चित्तौड़गढ़ से प्रकाशित ई-पत्रिका
वर्ष-2,अंक-22(संयुक्तांक),अगस्त,2016
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’टेपचू’ कहानी में अभिव्यक्त जादुई यथार्थवाद / नीला गंगराजु
चित्रांकन
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इसमें संदेह नहीं है कि
जादुई यथार्थवाद की अपनी एक भारतीय परंपरा भी रही है। इसके बावजूद यह स्वाभाविक है
कि उदयप्रकाश की शिल्पविधि पर लैटिन अमेरिकी जादुई यथार्थवाद का भी असर पड़ा हो। यह
जरूर है कि उदयप्रकाश ने जादुई यथार्थवाद का रचनात्मक इस्तेमाल एक शिल्पविधि के
रूप में किया है, विचारधारा के रूप में
नहीं। उनकी कहानियों की सबसे अच्छी बात यह है कि उनके शिल्प और जटिल बनावट को
एक बार समझ लेने के पश्चात उनकी कहानियों को समझने में दिक्कत नहीं होती है। ये
कहानियाँ आम पाठकों को एक नए ढंग का कथात्मक आनंद देती हैं और उन जटिल स्थितियों
को भी उजागर करती हैं जिनमें पाठक कैद होता हैं। इनकी कहानियों में आम मनुष्य जीवन
की ही तरह आशा और निराशा के साथ जीवन जीते चरित्र नजर आते हैं। उनकी आरंभिक
कहानियों में ‘टेपचू‘, और ‘हीरालाल का भूत‘ उल्लेखनीय हैं। उदयप्रकाश की जिन आरंभिक कहानियों में वर्गचेतना और
आशावाद की झलक मिलती हैं उनमें प्रमुख हैं ‘टेपचू‘ और हीरालाल का भूत‘
।
‘टेपचू’ में जिजीविषा को व्यक्त
करने का जो तरीका अपनाया गया है उससे तीक्ष्ण अनुभूति का संचार होता है उसे
सीधा सपाट ढंग से व्यक्त नहीं किया जा सकता| ‘टेपचू’ में दुर्धर्ष जिजीविषा है| प्रारम्भ से ही यह हमें विभिन्न घटनाओं में देखने
मिलता है| सात-आठ साल का ‘टेपचू‘ बिना बाप का बेटा है,जिसे उसकी माँ फिरोजा ने
बड़ी तकलीफ से पाला-पोसा है। एक दिन ‘टेपचू’ आधी रात बारह बजे अकेले
भूतही बगीचा जाता है और वहां से लूस ताप रही मां के लिए अमिया ले आता है| उस बगीचे से, जहां रात-बिरात उधर जाने वाले लोगों की घिग्घी
बन्ध जाती थी| दूसरी बार दोपहार निर्जन तालाब में भूखे-प्यासे
कमलगट्टे के लोभ में डूबते –डूबते बचा| उसने यहां भी मौत को करारी शिकस्त दी| तीस बार ताड़ी पीने की चाह में विषैले करैत सांप
को पकड़ बैठा और पूरी ऊंचाई के ताड़ पेड़ से गिरा| ताड़ी भरा मटका फूट गया| करैत एंठ गया| लोगों की निगाह में टेपचू भी मर गया, किन्तु वह वह बच निकाला| रोटी पानी की जुगाड़ में पंडित भगवानदीन के शोषण
और प्रताड़ना का शिकार हुआ| हाड़-तोड़ मेहनत, बदले में गाली-गलौज मारपीट , खाने के लिए सडा हुआ बासी भात| किसनपाल के गुंडों द्वारा पीटकर सोन नदी में
फेंकने पर ही मरता है। वह शहर जाकर मजदूरों की हक की लड़ाई में पुलिस के अत्याचार
या गोली से भी नहीं मरता है।
‘टेपचू‘ एक ऐसे वर्ग का चरित्र है, जो सामंती व्यवस्था से लेकर पूंजीवादी व्यवस्था
तक लड़ता हैं । हर युग में टेपचू‘ जैसे लोगों के माध्यम से
