शशांक श्रीवास्तव की कुछ कविताएं
(१)
आसमां पर लिखेंगे गुलाबी रंगों से
आसमां पर लिखेंगे गुलाबी रंगों से,
अब न हम डरेंगे ज़ुल्मी ढंगों से
जहां में गूँजेगा अपना साज़ कोई,
लेना है अब हमको ऊँचा परवाज़ कोई
अब तो कश्ती की कमान,डोर अपने हाथ में है
थामे पतंग की उड़ान, कौन कायनात में है?
हट गए काले मेघा, है रौशनी सब ओर
सूरज की आस में थे, चमक रही है भोर
आसमां पर लिखेंगे गुलाबी रंगों से,
अब न हम डरेंगे ज़ुल्मी ढंगों से
ये तराना है नया , ये फ़साना है नया
तोड़ी है ज़ंजीरें , ये ज़माना है नया
पायल टूट रहे , रिवाज़ छूट रहे
इक दिन नाज़ होगा, चाहे आज रूठ रहे
आसमां पर लिखेंगे गुलाबी रंगों से,
अब न हम डरेंगे ज़ुल्मी ढंगों से
(२)
पेड़ पुराने पात गिराकर नए को जगह देता है
पेड़ पुराने पात गिराकर नए को जगह देता है
इंसान पुराने याद मिटाकर नए को जगह देता है
उफ़ान पे बहती नदियों ने किनार बहा डाला है
हवा से खेलते मौसम ने तूफ़ान बना डाला है
लापरवाह अलावों ने घर-बार जला डाला है
जश्न मनाते यौवन ने बचपन को भुला डाला है
बढते रहने का फ़ितूर जो है वो सब करवा देता है
इंसान पुराने याद मिटाकर नए को जगह देता है
वक्त के झोंके मीनारों के रंग उड़ा देते हैं
मुनाफ़ाखोरी बाज़ारों को ढंग जुदा देते हैं
फ़िरंगी जूतों ने रंगोली बेअफ़सोस बिगाड़े है
पत्थर के जंगल ने फूलों के बागान उजाड़े है
बदलते रहने का दस्तूर जो है वो सब करवा देता है
पेंड़ पुराने पात गिराकर नए को जगह देता है
इंसान पुराने याद मिटाकर नए को जगह देता है
(३)
हौसला रखना यारा बात अबकी बन जाएगी
जाती हुई बहार भी लहरा के आएगी
रूठी सी सूरत फिर मुस्कुराएगी
टूटी सी सड़कें भी मंज़िल दिखलाएगी
हौसला रखना यारा बात अबकी बन जाएगी
पतझर सुखाड़ों को, उजड़े नज़ारों को
सँवारा सा कर देंगे, रंग उनमें भर देंगे
गर्दिश खिलखिलागी, खलिश सब भर जाएगी
हौसला रखना यारा बात अबकी बन जाएगी
कदम-ताल करते जब हम, दुश्मन के निकले हैं दम
खेलों के दाँव उलट दें, बुरे दिन के चाल पलट दें
कारवाँ जो निकलेगा ये, राहें झूम जाएँगी
हौसला रखना यारा बात अबकी बन जाएगी
(४)
तूने हथैली जो कंधे पे रखी मेरे
तूने हथैली जो कंधे पे रखी मेरे,
हम रुकावट सारे अब गिराकर चले
दुनिया भर से धोखे मिले हमको पर,
अपने हिस्से के वादे निभाकर चले
झोंक दिया है अँधेरों में किस्मत ने पर,
कालिमा को हीरे सा चमकाकर चले
बेड़ियों में रखा है ज़माने ने ग़र,
हम गुलामी में हुकूमत बनाकर चले
राहों में है किसी ने काँटे बिछाए,
हम काँटों से सीढियाँ कसकर आसमां पर चढे
चाहत में खाए हों ठोकर मगर,
हम ज़ख्म को चीरकर मुस्कुराकर चले
शशांक श्रीवास्तव
परामर्शदाता, डिनॉइट
आईटी-कम्पनी
अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-4,अंक-27 तुलसीदास विशेषांक (अप्रैल-जून,2018) चित्रांकन: श्रद्धा सोलंकी
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