‘परिधि’ की कविता का ‘केन्द्र’ से संवाद
(उत्तर-पूर्व की आदिवासी कवयित्रियों का काव्य-संसार)
भारतीय उपमहाद्वीप का
उत्तर-पूर्व भाग सांस्कृतिक रूप से सर्वाधिक समृद्ध है। यहाँ पर विभिन्न प्रजातीय
समूहों के लोग भिन्न-भिन्न जन-समुदायों और जनजातियों के रूप में निवास करते हैं।‘सीमान्त’ लोगों की
प्रतिध्वनि ‘परिधि’ के रूप में सुनी जा रही है। यह ‘परिधि’, ‘मुख्य धारा’ की जीवन-संस्कृति से भिन्न है। इस ‘विभिन्नता’ का मतलब ‘अलगाव’ से नहीं है।‘परिधि’ की यह विभिन्नता
बहुलतावादी स्वरुप को समेटे हुए है।इस बहुलतावादी-संस्कृति में स्थानीयता, वाचिकता और
विभिन्न जन-समुदायों की मूल सांस्कृतिक-परंपराओं की ‘पहचान’प्रमुख है। यह
पहचान आधुनिकता, ईसाईयत और मुख्य धारा की संस्कृति के प्रभाव से क्षीण तो हुई है लेकिन अपनी
निजता को पुन: परिभाषित और सांस्कृतिक रूप देना चाहती है। छोटे जन-समुदायों की
अस्मिता पर खतरा नव-औपनिवेशिक दौर में बढ़ा है। आदिवासी-संस्कृति का विलय और
विलोपन के खतरे ने आदिवासी राष्ट्रीयताओं को एक जुट होने कीस्थिति का अवसर प्रदान
किया है और नयी सम्भावना पैदा की है।
आदिवासियों के
बारे में जो भ्रांतियाँ औपनिवेशिक शासकों एवं उत्तर-औपनिवेशिक दौर के सत्ता
संचालकों द्वारा बनायी गई उनका प्रत्याख्यान ‘परिधि’ (उत्तर-पूर्व) की आदिवासी कवयित्रियों के
काव्य-संसार में देखा जा सकता है। भारत के उत्तर-पूर्व की आदिवासी कवयित्रियों में
प्रमुख हैं- तेमसुला आओ (सांग्स दैट टेल-1988, सांग्स दैट ट्राई टू से-1992, सांग्स ऑफ़ मेनी
मूड्स-1995,
सांग्स फ्रॉम हियर एंड देयर-2003, सांग्स फ्रॉम द अदर लाइफ-2007) ममांग दई (रिवर
पोयम्स-2004)अनुपमा बसुमतारी, अंजु बसुमतारी, एस्थर सिएम, इस्टराइन इरालू, जोगमाया चकमा, सविता देवबर्मा। प्रस्तुत आलेख तेमसुला आओ, ममांग दई, जोगमाया चकमा, अनुपमा बसुमतारी और अंजु बसुमतारी की कविताओं पर
केन्द्रित है।
आदिवासी कवयित्रियों ने
आदिवासी जीवन-दर्शन को अपने पुरखों से ग्रहण किया है। यह ‘पुरखा-साहित्य’ जन-समुदाय के
विश्वास, जीवन-दर्शन और सामाजिक के जीवन व्यवहार की ‘जातीय-सम्पदा’ है। यह सांस्कृतिक-सम्पदा, विराट विश्व को
अपने अन्त: स्थल में समेटे हुए है। तेमसुला आओ की एक कविता है- ‘Stone-people from lungterok’.
‘lungterok’ आओ भाषा का शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘छह पत्थर’ अर्थात् अपने
पुरखों से संबंधी। यह ‘छह पत्थर’ आओ उत्पत्ति के मिथक की एक कथा को अपने में
समाहित किये हुए है। जिनमें तीन पत्थर पुरुषों और तीन उनकी जीवन-संगनियों से जुड़े
हुए हैं। इन पत्थरों के स्थान को ही ‘lungterok’ कहा गया है। ये पत्थर आज भी आओ समाज की जीवन
प्रणाली के अभिन्न हिस्से बने हुए हैं। इस कविता का हिंदी अनुवाद अश्विनी कुमार
पंकज ने ‘पहाड़ के लोग’ नाम से किया है-
“पहाड़ के लोग/
काव्यात्मक और
राजनीतिक
बर्बर और
लयात्मक
पानी के
खोजकर्ता
और आग के योध्दा
पहाड़ के लोग एक
बहुभाषी दुनिया
जो जाने जाते
हैं
पक्षियों की
भाषा में
और पशुओं के
विमर्श में
एक ऐसे
विद्यार्थी
जिन्होंने
चींटियों से सीखी है
नक्काशी की कला
जिनके मुकुट हैं
युध्दों में
जीते गए
दुश्मनों के सिर
पहाड़ के लोग
उन्मत्त प्रेमी
जो विश्वास करते
हैं
सूरज भी उदास
होता है
चाँद को भी
छुपाया जा सकता है
और सितारे सिर्फ
सितारे नहीं हैं
वे सब पुरखा
आत्माएं हैं।”1
इस कविता में आदिवासी
जीवन-दर्शन मुखरित हुआ है जिसमें प्राकृतिक सत्ता के साथ आदिवासी की जीवन-दृष्टि
को देखा जा सकता है। उसके लिए सितारे एक रागात्मक संबंध के वाचक नहीं हैं बल्कि वे
