त्रैमासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
वर्ष-4,अंक-25 (अप्रैल-सितम्बर,2017)
किसान विशेषांक
(किसान खुश रहेगा, तो संसार भी खुश रहेगा)
यह साक्षात्कार काले शक्तिराज, जो कि पेशे से शिक्षक हैं, के द्वारा तेलांगाना राज्य के कामरेड्डी जिला, मदनूर तहसील के एक साधारण किसान पंढरी जी से लिया गया है।
पंढरी जी का गाँव तेलांगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक की सीमा पर बसा है। यहाँ के खेतों की मिट्टी कम गहरी, काली एवं मोटे कणों वाली है, जो समृद्ध कृषि को आधार प्रदान करने में सक्षम नहीं है। फिर भी बड़ी मेहनत एवं लगन से यहाँ की जनता खेती-बाड़ी का कारोबार करती है-सम्पादक
नमस्कार, अपना परिचय दीजिए।
किसान – मेरा नाम सैदपवार पंढरी है। मैं मदनूर (तहसील) कामारेड्डी (मिला) तेलांगाना का रहनेवाला हूँ।
आपके घर में कितने सदस्य हैं?
किसान – हमारे परिवार में मैं, मेरी पत्नी, दो बेटे, उनकी पत्नियाँ, पोते पोतियाँ हैं।
परिवार के आय का मुख्य साधन क्या है?
किसान – खेतीबाड़ी व मजदूरी।
आपके पास कितनी एकड़ जमीन है?
किसान – 3-4 एकड़।
इतने में सबकुछ निपटता है?
किसान – आर्थिक स्थिति और मौसम के अनुकूल रहने पर कभी-कभी बटाई या लीज पर (कौल) किराये की खेती-बाड़ी करते हैं।
आपकी खेती किस पर आधारित है। मेरा मतलब है मौनसून या बोरवेल?
किसान – मौनसून पर आधारित खेती है हमारी।
सालभर में कितनी बार फसल की कटाई-बुआई होती है?
किसान – मौनसून पर आधारित खेती है, इसलिए साल भर में दो बार कटाई-बुआई होती है। वर्षा ऋतु की फसलें, जिसे खरीफ कहते हैं, जुन-जुलाई में बोते हैं। फसल की कटाई सितंबर से अक्टूबर के बीच चलती है। इसके लिए दक्षिण-पश्चिम मौनसून पर बहुत आस रखी जाती है। खरीफ में मूंग, उड़द, धान, सोयाबीन, कपास आदि फसलें ली जाती हैं। ‘रबी’ में गेहूँ, चना, ज्वार, कुसुम (Sabflower) आदि फसलें लेते हैं। इसके लिए बुआई का काम अक्तूबर से नवंबर तक चलता है। इन फसलों की कटाई फरवरी से अप्रैल तक चलती है।
आजकल मौनसून का संतुलन बिगड़ गया है। इसका खेती पर क्या असर पड़ रहा है?
किसान – बहुत बुरा असर पड़ रहा है। इस असंतुलन को सब देख रहे हैं। इसके दुष्परिणाम को झेल भी रहे हैं। किसी भी किसान के लिए मौनसून बड़ा महत्व रखता है। यदि समय पर बारिश नहीं होती है तो हमारे किए पर पानी फिर जाता है। खेत में बोई गई बीजें, खाद सबकुछ मिट्टी में ही मिल जाती हैं।
इस तरह से असंतुलित मौनसून किसानों की कमर तोड़ देता है।
इस तरह की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?
किसान – कुछ वर्ष पहले तक मौनसून का संतुलन ठीक-ठाक था। इस बीच ही मौनसून हमें दगा दे रहा है। इस समस्या से इस तरह बचा जा सकता है – या तो सब के यहां बोअरबेल की सुविधा हो जानी चाहिए, जो कि असंभव है। या फिर छोटे-छोटे तलाबों या गढ़्ढों में बारिस का पानी जमा कर लेना चाहिए। समय-समय पर इसका इस्तेमाल करना चाहिए।
सब किसानों के पास बोअरबेल की सुविधा क्यों नहीं हो सकती है? यह असंभव आपको किस कारण लग रहा है?
