त्रैमासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati), वर्ष-2, अंक-16, अक्टूबर-दिसंबर, 2014
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छायाकार:ज़ैनुल आबेदीन |
हिन्दी
साहित्य में डॉ. रामविलास शर्मा मार्क्सवादी आलोचक के रूप में जाने जाते हैं |
उनकी लेखनी में ‘जातीयता’ एक बहुत बड़ा मुद्दा रहा है | इसी जातीयता को ध्यान में
रखकर उन्होंने निराला साहित्य का मूल्यांकन हिन्दी जाति के परिप्रेक्ष्य में किया
हैं | हिन्दी के आधुनिक कवियों में निराला, डॉ.शर्मा के प्रिय कवि हैं | निराला
उन्हें इसलिए प्रिय है क्योंकि निराला ने हिन्दी जाति, हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के विकास के लिए आजीवन संघर्ष किया |
उन्होंने हिन्दी साहित्य की जातीय परम्परा और साहित्य की जातीय विशेषताओं को
पहचाना और उसकी रक्षा करने एवं उसे विकसित
करने पर जोर दिया था | डॉ. शर्मा के अनुसार हिंदी साहित्य में निराला एक मात्र ऐसे
कवि हैं जो अपनी जातीय अस्मिता के लिए सबसे अधिक संवेदनशील दिखाई देते हैं | वे
लिखते हैं –“हिन्दी के साहित्यकारों में निराला ही सबसे अधिक अपने जातीय प्रदेश की
समस्याओं के प्रति सतर्क थे | फिल्म से लेकर साहित्य तक उन्होंने सारी समस्याओं को
एक ही मूल समस्या के अंतर्गत मानकर उन पर विचार किया था | यह मूल समस्या थी,
हिन्दीभाषी जाति के विकास की समस्या | वे अन्य भाषाओं की तुलना में हिन्दी का समर्थन करते थे, उन
भाषाओं की महत्ता भी स्वीकार करते थे | अपनी भाषा और साहित्य में जो अन्तर्विरोध
थे, उनके प्रति भी सजग थे | उनके समय की अधिकांश समस्याएँ अभी हल नहीं हुईं | हिन्दी जाति के अभ्युत्थान
के लिए जो भी प्रयत्नशील हों, उन्हें निराला के विचारों से प्रेरणा मिलेगी |”1 वे
हिन्दी जाति के सबसे बड़े कवि हैं | उन्होंने भारत की जातीय समस्या को सुलझाया हैं
|
डॉ.
रामविलास शर्मा की दृष्टि में “निराला हिन्दी की जातीय निधी हैं |”2 उन्होंने
हिन्दी जाति की जातीय परम्परा को आगे बढ़ाया हैं | “बंगाल में जन्म लेने और वहाँ
रहने से निराला में हिन्दी जातीय चेतना का उदय हुआ | बंगालियों में यह जातीय चेतना
पहले से थी |”3 जातीयता की भावना अमृत और विष के समान है | “साथ ही यह चेतना कभी –
कभी संकीर्ण प्रान्तीयता का रूप लेकर दूसरों की भाषा और साहित्य पर अनुचित आक्षेप
करने की प्रेरणा भी देती है |”4 बंगाल में रहते हुए निराला ने यह लक्ष्य किया कि यहां
के लोगों में प्रान्तीयता का भाव विष के समान फैला हुआ है | सिर्फ बंगाल में ही
नहीं महाराष्ट्र, तमिल, आदि प्रदेशों में भी प्रान्तीयता का भाव विष के समान फैला
हुआ है | जहां अपनी भाषा और प्रान्त के बारे में पहले सोचा जाता है फिर राष्ट्र के
बारे में | निराला इस तरह के प्रांतीय प्रेम को राष्ट्र के लिए खतरनाक मानते
हैं वे कहते हैं –“प्रान्त – प्रेम बुरा
नहीं हैं; प्रांतीय तथा मातृभाषा पर गर्व होना भी स्वाभाविक है, पर प्रांत के नाम
पर अन्य प्रांत वालों को पराया समझाना और एक ही देश का होकर पहले प्रांत और देश तथा