यह संघर्ष चेतना जीवित है बची रहती हैं ‘टेपचू‘ जनता की ताकत है। वह बदलने और लड़ने की ताकत है। वह एक ऐसी चेतना है, जो कभी नष्ट नहीं होती। संघर्षजीवी समुदाय की कभी
मृत्यु नहीं हो सकती, ‘‘गांव वालों को उसी दिन विश्वास हो गया कि हो न हो टेपचू साला जिन्न है,वह कभी नहीं मर सकता|” 2
यहां तक ‘टेपचू‘ का संघर्ष निजी है| ‘टेपचू‘ अपना खून निचोड़ कर , नसों की ताकत चट्टानों में तोड़ कर जो किसी के लिए
भी जान लेवा हो सकते थे खरा होकर बैलादिला पहुंच जाता है| बैलडिला आकर ‘टेपचू‘ का संघर्ष वर्ग संघर्ष में परिवर्तित हो जाता है| उसका संघर्ष निजी न होकर सामूहिक हो जाता है – ‘काका मैं अकेले लड़ाइयां लड़ी हैं| हर बार मैं पिटा हूं| हर बार हारा हूं| अब अकेले नहीं , सब के साथ मिलकर देखूंगा कि सालों कितना
ज़ोर है|”3 बैलडिला में उत्पादन कम करने के लिए प्रबंधन की
ओर से मजदूरों की छंटनी का एक तरफ निर्णय लिया जाता है जिसका मजदूर यूनियन पुरजोर
विरोध करता है| ‘टेपचू‘ कामरेड है| मजदूर यूनियन ने विरोध में
हड़ताल का नारा दिया| सारे मजदूर काम पर नहीं गए| वह और गुस्से का विशाल समंदर पछाड़े मार रहा था| उसकी छाती उघड़ी मजदूरों की लड़ाई का प्रतीक बन
जाता है| उदय जी इस कहानी में एक जगह लिखते है – ‘उसकी हंसी के पीछे घृणा, वितृष्णा हुई थी| कुर्ते के बटन टूटे हुए थे| कारखाने के विशालकाय फाटक की तरह खुले हुए कुर्ते
के गले के भीतर उसके छाती के बाल हिल रहे थे , असंख्य माजदूरों की तरह , कारखाने के मेन गेट पर बैठे हुए ‘टेपचू‘ ने अपने कंधे पर लटके हुए
झोले से पर्चे निकाले और मुझे थमाकर तीर की तरह चला गया|”4
पुलिस
आती है यूनियन के आफ़ीस पर छापा मारती है| मजदूरों और पुलिसों में
हाथापाई हुई| पुलिस संख्या में कम थे मजदूर अधिक| ‘टेपचू‘ ने दरोगा को नंगा कर दिया| अगले दिन पुलिस आई टेपचू को गिरफ्तार किया गया| उस पर पुलिसिया दमन का यातनापूर्ण दौर चलता है| जूते , लात , घूंसे से लेकर तड़ातड़ डंडे चलाते| यातना की सीमा यहीं पूरी
नहीं होती| ‘टेपचू‘ को पुलिस जीप के पीछे बांध
कर डेढ़ मील कच्ची सड़क पर घसीटा गया| लाल टमाटर की तरह जगह – जगह उसका गोश्त बाहर झांकने लगा| उसकी कनपटी पर गूमड़ उठ आया
था और पूरा शरीर लोथ हो रहा था| जगह – जगह लहू चूहचूहा रहा था| ‘टेपचू‘ की जिजीविषा ,प्रतिरोध और स्वाभिमान यहां एक कप कडक चाय की मांग करती है| शहर से दस मील बाहर बुरू
तरह लथर चुके ‘टेपचू‘ को सुनसान जगह मेम ले जाकर
जीप से उतारा जाता है| लंगड़े, बूढ़े ,बीमार बैल की तरह खून में
नहाया हुआ टेपचू अपने शरीर के घसीट रहा था| वह खड़ा तक नहीं हो पा रहा
था ,चलाने और भागने की तो बात दूर थी| अचानक दस की गिनती खत्म हो
गई| तूफानी सिंह ने निशाना
साधकर पहला फायर किया-धांय| गोली ने ‘टेपचू‘ की कमर में लगी और वह रेत
