कहानी:बेचारी भाग्या/रेखा
“हर्षा बेटा स्कुल
के लिये देर हो रही है ये काम मैं खुद कर लूंगी। तुम और अनुप दोनों तैयार होकर
स्कुल को जाओ।’’ नानी ने कहा।
"ठीक है नानी,
बस थोड़ा सा काम बाकि है जल्दी ही करके निकल
जायेंगे आप फिक्र ना करो।’’
“माँ होती
तुम्हारी तो तुम बच्चों को ये तो न करना पड़ता’’ नानी बुदबुदाते हुए कमरे के अन्दर चली गई। ये परिवार था
संतराम का।
संतराम एक भला
इंसान था जो सरकारी नौकरी में कार्यरत था। उसका एक भरा पुरा परिवार जिसमें उसकी
पत्नी, तीन बेटियां एक बेटा था।
नौकरी के दौरान उसने कुल्लु में जगह खरीद कर घर बना लिया और अपने एक भाई को भी साथ
अपने घर में रखा। धीरे-धीरे उसने वहां सेब का बगीचा खरीदा और वह कुछ समय में वह
समृद्ध बन गया। उसके जीवन में कोई दुख ना था। परन्तु समय चक्र घुमा और एक दिन
संतराम की पत्नी का आकस्मिक देहांत हो गया। संतराम पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा
हो। जिस समय उसकी पत्नी का देहान्त हुआ उस समय अनुप मात्र 6 बर्ष, भाग्या 7 बर्ष, और नीलू मात्र 3 बर्ष की ही थी।
इतने छोटे बच्चों का पालन-पोषण कैसे करे यह उसके सामने एक बड़ी समस्या थी। हर्षा की
नानी ने अपने जंवाई को दुसरी शादी करने का मशवरा दिया पर संतराम अपने बच्चों के
मोह के कारण उनको किसी दुसरी माँ के हाथों
में नहीं सौंपना चाहता था। उसे डर था कि दुसरी माँ का क्या पता वो बच्चों को प्यार
करें या ना करे।
संतराम सरकारी
नौकरी में था उसे कोई भी लड़की सहज रूप से दे सकता था लेकिन संतराम ने शादी न करने
का निर्णय किया। उसकी बेटी हर्षा समय से पहले ही अपना बचपन छोड़ चूकी थी सबसे बड़ी
होने के कारण उसे अपने भाई बहनों की देखभाल करनी पड़ रही थी। खिलौनों से खेलने की
उम्र में वह घर का चूल्हा चैका एक माँ की
भांति संभालती और घर के कार्य और बच्चों की देखरेख में जुटी रहती। उसका बचपन मानों
दुखों के बीच कही खो सा गया था।
संतराम की सासू
माँ (नानकी) ने उसके बच्चों को सहारा
दिया। उसकी उम्र उस समय 50 के करीब रही
होगी। नानी उन बच्चों की देख रेख करने के लिये उनके घर आ गई। उनका भी कोई ना था
हर्षा और नानी दोनों मिलकर खाना बनाती और
बच्चों का ख्याल रखती। संतराम सुबह 8 बजे घर से निकलता और रात को घर वापिस पहुँचता। वह अपने बच्चों को एक उज्जवल
भविष्य देना चाहता था। वह बच्चों की परवरिष में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था। वह
बच्चों को पढा़ लिखाकर बड़ा बनाना चाहता था। यही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रह
गया था। समय बीता हर्षा अब दसंवी कक्षा में पहुंच गई थी। संतराम के रिस्तेदारों ने
बेटियों को आगे पढ़ाने से मना कर दिया। वे
लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने के हित में नहीं थे। भाग्य हर्षा दोनों को आगे पढ़ने का
शौक था पर चाहते हुए भी संतराम को बेटियों की पढाई को विराम देना पड़ा।उन दिनों
