ग्राउंड रिपोर्ट
राजस्थान में गरीब दलितों पर भीषण हमले
सुशील कुमार
चित्रांकन-मुकेश बिजोले |
14 मई को डांगावास गाँव के जाटों ने एक जाति-पंचायत बुलाई और मेघवालों(दलितों)
को पंचायत में आने की धमकी दी गयी. करीब 500 जाट दलित बस्ती में घुस आए और
रतनराम मेघवाल, पंचराम और पोकर राम नामक तीन दलितों को बेरहमी से ट्रेक्टर के नीचे कुचल दिया
गया. इन बेमौत मारे गए दलितों में श्रमिक नेता पोकर राम भी था जो उस दिन अपने
रिश्तेदारों से मिलने के लिए अपने भाई गणपत मेघवाल के साथ वहां आया हुआ था.
जालिमों ने पोकरराम के साथ बहुत बुरा सलूक किया. उस पर ट्रेक्टर चढाने के बाद उसका
लिंग नोंच लिया गया तथा आँखों में जलती लकड़ियाँ डाल कर ऑंखें फोड़ दी गयी. महिलाओं
के साथ ज्यादती की गयी और उनके गुप्तांगों में लकड़ियाँ घुसेड़ दी गयी. तीन लोग मारे
गए ,14
लोगों के हाथ पांव तोड़ दिये गए, एक ट्रेक्टर ट्रोली तथा चार मोटर साईकलें जलाकर राख कर दी
गयी, एक
पक्का मकान जमींदोज कर दिया गया और कच्चे झौपड़े को आग के हवाले कर दिया गया. जो भी
समान वहां था उसे लूट ले गए. इस तरह तकरीबन एक घंटा मौत का तांडव चलता रहा,
लेकिन मात्र 4 किलोमीटर दूरी पर मौजूद
पुलिस सब कुछ घटित हो जाने के बाद पंहुची और घायलों को अस्पताल पंहुचाने के लिए
एम्बुलेंस बुलवाई, जिसे भी रोकने की कोशिश जाटों की उग्र भीड़ ने की. इतना ही नहीं, जब गंभीर घायलों को
मेड़ता के अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो वहां भी पुलिस तथा प्रशासन की मौजूदगी
में ही धावा बोलकर बचे हुए दलितों को भी खत्म करने की कोशिश की गयी. और डॉक्टरों
को ये धमकी दी गयी कि दलितों का इलाज यहाँ नहीं होना चाहिए. यह अचानक नहीं हुआ,
सब कुछ
पूर्वनियोजित था.
दरअसल यह घटना जाटों द्वारा दलित
समुदाय की जमीन छीनने से जुड़ी है. यह जमीन सूदखोरी,धोखे और बाहुबल से हड़पने की
कोशिश की गयी. एक और ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि राजस्थान काश्तकारी कानून
की धारा 42 (बी) के होते हुए भी जिले में दलितों की हजारों बीघा जमीन पर दबंग जाट समुदाय
के भूमाफियाओं ने जबरन कब्ज़ा कर रखा है. यह कब्जे फर्जी गिरवी करारों, झूठे बेचाननामों और धौंस
पट्टी के चलते किये गए है, जब भी कोई दलित अपने भूमि अधिकार की मांग करता है, तो दबंगों की दबंगई पूरी
नंगई के साथ शुरू हो जाती है. ऐसा ही एक जमीन का मसला दलित अत्याचारों के लिए
बदनाम डांगावास गाँव में विगत 30 वर्षों से कोर्ट में ट्रायल था, हुआ यह कि बस्ता राम नामक मेघवाल
दलित की 23 बीघा 5 बिस्वा जमीन कभी मात्र 1500 रूपये में इस शर्त पर गिरवी रखी गयी कि चिमना राम जाट उसमे
से फसल लेगा और मूल रकम का ब्याज़ नहीं लिया जायेगा. बाद में जब भी दलित बस्ता राम
सक्षम होगा तो वह अपनी जमीन गिरवी से छुडवा लेगा. बस्ताराम जब इस स्थिति में आया
कि वह मूल रकम दे कर अपनी जमीन छुडवा सकें, तब तक चिमना राम जाट तथा उसके
पुत्रों ओमाराम और काना राम के मन में लालच आ गया, जमीन कीमती हो गयी. उन्होंने
जमीन हड़पने की सोच ली और दलितों को जमीन लौटने से मना कर दिया. पहले दलितों ने
याचना की. फिर प्रेम से गाँव के सामने अपना दुखड़ा रखा. मगर जिद्दी जाट परिवार नहीं
माना. मजबूरन दलित बस्ता राम को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी. करीब तीस साल पहले
मामला मेड़ता कोर्ट में पंहुचा, बस्ताराम तो न्याय मिलने से पहले ही गुजर गया. बाद में उसके
