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''मैं मानता हूँ कि किसी भी व्यक्ति या कवि को विदेश तक पहुँचाने का श्रेय सिर्फ फिल्म के पास है। कारवां गुजर गया गीत मैंने एक बार 1954 में लखनऊ रेडियो से पढ़ा था--- मैं ओवर नाइट सारे देश में लोकप्रिय हो गया।--- बाद में इसकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए पिक्चर बनी 1960 में ‘नई उमर की नई फसल’ और कारवां गुजर गया रफी ने जो गा दिया तो विश्व में पहुँच गया।''
‘नीरज’ का फिल्मी सफर कुल पांच (1967-72) वर्ष का रहा है। इस मध्य देवानंद के साथ भावनात्मक लगाव के चलते वे यदा-कदा उनकी फिल्मों के लिए गीत लिखते रहे देवानंद की कई फिल्मों के लिए गाने लिख चुके नीरज ने बताया, ''एक कवि सम्मेलन के दौरान मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई थी और उसके बाद प्रेम पुजारी से जुड़ा रिश्ता आखिरी फिल्म ‘चार्जशीट’ तक बना रहा। हालांकि, मैंने फिल्म के लिए 1973 में लिखना छोड़ दिया था।--- देव साहब के साथ फिल्म जगत से मेरा आखिरी सम्पर्क भी खत्म हो गया।य''
गोपालदास नीरज जी |
निर्देशक आर चन्द्रा ने फिल्मों में जो मार्गप्रशस्त किया। उसके पश्चात् ‘नीरज’ तत्कालीन बड़े-बड़े निर्माता निर्देशक से जुड़ते गए और फिल्मों के लिए खूब गीत लिखे जो आज भी सुने जा रहे हैं। गीतकार के शब्दों में- ''फ़िल्मों के क्षेत्र में मुझे प्रवेश कराने का श्रेय आर-सी- चन्द्रा का है क्योंकि इसी गीत की लोकप्रियता ने मुझे बाद में चदशेखर, देवानंद, राजकपूर, राजेन्द्र भाटिया, आत्माराम और गुरुदत्त से भी जोड़ा। लता, रफी, मन्नाडे, हेमन्त कुमार, मुकेश, महेन्द्र कपूर, किशोर, आशा भोसले, सुमन, कल्याणपुरी आदि सबसे मैं जुड़ा और इन लोगों का आज भी हृदय से आभारी हूँ।''
फिल्मों में गीत लेखन नीरज जी के व्यक्तित्व का वह पक्ष है जो उनकी जनप्रियता को व्यापक बनाता है। कारण है ‘नीरज’ ने अपनी मौलिक प्रतिभा के स्पर्श से फिल्मी गीत को बचकाने व सीमित ढांचे से निकालकर उसके स्वरूप में ही परिवर्तन कर दिया। फिल्मी गीत लेखन में नीरज जी लेखनी से एक साहित्यिकता का आगमन हुआ। काम चलाऊ सीमित शब्दावली के स्थान पर भावों व विचारों की गहरी भंगिमा का आरम्भ हुआ। ‘नीरज’ के शब्दों में ''मेरा कुल फिल्मी जीवन पाँच वर्ष का है। 70 में मुझे फिल्म फेयर अवार्ड मिला, जो किसी भी गीतकार के लिए बड़े गौरव की बात है। इन पांच वर्षों की अवधियों में मैंने फिल्म के गीतों में भाषा के स्तर पर तरह-तरह के मौलिक प्रयोग किए। ‘ऐ भाई, जरा देख के चलो’ जैसी ‘फ्रीवर्स लिबरे’ कविता को विश्वस्तरीय लोकप्रियता दिलाई। ‘मेघा छाए आधी रात’ जैसी क्लासिकल और पॉप,फोक, मन्दिर के भजन, कोठे के गीत, नज़्म आदि को पॉपुलर करके दिखा दिया। फिल्म में गीत लेखन भी एक टेकनीक है। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कवि यदि वह टेकनीक नहीं जानता तो फिल्म के लिए गीत लिखने में सफल नहीं होगा।''