बेटियों की पढ़ाई को इतनी तबजों नहीं दी जाती थी। मात्र 1या 2 कलास पढ़ाकर उनको
घर के कार्यो में व्यस्त कर दिया जाता था
पर संतराम की सोच अलग थी उसने उन्हें पढ़ाया पर अब तक तो लोगों ने उसका दिमाग खराब
कर ही दिया था।
संतराम बेटियों
को पढ़ा लिखा कर क्लकटर बनाएगा। दुसरों के घर ही तो जाना है। इन्हें फिर क्यों पढ़ा
रहा है। इतना इन्हें घर के काम सिखा नहीं तो ये कहीं घर नहीं बसेगी’’ संतराम के बड़े
भाई ने कहा।
उस समय की बुरी
सोच थी बेटियों को मात्र चूल्हे चौके तक ही सीमित रखना चाहिये। उन्हें शादी करके
घर सम्भालना होता है। लोगों की बातों ने संतराम का दिमाग घुमा दिया और उसने उन्हें
दशवीं करवाने के बाद घर के कार्यों में लगा दिया। इसी बीच संतराम एक एक्सीडैंट में
चल बसे। बच्चों पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। नानी बहुत ज्यादा बजुर्ग हो गई
थी। वह अब काम करने में असमर्थ थी। फिर भी बच्चों के लिए उसे हर्षा के साथ काम
करना पड़ता था।
समय बीता संतराम ने बड़ी बेटी का विवाह एक बेलदार
लड़के के साथ कर दिया। लड़का मात्र 3 क्लास पढ़ा था।
उस समय जगह जमीन देख कर रिष्ते तय होते थे। कुछ समय बाद भाग्या की शादी भी करवा दी
उसका पति दशवी पास था और उनकी भी काफी जमीन थी। जिस घर में भाग्या की शादी हुई
वहां वे चार भाई थे और घर में थे उनके माता पिता। भाग्या का पति तीसरे नम्बर पर
था उससे छोटा उसका एक भाई था। जिसकी शादी
अभी बाकि थी। सभी भाई नौकरी करते थे सिवाये भाग्या के पति के। शादी के बाद जब वह
पहली बार ससुराल गई तो वहां सामान के नाम पर कुछ ना था। उस घर में क्या पुरे गांव
में बिजली नहीं थी सब लोग लालटेन से काम चलाते थे। भाई नौकरी में थे इसके बावजूद
भी घर में एक भी चारपाई ना थी। सभी चटाई बिछाकर नीचे फर्ष पर सोते थे। मिट्टी से
बना कच्चा घर था। जिसमें मात्र तीन कमरे व एक रसोई थी। सास-ससूर बरामदे में बाहर
सोते थे। भाग्या को रसोई में जगह मिली क्योंकि उनके लिए कोई अन्य कमरा न था।
भाग्या जिस घर से ब्याही थी वहां घर में बिजली, घर में हर जरूरी सामान मौजूद था लेकिन शादी के बाद तो जैसे
भाग्या के कर्म ही फुट गये जब उसने अपना पहला दिन ससूराल में सासू के ताने सुनते
बिताया। इस शादी से भाग्या का जीवन पूर्ण रूप से बदल गया। कुल्लु की इस बाला की
सोच और उसके ससुराल वालों की सोच में जमीन आसमान का फर्क था। भाग्या की सास सुबह
से लेकर शाम तक बहुओं से काम करवाती और खाने के नाम पर मात्र 2 रोटी बहुओें को देती। उनका पेट भरे या न भरे
इसकी उसे केाई परवाह न होती।
बेटे तो घर में
कोई ना होता सिवाये भाग्या के पति के क्योंकि बाकि अपनी नौकरी के सिलसिले में घर
से बाहर ही होते। भाग्या के पति को माँ की
यह बात हमेषा अखरती और एक दिन -’माँ इनको खाना तो पुरा दिया करो ’
’तु बड़ा हिमायती
बन रहा है इनका ? करता धरता कुछ
नहीं पल रहा है भाईयों के टुकड़ों पर। इनको जितना मिल रहा है उतना ही मिलेगा तू
