पहाड़ी के
उस पार राजधानी है
अनुज लुगुन का पहला काव्य संग्रह ‘बाघ और सुगना मुंडा की बेटी’ वाणी
प्रकाशन से अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है इसके पूर्व यह लंबी कविता के रूप में पक्षधर
पत्रिका में छप चुका है। इस काव्य संग्रह के पूर्व ही अनुज लुगुन हिंदी साहित्य में अपनी
पैठ युवा आदिवासी कवि के रूप में बना चुके हैं। इस काव्य संग्रह में इन्होंने
आदिवासी जीवन और दर्शन को गहरी पड़ताल के साथ अपनी संवेदना को उकेरा है। जब पूरे
विश्व में विकास की अंधाधुंध रफ्तार में प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों का दोहन किया
जा रहा है, कुछ मुट्ठी भर लोग दुनियाँ में पैर फैला रहे हैं, जहां पर एक दूसरे के प्रति संवेदना खत्म होती जा रही है, जहां पर लोग एक दूसरे को धकेलकर ,कुचलकर आगे बढ़ते
जा रहे हैं वहीं पर एक ऐसा समाज है जो सहजीविता की बात करता है, वह प्रकृति से जुड़ाव की बात करता है, संसाधनों की
संरक्षण की बात करता है,मनुष्य केंद्रित सोच से ऊपर की बात
करता है। जहाँ पर समाज में स्त्री को भोग की वस्तु समझा जाता है ,उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है इसका बोध दिलाया जाता है ,जहाँ पर बलात्कार की घटनाएं निरंतर होती रहती है वहीं एक ऐसा समाज है जहां
पर स्त्रियों के लिए इस तरह की बंदिशें नहीं है,उन्हें खुलकर
जीने की स्वतंत्रता है, उन्हें प्रेम और आंनद लेने की
स्वतंत्रता है।
यह विश्व दो भागों में बंट गया है, एक सत्ता और शक्ति से युक्त है और
दूसरा सत्ता और शक्ति से बेदखल। इन दोनों वर्गों में संघर्ष निरंतर चलता रहा है।
इन दोनों के अलावा इस धरती पर ऐसे भी लोग रहते हैं जो अपनी जरूरत के अनुसार जीते
हैं। प्रकृति में उपलब्ध चीजों को संरक्षण एवं बचाव के साथ उपभोग करते हैं। इन्होंने
इस दुनियाँ को जैसे को तैसे रखा है नदी ,पहाड़, झरना, जलप्रपात, जंगल और जमीन
को सहेज कर रखा है। आज के लोग थोड़ा पढ़ लिख गए हैं यानी उनमें ज्ञान आ गया है, और इस ज्ञान को वे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे है। इसका परिणाम
यह हो रहा है जल जंगल सिकुड़ते जा रहे है, नदियाँ मैली होती
जा रही है, पहाड़ समतल होते जा रहे है और धरती से निकला हुआ
कोयला लोगों के फेफड़ों तक पहुंच रहा है। इस विकराल समय में अनुज की लंबी
कविता" बाघ और सुगना मुंडा की बेटी" इतिहास में जाकर और आदिवासी
संस्कृति का सूक्ष्म पड़ताल करके एक जीवन दृष्टि को इस दुनियाँ के सामने रखने का
प्रयास किया है।
कविता के शीर्षक बाघ और सुगना मुंडा की बेटी है। अनुज लुगुन ने प्रारंभ में
ही बाघ का परिचय इस तरह से दिया है-
"जंगल पहाड़ी के इस ओर है और
बाघ पहाड़ी के उस पार
पहाड़ी के उसपार राजधानी है ।"
राजधानी का मतलब है, बाघ को शक्ति प्राप्त है इस स्थिति में उसके
नाखून का बढ़ जाना और आंखों का पहले से ज्यादा लाल और प्यासी होना स्वभाविक है। सत्ता
का संरक्षण मिलने के बाद बाघ की शक्ति सौ गुनी बढ़ जाती है और वह एक साथ कई गांवों
पर हमला करता है। बाघ के हमले को कवि ने दो रूपों में देखा है जहां से छलाँग लगाता
है वहाँ को बाघ के साथ अपनापन लगता है, वे
बाघ के साथ खड़े होते है लेकिन जहाँ पर छलाँग लगाता है वहां के लोगों को लगता है की
उनके जमीन ,जंगल और संस्कृति पर हमला है और वे प्रतिकार के
लिए उठ खड़े होते हैं। बाघ की एक और विशेषता है की जब वह हारने लगता है तब वहाँ के
लोगों के साथ छल करके लोगों को अपने मोहपांस में बांध लेता है। इसलिए ही तो सुगना
मुंडा की बेटी हैरान है की उस बाघ की पहचान कैसे करें।
विकास के नाम पर आदिवासी क्षेत्र के हज़ारों एकड़ जमीन हड़पी जा रही है, वहाँ तक रेल लाइन बिछायी जा रही है यह कहकर की आवागमन
आसान होगा लेकिन वास्तव में उनका इरादा विकास और सुविधा प्रदान करना नहीं बल्कि
संसाधनों को लूटना है। भिलाई इस्पात के लिए कच्चे लोहा के लिए अब दल्ली राजहरा
खत्म होने के बाद कांकेर जिले के लौह खादान पर नज़र है रावघाट परियोजना उसी के लिए
लाया गया है लेकिन बार-बार यह कहा जाता है इससे आदिवासियों के आवागमन के लिए
सुविधा होगी। रेल और यातायात से किसी को परेशानी नहीं है लेकिन आपका जो निहित
उद्देश्य है वह खुलकर उनके सामने रखिये। एक तरफ आप बाघ के संरक्षण के नाम पर जंगल
को रिजर्व क्षेत्र घोषित करके सदियों से रह रहे आदिवासी लोगों को विस्थापित कर रहे
हैं वहीं दूसरी तरफ सड़क और उसके चौड़ीकरण के लिए जंगल काटने के लिए अनुमति दे रहे
हैं। वह जंगल आपके लिए एक पेड़ और झाड़ियों का समूह हो सकता है लेकिन सुगना मुंडा के
लिए नहीं। अनुज लुगुन लिखते हैं-
"सुगना मुंडा जंगल का पूर्वज है
और जंगल सुगना मुंडा का
कभी एक लतर था तो दूसरा पेड़
........................................