सब उनके पूर्वजों की आत्माएं हैं। आदिवासी ‘जीववाद’/आत्म को मानता है। यह विश्वास उसे युगों से
प्राप्त हुआ है।
इनकी एक और कविता है- ‘prayer of a monolith’। इस कविता में केंद्र द्वारा राज्यों की भौगोलिक सीमाओं का विभाजन ने
कवयित्री के मानस को झिंझोड़ा है। आदिवासी राष्ट्रीयताओं को शक्तिहीन/कमजोर करने
में आधुनिक राज्यों और देशों की लोकतान्त्रिक सरकारों का बड़ा अवदान रहा है। जैसे-
“I stand at the village gate/in mockery of my former state.”2
तेमसुला आओ की एक कविता है-
‘eclipse’। यह ‘ग्रहण’ पूरी पृथ्वी को लगा है। यह ग्रहण संपूर्ण मानवता को ग्रास कर रहा है। आदिम
मानवता को श्रीहीन/निस्तेज करने का कार्य केंद्र की नीतियां कर रही है।कवयित्री लिखती
है-
“He plays on Centre-stage, I, only on the periphery.”3
कवयित्री की पक्षधरता ‘सीमांत’ के प्रति है।
कवयित्री ‘परिधि’ को कविता के रूप में प्रस्तुत करके केंद्र से संवाद स्थापित करना चाहती है।
कवयित्री शक्ति-संरचना के द्विपदी रूपों के बदलाव की पक्षधर है।इसलिए कवयित्री
कहती है कि- हमें केवल ग्रहण कर्ता ही नहीं बने रहना है बल्कि अँधेरे में रोशनी का
दीपक जलाना है।
‘चमगादड़’ का रचनात्मक प्रयोग भारतीय कविता में तेलुगु के
कवि गुर्रम जाषुवा ने किया था।तेमसुला आओ ने ‘Bat-cloud’ नाम से एक कविता
लिखी है। इस कविता में लोक कथा के दो पात्र माँ और बेटी अल्विनो जोकि प्रतीकात्मक
रूप में चमगादड़ हैं के माध्यम से नयी विस्तारवादी नीतियों के परिणाम स्वरुप उनका
सुरक्षित शरणस्थल उजड़ जाता है और नये जीव/प्राणी उसकी बेटी अल्विनो को मार के बाहर
लटका देते हैं। बेटी के दुःख में माँ की आह निम्न रूप में कवयित्री ने व्यक्त की
है-
“Remembering her mother’s
cry/Fly my little girl, fly to the sky.”4
यह कविता उत्तर-पूर्व के
परिदृश्य को अभिव्यंजित करती है। अफ्सपा (AFSPA) की वजह से उत्तर-पूर्व का जनजीवन व्यापक
प्रभावित हुआ है। उन पीड़ित परिधि की अनसुनी आवाजों को बहुमुखी स्वर कवयित्री ने
दिया है। कवयित्री के लिए कविता जिम्मेदारी का नाम है।यह जिम्मेदारी उन्होंने
गीतों के रूप में गायी है/ कही है। यह कविता स्त्री के विषाद का दारुण गीत है।इस
आदिवासी आओ परंपरा का कविता में रचनात्मक व्यवहार का सलीका तेमसुला आओ को आता है।
यह दृष्टि उन्हें फुलब्राइट फेलो के रूप में नेटिव अमेरिकन्स से प्राप्त हुयी।
उन्होंने अमेरिका से आने के बाद अपनी नागा वाचिक आओ परंपरा का संग्रहण करते हुए
अपनी कविता को विस्तार दिया।
पद्मश्री ममांग दई अरुणाचल
प्रदेश की रहने वाली है। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश की छुपी हुयी जमीन से मुख्यधारा
का परिचय कराया है। उनके पास लेखन का व्यापक अनुभव है। यह अनुभव उन्होंने
पत्रकारिता के क्षेत्र से अर्जित किया है। इन्होंने कविता में ‘नदी’ को चित्रित किया
है। यह नदी सदानीरा है जो हमारे अन्तः स्थल में प्राण बनकर प्रवाह मान है।प्रकृति
की रहस्यात्मकता को अपनी ताजा स्मृतियों के आधार पर कवयित्री ने लयात्मकता से
चित्रित किया है। इनकी दो कविताएँ द्रष्टव्य है- ‘बर्थ प्लेस’ और ‘स्माल टाउन्स एंड द रिवर’। ‘बर्थ प्लेस’ कविता में
कवयित्री ने अपनी घाटी और गोत्र के महत्त्व को सराया है-
“there were no strangers
in our valley
recognition was instant
as clan by clan we grew
and destiny was simple
like a green shoot/
following direction
like the sun and moon.”5
एक अन्य उदाहरण में बांस की
संस्कृति और मद्यपान को इनके जीवन व्यवहार के रूप में देखा जा सकता है-
