चित्तौड़गढ़ से प्रकाशित ई-पत्रिका
वर्ष-2,अंक-22(संयुक्तांक),अगस्त,2016
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ये पागल क्यों है ? / दिनेश पाल
आसमान में लालिमा छाई हुई थी। सूर्य नज़र से दूर जा रहा था और मैं एक गाँव के रास्ते अपने
गाँव को
जा रहा था। मार्च माह के पहले रविवार का
खुशनुमा दिन ढल रहा था। मन में बार-बार विचार बदल रहे थे। कदमों की तीव्रता बढ़ती
जा रही थी। गली के मोड़ पर पहुँचा तो देखा कि आगे की गली में छोटे-छोटे लड़के
हो-हल्ला कर रहे हैं और एक बूढ़ी औरत गाली पे गाली दिये जा रही है। मैं उस बचकाने
माहौल को खड़े-खड़े निहारने लगा। बूढ़ी औरत गाली देते हुए आगे बढ़ती जा रही थी और
बच्चे पीछे-पीछे चिढ़ाते जा रहे थे, बाद में मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। थोड़ी देर बाद एक सज्जन आये और मुझे देख
कर ठहर गये। अंजान राहगीर समझ पूछने लगे-‘क्यों भाई, क्या हुआ?
मैं संकोच करते
हुए बोला-’अच्छा यह बताइए,
ये सब बच्चे उस औरत को
क्यों परेशान कर रहे हैं?‘
‘अरे, वह पागल है इसीलिए ये सब लड़के उसे परेशान करते
रहते हैं’-उस सज्जन व्यक्ति
ने मुह बिचकाते हुए कहा।
‘इस औरत के घर
वाले क्यों नहीं बोलते?’-मैंने पूछा।
उसने तुरन्त जवाब
दिया-’इसके घर वाले
होते तो यह पागल क्यों होती।‘
‘मतलब? मैं समझा नहीं‘ मैंने आश्चर्य से पूछा।
फिर उस व्यक्ति ने मुझे एक किनारे ले जाकर चबुतरे पर बैठाया और बताने लगा- इस औरत को एक ही बेटा था। उसका नाम था रामभजन। उसके दो बच्चे थे। उसका परिवार भूमिहीन था। चार गाय रखा था उन्हीं को बेचकर अपना व परिवार का पेट पालता था। नयी सरकार बनने के बाद सारे चारागाह को कम्पनी खोलने के लिए घेर दिया गया। मवेशियों को खूँटे पर बाँध कर ही खिलाना पड़ता। रामभजन किसी तरह गायों के लिए चारा का प्रबंध तो कर लेता परन्तु उसके यहाँ बैलों की संख्या भी बढ़ने लगी। बैलों को चाहकर भी बेच नहीं पाता था क्योंकि कोई खरीदार नहीं था। अब किसानों को बैल की जरुरत नहीं है क्योंकि वे गाड़ी के सहारे खेती करते है। गोमांस पर प्रतिबंध लगाया गया है, कसाई (गाय काटने वाला) पर सरकार की कड़ी निगरानी है इसलिए वे भी खरिदने से कतराने लगे।
दिन पर दिन रामभजन की गरीबी बढ़ती गई कयोंकि जिस
आमदनी से अपने परिवार का पेट भरता था उसी आमदनी में से अब मवेशियों के जिए चारा खरीदना
पड़ रहा था। एक दिन रामभजन ने तंग आकर सभी बैलों और बछड़ों को गाँव के काली माई को
चढ़ाकर तथा कान काटकर खुल्ला छोड़ दिया। चढ़ाया हुआ जानवर अपने समाज में सामाजिक मान
लिया जाता है। दूसरे दिन सुबह-सुबह गाँव के तथा अगल-बगल के कई जमींदार लठैतों के
साथ उसके दरवाजे पर बैलों को लेकर पहुँचे क्योंकि वे बैल उनके खेतों में फसल चर
रहे थे। रामभजन इन्हें देखते ही काँपने लगा और हाथ जोड़कर चैखट से बाहर आया। बाहर