किसान – बात यह है कि आज लगभग हर एक के घर में, संपन्न लोगों के खेतों में बोअरबेल लगे हुए हैं। रही बात हम जैसे किसानों की, तो हमारे पास उतना पैसा कहां! जो बोअरबेल की सुविधा अपनायें। आजकल बोअरबेल में भी पानी नहीं टिकता है। 500-800 फीट जमीन के अंदर ड्रीलिंग करने पर भी कभी-कभी एक बूँद भी पानी नहीं निकलता।
निकलेगा भी कैसे पानी? जैसे पृथ्वी पर लोगों की संख्या बढ़ गई है, वैसे ही पाताल में भी बोअरबेल की संख्या बढ़ गई है।
यदि मान लीजिए किस्मत से आपके बोअरबेल में पानी लग भी जाता है तो बिजली की लुकाछिपी से आप बच नहीं सकते।
सिंचाई के लिए बिजली कितने घंटे तक पूर्ति की जा रही है?
किसान – फिलहाल, तो 9 घंटे सिंचाई के लिए बिजली दी जा रही है।
सरकार किसानों को सिंचाई के लिए 24 घंटे बिजली देने की बात कर रही है, इस पर आपकी क्या राय है?
किसान – (हंसते हुए) देखिए! मैंने पहले भी कहा कि आज लगभग सभी के घरों में बोअरवेल्स लगे हुए हैं। खेतों में भी कई बोअरवेल्स हैं ही। ऐसे में 24 घंटे सिंचाई के लिए बिजली दी जाती है, तो, बेशक किसानों की थोड़ी-बहुत आमदनी बढ़ेगी। लेकिन यह “नये के नौ दिन की तरह” ही होगा। क्योंकि भूगर्भ में पहले ही से पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है। ऐसे में 24 घंटे पानी का निकास होता है तो सब के सब मारे जायेंगे। यह तो निश्चित है।
सरकार 8-9 घंटे ही खेती के लिए बिजली प्रदान करे तो भी बहुत बढ़िया होगा।
24 घंटे लेकर क्या करें।
अभी जो 9 घंटे सिचाई के लिए बिजली दी जाती है। उसका कोई ठौर-ठिकाना ही नहीं है। कभी-कभी तो उसका समय देर रात में बदल दिया जाता है। पूर्व सूचना भी नहीं दी जाती है, उस बदलाव की। नतीजा किसान को देर रात तक या तो खेत में ही इंतजार करते रहना पड़ता है या घर से देर रात में खेत पर जाना पड़ता है।
अंधेरे में कुछ नहीं दिखाई पड़ने के कारण विधुत स्पर्श से कई किसान मर जाते हैं।
कभी-कभी खूंखार किसान के हमले में उनकी जानें चली जाती हैं।
आप किस प्रकार की खेती करते हैं? मेरा मतलब है पारंपरिक या आधुनिक?
किसान – अबतक हम पारंपरिक रूप से हल-बैलों वाली खेती ही करते आए हैं। पर जानवरों को चारा-पानी ठीक से न दे पाने के कारण उन्हें बेचना पड़ रहा है। हल-बैल का स्थान अब ट्रेक्टरों ने ले लिया है। मजबूरी है।
ट्रेक्टरों या अन्य आधुनिक यंत्रों की सहायता से खेती करना ‘आधुनिक किसान’ बनना ही है। इसे मजबूरी क्यों कहते हैं? आधुनिक बनना नहीं चाहते, तो घर में टीवी, फ्रिज और ये सेलफोन आदि क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं? ये सब चीजें भी तो आधुनिक ही कहलाते हैं न ?
