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21वीं सदी
में सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का जिन लिखित,
मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के द्वारा सफलतापूर्वक
आदान-प्रदान किया जाता है वे सभी जनसंचार माध्यम कहलाते हैं। जनसंचार माध्यम में ‘संचार’ शब्द की उत्पति
संस्कृत के -‘चर’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है- चलना । दुर्गेश नंदिनी के शब्दों में कहें
तो- ‘‘संचार बहुस्तरीय गतिविधि है। जनसंचार की इन
सारी दिशाओं में संप्रेषण की सफलता देने का सारी संयोजना भाषा करती है। भाषा के
बिना जनसंचार का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता, चाहे माध्यम कुछ भी हो। इसीलिए जनसंचार के सभी संसाधनों के लिए हर युग में
किसी न किसी भाषा का उपयोग अनिवार्य रूप से होता आया है। भाषा में जनसंचार के
कार्य को सुगम बनाया है, आकर्षण प्रदान
किया है और विस्तार भी दिया है।’’1
इलेक्ट्रानिक मीडिया मनुष्य प्रजाति को मनुष्य बनाने का
उपक्रम करता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया मनुष्य की शारीरिक क्षमताओं का विस्तार है
जैसे-दृष्टि का कैमरा, आवाज का रेडियो, स्मृति का कम्प्यूटर। इलेक्ट्रानिक मीडिया का उद्देश्य सत्यम्,
शिवम्, सुन्दरम् की
स्थापना होनी चाहिए। इसीलिये आज भौगोलिक एवं भौतिक दूरियाँ समाप्त करके विश्व
ग्राम्य की कल्पना साकार हो रही है। वैज्ञानिकों का दिया हुआ वरदान-इलेक्ट्रानिक
संसाधन हमारी मुठ्ठी में है जिसका सदुपयोग मनुष्य और मनुष्यता के विकास के लिए
करना चाहिए।
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प्रत्यक्ष संवाद के बजाय किसी तकनीकी या यान्त्रिक माध्यम
अखबार, रेडियो, टीवी, इंटरनेट, सिनेमा आदि के द्वारा समाज के एक विशाल वर्ग से संवाद कायम करना जनसंचार
कहलाता है। जनसंचार माध्यमों ने हिन्दी को विश्व भाषा बनाने में महती भूमिका का
निर्वहन किया है। बिना जनसंचार के किसी भी राष्ट्र एवं समाज की उन्नति सम्भव नहीं
है। विकीपीडिया पर इसे परिभाषित करते हुए लिखा गया है- ‘‘जनसंचार (Mass communication) से तात्पर्य उन सभी साधनों के अध्ययन एवं विश्लेषण से है जो
एक साथ बहुत बड़ी जनसंख्या के साथ संचार सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होते हैं।
प्रायः इसका अर्थ सम्मिलित रूप से समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन, चलचित्र से लिया जाता है जो समाचार
एवं विज्ञापन दोनों के प्रसारण के लिये प्रयुक्त होते हैं।’’2
यह युग मीडिया का है, विशेषकर
इलेक्ट्रानिक मीडिया का। आज मीडिया पूरी जनचेतना पर छा गया है। मीडिया अपने घोषित
उद्देश्य मनोरंजन, ज्ञान, प्रबोधन के अतिरिक्त जीवन के हर पहलू में समा गया है। मीडिया की लोकप्रियता
को देखते हुए आज नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। आज मीडिया का उद्देश्य
बदलता हुआ दिख रहा है। विज्ञापन के माध्यम से मीडिया उद्योग बनता जा रहा है तथा