पहले प्रांतीय भाषा, फिर देश – भाषा या राष्ट्रभाषा को स्थान देना अनुचित तथा
निंदनीय बात है और जो लोग ऐसा दुर्भाव पनपा रहे हैं, वे अपने ही पैर में कुल्हाड़ी
मार रहे है |”5 प्रान्त – प्रेम की सबसे बड़ी विकृति यह थी कि यदि अपनी भाषा
राष्ट्रभाषा न हो सके तो हिन्दी भी न हो, अंग्रेजी चलती रहे | सन् 1947 के बाद जब
हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया तो काफी इसका विरोध हुआ | विशेषकर अहिन्दी
भाषी क्षेत्रों में, जिसमें बंगाल भी प्रमुख है | इस सम्बन्ध में डॉ. शर्मा,
निराला की कही गयी बातों को अत्यन्त प्रासंगिक मानते हैं | निराला कहते हैं हिन्दी
सारे देश में सबसे अधिक समझी जाने वाली भाषा है | “बांगला को यह सुविधा प्राप्त
नहीं, अथवा कारणवश उसे यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी |इस स्थिति के लिए बंगाली खेद जरुर प्रकट कर सकते हैं | परन्तु
और कोई उपाय न देखकर यदि वे यह कहें, जैसा की वसु महोदय कहते हैं कि हिन्दी के
स्थान पर सारे देश में अंग्रेजी का व्यवहार होने से ज्याद सुविधा होगी, तो हम
कहेंगे कि ऐसा प्रस्ताव उपस्थित करके वह अपनी जबर्दस्त मानसिक संकीर्णता का परिचय
दे रहे हैं |”6 राष्ट्रभाषा का अर्थ यह नहीं है कि उसके अलावा अन्य भारतीय भाषओं
का व्यवहार या विकास बन्द हो जायेगा | निराला ने इस स्थिति को बहुत स्पष्ट शब्दों
में व्यक्त किया हैं | “ हिन्दी यदि राष्ट्रभाषा हो जाएगी, तो बंगालियों को इस बात
का डर है कि बंगला भाषा का महत्व उससे कम हो जायेगा | परन्तु यह उनकी भूल है |
हिन्दी के रहते हुए भी वे अपनी भाषा का महत्तम विकास कर सकते है | सभी प्रांतीय
भाषाओं के संबंध में यह बात कही जा सकती है |”7 ध्यान देने की बात है यदि जातीय
भाषओं का विकास अंग्रेजी के राष्ट्रभाषा बनने पर हो सकता है तो फिर हिन्दी के
राष्ट्रभाषा बनने पर उनका विकास क्यों नहीं हो सकता | राष्ट्रभाषा हिन्दी के
नेतृत्व में अन्य भारतीय भाषाएं आसानी से अपना विकास कर सकती हैं |
रवीन्द्रनाथ
ठाकुर की तरह निराला का भी सपना था कि हिन्दी प्रदेश में एक ऐसा विश्वविद्यालय हो,
जिसमें हिन्दी माध्यम से शिक्षा दी जाये | जहाँ साहित्य के साथ – साथ विज्ञान,
तकनीक, व्यावसायिक, यांत्रिकी की शिक्षा हिन्दी माध्यम द्वारा दी जाये |1935 में
हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में हिन्दी विश्वविद्यालय बनाने का ऐसा
ही एक प्रस्ताव सामने आया था | निराला ने बड़े हर्ष के साथ स्वागत किया था | इस
विश्वविद्यालय के संबंध में निराला ने जो बातें कहीं है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है –“अपनी
भाषा का विश्वविद्यालय हर एक जाति के लिए गौरव की बात है | यह सर्वमान्य बात है की
जाति को समुन्नत होने का सौभाग्य अपनी ही शिक्षा से प्राप्त होता है |”8 निराला
यहां किसी एक जाति की बात नहीं कर रहे हैं | वे भारत की सभी जातियों के बारे में
