तुलसीदास ने समूचे उत्तर भारत को
एकसूत्र में पिरोया था
तुलसीदास पर बात करते समय एक बात तो स्पष्ट हो गयी कि हमारे यहाँ के
इतिहासों ने अकबर को जिस ढंग से महिमा मंडित किया है वह ठीक नहीं है। चूकि
तुलसीदास अकबर के समकालीन थे इसलिए अकबर ने मूल्यांकन हेतु उनके काव्य को साक्ष्य
के रूप में रखा जा सकता है। इससे हिंदी का भी लाभ होगा और इतिहास का भ्रम भी दूर
होगा।
राम कथा केवल भारतीय सीमाओं तक सीमित नहीं थी यह थाईलैंड, मलेशिया और तिब्बत तक में
प्रचलित थी। राम कथा की जन-जन तक पहुँच इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। गाँव मजदूर
किसान भी तुलसी की चौपाईयों का उदाहरण देते हैं। यह बड़ी बात है कि एक ही ग्रंथ का
शिक्षित वर्ग में जितना सम्मान है, अशिक्षित वर्ग में भी
उतना ही सम्मान है। आज के लेखकों की बातें केवल शिक्षित वर्ग के ही समझ में आती
हैं अशिक्षितों तक उनकी पहुँच नहीं है।
मानव जीवन की शाश्वत वृत्तियों को समाविष्ट करने वाला साहित्य कालजयी
बन जाता है। जबकि केवल युग के यथार्थ को पकड़ने वाला साहित्य युग के यथार्थ के
बदलते ही केवल शोध् सामग्री में परिणत हो जाता है तुलसीदास का साहित्य निरन्तर
प्रवाहमान है।
एक बात और ध्यातव्य है कि भक्त कवियों ने निराश हो चुके लोगों को
सम्बल दिया। तुलसीदास अकबर के समकालीन थे और गुरू नानकदेव बाबर के। बाबर के आक्रमण
का वर्णन नानक देव ने इस प्रकार किया है-
‘खुरा साड़ खसमाना किया हिन्दोस्तान डराया’
यह हमला पंजाब पर था लेकिन नानक देव ने यहाँ हिन्दुस्तान कहकर देश की
भारत की अवधारणा को सामने रखा। इसलिए जो
लोग कहते हैं कि भारत की अवधारणा तो
ब्रिटिश साम्राज्य की देन है, उनकी धरणा ठीक नहीं है। क्योंकि नानक देव के जेहन में यह बात थी कि
अलग-अलग राजाओं के होते हुए भी पूरा हिन्दुस्तान एक है। यही बात तुलसीदास ने भी
कही। एक बात यह भी महत्त्वपूर्ण है कि यदि नानक देव के मन में समग्र भारत की अवधारणा
नहीं होती तो वे पंजाब से रामेश्वरम तक की
यात्रा क्यों करते? एक प्रश्न यह भी है कि नानक देव
रामेश्वरम के लोगों ये किस भाषा में बातचित कर रहे होंगे? दरअसल
आज जो यह प्रश्न उठता है कि पूरे हिन्दुस्तान को एक सूत्र में जोड़ने की भाषा कौन
सही हो? इसका उत्तर इन भक्तों की भाषा में निहित है। यह लोक
भाषा है जो तुलसी के पास भी थी नानक के पास भी थी। भक्तिकाल में कवियों का बड़ा
योगदान है- पूरे देश को एकसूत्रा में जोड़ने का राम ने समूचे भारत को एक सूत्रा में
बाँध और तुलसी ने समूचे उत्तर भारत को।
उदअसल हिंदी में एक गिरोह ऐसा है जो तुलसीदास को खारिज करना चाहता है
जबकि तुलसीदास ने समूचे उत्तर भारत को एकसूत्र में पिरोया था। भक्ति काल के कवियों
की भाषा अलग-अलग थी लेकिन कथ्य एक ही था। भक्त कवियों ने भारतीय इतिहास के उन
पात्रों को पुर्नस्थापित किया जो आम जनता में विदेशी शक्तियों से टक्कर लेने की
चेतना जगा सकें। इस तरह इन कवियों ने भारतीय जनता में पुनः उर्जा के संचार का
प्रयास किया।
गुरूगोविन्द सिंह द्वारा स्थापित खालसा पंथ के मूल में ही यही भक्ति
आंदोलन था। कालान्तर में खालसा पंथ ने अफगानिस्तान में, जहाँ से भारत पर सर्वाधिक
हमले होते थे, केसरिया झंण्डा लहरा दिया।
तुलसीदास ने रामकथा में एक विशेष संकेत दिया है। सीता के हरण के
उपरान्त राम चाहते तो अयोध्या से अपनी सेना मंगा कर रावण पर आक्रमण करते लेकिन
उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने वहाँ भी आम जनता को इकट्ठा करके उन्हें
प्रशिक्षण दिया और उनके द्वारा रावण का बध् करवाया यह घटना मुगल साम्राज्य के
विरूद्ध भारत के आम नागरिक में विश्वास पैदा करने वाली थी। बाज के साथ चिड़ियों को
लड़ाने की परिकल्पना भक्ति काल की देन हो।
अंत में
मैं बाबा साहेब के उस मत का उल्लेख करूँगा कि भारत में जय चंदों की कमी नहीं है यह
हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनकी पहचान करके उन्हें समाप्त करते रहें। इसका रास्ता
भी तुलसीदास के साहित्य में ही मिलेगा।
(प्रो.
कुलदीप अग्निहोत्री, कुलपति,
केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश )
प्रस्तुति -डा. सत्यप्रकाश,असिस्टेंट प्रोफ़ेसर,अदिति महाविद्यालय
अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-4,अंक-27 तुलसीदास विशेषांक (अप्रैल-जून,2018) चित्रांकन: श्रद्धा सोलंकी
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