दोनों के लिए मृत्यु का कारण था
एक -दूसरे से अलगाव’
जब जंगल को काटा जा रहा है उनको अपने ही जगह से हटाया जा रहा है। और यह
सहसा नहीं हो रहा है बल्कि एक सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है और रणनीति यह है
उनके समाज को तोड़ा जाय ,इसके लिए आदिवासी समाज के लोगों
में से ही तैयार किया जा रहा है इसको अनुज लुगुन ने पहचाना है –
"यह बाघ का ही हमला है कि
हम बिखर रहे हैं
हम भूल रहे हैं अपनी ही सहजीविता
लैंगिकता के साथ
पितृसत्ता का स्वीकार
हमारे खून में ज़हर भरेगा"
अनुज लुगुन इस संग्रह में सवाल इतिहास लेखन को लेकर उठाया है आप वैदिक ग्रंथ, धर्मशास्त्र और महाकाव्यों में बहुत कुछ लिखें लेकिन
क्या इसमे सुगना मुंडा की बातें शामिल हुई ,क्या उनके लिए इसमें
जगह बचती है। उत्तर है नहीं, आप इनके इतिहास को उपहास बनाएं है। ठीक है आप शामिल
नहीं करिए इनके लिए कोई इसका मायने नहीं है क्योंकि सुगना मुंडा के लिए अलिखित
करार और अबोले सहमति में ही ज्यादा विश्वास था। दिखावा और वाचालता नहीं बल्कि
मितभाषी उनका गुण है। लेकिन आपको इनके इन गुणों को उपहास बनाने का हक किसने दिया
है। अनुज लुगुन ने इसको इस तरह से उठाया है-
‘इतिहास ,दर्शन ,विज्ञान
और
यहाँ तक कि
रिश्ते भी लिपिबद्ध होने लगे
सुगना मुंडा के सामने
जो दुनियाँ बन रही थी
उसमे लिखित ही वैध था
और लिखा वही जा रहा था
जो विजेता चाह रहा’
सुगना मुंडा की बेटी इस लंबी कविता में मुख्य रूप से पात्र है उसके नाम पर
ही कविता का शीर्षक भी है। सुगना मुंडा की बेटी शीर्षक देकर अनुज लुगुन ने आदिवासी समाज
के लैंगिक समानता का पक्ष रखा है। अभी तक के इतिहासकार पुरूषवादी मानसकिता का
शिकार होकर इतिहास के बारे में लिखे हैं, जिसमें सुगना मुंडा की बेटी के लिए कोई
जगह नहीं थी। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि संघर्ष में केवल सुगना मुंडा के बेटा बिरसा
मुंडा का योगदान है लेकिन यहाँ पर कविता के माध्यम से ही इतिहास को चुनौती मिल रही
है और संघर्ष की नायिका सुगना मुंडा की बेटी प्रतिस्थापित हो रही हैं।
"उन्होंने नहीं लिखा कि
सुगना मुंडा की बेटी थी बिरसी
उन्होंने नहीं बताया कि
सुगना मुंडा की कोई बेटी थी या नहीं
उन्होंने जानने नहीं दिया कि
सुगना मुंडा की बेटियां घूंघट के नीचे
सहम कर नहीं जीती हैं
वे तो फरसे और धनुष के साथ बलिदानी हैं"
सुगना मुंडा की बेटी ही बाघ की गर्जना ,जिससे
जंगल की सूखी टहनियाँ और दीमकों की पपडियां झर रही है उसको चुनौती देती हैं।
"मुझे जल्दी बताओ
वह कौन है?
कहाँ से आया था?
मेरा खून मेरी आँखों से टपक रहा है
मेरा धनुष तन गया है
मुझे उसका पता चाहिए
मुझे उसका सही ठिकाना चाहिए..."
सुगना मुंडा की बेटी ऊर्जा से भरपूर है साथ ही उसके ऊर्जा को दिशा
देने के लिए रीडा हड़म है जो तात्कालिक प्रतिक्रिया का विरोध करता है और सूझ-बूझ से
काम लेने की बात करता है।आदिवासी दुनियाँ पर बाहरी समाज के प्रभाव और संपर्क को भी इसमें बहुत
ही गहराई से निरूपित किया गया है इस समाज में फैल रहे पितृसत्ता ,सामंती सत्ता, धर्म की सत्ता, पूंजी की सत्ता और संपत्ति का वैभव भी बाहरी समाज के प्रभाव का उदाहरण
है।
"जब तक हमारी दुनियाँ
एक द्वीप की तरह थी
तब तक समता थी
हमारे गीत -अखाड़े
सबके लिए बराबर थे"
धनंजय धनुष
पेशे से शिक्षक हैं,पटना बिहार में रहते हैं.
सम्पर्क
7488776559 |
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