बात कर रहे हैं | वे जानते हैं कि हर जाति का विकास अपनी मातृभाषा में ही संभव है | इसलिए
शिक्षा का माध्यम अपनी मातृभाषा में ही होनी चाहिए | डॉ.शर्मा लिखते हैं –“भारतेन्दु
हरिश्चन्द्र की तरह निराला भी चाहते थे कि आधुनिक कला – कौशल की शिक्षा हिन्दी के
माध्यम से दी जाए |”9 “जब हिन्दी शिक्षा का माध्यम होगी, हिन्दी का अपना
विश्वविद्यालय होगा, तब “हम लोगों में जातीयत्व के सच्चे बीज अंकुरित होंगे,
शिक्षार्थी युवकों की नसों में दूसरा ही रक्त प्रवाहित होगा | एक दूसरी ही शोभा
हिन्दीभाषी भूभाग में दृष्ट होगी |”10
निराला
की जातीय चिंतन में हिन्दी प्रदेश की जनता है | यह जनता अनेक प्रान्तों में रहती
है | इसका गौरवपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास रहा
है | 1857 की क्रांति की घोषणा सबसे पहले इसी प्रदेश की जनता ने की थी जिसकी लहर पूरे भारत में फ़ैल गयी थी | लेकिन अब
यह जनता जाति विरोधी शक्तियों से लड़ते – लड़ते क्षीण हो गयी है | इसका कारण है –
“हिन्दीभाषी प्रदेश सामाजिक रूढ़िवाद का गढ़ है | वहाँ नये विचारों का प्रकाश फैलाना
अत्यंत दुष्कर है | हर कदम पर क्रांतिकारी साहित्यकार को विरोध का सामना करना पड़ता
है |”11 हिन्दी भाषी प्रदेश में जातिवाद, सम्प्रदायवाद, रूढ़िवाद, अन्धविश्वास का
बोल – बाला है | जब तक हिन्दी जाति सामाजिक भेदभाव के बंधन को तोड़कर आगे नहीं बढ़ती
तब तक उनमे जातीय चेतना का विकास नहीं हो पायेगा | डॉ. शर्मा लिखते हैं –“गरीब
जनता को आधार बनाकर जब तक समाज में हिन्दू – मुसलमान का भेद – भाव नहीं मिटाया
जाता तब तक हिन्दी भाषी जनता भीतर से सुदृढ़ नहीं हो सकती | इसी तरह जब तक समाज में
जाति – बिरादरी का भेद बना हुआ है, तब तक
हिन्दी जाति भीतर से कमजोर बनी रहेगी | भारतीय इतिहास में यह बार – बार देखा गया
कि जब जाति बिरादरी का भेद मिटता है, तब साम्प्रदायिक भेद भी ख़त्म होता दिखाई देता
है | साम्प्रदायिक भेदभाव से मुक्त, और जाति – प्रथा के ऊँच – नीच भेद से मुक्त,
समाज के दोनों तरह के पुनर्गठन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं | यही कारण है कि निराला
लगभग एक ही समय, इन दोनों पर एक साथ, ध्यान देते हैं |”12 निराला हिन्दी प्रदेश की
जातीय समस्या पर निरंतर विचार कर रहे थे | उनके चिंतन में एक तरफ द्विज और शूद्र
है तो दूसरी तरफ हिन्दू और मुसलमान है | “द्विज और शूद्र का भेद मिटाकर जातीय एकता
को सुदृढ़ करना, समस्या का यह एक पक्ष था | हिन्दू – मुस्लिम भेद मिटाकर जातीय एकता
को सुदृढ़ करना, यह समस्या का दूसरा पक्ष
था | सन् 1930-40 वाले दशक में निराला समस्या के इन दोनों पक्षों पर बराबर ध्यान
केन्द्रित कर रह थे | समस्या के किसी भी पक्ष को हल करने क लिए आगे बढ़ो तो रूढ़िवाद
से टक्कर अनिवार्य थी | सामाजिक रूढ़िवाद जातीय एकता के कैसे आड़े आता है, किन – किन
रूपों में प्रकट होता है, इस सबका चित्रण निराला ने काफी विस्तार से किया है |
रूढ़िवाद का एक रूप देवी और चतुरी चमार में है | दूसरा रूप सुकुल की बीवी कहानी में
है |”13
डॉ.
