धरोहर:मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर 'साँची' -डॉ.मधुमती नामदेव

    चित्तौड़गढ़ से प्रकाशित ई-पत्रिका
  वर्ष-2,अंक-23,नवम्बर,2016
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 धरोहर:मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर 'साँची' -डॉ.मधुमती नामदेव

               भारतीय संस्कृति सनातन है। इस संस्कृति में सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् की अभिव्यक्ति एक साथ दिखाई देती हैइसी पर हमारा सम्पूर्ण जीवन आधारित है। यदि समग्र रूप से देखें तो हमें भारतीय जीवन के यथार्थ, मानवीय चिन्तन, व्यक्ति के सौन्दर्य-बोध और राष्ट्र के ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक विरासत की अभिव्यक्ति कला के द्वारा दिखाई देती है। कला व्यक्ति और देश की पहचान को मूर्तरूप प्रदान करती है। कलाओं में संगीत, चित्रकला, स्थापत्य कला और मूर्तिकला में भारत की धर्मप्रधान आत्मा की अभिव्यक्ति पाई जाती है। भारत की स्थापत्य कला और मूर्तिकलाओं के द्वारा ही सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित साँची के स्तूप उस युग के जीवनकाल को दर्शाकर सत्यम् की अभिव्यक्ति करते हैं, तो दूसरी ओर साँची के स्तूप के अलावा वहाँ के मंदिर एवं बुद्धकी अस्थियाँ शिवम् (धर्म) में आस्था प्रकट करती हैं। साँची के स्तूप के स्तंभों और तोरण द्वार की पारम्परिक अलंकृत शैली हमारे जीवन में सुंदरम् की अभिव्यक्ति व्यक्त करती हैं। कहा जाता है इन स्तूपों के तोरण द्वार के दोनों स्तंभों और आड़े पटिये पर बौद्ध धर्म से संबंधित चित्र और मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई हैं। यह लाल रंग के बलुए पत्थर का बना हुआ है।


                साँची भारत के मध्यप्रदेश के रायसेन जिले का छोटा सा कस्बा है। यह खजुराहों के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटक स्थलों में है। साँची के स्तूप स्थापत्य कला, मूर्तिकला, एवं शिल्पकला की दृष्टि से विश्व की अनमोल धरोहर हैं। इसे यूनेस्को द्वारा सन् 1989 में विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त हुआ। यह भारतीय स्थापत्य कला और वास्तुकला की नायाब मिसाल है। बलुआ पत्थरों पर तराशे सुंदर स्तूपों की नगरी है साँचीक्योंकि यहाँ के तीन स्तूप और चालीस मंदिर विश्व में एक साथ एक जगह अन्यत्र दुर्लभ हैं। साँची के टीले में लगभग पचास स्मारक स्थल ज्ञात हैं जिनमें से तीन स्तूप और कई मंदिर हैं। साँची स्तूपों की कला प्रख्यात है। साँची से 5 मील दूर सोनाली के पास 8 बौद्ध स्तूप हैं और साँची से 7 मील दूर भोजपुर के पास 37 बौद्ध स्तूप हैं। साँची का प्राचीन नाम कंकेनवा ककान्या है। बौद्ध कला की सर्वोत्तम कृति साँची में स्तूप, तोरण और स्तम्भ शामिल हैं। यहाँ के विश्व प्रसिद्ध स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई.पू. से 12वीं शताब्दी ई.पू. के मध्य करवाया था। मध्यप्रदेश के छोटे से गांव साँची में बौद्ध स्मारक के रूप में बने हुए स्तूप हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। यह भारतीय संस्कृति के प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। साँची के इस मुख्य स्तूप को सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई. पू. में बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि इसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। ये स्तूप भारत की प्राचीन वास्तुकला और मूर्तिकला के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। यहाँ के स्तूप पत्थरों से निर्मित हैं, किन्तु काष्ठ की शैली में बनाये गये तोरण, वर्णात्मक शिल्पों से परिपूर्ण हैं, जो न केवल उस युग की शिल्प कला की उत्कृष्ठता के परिचायक हैं, वरन् हमारे जीवन शैली को भी सिद्ध करने में सिद्धहस्त प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनमें बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं, दैनिक जीवन शैली को रूपक के रूप में दर्शाया गया है। बुद्ध को मानव आकृति में सभी जगह नहीं दर्शाया गया है कहीं उन्हें घोड़े जिस पर वे अपने पिता का घर त्याग करके गये थे, कहीं उनके पद-चिह्न और बोधिवृक्ष के नीचे चबूतरा आदि के रूपक के रूप में कारीगरों ने दर्शाया है। यहाँ के स्तम्भ पारम्परिक रूप से अलंकृत और नक्काशीकृत हैं इनमें प्राचीन भारतीय जीवन शैली के सभी रूप दिखाई देते हैं। पशु, पक्षी तथा पेड़ पौधों का जीवन्त रूप दिखाई देता है इसमें जानवरों के एक चिकित्सालय का भी चित्रण है। जिसमें तोते की विकृत आँख का वानर द्वारा परीक्षण किया जा रहा है। यहाँ की स्थापत्य कला में हाथी, घोड़े, मोर, फूल, कलश, मानव मूर्तियाँ जैसे घोड़े पर सवार पुरुष, परकोटे से झांकते नर-नारी एवं बासुरी वादक उस युग के जीवनचर्या का जीता जागता उदाहरण है।