इसमें अर्थ लाभ की प्रवृत्ति आ गई है। आज मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया
युवाओं और अन्य वर्गो को ध्यान में रखकर कार्यक्रम तैयार कर रहा है और वही
कार्यक्रम दिखाता है जिससे उसको सर्वाधिक लाभ हो। उसे इसकी चिन्ता नहीं रहती है कि
इससे दर्शकों व श्रोताओं पर क्या असर पड़ेगा? वर्तमान में तंत्र-मंत्र, ज्योतिषी जैसे
कार्यक्रमों की अधिकता हो गई है। समाचारों में हत्या, बलात्कार की खबरों की अनुपात ज्यादा हो गया है जबकि विकास से जुड़ी खबरों
को न के बराबर दिखाया जा रहा है। मीडिया मानव जीवन के रहन-सहन, पहनावा आदि को आकृष्ट कर रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के
चैनलों में विदेशी व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का हस्तक्षेप ज्यादा है जिससे
समाचारों का सही संप्रेषण नहीं हो पा रहा है। गोधरा, अयोध्या व कश्मीर की खबरों को मीडिया द्वारा सही ढंग से प्रस्तुत नहीं
किया गया जिससे राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल हुई है।
पत्रकारिता शिक्षा समाज को रास्ता दिखाने के लिए है न कि
आजीविका के लिए। यह अन्य विषयों से भिन्न है जो रोजगार देने के साथ ही साथ देश व
समाज की सेवा के लिए उपयोगी है। पत्रकारिता करने के लिए ज्ञान का चश्मा लगाकर समाज
को पढ़ना होगा। आधुनिक तकनीकी के प्रवेश से आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल रहा है।
प्रतिदिन नये परिवर्तन हो रहे हैं और इसी के कारण आज पत्रकारिता के क्षेत्र में
नये-नये अवसर आ रहे हैं। आज समाज का स्वरूप लगातार जटिल होता जा रहा है इसलिये
समाज को सूचनायें पहुँचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा कम्यूनिकेटर की आवश्यकता पड़
रही है यही कारण है कि पत्रकारिता में अवसर की कमी नहीं है। हर पीढ़ी बदलाव के दौर
से गुजरती है। पहले पत्रकारिता के लिए सिर्फ मुद्रित माध्यमों का ही प्रयोग होता
था परन्तु आज विभिन्न इलेक्ट्रानिक माध्यमों के प्रवेश ने पत्रकारिता को और सुलभ
बना दिया है। इन्हीं बदलावों ने जीवन में नवीन अवसर दिये हैं, जरूरत है तो सिर्फ अवसरों के पहचान की। नई तकनीकें कुछ डरा
रही हैं पश्चिमी देशों में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का सर्कुलेशन कम हुआ है और
टी0वी0, इन्टरनेट और अन्य माध्यमों का प्रभाव बढ़ा है। अभी भारत में समाचार पत्रों
की स्थिति सही है। यहाँ अभी सर्कुलेशन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और भविष्य में 20-25 वर्षों तक संभव भी नहीं है।
21वीं सदी का समय मीडिया एवं जनसंचार का है। आज का मीडिया जीवन
के प्रत्येक क्षेत्र को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है। गोविन्द
स्वरूप गुप्त जनसंचार के सम्बन्ध में अपना मत प्रकट करते हुए कहते हैं कि-‘‘
‘जनसंचार’ शब्द समूह में
प्रयुक्त शब्द ‘संचार’ से तात्पर्य है किसी बात को आगे ‘बढ़ाना’
या ‘चलाना’ या ‘फैलाना’। ‘संचार’ शब्द की मूल धातु संस्कृत की ‘चर’
है। अर्थात् ‘चलना’। दूसरे शब्दों में जब हम किसी भाव या विचार या जानकारी को