शर्मा के अनुसार वर्तमान हिन्दी साहित्य में निराला को बहुत सी कमजोरियां दिखाई
देती है | वे आधुनिक साहित्य में उच्चतम कोटि के साहित्य के अभाव देखते हैं | इतना
ही नहीं हिन्दी साहित्य अन्य भारतीय साहित्य की तुलना में अभी बहुत पीछे है इसका
कारण है कि हिन्दी में उच्च कोटि के साहित्य बहुत कम लिखा गया है | हिन्दी आलोचना की दयनीय स्थिति
पर विचार करते हुए निराला कहते हैं –“हमारी,
हिन्दी में सबसे बड़ा अभाव यही है कि उत्तम कोटि के आलोचक कम हैं |”14 “आलोचना का
सार्वभौम विकास आज हमारे साहित्य के लिए जरूरी हो रहा है, जिससे दूसरे देशों की
साहित्य – महत्ता से मिलकर हमारा साहित्य अग्रसर हो, साहित्य का विश्वबंधुत्व जन –
सभाओं में स्थापित हो, हम दूसरे देशों के साहित्य के व्यावसायिक आदान – प्रदान की
तरह, अपने भावों का भी परिवर्तन कर सके |”15 काव्य के क्षेत्र में रूढ़िवाद,
अंधविश्वास जैसी मान्याताओं को बढ़ावा दिया जा रहा है | “काव्य साहित्य में राम और
कृष्ण पर आज भी काफी लिखा गया और लिखा जा रहा है | लिखने की बात नहीं, बात रचना की
है | जो नई रचनाएँ हुई हैं, उनमे राम और कृष्ण के सम्बन्ध में नवीन दृष्टि नहीं
पड़ी; बल्कि कवियों की अदूरदर्शिता ने भक्ति आदि की भावना से, उन्हें प्रकृत मनुष्य
के रूप में ग्रहण कर, जनता को और गिरा दिया है |”16 हिन्दी नाटकों की भाषा के बारे
में इनका विचार था “वह ऐसी नहीं, जो स्टेज पर बोली जा सके – प्रकृति में इतना
प्रतिकूल है |”17 हिन्दी नाटक भारतीय भाषाओं में नाटकों की तुलना में अभी बहुत
पीछे है | उपन्यास साहित्य के बारे में उनका कहना हैं –“उपन्यास – साहित्य भी इसी
प्रकार सूना है | देहाती कुछ चित्रण है, पर इनसे साहित्य की विभूति नहीं बढ़ती |”18
डॉ.शर्मा की दृष्टि में निराला हिन्दी साहित्य का सर्वांगीण विकास करना चाहते थे |
हिन्दी साहित्य में उच्चकोटि के साहित्याभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने हिन्दी
भाषीयों को ही इसके आभाव का दोषी ठहराते हैं | वे कहते हैं –“हिन्दी -भाषी आगरा,
अवध, बिहार, मध्यप्रदेश, राजपूताना, पंजाब और देशी रियासतों में हजारों की संख्या
में उच्च शिक्षित वकील, बैरिस्टर, डॉक्टर और प्रोफेसर आदि है | पर उनमे कितने ऐसे
हैं, जो मातृभाषा की सेवा कर रहे है ? ऐसा न करने का कारण केवल यही है कि उन्हें
हिन्दी लिखना नहीं आता | वे हिन्दी की उच्च शिक्षा पुस्तकों के भीतर से नहीं
प्राप्त कर पाते |”19 हिन्दी साहित्य का पिछड़ा होने का मुख्य कारण यह है कि “हम
अपनी हीनता को प्रश्रय देकर उत्कर्ण समझ बैठे हैं, अपने अज्ञान को ज्ञानाडंबर कर रखा है | आज जिस युग –साहित्य की दृष्टि में
मनुष्यमात्र के समान अधिकार है, वह पुरुष हो या स्त्री, उसका जनता में प्रचार
रोकना, उसकी सूक्ष्तम व्याख्या न समझकर उसके अस्तित्व को ही न स्वीकार करना हिन्दी
की इसी हीन दशा का एक अत्यन्त
पुष्ट स्थूल प्रमाण है |”20
डॉ.
शर्मा की दृष्टि में निराला ने हिन्दी के भक्त कवियों के साथ अपना गहरा संबंध
स्थापित किया हैं | तुलसीदास उनके साहित्य
में अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं | तुलसी उनके प्रिय कवि भी हैं | उन्होंने
तुलसीदास को भारत का सबसे बड़ा कवि माना हैं |जहाँ भी हिन्दी जाति, हिन्दी भाषा या
हिन्दी साहित्य के सम्मान का प्रश्न आता है वे तुलसीदास को आगे कर देते हैं | डॉ.
