त्रैमासिक ई-पत्रिका
वर्ष-3,अंक-24,मार्च,2017
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लोकरंग:-अरुणाचल प्रदेश का लोक साहित्य / वीरेंद्र परमार
चित्रांकन:पूनम राणा,पुणे |
अरुणाचलवासियों के जीवन में धर्म को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । यहां की अधिकांश जनजातियां दोन्यी–पोलो के प्रति अटूट आस्था रखती है । दोन्यी–पोलो अरुणाचल का सर्वमान्य ईश्वरीय प्रतीक है जिसे अंतर्यामी, स्वयं प्रकाशमान, सर्वशक्तिमान व सर्वहितकारी माना जाता है। उनकी उपासना में गीत गाए जाते हैं और पशुओं की बलि देकर पारंपरिक विधियों से इनकी पूजा की जाती है । प्रदेशवासी अनेक पर्व त्योहार मनाते हैं । इन त्योहारों के अवसर पर गीत गाकर इष्ट देव को प्रसन्न किया जाता है । एत्तोर, आरान, द्री, सी-दोन्यी, मोपिन इत्यादि त्योहारों के अवसर पर गाए जानेवाले गीतों में सुख- समृद्धि और धन-धान्य की कामना की जाती है । अवसरों और परंपराओं के अनुरूप कुछ गीत तो पुजारियों द्वारा गाए जाते हैं तथा कुछ गीत जन साधारण द्वारा गाए जाते हैं । प्राय: स्त्री-पुरूष सभी साथ मिलकर गीत गाते हैं । कुछ गीत एकल रूप में गाए जाते हैं तो कुछ सामूहिक रूप में।
प्रणय गीत
वांचो जनजाति का निवास स्थान मुख्यत: तिरप जिला है । इस जनजाति के युवक-युवतियां स्वतंत्रतापूर्वक अपने प्रेमोद्गार प्रकट करते हैं । इन गीतों में कोमल कल्पनाओं और निर्दोष मनोभावों का मणिकांचन संयोग होता है । प्रेमी-प्रेमिका संवाद के रूप में मौजूद वांचो जनजाति का प्रेम निवेदन अपने समर्पण और माधुर्य से मन मोह लेता है:
प्रेमिका: नु जाउ अ-मा ला-अंग - ले
पु-ले-यांग फा-फाइमा छाम
वाई-आ-ले कत चेन कई-वान खाम- कोवा ।
(श्री तपन कुमार एम बरुआ की पुस्तक “वांचो लव सौंग” से साभार )
भावार्थ: मैंने अपनी मॉं की कोख से जन्म लिया, लेकिन यह मेरे लिए उतनी आवश्यक नहीं थी जितना मेरा प्रेमी मेरी जरूरत बन गया है । जब मैं इधर-उधर घूमती हूं तो मेरा प्रिय मेरी प्रतीक्षा करता रहता है और उसकी सभी इंद्रियां मेरी राह देखती रहती हैं ।
प्रेमी: जिकोवा मान-तिक चेन
मंग जोवन मानलाप तिंग- ता
आजे सि-पा ए-ना-सु ।
भावार्थ: जिस प्रकार मृत्यु के बारे में कोई नहीं जानता कि यह कब आएगी, उसी प्रकार लड़कियों का भी कोई भरोसा नहीं है । यहां तक कि गॉंव का पुजारी भी अपनी जादुई शक्ति से लड़कियों के मन की थाह नहीं पा सकता।
प्रेमिका: मि जाई-सा लंग जेन जि जाई-सा
जंग हान ना जाई सा-ले अ-तान हा-ता ।
भावार्थ: नदी कभी नहीं सूखती । पृथ्वी भी सूर्य का परिभ्रमण करना नहीं छोड़ती । इसी प्रकार हम लोग भी कभी नहीं मरेंगे अर्थात हमारा प्रेम चिरंतन है, इसलिए हम अमर हैं ।
सि-जि-कोवा पि मानताई लुम तिंग- ता
छि-यान कोवा मानताई - अ यांग- फांग कोवन- ता
भावार्थ: इस पृथ्वी पर आकाश के नीचे ऐसी कोई जगह नहीं है जहां पर मृत्यु नहीं आती हो । आत्मा को तो निश्चित रूप से मृतकों के संसार में जाना ही पड़ेगा । उसी प्रकार ऐसी कोई जगह नहीं है जहां प्रेमी और प्रेमिका के बीच में अलगाव नहीं होगा ।
नोक्ते प्रणय गीत
नोक्ते जनजाति का निवास मुख्यत: तिरप जिले में है । नोक्ते समाज में प्रेम गीत की समृद्ध परंपरा है जो लोकमुख में उपलब्ध है:
बबंग अ मेरू वान मंगबम
त्याते—अ लेता तोवेज
खु- फोवा -अ गलंग लेबाई
रंग –अ मेलप गाना
तंग - अ-अ मेखप गाना ।
(श्री तपन कुमार एम बरुआ की पुस्तक “नोक्ते लव सौंग” से साभार )
भावार्थ :प्रेमी अपनी प्रेमिका को संबोधित कर कहता है- मेरे प्रथम प्यार ! तुमने जो अपना प्रेमोद्गार व्यक्त किया था, उसकी पुनरावृति आवश्यक नहीं है । यदि तुम साथ दो तो मैं तुम्हारे साथ स्वर्ग में भी जा सकता हूं ।