आते ही उसके ऊपर लाठियाँ बरसने लगीं। उसकी चीख सुनते ही बीबी-बच्चे भी बाहर आये और
रामभजन से लिपट गये। उन्हें भी इन हरामखोरों ने नहीं बख्शा। खैर, किसी तरह रामभजन की जान बच गयी। सारे बैलों व
बछड़ों को उसके दरवाजे बाँध कर चले गये। धीरे-धीरे रामभजन के खाने के लाले पड़ने
लगे। एक तरफ कमजोर होती शरीर और दूसरी तरफ मवेशियों का बोझ।
एक दिन सुबह-सुबह राभजन पास के अस्पताल में
गया। पचास रुपया फीस जमा करके डॉक्टर के
पास गया।
‘बताओ क्या
परेशानी है?‘- डॉक्टर ने पूछा।
‘साहब! मेरी दो
गायें इस हफ्ते बच्चे गिराने वाली हैं।‘- रामभजन डरते हुए बोला।
डॉक्टर झल्लाते
हुए-‘अरे मूर्ख! तुम्हें क्या
हुआ है यह बताओ।‘
’साहब! दोनों
गायों का अलट्रासाउण्ड कराना था, यदि किसी के पेट में बछड़ा होगा तो उसका उपाय करुँगा।‘ -रामभजन ने सहमते हुए बताया।
डॉक्टर गुस्से
में लाल-पीला होते हुए- ‘गार्ड! गार्ड! इसे बाहर भगाओ। यह उलट्रासाउण्ड के नाम पर मुझे फंसाना चाहता
है। यह मुझे पशु डॉक्टर समझ रखा है।‘
गार्ड रामभजन को धकीयाते हुए अस्पताल से बाहर
कर दिया। गरीब व असहाय रामभजन गिड़गिड़ाता रहा परन्तु कोई सुना नहीं। अन्ततः थके
पाँव निराश मन से घर चला आया। उसके पाँचवें दिन पति-पत्नी मशीन से काटा (पशुचारा)
काट रहे थे तभी उनका बेटा दौड़ता हुआ आया- ‘बाबू! बाबू! गाय को देखो ना, क्या तो हो रहा है।‘ दोनों मियाँ-बीबी खुशी के मारे दौड़ते हुए गये।
उनके पहुँचने से पहले गाय बच्चा गिरा चुकी थी। रामभजन उसे खड़ा करते हुए देखा तो पता चला कि यह बछड़ा
है, दोनों खामोश हो गये। काटो
तो खून नहीं। दूध तो देगी परन्तु बाद में एक बछड़ा कहाँ जाएगा। कुछ पहले से ही
मौजूद हैं। न किसी को बेच सकता था और न ही किसी को छोड़ सकता था। रात में पति-पत्नी
ने बड़ा मंथन किया। पत्नी बोली- ’बछड़ा को मुआ देते हैं फिर गाय को सूई देकर दुह लिया जाएगा।‘
‘अरे पागल! पहले
तो गौहत्या अपने ऊपर लगेगा फिर सूई भी नहीं मिलती।‘- रामभजन बोला।
‘अच्छा, जब गाय दूध देना बंद कर देगी तब बछड़ों को कहीं
दूर छोड़ दिया जाएगा।‘ पत्नी इतना बोलते
ही रो पड़ी और साथ में रामभजन भी रोने लगा। दोनों की शरीर में कम्पन होने लगा।
उन्हें ऐसा लगा जैसे जमींदार लठैतों के साथ दरवाजे पर खड़े हैं। दोनों सीहर कर
एक-दूसरे से लिपट गये। उनके आँखों के सामने अँधेरा ही अँधेरा दिखने लगा। दोनों
अन्दर से टूट गये और अपने आप को हारा हुआ महसूस करने लगे। अपने सोये हुए बच्चों को
गोद में लेकर इस दम्पत्ति ने खुद को आग लगा लिया। उसी विकराल मौत ने इस बुढ़िया को
पागल बना दिया है।
दिनेश पाल
शोधार्थी,हिन्दी विभाग,का॰हि॰वि॰वि॰,वाराणसी
शोधार्थी,हिन्दी विभाग,का॰हि॰वि॰वि॰,वाराणसी
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