की बोरे की तरह जमीन पर गिर पड़ा| उसकी लाश को संदूक में बंद कर दिया गया| ‘टेपचू‘ की लाश पोस्टमार्टम केलिए
अस्पताल भेजी गई और वह यथार्थ की सीमाओं को लांघता हुआ स्टेचर से उठ खड़ा होता है
और कहता है – ‘डांक्टर साहब,ये सारी गोलियां निकाल दो| मुझे बचालो| मुझे इन्ही कुत्तों ने
मारने की कोशिश की है|”5
इस
प्रकार ‘टेपचू‘ कभी मर नहीं सकता, क्योंकि टेपचू एक विचार है, संघर्ष है, प्रतिरोध है, आक्रोश है, जिजीविषा है| ऐसा विचार जो सर्वहारा ,दलित,पीड़ित,शोषित और समाज के अंतिम
छोर के सबसे निचले व्यक्ति के वाजिब और वैधानिक अधिकारों के लिए आस्थावान है|ऐसा संघर्ष जो शोषण,यातना,प्रताड़ना के खिलाफ जीवन भर चलता है| ऐसा प्रतिरोध जो सत्ता और
व्यवस्था की निरंकुशता के समक्ष विनीत होना नहीं जानता| ऐसा आक्रोश जो सामंती दमन, पूजूवादी अत्याचार और
साम्राज्यवादी उत्पीड़न की कुस्तीत नीतियों के विरुद्ध सदा हथियार उठाए रहता है| ऐसी जिजीविषा जो मौत से
हार नहूम मानती और अपनी अपराजेयता तथा युयुस्ता में हर बार मृत्यु को चकमा दे जाती
है|
डां॰
रामेश्वर पवार ‘टेपचू‘ कहानी के संदर्भ में अपना
मत व्यक्त कराते हुए कहते है-‘भूखा पेट व्यक्ति के सारे
भय को भगा देता है| उसे मौत का डर होता नहीं| जिसमें जिजीविषा इतनी
प्रबल होती है कि मारकर भी वह जी उठता है| मरने से घबरानेवालों को तो
पहले ही मौत आती है| मृत्यु का डर जिसमें से निकाल गया वह जिन्न की
तरह कारी करता है|”6
यह कहानी यथार्थ की संभावना का विस्तार करती है| इनमें व्यक्त यथार्थ और
संघर्ष का स्वरूप मार्क्सवादी चिंतन-प्रणाली से हूबहू मेल नहीं खाती| कुछ आलोचकों ने उदयप्रकाश
की इस प्रवृत्ति को रोमानीपन की संज्ञा दी है जो उचित नहीं प्रतीत होता| कभी-कभी जीवन की जटिल
परिस्थितियों को चित्रित करने के लिए लेखक को नए-नए तरीके खोजने पड़ते हैं| उदयप्रकाश ने जादुई यथार्थवाद का प्रयोग यथार्थ
से भागने के लिए नहीं बल्कि तात्कालिन यथार्थ को अधिक सूक्ष्म स्तर पर अभिव्यक्ति
करने के लिए किया है| यह यथार्थ से पलायन नहीं
उससे टकराने की एक नई कोशिश है।
संदर्भ-सूची :
1.
उदय प्रकाश, अपनी उनकी बात,
वाणी प्रकाशन 2008,
पृष्ठ-27
2.
उदय प्रकाश दरियाई घोड़ा, वाणी प्रकाशन, 2006 पृष्ठ-107
3.
उदय प्रकाश दरियाई घोड़ा, वाणी प्रकाशन, 2006 पृष्ठ-110
4.
उदय प्रकाश दरियाई घोड़ा, वाणी प्रकाशन, 2006 पृष्ठ-111
5.
उदय प्रकाश दरियाई घोड़ा, वाणी प्रकाशन, 2006 पृष्ठ-115
6.
डां॰ रामेश्वर पवार – नवम दशक की कहानियों का
समाजशास्त्रीय अध्ययन, पृष्ठ-151
नीला गंगराजु
घर नं: 5-116, नई साईबाबा मंदिर के पास, कलिकिरी (पोस्ट &मंडल) चित्तूर जिला ,आंध्रप्रदेश
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संपर्क सूत्र:- 09441572750 ईमेल:- neelagangaraju@gmail.com
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