दूसरों तक पहुँचाते हैं और यह प्रक्रिया सामूहिक पैमाने पर होती है तो इसे ‘जनसंचार’ कहते हैं।
जनसंचार का उद्देश्य जानकारी या विचारों को समाज के उन तमाम लोगों के लिए साझा
करना है जो इनसे संबंध हैं या जिन्हें यह जानकारी पहुँचाना अपेक्षित है ताकि सभी
लोग इनसे अवगत हो सकें तथा लाभी उठा सकें। जीवन के हर क्षेत्र में यह प्रासंगिक हो
गया है।’’3 यही कारण है कि प्रिन्ट मीडिया की
सम्यक समझ हेतु क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से प्रिन्ट मीडिया का प्रचार-प्रसार
अति आवश्यक होता जा रहा हैं। आजकल प्रिन्ट मीडिया का प्रचार-प्रसार, क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में
प्रशिक्षण व्यवहारिक रूप से दिया जा रहा है। प्रिन्ट मीडिया का हमारी संस्कृति और
भाषा से गहरा सम्बन्ध है, जिसके कारण इसका
महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। समस्त मीडिया कर्मियों का यह प्रथम दायित्व है
कि प्रिन्ट मीडिया को सरल ढंग से आम जनता तक पहुचाएँ।
त्याग और तपस्या का दूसरा नाम ही
पत्रकारिता है। स्वतंत्रता के पूर्व से ही हिन्दी पत्रकारिता को बहुत ही संघर्ष
करना पड़ा तब आज पत्रकारिता इस आधुनिक स्वरूप में है। पत्रकारिता से ही हिन्दी
भाषा का स्वरूप बन और बिगड़ रहा है। आज पत्रकारिता भाषा को नया आयाम देते हुए समाज
को नई दिशा दे रही है। पत्रकार का दायित्व सिर्फ सूचना संग्रह करना ही नहीं है,
वरन् उसके द्वारा उसे उचित और अनुचित बातों को अलग करना
भी है। पहले पत्रकारिता का व्यवसाय उद्योगपतियों द्वारा किया जाता था परन्तु आज
राजनीतिज्ञों द्वारा पत्रकारिता का व्यावसाय किया जा रहा है जिससे पत्रकारिता
दिशाहीन हो रही है और निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं हो पा रही है। पत्रकारों को
पक्षपात रहित, निर्भीक व निष्पक्ष रह कर पत्रकारिता
करनी होगी तभी समाज की सच्ची सेवा हो पायेगी। पत्रकारिता समाज में जागृति लाने का
कार्य करती है इसलिए पत्रकार स्वयं अध्ययन कर घटनाओं को समाज के सामने लाए ताकि
समाज जागरूक हो सके। पत्रकारिता सनसनी से नहीं होती है। सनसनी तो तात्कालिक होती
है जो समाचार पत्रों या समाचार चैनलों को लाभान्वित करती है परन्तु समाज पर इसका
दुष्प्रभाव पड़ता है। अतिशीघ्रता में लिखा गया साहित्य ही पत्रकारिता है जिसे
समझने की जरूरत है। पत्रकारिता के क्षेत्र विस्तृत हैं। इसके लिए अपने ज्ञान को
बढ़ाना होगा। किसी एक विषय की जानकारी से पत्रकार नहीं बना जा सकता। प्रत्येक
क्षेत्र में हो रहे शोधों और सूचनाओं को संग्रह करना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार के
विषय पर आसानी से लिखा जाए। पत्रकारिता में विश्वसनीयता बहुत जरूरी है जिस पर जनता
विश्वास कर सके। आज भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर बहुत देर से लिखा जा रहा जबकि
पत्रकारों को अपनी लेखनी से ऐसा जनतंत्र तैयार करना चाहिए कि नई शासन व्यवस्था
सर्वोत्तम हो सके।
पत्रकारिता चुनौतियों वाली दुनिया है। इसमें पत्रकार समाज के