ज्यादा देना चाहता है तो ले जा अपनी लुगाई को इस घर से। नमक-दाल का भाव पता चल
जायेगा।’’
सोहन (भाग्या के
पति) का मुंह गुस्से से लाल हो गया। सोहन घर में रह कर मवेषियों को चराने ज्रंगल
में ले जाता था और खेत में हल लगाने का पुरा काम करता था। पर उसके काम को उसकी
माँ कभी नहीं मानती थी। थोड़ी सी कहा सूनी
के बाद सोहन ने अपनी पत्नी को अपना एक जोड़ी सुट लेकर घर से चलने को कहा।
पत्नी दोराहे में
फंस गई पति की सुने या परिवार की। अभी मात्र एक महिना ही उसे उस घर में रहते हुआ
था। इस एक महिने में ही भाग्या ने बहुत कुछ सहा जिसका उसे कभी एहसास ही नहीं था।
उसकी जठानी ने उस पर झुठा गहने चोरी का ईलजाम लगा दिया था जबकि उस घर में भाग्या
को अभी एक सप्ताह भर ही हुआ था। सोहन उस दिन घर में नहीं था। और उसकी सास ने उसे
घर के बाहर सबके सामने नंगा कर उसकी तलाषी ली। सभी गांव की पास पड़ोस की औरतों को
ईक्ट्ठा कर भाग्या की जगहंसाई करवाई। जबकि सच तो ये था केाई गहने चोरी हुए ही नहीं
थे वो तो भाग्या को ससुराल का तड़का जो लगाना था। शाम को जब सोहन घर आया तो सभी ने
इस प्रकार बात की जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। सासु माँ भी बार-बार किसी ना किसी बहाने से भाग्या से
कुछ ना कुछ कहने पर मजबुर कर रही थी। पुरे महिने में कभी रोटी चोरी का ईलजाम,
कभी दुध घी की चोरी, कभी काम ना करने का ताना ना जाने क्या क्या।
और आज वही अभागी
भाग्या दोराहे में फॅंस गई। पति की सुने या परिवार की। सोहन बहुत गुस्सैल स्वभाव
का था इसलिये वह कुछ ना बोली और उसने अपना सामान बांध लिया। माँ के सामने तो पिताजी बोलने की हिम्मत नहीं करते
थे इसलिये किसी ने सोहन को नहीं रोका। भाभियों को दुःख था या खुशी वो तो वे नहीं
समझ सके। सोहन घर से निकलकर रामनगर मंडी में आ गया वहां उसने कोई काम न मिलने पर
एक दुकान में बर्तन मांजने का काम शुरू कर दिया और उसके रहने का भी प्रबन्ध हो
गया।
कुछ दिनों बाद
पटवारी का साक्षत्कार होना था मण्डी में सोहन भी भाग्य आजमाने के लिये साक्षात्कार
में गया। उस समय दषंवी पास होना भी बहुत बड़ी बात होती थी और हर पढ़े लिखे व्यक्ति
को कोई ना कोई नौकरी अवष्य मिल जाती थी। साक्षात्कार के लिये 50 युवक थे और साक्षात्कार के प्रथम दिन मात्र 13 लोगों को रखा गया। दुसरे दिन अगले 13 युवकों का ही साक्षात्कार हो सका। सोहन का
नम्बर दुसरे दिन भी नहीं आया। अब उसे दुकान से लाला छुट्टी देने के हित में नहीं
था। बडी मुश्किल से सोहन ने लाला से तीसरे दिन भी छुट्टी ली पर उस दिन भी उसका
साक्षात्कार नहीं हो पाया। झल्लाहट और गुस्से के मारे उसने साक्षात्कार ले रहे
अधिकारियो से उसका साक्षात्कार उसी दिन करने का आग्रह किया पर वे नहीं माने तो
उसने उन्हीं के सामने अपने प्रमाण पत्रों को फाड़ दिया और वहां से चला गया। सोहन के
ये गुस्सा उस पर भारी पड़ा अ बवह साक्षात्कार में नहीं जा पाया और उस समय जिन भी