शर्मा लिखते हैं –“निराला ने जातीय अस्मिता से जैसे तुलसीदास का तादात्मय स्थापित
किया था, वैसे ही उन्होंने उस अस्मिता से स्वयं का तादात्मय भी स्थापित किया था
|”21 संत कवियों में निराला ने रविदास को ‘पूज्य अग्रज भक्त कवियों के’ कहा है |
“उन्होंने संतो और भक्तों को एक ही जातीय काव्य –परम्परा के अन्तर्गत स्वीकार किया
है |”22 इस प्रकार निराला समाज के किसी भी
समस्या पर विचार कर रहे हो उनके चिन्तन में हिन्दी जाति की धारणा, जातीय एकता की धारणा
हमेशा विद्यमान रही है |
|
निराला
हिन्दी प्रदेश की लोकसंस्कृति से कवित्त छंद का घनिष्ठ संबंध जोड़ते हैं |वे कवित्त
को हिन्दी का जातीय छंद कहते हैं | हिन्दी प्रदेश में कवित्त का कितना व्यापक चलन
है इस पर विचार करते हुए निराला कहते हैं –“हिन्दी के प्रचलित छंदों में जिस छंद
को एक विशाल भू – भाग के मनुष्य कई शताब्दियों तक गले का हार बनाए रहे, जिसमें
उनके हर्ष – शोक, संयोग – वियोग और मैत्री – शत्रुता की समुद्गत विपुल भाव – राशि आज साहित्य के रूप में
विराजमान हो रही है – आज भी जिस छंद की आवृति – करके ग्रामीण सरल मनुष्य अपार आनंद
अनुभव करते हैं, जिसके समकक्ष कोई दूसरा छंद उन्हें जँचता ही नहीं |”23 ऐसे छंद को
परकीय नहीं कहा जा सकता | हिन्दी प्रदेश का यह जातीय छंद करोड़ो मनुष्यों की जीवन –
शक्ति है |
अंततः
डॉ. रामविलास शर्मा ने निराला की जातीय चेतना पर गंभीरता से विचार किया हैं | निराला जब
जातीय साहित्य और संस्कृति पर लिख रहे थे उस समय जातीय समस्या से सम्बंधित सामग्री
उनको सुलभ नहीं था | जातीय समस्या की अवधारणा स्पष्ट न होने पर भी हिन्दी जाति की
रूप रेखा उनके सामने स्पष्ट थी | वे हिन्दी जाति के बारे में सोच रहे थे | उनके
चिंतन की मुख्य धुरी हिन्दी प्रदेश और वहां की जनता है | वे एक साथ कई विषयों पर
सोच रहे थे जैसे – हिन्दी भाषा, हिन्दी जाति, हिन्दी साहित्य और हिन्दी प्रदेश के
बारे में | साहित्य में उन्होंने भाषा और हिन्दी साहित्य की अन्तर्वस्तु पर सबसे
ज्यादा जोर दिया हैं | उन्होंने “हिन्दी साहित्य को नया गौरवमय आसन प्रदान किया
|”24 उनके जातीय चिंतन में हिन्दी जाति की एकता अभिन्न रूप से जुडी हुई है | इस
जातीय एकता को विकसित एवं मजबूत करने के लिए वे जातिवाद और सम्प्रदायवाद जैसी जाति
विरोधी शक्तियों से मुकाबला करने के लिए कहते हैं | हिन्दी प्रदेश की जनता में जातीयता के बीज
अंकुरित हो सके इसके लिए निराला हिन्दू – मुसलमान, द्विज – शूद्र, किसान, मजदूर
सबको समानता के आधार पर एकसूत्र में बांधने का प्रयास किया हैं|
सन्दर्भ
- सूची
1-रामविलास
शर्मा – निराला की साहित्य – साधना, भाग -2, तीसरा संस्करण -1990, राजकमल प्रकाशन
नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या -76
2-रामविलास
शर्मा – स्वाधीनता और राष्ट्रीय साहित्य, पृष्ठ -114
3-रामविलास
शर्मा – भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश, भाग -2, संस्करण -2012, किताबघर
प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या -555
4-रामविलास
शर्मा – निराला की साहित्य – साधना, भाग -2, तीसरा संस्करण -1990, राजकमल प्रकाशन
नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या -70
5-रामविलास
शर्मा – भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश, भाग -2, संस्करण -2012, किताबघर
प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या -556
6-उपर्युक्त
-556
7-
उपर्युक्त -556,557
8-
उपर्युक्त -565
9-
उपर्युक्त -565
10-
रामविलास शर्मा – निराला की साहित्य – साधना, भाग -2, तीसरा संस्करण -1990, राजकमल
प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या -70
11-
उपर्युक्त -72
12-
रामविलास शर्मा – भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश, भाग -2, संस्करण -2012,
किताबघर प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या -595
13-
उपर्युक्त-599-600
14-
उपर्युक्त-562
15-
उपर्युक्त-562
16-
उपर्युक्त-563
17-
उपर्युक्त-563
18-
उपर्युक्त-563
19-
उपर्युक्त-564
20
- उपर्युक्त-562
21-
उपर्युक्त-584
22-
उपर्युक्त-602
23-
उपर्युक्त-558
24-
उपर्युक्त-607
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