सामने प्रतिदिन परीक्षा देता है क्योंकि पत्रकार प्रत्येक दिन समाज को नई सूचनायें
देता है। अगर पत्रकारिता में सफल होना है तो अपने दिशा को निर्धारित करना होगा।
बिना दिशा तय किये इस क्षेत्र में भटकाव है। आज समाचार लेखन का कार्य, कहानी लेखन की तरह किया जाता है। कहानी में भी पात्र, परिस्थितियाँ होती हैं और पत्रकारिता में भी। किन्तु कहानी
में कल्पना का तत्व विद्यमान होता है और पत्रकारिता में यथार्थ का तत्व। समाचार
लिखने के लिए अभ्यास करना बहुत आवश्यक होता है। समाचार लेखन में ऐसे शब्दों का
चुनाव करना चाहिए जो आठ अक्षरों से अधिक न हों, एक वाक्य में आठ शब्द से अधिक शब्द न हों, एक पैराग्राफ में आठ वाक्य से ज्यादा वाक्य न हों तथा एक स्टोरी में आठ
पैराग्राफ से ज्यादा पैराग्राफ न हों। हर वाक्य पहले वाक्य से जुड़ा होना चाहिए
जिससे निरन्तरता बनी रहे। समाचार लेखन के लिए अपने शब्द कोष में वृद्धि करना चाहिए
जिससे समाचार लिखते समय शब्दों के चयन में असुविधा उत्पन्न न हो। साथ ही शब्द चयन
करते समय ध्यान रखना चाहिए कि पाठक को शब्दकोष न देखना पड़े।
पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने से
पहले यह तय कर लेना चहिए कि हमारी रूचि किन-किन विषयों में है। एक अच्छा पत्रकार
बनने के लिए आवश्यक है कि उन्हीं विषयों का चुनाव किया जाये जिस पर सौ प्रतिशत
ध्यान देकर कार्य किया जा सके। आज के दौर में ‘जर्नलिज्म’ में बेहतर अवसर उपलब्ध है विशेषकर-‘बिजनेस जर्नलिज्म’ में।
पत्रकारिता की भाषा को सही तरीके से समझना होगा तभी अपनी बात को स्पष्ट तरीके से
लिखा और बोला जा सकता है। आज सभी लोग डाक्टर और इंजीनियर की तरह ही सोशल इंजीनियर
बनने जा रहे हैं ताकि समाज का पेंच कस सकें।
आज समाचार लेखन में बहुत से पत्रकारों ने ‘न्यूज’ को ‘व्यूज’ बना दिया है,
जिससे बचना चाहिए। एक अच्छे पत्रकार के लिए आवश्यक है कि
पत्रकार लोगों से मिलकर अधिक से अधिक जानकारी जुटाए तभी वह सही बात समाज के सामने
रख पायेगा। समाचारों में जो लिखा जाए उसमें नवीनता हो, उपयोगी हो तथा उसका प्रस्तुतीकरण ऐसा हो जो पाठकों में समाचार पढ़ने के
लिए उत्सुकता जाग्रत कर सके। समाचार के लिए शीर्षक सबसे महत्वपूर्ण होता है,
शीर्षक ही समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
समाचार लिखते समय ध्यान रखना चाहिए कि समाचार किसके लिए लिखा जा रहा है और उसका
क्या प्रभाव पड़ेगा। समाचार पत्र में डेस्क पर राजनीतिक, सामाजिक, क्षेत्रीय समाचार, शासकीय व अन्य क्षेत्रों से संबंधित समाचारों की बहुलता होती
है इसलिए डेस्क इंचार्ज के ज्ञान का क्षेत्र विस्तृत होना चाहिए। डेस्क पर कार्य
करने के लिए अंग्रेजी, हिन्दी के साथ-साथ अन्य भाषाओं का
ज्ञान भी आवश्यक है।
आज 11 सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों में एक भी समाचार पत्र
अंग्रेजी का नही है जबकि विज्ञापन में हिस्सेदारी 46 प्रतिशत अंग्रेजी, 30 प्रतिशत हिन्दी
और क्षेत्रीय भाषाओं में मराठी 7 प्रतिशत,
तमिल 3 प्रतिशत,
कन्नड़ 2 प्रतिशत और