किसान – (हँसते हुए) हाँ, है तो ये आधुनिक चीजें ही। लेकिन ये सब अलग चीजें हैं। देखिए, हम जब गाय, बैल आदि जानवर रखते थे तब उनसे अनायास रूप से ही सेंद्रीय खाद प्राप्त होता था। अब गोबर आदि से बननेवाली खाद की जगह रासायनिक खाद मिल रहा है। जिन्हें संभव है वे गोबर से घर के लिए उपयोगी गोबर गैस भी तैयार करते थे। अब ऐसा देखने को कम मिल रहा है या न के बराबर मिल रहा है। हो गया न नुकसान आधुनिकता से। एक और बात बताता हूँ। जब हल-बैल थे तब यदि खेत में काम करते-करते अचानक हल टूट जाए तो तुरंत बढ़ई को बुलावाकर (खेत में ही) ठीक कर लिया जाता था।
ऐसा अगर ट्रेक्टर के साथ होता है तो कौन मैकेनिक आपके ट्रेक्टर के टुटे हुए पुरजों को ठीक करने के लिए वेल्डिंग मशीन उठाकर ले आएगा। काम-धाम छोड़कर यंत्रादि लेकर गैरज पहुँचना पड़ता है। इन यंत्रों के आने से अब बढ़ई जैसे कारीगर मजदूर बन रहे हैं।
सरकार किसानों के लिए कई तरह की सुविधाएँ सब्सिडी के रूप में देती है।
इसमें बीज, खाद, आजकल तो खेती के लिए उपयोगी आधुनिक यंत्र भी सब्सिडी के रूप में दिये जा रहे हैं।
आप इन सुविधाओं का लाभ उठाते हैं?
किसान – इस सवाल का जवाब क्या दें, समझ में नहीं आ रहा है।
मैं ही नहीं देश का हर किसान उसके हित में सरकार द्वारा दी जानेवाली सुविधाओं का लाभ उठाना चाहता है। ये सुविधाएँ या तो हम तक पहुँचती ही नहीं, या हमें दी ही नहीं जाती है। हमारे नाम पर किसी और को दी जाती है। इन सुविधाओं का बहुत कम लाभ हम उठा पाते हैं। हाल में सोयाबीन की दो बोरियों के लिए काम छोड़कर, घंटों कतारों में खड़ा रहना पड़ता है।
ये हम जैसे 3-4 एकड़ जमीनधारी किसानों की स्थिति है, लेकिन जिन्हें कई एकड़ जमीन हैं, वे तो कभी हमारे साथ लाइन में खड़े नहीं रहते।
फिर भी कई बोरियाँ उनके तक पहुँच जाती है। आखिर ऐसे क्यों होता है और कब तक होता है, इसका आज तक पता नहीं चला।
आप घंटों तक कतारों में खड़े रहने की बात कर रहे हो। क्या आपके पास ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ नहीं है? जिसका उपयोग करके आसानी से बीज, खाद प्राप्त कर सकते हैं?
किसान – ये कौन-सा कार्ड होता है। मुझे नहीं पाता।
किसान क्रेडिट कार्ड बैंकों द्वारा किसान को दिया जाता है। जिस किसान के पास अपनी खेती से संबंधित पट्टा, पासबुक हो, उसे या बटाईदार, किरायेदार को भी कुछ जरूरी शर्ते पूरी करने पर दे दिया जाता है।
इसके तहत खेती से संबंधित सभी सुविधाओं को मात्र कार्ड के दिखाने से बड़ी सरल पद्धति से प्राप्त किया जा सकता है।
किसान – नहीं ऐसे किसी भी कार्ड की जानकारी मुझे नहीं है। और हमें कोई भी चीज जिसका उपयोग खेती के लिए किया जाता हो, उतनी सरलता से मिलता नहीं, जितनी सरलता से आपने बताया। हो सकता है जिन लोगों के बारे में मैंने अभी कुछ देर पहले कहा कि वे हमारे साथ कभी भी, कहीं भी लाइन में खड़े नहीं रहते, फिर भी बीज-खाद-बड़े-बड़े यंत्र उनके पास पहुँच जाते हैं। उन लोगों को शायद पता होगा उस किसान कार्ड के बारे में। उनको प्राप्त होता होगा, सब कुछ, बड़ी आसानी से, हमें नहीं।
बैंक से किसानों को ऋण दिया जाता है। इसका ब्याज दर बहुत कम होता है। आप इस सुविधा का उपयोग करते हैं?