युवकों का साक्षात्कार हुआ था वे सभी नौकरी लग गये सिवाये सोहन के। ये सोहन के
गुस्से का परिणाम था या उसके कर्मों का फल वो नहीं समझ सका।
पढ़ा लिखा होने की
वजह से 1 महीने के अंदर उसे अच्छी
नौकरी एक हॉस्टल में मिल गई। अब उनका समय खुशी से बितने लगा। कुछ समय बाद उसने एक
साबून फैक्ट्री में काम किया। कई सालों तक उसने फैक्ट्री में काम करता रहा और वहां
से उसने बहुत कुछ सीखा। इसी दौरान भाग्या ने एक लड़के को जन्म दिया। उसके ससुराल से
उनसे मिलने उनका हाल जानने के लिये कोई भी कभी नहीं आया। अभी भाग्या का बच्चा
मात्र 1 महीनें का हुआ था कि एक
दिन दायी जी ने बच्चे का नहाया और उसी के दौरान उस बच्चे की मृत्यु हो गई। सोहन ने
तो दाई को मार ही डाला था वो तो पड़ोसियों ने बीच-बचाव करा तो सोहन ने उसे छोड़
दिया। बच्चे का पुरा शरीर नीला पड़ गया था। अब वहां रहना सोहन के बस की बात न रही
उन दोनों को हर पल उनका किराये का वो मकान काटने को दौड़ता था। उन्हे हर पल बच्चे
की किलकारियां याद आती थी। फिर कया था सोहन वह जगह छोड़कर वृदावनी मण्डी से थोड़ी
दूरी पर किराये का मकान ले लिया। समय बदला अब सोहन की खुद की साबून फैक्ट्री थी
बहुत से कारीगर उसके पास हो गये थे और खुद की दो दो गाड़िया भी उसके पास थी। उसका
बनाया साबून चड़ीगढ, दिल्ली तक जाता
था। उस पर लक्ष्मी दोनों हाथों से मेहरबान थी। लेकिन समय के इन थपेडों से सोहन का
स्वभाव कुछ अजीब सा गुस्सैल, शक्की सा हो गया
था। वह छोटी-2 बात पर झगड़ा कर
देता था। पति के इस स्वभाव के कारण वह बहुत दुःखी रहने लगी। फिर भाग्या ने एक बेटी
को जन्म दिया उसके बाद से उसका जीवन बद से बदतर बन गया। उसके पति ने उसे बात-2 पर पिटना, उस से गाली गलौच करना शुरू कर दिया। भाग्या भोली, सुन्दर और सुषील थी और सोहन को भी पता था कि
उसकी पत्नी चरित्रवान और भोली है पर ना जाने क्यों अब उसे भाग्या को दुःख देने में
सुकुन मिलने लगा था या कि उसे कोई मानसिक बिमारी हो गई थी। भाग्या का कोई और अपना
ना था जिससे वह अपने दिल की बात कह पाती। माता-पिता तो कब के उसे छोड़ कर बहुत दुर
चले गय थे। अब वह सोहन के भरोसे ही तो थी। वह सोहन से प्रेम करती थी और हर सुख दुख
में उसी के साथ रहना चाहती थी। उसकी हर बात मानती थी। यही तो उसका भोलापन था। और
सोहन था कि वह हर पल उसे जब मन चाहे जलील करता चाहे वह कहीं शादी समारोह हो या कही
बाजार। वह कुछ नहीं देखता था बस बरबस एक-2 करके गंदी गालियां और अनाप शनाप बकता। इस पर भाग्या करती भी तो क्या वह हमेषा
चुप रहती और सब सहती रहती। उसके पति के इस
स्वभाव कारण उसकी गृहस्थी खराब होने लगी थी। सोहन को रोकने टोकने वाला कोई ना था।
भाग्या अपनी पहली बेटी होने के बाद से कभी अकेली मायके नही गई। जब भी जाती पति साथ जाते। वह एक कैदी सा जीवन जी रही थी।
और उसके मायके में था भी कौन एक बूढ़ी नानी और एक भाई वह दुःख बताती भी तो किसे। वह
पढ़ी लिखी थी पर ना जाने वो कौन से संस्कार थे जिन्होंने उसको बेडिया डाल रखी थी।