“We are the children of the
rain
of the cloud woman
brother to the stone and bat
in our cradle of bamboo and vine
in our long houses we slept
and when morning came
we were refreshed.”6
ममांग दई की कविता के कुछ
हिंदी अनुवाद रमणिका गुप्ता ने किये हैं। दो कविताओं के उदाहरण यहां दिए जा रहे
हैं जिनमें विस्थापन, नशे में चूर युवा-पीढ़ी, मुक्तिगामी-संघर्ष से जुड़े हुए योध्दाओं का घर
में औरतों के दुःख को न देखना, बाहर क्रांति करना और स्त्री के अस्तित्व की
चेतना को देखा जा सकता है-
“वे बतिया रहे हैं विस्थापन की बावत
जब अफीम के
अहि-पुष्प धूप से चकरा कर
हो रहे थे
आनंदित-उल्लसित
आस्था के नशे
में
वे बतिया रहे
हैं बच निकल ने की बावत
मुक्ति लोग
बन्दूकों और
वजूद बचाए रखने
की अनिवार्य-अविलम्बता की बावत
लेकिन वे करेंगे
क्या
औरतों के दुःख न
जान कर...?”7
(वे बतिया रहे थे) “लेकिन मैंने तुम्हें नहीं बताया
मैं मरी नहीं थी...!”8 (बे-हिसाब दिन)
उत्तर-पूर्व की आदिवासी
कवयित्रियों के काव्य-संसार में अपनी भिन्न संस्कृति के प्रति मुख्यधारा के समाज
की सोच को लेकर अनेक कविताएँ हैं। सेना का उनके नागरिक जीवन में बढता हुआ
हस्तक्षेप और केंद्र द्वारा सीमांत की उपेक्षा भी इनकी कविताओं के विषय बने हैं।अपनी
भाषा, संस्कृति और उसके अनुरूप साहित्य लेखन की चिंता भी इनके यहाँ दिखलाई पड़ती है।
इस रूप में ये अपनी-अपनी भाषाओं के साहित्य को लिखित रूप भिन्न-भिन्न लिपियों के
रूप में दे रही हैं।उत्तर-पूर्व की एक महत्वपूर्ण भाषा है- ‘चकमा’। इस भाषा की
अपनी लिपि भी है। इस भाषा का साहित्य भी पर्याप्त समृद्ध है। भारत-विभाजन ने ‘चकमा’ समुदाय को
पद-दलित कर दिया। उसकी भाषा और संस्कृति भी हाशिया कृत होती गयी। इस भाषा की
कवयित्रियाँ हैं- जोगमाया चकमा और कविता चकमा। कविता चकमा की कविता का एक उदाहरण
देखा जा सकता है-
“मैं क्यों नहीं विरोध करुँगी!
जब वे जारी
रखेंगे
हमारी जमीन पर
बाहरियों को बसाना...
मातृभूमि से हमारी बेदखली
हमारी औरतों का अपमान...
अपने समूचे आत्मबल के साथ
मैं
क्यों नहीं विरोध करुँगी !”9
(मूल चकमा भाषा से अंग्रेजी में मेघना
गुहाठकुराता और अंग्रेजी से हिंदी में अश्विनी कुमार पंकज द्वारा
अनूदित)शरणार्थियों के उत्तर-पूर्व भारत में प्रवेश ने भी अनेक समस्याओं को जन्म
दिया है। इसकी मुखालफत कोकबोरोक और बोड़ो भाषाओं की आदिवासी कवयित्रियों के काव्य
में देखी जा सकती है।
संदर्भ-
1.आदिवासी साहित्य, प्रवेशांक, वर्ष:1, अंक:1, जनवरी-मार्च-2015, आवरण पृष्ठ से
2.http://openspaceindia.org/express/talking-poetry/item/prayer-of-a-monolith.html
3.http://openspaceindia.org/express
/talking-poetry/item/eclipse.html
4.
http://openspaceindia.org/express /talking-poetry/item/bat-cloud.html
5.
http://www.writersworkshopindia.com/books/peotry/redbird/river-poems/
6.
http://www.writersworkshopindia.com/books/peotry/redbird/river-poems/
7.हाशिये उलांघती स्त्री- 2, युध्दरत आम आदमी, पूर्णांक-108, 2011, पृ. सं. 391
8.हाशिये उलांघती स्त्री- 2, युध्दरत आम आदमी, पूर्णांक-108, 2011, पृ. सं. 391
9.आदिवासी साहित्य,वर्ष:2, अंक:6, अप्रैल-जून-2016, आवरण पृष्ठ से
डॉ. भीम सिंह
हिंदी विभाग, मानविकी संकाय
हैदराबाद
विश्वविद्यालय-500046
सम्पर्क
bhimsingh46@gmail.com
bhimsingh46@gmail.com
9492024872
अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-4,अंक-26 (अक्टूबर 2017-मार्च,2018) चित्रांकन: दिलीप डामोर
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