किसान – हाँ, उपयोग करते हैं।
करना पड़ता है। वरना हमारे पास उतने पैसे कहाँ, कि समय आते ही पैसे जेब से निकालकर दे दिए जाए। लेकिन किसानों को कर्ज समय पर कहाँ मिलता है। इसके लिए हमें कई बार बैंक के चक्कर काटने पड़ते हैं। ये नहीं है, वो नहीं है, फलाना कागज जोड़ो इसमें। ऐसे कई बार कई बातें बताकर हमें वापस कर दिया जाता है।
ऐसा करने के पश्चात हम जब ऋण के लिए जाते हैं तब बैंक अधिकारी के चेहरे के देखने से ऐसा लगता है कि मानों वे अपने बाप-दादाओं का रूपया देकर हमारा उपकार कर रहे हैं और अगर कभी किस्त चुकाने में देर हो जाती है तो चिट्ठी भेज देते हैं।
कई लोग बैंकों से लिया हुआ ऋण समय पर चुकाते नहीं हैं। इसीलिए बैंक वाले अधिकारी मेमो (चिट्ठी) भेज देते हैं।
किसान – हाँ, ये बात भी सही है। कुछ लोग बैंक से लिया ऋण लौटाते नहीं। ऐसा वे क्यों करते हैं, ये समझ से बाहर है।
हम तो समय-समय पर किस्त भरते रहते हैं। चंद लोगों के ऐसा करने से सबलोगों को नुकसान होता है। लेकिन एक बात और मैं कहूँगा कि हम गरीब किसान के संदर्भ में ही ऐसा करते देखा जाता है कि बैंक वाले चिट्ठी भेजते हैं। हमारे उपकरण छिनकर ले जाते हैं। लेकिन जो बड़े-बड़े लोग हैं, उनके द्वारा ऋण न लौटाने पर ऐसे हथकंडे कभी नहीं अपनाते। यह गलत है न।
कटाई की गई फसल का आप कैसे नियोजन करते हैं?
किसान – घर के उपयोग के लिए जितना चाहिए, उतना घर पर रखकर बचा हुआ बेच देते हैं।
कहाँ बेचते हैं, धान्य को? कौन खरीदता है?
किसान – प्राइवेट धान खरीदी केंद्र में जाकर बेचते हैं। भले ही वे दाम कम देते हैं पर तुरंत दे देते हैं। सरकार के द्वारा आयोजित किये गये खरीदी-बिक्री केंद्रों का संचालन ठीक नहीं रहता। हम हाल ही में हुए मिर्ची व्यापारियों का हाल देख सकते हैं। कई दिनों तक गोदा में ही अपने माल की हिफाजत करना पड़ता है। 10-15 दिन ऐसे ही बेकार में चले जाते हैं।
खरीदी किए गए धान्य के पैसे जल्दी नहीं मिलते। वे नेट कैश पैसे नहीं देते। चेक लिखकर देते हैं। उसे जमा करने बैंक में जाना पड़ेगा। आजकल बैंकों का संचालन ठीक से नहीं चल रहा है। आप तो जानते ही हो। दिनभर खड़े रहकर पहले चेक को जमा करने, फिर दूसरे-तीसरे दिन लाइन में खड़े रहकर पैसे लेने। इतना करने के बाद भी आपको महज 2 हजार रूपये देते हैं। ये सब करने के लिए काम धंधे छोड़कर मैंदान में रहना पड़ता है। हमारा पैसा हमें नहीं मिल रहा है।
कृषि अधिकारी और मौसम विभाग आपलोगों को किस तरह मदद करता है?
किसान – अपनी-अपनी जगह वे काम कर रहे हैं। किसानों के लिए वे क्या कर रहे हैं। हमें नहीं पता।
वर्तमान समय में किसानों की आत्महत्याएँ बढ़ी है।
ऐसा क्यों हो रहा है? अपने विचार बताइये?