उडि़या मात्र एक प्रतिशत की हिस्सेदारी करते हैं शेष अन्य भाषाओं के समाचर पत्रों
की विज्ञापनों में हिस्सेदारी होती है। उन्होंने कहा कि 2011 के कैलेण्डर ईयर में कुल विज्ञापन 25,000 करोड़ से ज्यादा का था जिसमें 10,800 करोड़ का विज्ञापन प्रिंट मीडिया में था जिसमें इस साल लगभग 9 प्रतिशत वृद्धि की संभावना है।
आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अखबार अपनी पहुँच बना चुके हैं
जिससे उनकी जानकारियाँ बढ़ी हैं। सहारा समय के पत्रकार बृजेश सिंह का मानना है कि-
‘‘मीडिया संस्थानों का काम सूचना को आम आदमी
के बीच से लेकर खबर के रूप में पुनः उन तक पहुँचाना होता हैं। ऐसे में थोड़ी भी
गलती विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर सकती हैं, जिसकी भरपाई लम्बे समय तक नहीं हो सकती। खबर संकलन करते समय पूर्वाग्रह से
हट कर काम करना चाहिए। पूर्वाग्रह भी घटना को वास्तविक रूप में संकलित करने से
हमें रोकता है और वहीं विश्वसनीय का सवाल उठ खड़ा होता हैं। प्रिंट हो या
इलेक्ट्रोनिक सभी माध्यमों में काम करने वाले अगर मीडिया तकनीकों से परिचित नहीं
होते हैं तो वो अपने को आधुनिक पत्रकारिता में स्थापित नहीं कर पायेंगे।’’4 दिग्विजय सिंह राठौर का मानना है कि ‘‘मीडिया आज के समय में अगर नहीं होता तो आम आदमी की आवाज को उठाने वाला कोई
नहीं होता। इलेक्ट्रानिक मीडिया का क्षेत्रीय होते जाना भी शुभ संकेत है।’’5 बड़े अखबारों में विज्ञापनों की कमी नहीं है परन्तु
क्षेत्रीय अखबारों को विज्ञापन न के बराबर मिल रहा है जिससे उनके ऊपर वित्तीय संकट
बना रहता है। आज युवाओं को लुभाने के लिए अनेक तरह से विज्ञापन बन रहे हैं क्योंकि
उनकी संख्या ज्यादा है। कुछ विज्ञापन एजेंसियां ऐसी हैं जो उत्पादों की अधिक
बिक्री के लिए विज्ञापनों में महिलाओं को कामुक स्थिति में प्रस्तुत कर रही हैं।
यह भारतीय समाज के अनुरूप नहीं है। इससे समाज का एक वर्ग दिशाहीन हो रहा है।
आज के पत्रकारों में लेखन की कमी आई है और वह अब हड़बडि़या
लेखन की शुरूआत कर रहे हैं। अब समाचारों में खोजी पत्रकारिता अपराधीकरण का रूप ले
रहा है। आज मीडिया एक फोर्स के रूप में उभर रहा हैं। लोगों को परोक्ष रूप से न्याय
दिलाने में मदद कर रहा है। मीडिया ने अपराधियों व भ्रष्टाचारियों को पूरी तरह से
निर्वस्त्र कर दिया गया है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में भाषा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भाषा
अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। अगर इसका सही ढंग से प्रयोग नही हुआ तो यह अर्थ
का अनर्थ कर देती है। मीडिया में प्रायोगिक प्रशिक्षण बहुत जरूरी हैं। आज आवश्यकता
है कि जो अध्यापक मीडिया प्रशिक्षण का कार्य कर रहे है उन्हें मीडिया के हर पहलू
का ज्ञान हो तथा नई सूचना प्रौद्योगिकी की अच्छी जानकारी हो। मानव के भीतर की
सृजनात्मक शक्ति से ही विकास किया जा सकता है। आज मीडिया बाजार को संचालित कर रहा
है न कि बाजार से प्रभावित है। समाचार पढ़ते वक्त सामान्य लय में बोलना चाहिए और