दत्तक पुत्र रतनाराम ने जमीन की यह जंग जारी रखी और अपने पक्ष में फैसला प्राप्त
कर लिया. वर्ष 2006 में उक्त भूमि का नामान्तरकरण रतना राम के नाम पर दर्ज हो गया तथा हाल ही में
में कोर्ट का फैसला भी दलित खातेदार रतना राम के पक्ष में आ गया. इसके बाद रतना
राम अपनी जमीन पर एक पक्का मकान और एक कच्चा झौपडा बना कर परिवार सहित रहने लग गया
लेकिन इसी बीच 21 अप्रैल 2015 को चिमनाराम जाट के पुत्र कानाराम तथा ओमाराम ने इस जमीन पर जबरदस्ती तालाब
खोदना शुरू कर दिया और खेजड़ी के वृक्ष काट लिये. रत्ना राम ने इस पर आपत्ति दर्ज
करवाई तो जाट परिवार के लोगों ने ना केवल उसे जातिगत रूप से अपमानित किया बल्कि
उसे तथा उसके परिवार को जान से मार देने कि धमकी भी दी गयी. मजबूरन दलित रतना राम मेड़ता थाने पंहुचा और
जाटों के खिलाफ रिपोर्ट दे कर कार्यवाही की मांग की. मगर थानेदार जी चूँकि जाट
समुदाय से ताल्लुक रखते है सो उन्होंने रतनाराम की शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं
की पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर नागौर के SP ने कहा कि ये जाति से जुड़ा हुआ
मामला नहीं है. 14 मई को खुले-आम जाट पंचायत रखी जाती है और दलितों को जाट पंचायत में आने की
धमकी दी जाती है और पुलिस फिर भी कहती है कि इस पूरे मामला का जाति से कोई
लेना-देना नहीं है और इस पंचायत के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया. हम पूछना चाहते हैं
कि राजस्थान और केन्द्र सरकार की इस पूरे मामले में चुप्पी क्यों बनी हुई है?
पूरे मामले में 72 घंटे तक कोई गिरफ़्तारी
नहीं होने पर राजस्थान सरकार के गृह मंत्री गुलाब कटारिया ने अपने बयान में कहा कि
उसके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे गिरफ्तारी की जा सके. मालूम होता है कि
गरीब,दलितों
के लिए न्याय महज एक जुमला बन कर रह गया है.
नागौर में करीब दो महीने से दलित
समुदाय पर छिटपुट हमले किये जा रहे थे. नागौर जिले के बसवानी गाँव में पिछले महीने
ही एक दलित परिवार के झौपड़े में दबंग जाटों ने आग लगा दी जिससे एक बुजुर्ग दलित
महिला जल कर राख हो गयी और दो अन्य लोग बुरी तरह से जल गए जिन्हें जोधपुर के
सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए भेजा गया. इसी जिले के लंगोड़ गाँव में एक दलित को
जिंदा दफनाने का मामला सामने आया है. मुंडासर में एक दलित औरत को घसीट कर ट्रेक्टर
के गर्म सायलेंसर से दागा गया और हिरडोदा गाँव में एक दलित दुल्हे को घोड़ी पर से
नीचे पटक कर जान से मरने की कोशिश की गयी. राजस्थान का यह जाटलेंड जिस तरह की
अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहा है, उसके समक्ष तो खाप पंचायतों के तुगलकी फ़रमान भी कहीं
नहीं टिकते है, ऐसा लगता है कि इस इलाके में कानून का राज नहीं, बल्कि जाट नामक किसी कबीले का
कबीलाई कानून चलता है,जिसमे भीड़ का हुकुम ही न्याय है और आवारा भीड़ द्वारा किये गए कृत्य ही विधान
है. गरीब दलितों का उत्पीड़न,शोषण पूरे देश में जारी है जहाँ पर दलित इसके खिलाफ़ मुखालफ़त
करते हैं वहां पर ये क्रूर हमले होते हैं. यह हम राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, के कुछ एक जगहों के नरसंघार
को देख सकते हैं. जो हमारे संज्ञान में आते है, वाकी जाने कितने मामले बिना
प्रतिरोध और शिकायत के दफ़न हो जाते हैं.
इन घटनाओं के पीछे दलितों में
सामाजिक-राजनीतिक जागरूकता और थोड़ी बहुत आर्थिक मज़बूती, बराबरी की चेतना ‘जिम्मेदार’ लगती है.
