कविता:गोविंद प्रसाद ओझा

त्रैमासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati)वर्ष-2, अंक-17, जनवरी-मार्च, 2015
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साँसे मेरी थमने को है
आँसूंओ का सैलाब बहने को है
मुस्कान  मेरी मानो गुजर सी गई
सभी तस्वीरें गिर कर बिखर सी गई
कुछ बचा नहीं सिर्फ 
एक शून्य

पास आने में साये भी कतराने लगे हैं
फूल भी दूरियां बढ़ाने लगे हैं
चाँद भी दूर हो गया घने बादलों में
अब मुझसे
सूरज भी कहीं छिप गया आंधियों में
बचा नहीं कुछ भी 
सिवाय शून्य के

रिश्तों की आहट भी उलझाती है मुझको
अपनों से जी घबराता
पथरा जाती आँखें कई मर्तबा
साँसे रुकी हुयी सी लगती
जब पास होता है सिर्फ 
एक शून्य
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किश्तों में जिंदगी

आँखों में 
चुभते हैं कई अजीब प्रश्न
इन दिनों 

मेरी अभिशप्त आँखें और 
ये आवारा सपने
आहटें अजीब और उनकी परछाइयां

लगभग उलझे हुए आदमी की शक्ल वाले 
संबंधो के धागे
परेशान करते हैं मुझको

सकुचाता मन और
तन्हाई बहुत कुछ लील जाती
तोड़ जाती कितने भ्रम मेरे
एकाएक यादें
अकेला कर देती

तमाम इच्छाओं की इमारत
गिरती हुयी सी लगती है
तमन्नाएं सारी छिन्न छिन्न

जी रहा हूँ यूं ही है
इन दिनों 
किश्तों में ज़िंदगी अपनी
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गोविंद प्रसाद ओझा
पता : सेक्टर 4 ए 11,
कुडीभगतासनी हाउसिंग बोर्ड,
जोधपुर 342005 (राजस्थान)
मो.नं. 09772344555
ई-मेल:govindprasad.oza@gmail.com

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