किसान – (चेहरा एकदम उतर जाता है।) हाँ, बात सही कही आपने।
आजकल किसानों की आत्महत्याएँ काफी बढ़ गयी है। ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन जब आपको परेशानियों ने चारों ओर से धर-दबोचा हो, तब आप हार जाते हो। मौसम की मार और कर्ज की बोझ के कारण वे ऐसा करते हैं। आधा हिस्सा माफ करके बचा हुआ आधा ऋण किसान द्वारा बैंक को लौटाने की बात लगती है। लेकिन इस पद्धति का भी ठीक से निर्वाह नहीं किया जा रहा है। मतलब आधी रकम भी बैंक को लौटाकर नहीं दे रहे हैं। नतीजा आप भी बैंकों को लूटने वाले में शामिल हो जाते हैं।
मेरे हिसाब से केवल ऋण माफी ही किसान की आत्महत्याओं को रोक नहीं सकता।
किसानों के लिए दिये जानेवाली ऋणमाफी व्यवस्था में सुधार लाना चाहिए। फसल बीमा योजना को दोषमुक्त करना चाहिए। इस बीमा के तहत मिलनेवाले लाभ आदि की जानकारी किसानों तक पहुँचनी चाहिए। किसान क्रेडिट कार्ड क्या है? इससे क्या-क्या लाभ हैं?
सका प्रचार करके उनमें चेतना लानी चाहिए। सिंचाई प्रणाली में सुधार करके किसानों की नैया पार लगा सकते हैं।
किसानों द्वारा आत्महत्या करने के बाद सरकार उस मृतक के परिवार को 2-3 लाख रूपये मुआवजा देने की बात जो करती है, वह कुछ भी हमें नहीं चाहिए।
अगर हमारे जीते-जी 40-50 हजार रूपये मात्र के ऋण की व्यवस्था सरकार करती है, तो हमारे जीवन में चार-चाँद लग जायेंगे। किसानों की आत्महत्याएँ कम हो जायेंगी।
आखिरी सवाल मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या आप अपने बेटे या पोते को किसान बनाना चाहते हैं?
किसान – (मुस्कराते हुए), देखिए मेरे दादाजी किसान थे। मेरे पिताजी भी किसान ही रहे। मुझे भी किसान ही बनना पड़ा। मैं अपने दोनों बेटों को पढ़ाई के लिए स्कूल भेज दिया ताकि वह कुछ छोटी-मोटी नौकरी करके अपनी जिंदगी सवार सके। हमारी तरह 12 महीने खेतों में ही काम करके न रहे। फिर भी बड़े बेटे ने दसवीं पास करके साहूकार के पास रहकर हिसाब करना सीख लिया है। खेती वह नहीं करता। छोटा बेटा सातवीं के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया। मेरी इच्छा से पढाने की थी, फिर भी वह अपनी इच्छा से किसान बन गया। अब मुझे भी उसका किसान बनना अच्छा लगने लगा है। अब मेरे पश्चात वही सबकुछ देखते रहेगा। रही बात पोते की, तो, मैं उसमें दखल नहीं दूँगा। मेरा बेटा जाने कि उसका बेटा पढ़लिख कर क्या बनेगा। किसान या विद्वान।
वैसे तो मुझे कभी-कभी लगता है कि समय देखकर थोड़ी-सी कड़ी मेहनत करने से खेती-बाड़ी में फायदे हैं।
मगर मौसम की वक्र दृष्टि अगर पड़ जाती है तो हाथ कुछ नहीं आनेवाला। इसलिए फिर मने संकल्प लेने लगता हूँ कि अपने पोते को किसान होने से बचाना ही ठीक होगा।
आपने अपना अमूल्य समय मुझे दिया और मेरे साथ दिल खोलकर बातचीत की, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद!
किसान – अरे नहीं नहीं। ऐसी बात नहीं कीजिए। हमारी कथा-व्यथा को सुनने के लिए आप समय निकाले, इसके मैं आपका ऋणी हूँ। किसान खुश रहेगा तो संसार और भी सुंदर और हरा-भरा होगा।
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