संास पर ध्यान देना चाहिए। टेलीप्राम्टर पर देखकर बोलना तो बहुत आसान है लेकिन
अलिखित समाचार बोलने में बहुत मुश्किल होती है। इसलिए जरूरी है कि नियमित रूप से
अध्ययन किया जाये और समसामयिक बातों की जानकारी ग्रहण की जाये। हर छात्र को
सामग्री एकत्रित करना जरूरी है। समाचार वाचन में उच्चारण पर ध्यान देना बहुत
आवश्यक हैं। मीडिया में शब्दों पर संदेह करना बहुत जरूरी है तभी शब्दों की जाँच हो
पायेगी। अगर मीडिया में कैरियर बनाने के लिए सीखने और बोलने का जुनून होना चाहिए।
समाचार वाचन के समय स्वरघात, उच्चारण और पाज
का विशेष ध्यान देने की जरूरत हैं।
इलेक्ट्रानिक मीडिया में आपका चिंतन, मनन, भाव आवश्यक है क्योंकि इलेक्ट्रानिक
मीडिया लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ होता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया इलेक्ट्रो
एनर्जी पर आधरित बताया। डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों
को जागरूक किया जा सकता है। ये फिल्में ग्रामीणों पर ज्यादा प्रभाव डालेंगी व
उन्हें शिक्षित करेंगी। जीवन के हर क्षेत्र में मीडिया प्रासंगिक हो गया है,
इसलिए इलेक्ट्रानिक मीडिया की सम्यक समझ हेतु क्षेत्रीय
भाषाओं के माध्यम से इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रचार-प्रसार अति आवश्यक होता जा रहा
हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया का हमारी संस्कृति और भाषा से गहरा सम्बन्ध है, जिसके कारण इसका महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। समस्त
मीडिया कर्मियों का यह प्रथम दायित्व है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया को सरल ढंग से आम
जनता तक पहुँचाए। इलेक्ट्रानिक मीडिया एक विशेष धारा है जिसमें अनन्त संभावनाएं
हैं। इसमें कार्य करने के लिए जुनून की आवश्यकता होती है। आज इलेक्ट्रानिक चैनलों
पर जो कार्यक्रम दिखाये जाते हैं उन कार्यक्रमों को परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा
जा सकता है यह दुखद है। इसमें किसी प्रकार की आचार संहिता नहीं है जिससे इन पर
अंकुश लगाना मुश्किल है लेकिन अपनी सोच से फूहड़ कार्यक्रमों को रोका जा सकता है।
आज बड़े व्यावसायी या राजनेता चैनल तो स्थापित कर ले रहे हैं परन्तु वह चैनल को
चलाने हेतु अपनी संस्कृति को छोड़कर नकारात्मक कार्यक्रमों को प्रसारित कर रहे हैं
ताकि उनका चैनल प्रतिस्पर्धा में आगे हो। सकारात्मक समाचारों की बाढ़ सी है लेकिन
समाचार चैनलों द्वारा हत्या, डकैती, अपहरण तथा बलात्कार आदि खबरों को बहुत अधिक महत्व दिया जाता
है। आज अच्छे मीडिया विशेषज्ञों की आवश्यकता है जो समाचार चैनलों को सही दिशा दे
सके।
मीडिया जगत में कार्य करने वाले 90 प्रतिशत मीडिया कर्मी भाषा में पारंगत नहीं हैं। यह दुखद है कि हम जन्म
लेते ही जिस भाषा में बोलना शुरू करते हैं उसी भाषा पर सही लिखने और पढ़ने का
अधिकार नहीं रख पाते हैं। उच्चारणों पर ध्यान देकर ही शब्दों का सही अर्थ जाना जा