अरुणाचल की जनजातियों में लोकनृत्य की प्राचीन परंपरा है I वे नृत्यों द्वारा अपनी भावनाएं प्रकट करते हैं I नृत्य उनके लोकजीवन में रचे – बसे हैं I अतिवृष्टि को रोकने, भूत – प्रेत से मुक्ति, दैवी शक्ति को प्रसन्न करने, भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि और अच्छी फसल, मृतात्मा की शांति आरोग्य की कामना आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अरुणाचलवासी नृत्य करते हैं I शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के उपरांत नृत्य के द्वारा हर्ष प्रकट किया जाता है I अरुणाचली लोकनृत्यों को पांच वर्गों में विभक्त किया जा सकता है :
(क ) सांस्कारिक नृत्य –अरुणाचल में सांस्कारिक नृत्यों की प्रमुखता है I परिवार एवं समाज की सुरक्षा, आरोग्य, फसलों तथा जानवरों की सुरक्षा आदि के लिए नृत्य किए जाते हैं I अरुणाचल की अनेक जनजातियों में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर नृत्य करने की परम्परा है I अनेक समुदायों में युद्ध नृत्य की भी परंपरा है I
(ख ) त्योहार नृत्य – प्रदेश में सैकड़ों पर्व – त्योहार मनाए जाते हैं I त्योहारों के अवसर पर नृत्य – गीतों के द्वारा उल्लास को प्रकट किया जाता है I इन नृत्यों में आनंद, उत्साह, उमंग और मस्ती होती है I नर्तक – नर्तकियां अपने परंपरागत परिधानों व अलंकारों से सुसज्जित हो नृत्य करते हैं I
(ग ) मनोरंजन नृत्य – लोगों और अपना मनोरंजन करने के लिए इसकी प्रस्तुति की जाती है I इसके लिए कोई अवसर निश्चित नहीं है, इसे कही भी, कभी भी पेश किया जा सकता है I
(घ) नृत्य नाटिका – यहाँ नृत्य नाटिका की परंपरा अत्यंत पुरानी है I इसमें नर्तकगण किसी पौराणिक कथा का वचन करने के साथ – साथ नृत्य भी करते हैं I कथा में नैतिक सन्देश छिपे होते हैं I
(च ) मुखौटा नृत्य – अरुणाचल की बौद्ध धर्मावलम्बी जनजातियाँ धार्मिक संदेशों को प्रभावशाली तरीके से संप्रेषित करने के लिए विभिन्न जानवरों का मुखौटा पहनकर नृत्य करती हैं I
विभिन्न आदिवासी समूहों की भूमि अरुणाचल में हजारों लोककथाएँ मौखिक परंपरा में विद्यमान हैं I इन कथाओं में जीवन के सभी पहलुओं का चित्रण है I रोचकता इनका प्रमुख गुण है I अधिकांश कथाएँ वन एवं वन्य – प्राणियों से संबंधित हैं I भूत – प्रेत, अलौकिक वृक्ष, चमत्कारी जंगल और तालाब, जादुई पत्थर, धूर्त मनुष्य इत्यादि से संबंधित लोककथाएँ रोचक होने के साथ – साथ ज्ञानवर्द्धक भी हैं I बाघ और बिल्ली की कथा, जानवरों की बलि देने की कथा, धूर्त मनुष्य की कथा, गिलहरी की उत्पत्ति की कथा इत्यादि कथाएँ प्रदेश में खूब लोकप्रिय हैं I मिथक लोकजीवन की आस्था के प्रतिबिम्ब होते हैं I मिथकों के आधार पर प्राचीन संस्कृति की व्याख्या की जा सकती है I अरुणाचली समाज में संसार, पृथ्वी, आकाश, नरक, देवता, राक्षस, मानव, जल, अन्न, पर्वत, सरीसृप, उभयचर आदि की उत्पत्ति से संबंधित हजारों मिथक प्रचलित हैं I ये मिथक वाचिक परंपरा में ग्रामीण लोगों के कंठों में विद्यमान हैं I
वीरेन्द्र परमार
पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन Iसम्प्रति:- उपनिदेशक(राजभाषा),केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड,जल संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय(भारत सरकार),भूजल भवन, फरीदाबाद- 121001, वर्तमान पता: आवास संख्या-1091, टाइप-5, एन एच – 4 , फरीदाबाद-121001. मोबाइल- 9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com
Malinthan is in "Lower Siang" district . Not in "Siang" district
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