‘आजकल’ पत्रिका में जय सिंह ने ‘जन-जन के गीतकार’ में लिखा हैः-'वास्तव में, नीरज अकेले गीतकार हैं जिनका प्रत्येक गीत हिट हुआ। उस दौर में हिन्दी शब्दों की गीतमाला में सुंदर मोतियों की तरह पिरोना सहज नहीं था। ‘रंगीला रे’, ‘ओ मेरी शर्मीली’, ‘मेघा छाए आधी रात’, ‘धीरे से जाना बगियन में’, ‘राधा ने माला जपी श्याम की’, ‘मेरा मन तेरा प्यासा’, ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं’, ‘पैसे की पहचान यहां’, जैसे सदा बहार गीत नीरज के नाम दर्ज हैं।' गीतकार ‘नीरज’ ने अपनी साहित्यिक शब्दावली, प्रयोगधर्मिता व तथाकथित टेकनीक का प्रयोग कई गीतों के लिए किया है। ‘नीरज’ की अधिकांशतः फिल्मों के नाम इस प्रकार हैं; ‘नई उमर की नई फसल’, ‘कन्यादान, ‘पहचान’, ‘लाल पत्थर’, ‘गैम्बलर’, ‘प्रेम पुजारी’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘चंदा और बिजली’, ‘छुपे रुस्तम’, ‘तेरे मेरे सपने’, ‘जंगल में मंगल’, ‘बेईमान’, ‘कल आज और कल’, ‘चा-चा-चा’, ‘परायाधन’, ‘कन्यादान’, ‘सती नारी’, ‘दुल्हन एक रात की’, ‘शर्मीली’, ‘तू ही मेरी िज़न्दगी’, ‘मंझली दीदी’, ‘उमंग, पतंगा’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘वीर छत्रसाल’, ‘रिवाज’, ‘यार मेरा’, ‘एक नारी एक ब्रह्मचारी’, ‘परिवर्तन’, ‘आशियाना’, ‘अर्चना’, ‘रेशम की डोरी’, ‘शतरंज के मोहरे’, ‘तू मेरा मैं तेरा’, ‘फरेब’, ‘सेन्सर’, ‘जाना न दिल से दूर’ और अब तक की अन्तिम फिल्म ‘चार्जशीट’।
गीतकार ‘नीरज’ ने फिल्मी गीत लेखन को समृद्ध किया। अपनी शब्दावली से, प्रयोगधर्मिता से गीतों के स्तर को ऊँचा उठाया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि गीतकार अपने व्यक्तित्व से कला के उच्च मानक स्थापित कर सकता है। फिल्मी गाने बहुधा सतही, दोषमुक्त भाषा, द्विअर्थी मुहावरे के कारण सस्ती लोकप्रियता का कारण रहे हैं। इस कारण फिल्मी गीत लेखन को निर्विवाद रूप से उच्चकोटि का दर्जा प्राप्त भी नहीं हुआ है। गीतकार ‘नीरज’ के गीत फिल्मी श्रोता के स्तर को बढ़ाते हैं और उनके गीतों की प्रसिद्धि इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी है। ‘नीरज’ के गीत सुनने मात्र से ही स्प्ष्ट हो जाता है कि ये गीत अर्थबोध के स्तर पर कितने गहरे तक उतरे हैं. ‘लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में हजारों रंग के नजारे बन गए’, ‘तन-मन तेरे रंग रँगूँगी, छाया बनकर संग चलूँगी, ‘शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी सी शराब’, जैसे ‘राधा ने माला जपी श्याम की’, ‘मेरी नजरों ने कैसे कैसे काम कर दिए’, ‘काल का पहिया घूमे भैया’ आदि कितने ही गीत हैं जिन्हें सुनकर श्रोता आज भी अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं।
निःसंदेह फिल्मी गीत लेखन में गीतकार के व्यक्तित्व का भी महत्त्वपूर्ण योग रहता है, साथ ही यह भी वास्तविकता है कि फिल्मी गीत संगीतकार, गायक व शब्द शिल्पी की त्रिवेणी से निसृत होता है। नीरजीय व्यक्तित्व की ऊष्मा व ऊर्जा को जो सम्मान एस-डी- वर्मन की प्रयोगशीलता से मिला है ‘नीरज’ उसे अपने गीतों की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण मानते हैं। ''एस.डी. बर्मन के साथ मैंने काम किया था, शंकर जयकिशन के साथ भी किया, रोशन के साथ भी किया। पर एस.डी.