चित्तौड़गढ़ से प्रकाशित ई-पत्रिका
वर्ष-2,अंक-22(संयुक्तांक),अगस्त,2016
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कविताएँ: बिपिन कुमार पाण्डेय
नायक- प्रतिनायक
इतिहास के पन्नों में गुमशुदा
इतिहास के पन्नों में गुमशुदा
कोई कहानी
बस कहानी नहीं
होती
और ना ही पन्नो में गुम
नायक प्रतिनायक
केवल पात्र होते
हैं
उन्होंने भी जिए
होते हैं तमाम वो आम और खास पल
जिन्हें दुनियाँ
के ही कुछ लोग बाँटते रहे हैं
गर्व, लज्जा, संकोच, कमजोरी, वीरता के खांचों में अनादि काल से अब तक
ताकि पूरा हो सके
उनका गहन स्वार्थ , तृप्त हो सके
अथाह लिप्सा
इसीलिए बनते
रहतें हैं नायक, प्रतिनायक
रची जाती हैं
नयी.नयी कहानियाँ
ताकि हम सब कुछ
भूल इन्ही में खो जाया करें
मेहनतकश
स्त्रियाँ
जीवन रोपती हैं
मेहनतकश स्त्रियाँ
अक्सर नेपथ्य में
रहते हुए
जब.तब ढलक जाती
है माथे से पसीने की बूंदे
फिर भी वे चलती
रहती
हवा सी बहते हुए
फेरकर अपने करो
को
डाल देती धरा पर
अमृत
मुस्कुराकर
फैलाती खुशियाँ
नदी सी बहते हुए
जीवन रोपती हैं
मेहनतकश स्त्रियाँ
अक्सर नेपथ्य में
रहते हुए
कौन जात के हो ?
उन्होंने
कभी अनायास
कभी सायास
हर मिलने वाले से
पूछा
कौन जात के हो ?
क्यूंकि उनकी नजर में
आपकी कमाई, चरित्र, खान.-पान ,
रहन.सहन
सब कुछ
इस बात से तय होता है कि
आप कौन जात के
हो
अगर आपकी जाति
उनके मन की ना हुई
तो पक्का मान लीजिये
मकान, समान, सम्मान
सब से वंचित हो
सकते हैं आप
फिर आप ढोल पीटते
रहिएगा संविधानए समाज और सामजिक न्याय का
जब
जायज.नाजायज
प्रेम.घृणा,सच.झूठ
सब एक होने लगे
जब
देश के हुक्मरान
धर्म के ठेकेदार
चद्दर तान सोने
लगे
तब समझ लेना ए
दोस्त
प्रतिरोध का समय
है आने वाला
लड़ पड़ना उससे
पहले कि
कोई तुम्हे खुद
की जड़ो से उठाने लगे
आत्महत्या
आदमी ही तो हूँ
मै
देवता तो नहीं, जिसमे कोई कमजोरी नहीं
या शायद कमजोरी
देवताओं में भी होती हो पता नहीं
आदमी होने के
नाते कभी कभार मन करता है आत्महत्या करने का
जब मै ज्यादा भावुक
हो जाता हूँ
प्रेम में धोखा
मिलता है
बहन के रीते
चेहरे से उदासी टपकती है
पत्नी की सूखी
कलाई दिखती है
या फिर व्यापार
ठप पड़ जाता है
मरना चाहता हूँ
मै तब भी खुद को
खत्म कर लेना चाहता हूँ
जब कोई अपना छोड़
जाता है
खेतों में फसले
सुख जाती हैं
और गाँव का साहूकार
मेरे खेत हड़प लेना चाहता है
मेरे बेबस आंखो
के आँसू किसी को दिखाई नहीं देते
और बहिष्कृत कर
दिया जाता हूँ इस आधुनिक समाज द्वारा
तब.तब जीने की
अपेक्षा मरना आसान लगता है
और हां समाज के
पैरोकारों
मत पढ़ाया करो यह
अदम्य इच्छाशक्ति और जिजीविषा का पाठ
बंद महलों में
सोते और मालपुए खाते, जिन्दगी के हसीन सपने देखने वालों
तुम क्या समझोगे
कि सपनो का मरना क्या होता है
और जब सपने मरते
है तो जीना कैसा लगता है
जब.जब नहीं लड़ी
जाती आगे की लड़ाई
तो मरना अच्छा
लगता है
नफ़रत
तुम्हारा जहर
उसे जीवन देता है
दोस्त
तुम्हारे कट्टरपन
की खाद से
वह और पल्लवित
होता है
और तुम समझ रहे हो
कि
समाज का भला हो
रहा है
देखते जाओ
धीरे.धीरे ऐसा
होगा
जब तुम दोनों एक
दुसरे से नफरत करते.करते
एक दूजे सा हो
जाओगे
एक भी अंतर नही
बचेगा तुम दोनों के बीच
तब नफरत की
विषबेल ही बची रहेगी
जो निरंतर पुष्ट
होगी तुम्हारे लहू को पीकर
और तुम दोनों
कोसते रहोगे उस समय को बार.बार
जिस पल एक दूजे
के लिए दिलों में
नफरत को पाला था
अब और नहीं
चुप रहना
सब सहना
अब और नहीं
घुट.घुट जीना
गम को पीना
अब और नहीं
जिन्दा हो रहा
हूँ मै
तमाम बंदिशों को
भूलकर
आँखे मूंदे
मुर्दा रहना
अब और नहीं
टकराऊंगा बिन
झिझके
समय के झंझावातो
से
बाधा देखना रुक
जाना
अब और नहीं
नहीं भटका पायेगा
अब कोई
धर्म जाति के नाम
पर
मानवता रुदन
करेगी
अब और नहीं
बिपिन कुमार पाण्डेय
शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत,बाड़मेर,राजस्थान
संपर्क 09799498911,bipin.pandey @azimpremjifoundation.org
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