मनुवादी-सामन्ती ताकतों को यह कतई मंजूर नहीं कि सदियों गुलाम जाति आज़ादी की मांग
करे. बराबरी से रहना, जीना, चलना, सामन्ती सत्ता को मंजूर नहीं हैं. इसलिए दलितों को अपने यहाँ घोड़ी पर चढ़ कर
बारात लाना हो या दलितों के द्वारा गैरदलित से प्रेम करना हों या अन्य कोई कार्य
वर्चस्वशाली ताकतों को चुनौतीपूर्ण और बराबर वाला लगता हैं, तो इन सामन्ती ताकतों को उन्हें ‘होश में लाने के लिए और
उनकी सही जगह पर रखने के लिए हमले करने पड़ते हैं. समाज में यह सामन्ती विचार बहुत
गहरे से जड़ जमा चुका है. उन्हें गुलाम बना कर रखना. उन पर शासन करना प्राकृतिक देन
समझी जाती है. उनकी यह हालत सहीं है, वह इसी लायक हैं.’ सामन्ती ताकतों द्वारा दलितों को
अपने नियंत्रिण रखने के लिए उन पर क्रूर और बर्बर हमला करते है. जिससे उनमें लम्बे
समय तक डर और आंतक बना रहे और उनमें
बराबरी की आकांक्षा न पनपे.
इन गरीब, दलितों पर हमलों के समय
शासन-प्रशासन क्या करता है? शासन सत्ता में सामन्ती हमलावरों के जाति-वर्ग के लोग ही
रहते हैं. चाहे वह पुलिस हो, जाँच अधिकारी हो या फिर न्यायालय हो,हर जगह इन्हीं के लोग रहते हैं.
जिससे इन हमलावरों को संरक्षण और समर्थन मिल जाता है. इस कारण से हत्यारें सजा
पाने से बच जाते हैं. इस नागौर वाली घटना में भी यहीं हो राह है. पुलिस के लोग और
जाँच अधिकारी भी जाट समुदाय से ही आते है और हमलावर भी जाट हैं. पिछले कुछ सालों
के दलित नरसंघाहरों को देख सकते है जिसमें बथानी टोला, लक्ष्मणपुर बाथे, मियांपुर, प्रमुख हैं जिनके
हत्यारों को सजा नहीं मिली. इनके दोषी कोर्ट के माध्यम से बरी हो गए.
भारतीय राज्य सत्ता और उसके संस्थान
क्यों उनके (दलितों) हत्यारों को छोड़ देता है? भारतीय राज्य सत्ता सामन्ती
संरचना के गठजोड़ से मिल कर बनी है. इसलिए दलितों का उत्पीड़न,शोषण के समय राज्य सत्ता कुंडली
मार के चुप रहती है या उत्पीड़न,शोषण करने वाली ताकतों का खुला समर्थन करती है. राज्य सत्ता
पर उत्पीड़ित जनता के दबाव बनाने पर दोषियों पर दिखावे भर के लिए हल्की-फुल्की
धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की जाती हैं. साक्ष्यों को मन-माफ़िक तरह से तोड़-मोड़ कर
इस्तेमाल किए जाते हैं,जरुरत पड़ने पर उन्हें मिटा भी दिया जाता है. साज़िश के तहत
एस.सी/एस.टी एक्ट में इस तरह के केस दर्ज नहीं किये जाते. दलितों के हत्यारों को
अपराध से मुक्त कर दिया जाता है. न्याय व्यवस्था भी उत्पीड़ित जनता के खिलाफ है. यह
लम्बा और लचीला न्याय भी सामन्ती ताकतों के पक्ष में रहता है. यह लचीला न्याय
राज्य सत्ता से जुड़े लोगों के लिए हैं. यह
पता तब चलता जब गरीब, दलित व अन्य शोषित-उत्पीड़ित जनता अपने ऊपर होने वाले जुल्मों का विरोध करती
हैं. तब यही राज्य सत्ता उन पर कठोर संगीन धाराएँ लगा कर तुरंत सजा देने की फ़िराक
में रहती है. यहाँ तक झूठे मुक़दमें लगाकर सालों अपनी जेलों में सडाती है और अपनी
जरुरत के अनुसार उत्पीड़ित जनता की हत्या भी कर देती है. इस तरह के बहुत सारे
उदाहरण बिहार,झारखण्ड,छत्तीसगढ़,उड़ीसा में मिल जाएगे.
अभी तक हमारे देश में आधुनिक
कानून का भी राज्य स्थापित नहीं हो पाया हैं. इसलिए हमारे देश के बड़े भाग में इस
तरह की घटना लगातार होती है. यह ताकते राज्य सत्ता से डरने की जगह शोषित-उत्पीड़ित
जनता के संगठित होने और उसके संगठन से डरती हैं. इस तरह का उत्पीड़न और हमले कब और कैसे
रुकेगे? हमारे
देश की शोषित-उत्पीड़ित जनता संगठित होकर हमलावरों को खदेड़ कर वास्तविक जनतंत्र
स्थापित कर देगी. जहाँ जाति-वर्ग-लिंग-रंग के भेदभाव विहीन समाज होगा. तब यह हमले
रुक सकते हैं.
सुशील कुमार,शोध छात्र,जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय,दिल्ली,सम्पर्क सूत्र-09868650154
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