फिर कुछ समय और बीता उनके यहां दूसरी बेटी का जन्म हुआ। बेटियों को वह अच्छा
भविष्य देने के लिये सजग था। सोहन दिल का अच्छा था पर इस गुस्सैल सवभाव के कारण
उसकी अच्छाईयां किसी को नहीं दिखती थी। बात-बात पर लड़ाई झगड़ा उसके जीवन का हिस्सा
बन गया। भाग्या का भाग्य जीवन के भंवर में हिचकोले खाने लगा। बच्चों ने जब से होष
सम्भाला था तब से पिता का यही रूप देखा था बाकि सब बातें उनमें बहुत अच्छी थी।
सिर्फ ये बात छोड़कर। उसे इसके अलावा कोई अन्य बूरी बात न थी। कुछ समय बाद किसी
कारण फैक्ट्री बंद हो गई गाड़िया बिक गई। शायद घर की लक्ष्मी के श्राप उस पर पड़े
होगें। सब कुछ छोड़कर अब सोहन को एक चाय की
दुकान करनी पड़ी। वह उसी काम से अपने परिवार को पालने लगा। 7 सालों बाद उनके यहां तीसरी बेटी ने जन्म लिया। घर के खर्चे
दिन प्रतिदिन बढ़ रहे थे और दोनांे पति-पत्नी सुबह शाम तक काम करते ना कही घुमना,
कोई शौक नहीं सारा समय अपने बच्चों के अच्छे
भविष्य के लिये मेहनत करते।बेटियों को कभी ऐसा नहीं लगा कि उनके पिता उनसे प्यार
नहीं करते या उनको बोझ समझते है। लेकिन उनके गुस्से के आगे उनका प्रेम छोटा पड़
जाता था। उसने अब अपनी पत्नी का मायके जाना कब का बंद कर दिया था।
आज भाग्या 55 साल की है और उसके पति 65 साल के लगभग पर आज भी वही दस्तूर चला आ रहा
है। पल में सोहन उन पर प्राण छिड़कता और पल में प्राण लेने पर उतारू हो जाता है। आज
भी वह उसे बात-2 पर जलील करता है
उस पर गंदे गंदे इल्जाम लगाता है। जबकि उसकी पत्नी एक पल के लिये भी उसकी आखों से
परे नहीं होती उसी के साथ दुकान में दिन रात मेहनत करती है पर ना जाने वो ऐसे
क्यों करते हैं? शायद किसी पुरूष
का ऐसा स्वभाव उसकी खराब दिमागी मनोवृति के कारण हो। सोहन के साथ क्या प्रोबलम थी
वो तो वही जाने उनका अतीत उन्हें स्वयं मालूम होगा। लेकिन बेचारी भाग्या को आज भी
उसका पति ऐसी बातों से जला-2 कर उस जिंदा लाष
को जलाने से बाज नहीं आता। उसे आज भी उसकी दया नहीं। बेटिया ब्याह कर अपने ससूराल
जा चूकी है बेटियां जब तक उस घर में थी तब भी कुछ नहीं कर सकती थी और जब अपने घर
में चली गई है अब तो वो कर भी क्या सकती है। हां भाग्या की मझली बेटी ने कहा था जब
वह दशवी में थी -’मां तुम ऐसे
व्यक्ति के साथ रह कैसे लेती हो? इनको तलाक दे दो।
मैं आपकी जगह होती तो कब का ऐसे व्यक्ति को छोड़ देती। हम हमेषा आपके साथ रहेंगे’’
माँ
सिर्फ रोती और कुछ ना बोलती। आज जब मेरी शादी हो गई है तो आज पता चलता है
कि एक औरत के लिये उसका घर, उसका पति,
बच्चे क्या मायने रखते है। आज भाग्या के जीवन
की सांझढल रही है। उसकी बच्चों जैसी छोटी-छोटी अभिलाषांये है जिन्हे वो अब तक ना
पा सकी।
भाग्या का भाग्य
कैसा है कि बचपन में दुःख रहा। बचपन, यौवन और अब शायद बुढ़ापा भी दुख से ही कट रहा है।
रेखा
गांव व
डाकघर-गलमा,जिला-मण्डी(हिमाचल प्रदेश)
सम्पर्क
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