सकता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के चैनल अब सस्ते में कार्य करने वाले लोगों को मौका
दे रहें हैं जिससे समाचारों की गुणवत्ता में निरन्तर गिरावट आ रही है। पत्रकारों
को बहुत बड़े संवर्ग को सम्बोधित करना है। अतः इन्हें समाज के समक्ष सही तथ्यों को
लाना होगा।
मीडिया के क्षेत्र में कार्य करने के लिए पहले अपने आप को
पहचानकर उन गुणों को विकसित करने की आवश्यकता होगी। अपने आपको भीड़ से अलग कर
कार्य करने की आवश्यकता है ताकि इसमें एक पहचान मिल सके। यह एक विशिष्ट क्षेत्र है
जिसमें पैसे से ज्यादा कार्य का महत्व है इसलिए इसमें विशिष्ट लोगों के आने की
आवश्यकता है। मीडिया के क्षेत्र में कार्य करने हेतु अभ्यास की जरूरत है इसलिए
प्रतिदिन सीखने की आवश्यकता है। न्यू मीडिया के आने से समाचार तो जरूर मिल रहा है
लेकिन यह समुचित ज्ञान नहीं दे पा रहा है जिससे समाचरों के प्रस्तुतिकरण में
व्यापक बदलाव आया है। समाचारों को लिखने में संयमित भाषा का प्रयोग करना आवश्यक
है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया का लेखन इतना
प्रभावशाली होना चाहिए जिससे दर्शकों/श्रोताओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सके।
समाचारों में सांस्कृतिक चेतना और आर्थिक पक्षों को इस तरह उजगार करना चाहिए जिससे
समाज लाभान्वित हो सके। समाचारों को प्रस्तुत करते समय स्थानीय भाषा का प्रयोग
करना चाहिए। इससे दर्शकों व श्रोताओं में आत्मीयता का बोध हो सके। एक अच्छे
पत्रकार में मीडिया की समस्त विधाओं का समावेश होना चाहिए। उसके अंदर प्रस्तुतिकरण
की भी क्षमता होनी चाहिए ताकि वह समाचारों में गंभीरता ला सके। मीडिया में चयन
उन्हीं लोगों का होता है जिसके अंदर कार्य करने की क्षमता होती है। गलतियों से
सीखने की आवश्यकता है घबड़ाने की नहीं।
आज इलेक्ट्रानिक मीडिया का युग है जिसने पूरे विश्व को एक गांव
का रूप दे दिया है। इसका असर हमारे जीवन में नकारात्मक या सकारात्मक दोनों ही
रूपों में दिखाई पड़ रहा है। मनोहर श्याम जोशी मीडिया के दुष्प्रभाव का उल्लेख
करते हुए कहते हैं- ‘‘मीडिया दैत्यों ने 1934 के कानून का यह आग्रह भी भुला दिया है कि जनहितकारी और
स्थानीय महत्त्व के कार्यक्रम दिखाये जायें और बच्चों को सुसंस्कृत बनाने का खास
धयान रखा जाये। अच्छे कार्यक्रम तो वे अब दिखावा करने तक के लिए नहीं दिखाते और
सभी जगह बिकने वाले सेक्स और हिंसामय कार्यक्रमों की मात्रा बढ़ाते ही जाते हैं।
इस तरह का घटिया मनोरंजन परोसने वाले ये मीडिया-दैत्य इराक के महाविनाशकारी
अस्त्र-जैसे हवाई मुद्दे पूरे विश्वास के साथ उछालकर और अमेरिकी अस्त्रों से बरबाद
इराकी नागरिक की ठोस व्यथा को हवा में उड़ाकर सामाजिक सोच को अमानवीय ढ़ाचें में
ढाल रहे हैं। महाविनाशकारी तो वे स्वयं हैं।’’6 मुंबई में आतंकी हमले के दौरान मीडिया के गैर जिम्मेदराना रवैये के कारण
हमारे दो सुरक्षाकर्मियों को जान गवानीं पड़ी। जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता
नहीं है। इलेक्ट्रानिक मीडिया का जादू बच्चों, बूढ़ों और नौजवानों पर सिर चढ़कर बोल रहा है। आज टी0वी0, कम्प्यूटर, इंटरनेट आदि हमारे जीवन के अंग बन गये हैं। कुल मिलाकर संचार माध्यमों ने
अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है। कोई भी सामाजिक मुद्दा बिना सामुदायिक सहभागिता
के पूरा नहीं किया जा सकता। समाज के निर्माण में व्यक्तिगत सहभागिता जरूरी है।
लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए शासन और जनता में आपसी संवाद जरूरी है
जिसकी जिम्मेदारी दूरदर्शन और आकाशवाणी बखूबी निभा रहा है। टी0वी0 के शुरूआती दिनों में सिर्फ 200 सेट थे लेकिन आज प्रत्येक घर में टी0वी0 सेट उपलब्ध हैं लेकिन मीडिया का
स्वरूप बदल गया है। पहले जहाँ सामाजिक सरोकारों से संबंधित खबरों और कार्यक्रमों
को प्राथमिकता दी जाती थी वहीं आज बलत्कार, हत्या और डकैती जैसे कार्यक्रमों को मनोरंजक तरीके से पेश किया जा रहा
है।
रेडियो शब्दों का माध्यम है जिसे अंधों का थियेटर कहा जाता
है। यहाँ सुनना, देखना, रोना, हंसना सभी क्रियायें, वस्त्र, साज-सज्जा,
मौसम शब्दों के द्वारा ही बताये जाते हैं। रेडियो नाटक
लिखने के लिए अनिवार्य है कि सर्वप्रथम हम अपने लक्ष्य श्रोताओं के वर्ग विशेष को
पहचाने। यह ध्यान रखने योग्य है कि रेडियो पर दृश्य सज्जा का कार्य संगीत और ध्वनि
के माध्यम से किया जाता है। अतः दृश्यों को गतिशील बनाने के लिए संगीत का चुनाव
आवश्यक है। आज विकास संचार ने मानव जाति को आधुनिक बना दिया है। मीडिया का सामाजिक
सरोकारों से जुड़ता जा रहा है। कार्यक्रमों के निर्माण में इस बात का ध्यान रखा
जाना चाहिए कि कार्यक्रम मनोरंजन के साथ ही साथ शिक्षाप्रद भी हो।
डॉ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह
शोध सहायक, हिन्दी विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
ई-मेल- dpsingh33@ymail.com
ब्लॉग- dpsinghpbh.blogspot.in
मो-09453476741
|
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मीडिया के
लिए समय की पाबंदी, कार्य करते समय वक्त की नजाकत और समय
सीमा ही कार्यक्रम को सफल बनाती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के आने से समाचारों को
प्रस्तुत करने में आसानी हुई है और एक ही व्यक्ति अब कई कार्यों को एक साथ कर लेता
है। मीडिया में भाषा शैली का सही प्रयोग ही सही समाचार प्रदर्शित करता है। मीडिया
में आने के लिए सृजनात्मक होना जरूरी है। औपचारिक और अनौपचारिक तरीके से सृजन का
विकास कर मानव इच्छाशक्ति, सृजनशक्ति और
कर्मठता पर भरोसा रखने पर संसाधनों की कमी उसे कभी पीछे नहीं कर सकती।
सन्दर्भ
1. मीडिया की हिन्दी, गवेषणा- 2011,
पृ0-89
3. जनसंचार माध्यमों के
विज्ञापन में हिन्दी, गवेषणा-2011, पृ0-86,
4. जौनपुर विश्वविद्यालय में ‘इलेक्ट्रानिक मीडिया की चुनौतियाँ’ विषय पर आयोजित अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का
वक्तव्य
5. तदैव
6. आज का समाज, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
संस्करण-2007,
पृष्ठ-113
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