सम्मानः लाडेसर (बाल कविताएं) को राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का ‘जवाहर लाल नेहरु पुरस्कार’ हिन्दी कविता संग्रह ‘सच के आस-पास’ को राजस्थान साहित्य अकादमी का ‘सुमनेश जोशी पुरस्कार’ लघु नाटक ‘यह मैं ही हूं’ जवाहर कला केंद्र से पुरस्कृत होने के अलावा ‘राव बीकाजी संस्थान-बीकानेर’ द्वारा प्रदत्त सालाना साहित्य सम्मान।
संप्रतिः भारत संचार निगम लिमिटेड- बीकानेर कार्यालय में कार्यरत सम्पर्कः ‘प्रतीक्षा’ 2- डी- 2, पटेल नगर, बीकानेर- 334003 मो.न. 9413265800 ई-मेल:poet.india@gmail.com
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