साँची के स्तूप की खोज ब्रिटिश अधिकारी कर्नल टेलर ने सन् 1818 में की। इसका जीर्णोद्धार 1912 से 1919 के बीच जॉन मार्शल की देखरेख में हुआ और 1989 को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया। साँची में स्तूपों और मंदिरों के अलावा बौद्ध विहार भी थे। यहाँ एक सरोवर भी है जिसकी सीढ़ियाँ बुद्ध के समय की कही जाती हैं। साँची बौद्ध तीर्थ स्थलों की श्रेणी में प्रमुख है। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने अपनी प्रिय पत्नी देवीके कहने पर ही साँची के सुंदर स्तूप बनवाया था। देवी, विदिशा के एक श्रेष्ठी की पुत्री थी। बौद्ध धर्म व उसकी प्रचार-प्रसार हेतु बौद्ध का संदेश सम्पूर्ण दुनिया तक पहुँचाने के लिये सुनियोजित योजना के तहत इसका निर्माण किया गया। गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके शारीरिक अवशेषों पर स्तूपों का निर्माण किया गया। ये स्तूप उन स्थानों पर निर्मित किये गये, जहाँ गौतम बुद्ध का पदार्पण हुआ था, अतएव ये स्तूप बौद्ध तीर्थ स्थलों के रूप में विकसित हुए, प्रारंभिक काल में केवल 8 स्तूपों का निर्माण किया गया, किन्तु कालान्तर में इनकी संख्या बढ़ गई। बौद्ध जनश्रुतियाँ अशोक को 84 हजार स्तूपों के निर्माता के रूप में स्मरण करती हैं।

इन स्तूपों की कलाकृतियों में हमें उस काल के जीवन दर्शन, धर्म की छवि दिखाई देती है। जिसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

1.            उस युग के जीवन दर्शन को वर्णन से संबंधित पशु-पक्षियों, मानव आदि की कलाकृतियों जो तोरण द्वार और स्तम्भों में उत्कीर्ण है।
2.            स्तूप के आंतरिक स्थल की कलाकृतियाँ जो अनालंकृत होते हुए भी यथार्थवादी चित्रण करती हैं।
3.            बौद्ध के स्वयं के जीवन से संबंधित प्रतीकात्मक कलाकृतियाँ।

इन स्तूपों का वर्णन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रति स्वयं की आस्था और उसके प्रचार-प्रसार हेतु किया जो आज भी विदेशों में भारतीय संस्कृति का परचम फैला रहे हैं। इसकी गणना विश्वविद्यालय बौद्ध तीर्थ स्थलों के रूप में की जाती है एवं बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायी श्रृद्धा के साथ यहाँ आते हैं यह देशी व विदेशी पर्यटकों के विशेष आकर्षण के केन्द्र हैं।

                ये तीनों स्तूप स्थापत्य कला और मूर्तिकला की विश्व प्रसिद्ध धरोहर हैं इनके तोरणद्वार पर जहाँ एक ओर बुद्ध के जीवन की जन्म से मोक्ष प्राप्ति की घटनायें अंकित हैं तो दूसरी ओर जातक कथायें भी इन प्रस्तरों पर अंकित हैं। बड़े विहार के अंदर बुद्ध के शिष्य द्वय सारिपुत्र एवं महाभोगलायन के अस्थि अवशेष काँच की मंजूषा में रखे हैं, जिन्हें प्रतिवर्ष बुद्ध जयंती के अवसर पर देखा जा सकता है।

                यह धार्मिक तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ प्रसिद्ध ऐतिहासिक केन्द्र है। ये स्तूप भारतीय धार्मिक, आध्यात्मिकता, सामाजिकता की सांस्कृतिक भूमि हैं, जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य को ब्रह्मानंद की प्राप्ति होती है भगवान बुद्ध ने कहा भी है कि-

चरथ भिक्खवे चाखिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।

                विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त साँची के इन स्तूपों की भव्यता तो आगंतुकों (देशी-विदेशी) को चमत्कृत करती ही है साथ ही यहाँ का शांत वातावरण हर आने जाने वाले को महात्मा बुद्ध के शांति के संदेश को समझने में मदद देता है। अगर भारत में कहीं भी मंदिर, स्थापत्य व वास्तुकला का रचनात्मक, अद्वितीय, भव्य, बेजोड़, शानदार शाही सृजन है, तो वह है साँची में।

              
संदर्भ ग्रंथ सूची -
(1)          पुखराज जैन एवं रामसिंह सोलंकी, भारत की सांस्कृतिक विरासत, साहित्य भवन, आगरा - 1994, पृ. 120
(2)          के. सी. श्रीवास्तव, प्राचीन भारत का इतिहास, हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय, दिल्ली, पृ. 238
(3)          पुखराज जैन एवं रामसिंह सोलंकी, भारत की सांस्कृतिक विरासत, साहित्य भवन, आगरा - 1994, पृ. 254
(4)          छम्ज्ण्
(5)          दैनिक भास्कर, समाचार पत्र, जनवरी 2015

डॉ.मधुमती नामदेव
प्राध्यापक,1156/3, फेस-1, समीक्षा टाउन
जी.आर.पी. लाईन के सामनेनॉर्थ सिविल लाईन
जबलपुर - 482001,sampr9425344945 

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