बर्मन साहब ने जिस तरह मेरे गीत बनाए वैसा किसी ने किया हो, मुझे लगता नहीं। क्योंकि वे नए-नए प्रयोग करते थे। और मैंने भी नए-नए प्रयोग किए भाषा के। मुझे अपना सबसे ज्यादा पसंद है गीत ‘फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज पाती। इसकी विशेषता ये है कि इसमें अंतरा पहले है मुखड़ा बाद में है। ये एक एक्सपेरीमेंटल गीत था। ‘फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज पाती। कैसे बताऊं किस तरह से पल पल मुझे तू सताती। तेरे ही सपने में लेकर के सोया तेरी ही यादों में जागा। तेरे ख्यालों में खोया रहा मैं जैसे कि माला में धागा। बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार। लेना होगा जनम हमें कई-कई बार। इतना मदिर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार’ यहाँ से शुरू होता है गीत। ये हुआ मुखड़ा। अब एक प्रयोग उन्होंने किया कि न मुखड़ा न अंतरा है सब नज्म है। और वो नज्म भी बहुत हिट हुई ‘दिल आज शायर है गम आज नगमा है शब ये ग़ज़ल है सनम। पूरा रूपक है इसमें गैंबलर। दिल आज शायर है गम आज नगमा है शब ये ग़ज़ल है सनम। गैरों के शेरों को सुनने है वाली हो इस तरफ भी करम। आके जरा देख तो तेरी खातिर हम किस तरह से जिए। आंसू के धागे से सीते रहे हम जो जख्म तूने दिए। चाहत की महफिल में गम तेरा लेकर किस्मत से खेला हुआ। दुनिया से जीते पर खुद हारे यूं खेल अपना हुआ। तो भी हिट हुआ।य''
गीतकार ‘नीरज’ अपनी प्रतिभा के शब्दकोश से बेहतरीन शब्द लेकर आते गए और एस.डी.बर्मन ने अपनी उदारता से न केवल उन्हें स्वीकार किया बल्कि अपनी रचनाधर्मिता से उन्हें गहरे तक सम्मान भी दिया। इसी क्रम में गीतकार आगे कहते हैं. ''उन्होंने साहित्यिक मानदंडों को ग्रहण करते हुए खूब भाषा ली मेरी। ‘सांसों की धड़कन सपनों की गीतांजलि तू। ऐसे शब्द कहाँ आते थे पहले? इतना मदिर इतना मधुर जैसे शब्द आते थे? उद्गम संगम कहीं आते थे? क्या ‘नीरज नैना’ जैसा शब्द चला दिया।'' फिल्मी गीत लेखन के क्षेत्र में गीतकार की बहुआयामी प्रसिद्ध का कारण संगीतकार और गायक को भी जाता है, जिनकी स्वर साधना और संगीत की मोहिनी से गीतकार के गीत सदैव के लिए अमर हो गए। इसके साथ ही ‘नीरज’ की लेखनी की उस प्रतिभा को भी धन्य माना जाएगा जिसने फिल्म गीत लेखन में लोकप्रियता और साहित्यिकता को एक साथ प्रतिष्ठा कराई। लोकप्रियता ऐसी कि ‘नीरज’ के गीत हर वर्ग, समुदाय को गुनगुनाने पर विवश कर देते हैं और साहित्यिकता का ऐसा मंच कि फिल्म के गीत भी अनूठे बन पड़े जिन्हें बिना सुर ताल के भी गाया जाए तब एक गहरी कविता का बोध कराते हैं। गीतकार ‘नीरज’ के फिल्मी गीत लेखन का एक पक्ष और है। ‘नीरज’ ने कुछ गीत तो पूर्व निर्धारित ट्यून पर बनाए वही कुछ गीतों में अपनी लेखनी के अतिरिक्त भी कार्य किए। कुछ गीतों की ट्यून नीरज ने स्वयं ही बनाई जो फिल्म जगत् में टर्निंग प्वाइंट साबित हुए। ‘ऐ भाई जरा देख कर चलो’ एक ऐसा ही गीत है, जिसमें कान्सेप्ट, ट्यून, सर्कस के माध्यम से जीवन दर्शन सब कुछ ‘नीरज’ का है। राजकपूर ने मुग्ध होकर कहा था, ''इससे पहले ऐसा गीत नहीं लिखा गया। कितनी तरह से उन्होंने सोचा कि इसे कहाँ डाला जाएगा’, तीस बरस बाद भी मेरे इन गीतों की रायल्टी आती है।''
यह नीरजीय व्यक्तित्व की शब्द साधना का प्रतिफल था कि एक बार ‘नीरज’ ने जो गीत रच दिया वह सफलता के मुकाम पर चढ़कर सदैव के लिए अमर हो गया। उन्होंने राजकपूर और देवानंद जैसे उच्चकोटि के फिल्मकारों की फिल्मों के लिए गीत लिख कर न सिर्फ हिन्दी सिनेमा को बल्कि हिन्दी भाषा को भी गौरवान्वित किया है। कारण है कि फिल्मों में उनके गीत लेखन से पहले हिन्दी सिनेमा में उर्दू शायरों का वर्चस्व था। उन्होंने अपने गीतों में विशुद्ध हिन्दी भाषा का प्रयोग कर एक नयी परम्परा एवं शैली को जन्म दिया।
गीतकार ‘नीरज’ के रचे गीत का अभिप्राय फिल्मी जगत् में प्रसिद्धि के मानक के रूप में होने लगा था। फिल्में हिट हो न हों परन्तु फिल्म के सभी गीत हिट होते थे। फ्लोग कहने लगे कि यदि गीतों को हिट और पिक्चर को फ्रलाप कराना है तो नीरज से गीत लिखवा लो।’ ‘मेरा नाम जोकर’ के सभी गीत हिट हुए परन्तु फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई। जबकि ‘प्रेम पुजारी’, शर्मीली’ और ‘पहचान’ सिल्वर जुबली फिल्म रही। चन्दा और जुबली पर फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। फिर भी फिल्मी गीत लेखन में नीरजीय इतिहास की कड़ी पाँच वर्ष ही रही है। देवानंद ने हाल में अपनी फिल्म ‘चार्जशीट’ के लिए उनसे ‘सूफियाना गीत’ लिखवाया था। फिल्म जगत् में ‘नीरज’ के प्रथम पड़ाव का क्रम 72 के आस-पास समाप्त हो जाता है। ''मेरे वहाँ से आने का एक कारण यह भी रहा कि मैं जिन लोगों के साथ हिट हुआ, धीरे-धीरे वे सब इधर-उधर हो गए। रोशन चले गए, राजकपूर वाला ग्रुप जयकिशन की डेथ के बाद टूट गया। बर्मन बीमार रहने लगे उन्होंने काम करना बन्द कर दिया। उधर जब ‘मेरा नाम जोकर’ फ्लॉप हुई तो सोचा कि अब मुझे यहाँ क्या करना है।''
गीतकार ‘नीरज’ ने अपने थोड़े से फिल्मी जीवन में फिल्मी जगत् को जो अमूल्य गीत दिए हैं। वे निःसन्देह गीत सम्पदा को सम्पन्न बनाते हैं। ‘जीवन की बगिया महकेगी, लहकेगी’, ‘कारवां गुजर गया’ गीतों की रायल्टी द्वारा इस बात का प्रमाण है कि वे गीत आज भी सुने जा रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि अनगिनत गीतों के ढेर में ‘नीरज’ के गीतों का कारवां आज भी चल रहा है। किसी गीतकार के गीतों की मात्रात्मक संख्या को छोड़कर गुणात्मक योग देखें तो सिद्ध होता है कि ‘नीरज’ के गीत न केवल फिल्मी संसार का बल्कि हिन्दी भाषा का भी गौरव बढ़ाने वाले हैं। वही गीत वर्तमान समय के फिल्म गीत-संगीत से खिन्न नज़र आते हैं। ‘नीरज’ ने फिल्मी गीतों को अपनी भाव प्रवणता व कल्पना से सँवारा है। उसमें भाव व विचारों के नए-नए रंग भरे हैं। उसी फिल्मी साहित्य को वे भद्दे, बचकाने, द्विअर्थी शब्दों से घिरा देखकर दुःखी होते हैं। इसके पीछे वे सपनों के अभाव को स्वीकारते हैं। अपने एक साक्षात्कार में वे कहते हैं.''वर्तमान समाज सपनों के पतनशील युग से गुजर बसर कर रहा है। इसका ही असर है कि फिल्मों में मैलोडी और गीत की जगह धूम धड़ाका लेता जा रहा है।'' वहीं वे यह भी स्वीकारते हैं कि जनता की रुचि को परिष्कृत करना भी गीतकार का दायित्व है। ऐसा अगर नहीं होता तो लोग रीमिक्स नहीं सुनते। पुराने गीतों की फिल्मों और एलबम में वापसी के बारे में उन्होंने कहा कि ''जनता कुछ अच्छा भी सुनना चाहती है। रीमिक्स इस बात की ओर इशारा करता है कि लोगों के जेहन से आज भी पुराने गीत उतरे नहीं हैं।''
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'नीरज’ तो कल यहाँ न होगा
उसका गीत विधान रहेगा।
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