रुसी कहानी
लेखक परिचय - मिखाइल
जोशेन्को (जुलाई 1895 – जुलाई 1958) एक प्रसिद्ध
सोवियत लेखक और व्यंग्यकार थे। रूसी साहित्य में अन्तोन चेखव के बाद के व्यंग्यकारों में मिखाइल जोशेन्को का
नाम अग्रणी है। जोशेन्को को रुसी क्रांति के बाद के दशक और सोवियत रूस के उदय के काल
में अपनी कहानियों में शुष्क हास्य और भाव-शून्य व्यंग्य के लिए बहुत ही
लोकप्रियता प्राप्त हुई। प्रस्तुत कहानी “कहानी मुर्ख बूढ़े की” भी उसी समय में
प्रकाशित उनके कहानी संग्रह “नीली किताब” से ली गयी है, जो उन्होंने रूसी
साहित्यकार मैक्सिम गोर्की के निवेदन पर लिखी थी, जिसमें उनकी कहानियों के पात्र
नए सोवियत रूस के सामान्य नागरिक हैं।
कहानी मूर्ख बूढ़े की
शायद आप पुराने समय की प्रसिद्ध पेंटिंग “बेमेल
शादी (वसीली पुकीरेव 1862) ” के बारे में जानते हों।कल्पना कीजिए कि इस पेंटिंग में दूल्हा और दुल्हन की तस्वीर बनी
है। दूल्हा एक ऐसा वयोवृद्ध है जिसकी उम्र तिहत्तर वर्ष या उससे कुछ ज्यादा ही है।
वह एक ऐसा जीर्ण जराग्रस्त आदमी है जिसे देखने की दर्शकों को शायद ही कोई इच्छा
होगी।
और दुल्हन ऐसी है कि, मानो, शादी के सफ़ेद लिबास
में कोई विश्व-सुन्दरी। वास्तव में वह कोई
ऐसी मासूम किशोरी है जिसकी उम्र उन्नीस वर्ष के आस-पास है। उसकी आंखें सहमी हुई हैं।
हाथों में चर्च की मोमबत्ती काँप रही है। और जब तोंदधारी पादरी पूछता है, “ऐ मूर्ख
लड़की, बता ! क्या तू इस शादी से सहमत है?” जवाब में उस लड़की की आवाज लड़खड़ा रही है।
यकीनन पेंटिंग में हाथों का काँपना, पादरी का
पूछना आदि सब बिलकुल नहीं देखा जा सकता। यह भी लगता है कि
तब के सैद्धांतिक कारणों से चित्रकार ने पादरी को चित्र में चित्रित ही नहीं किया
मगर पेंटिंग को देख कर हम इसकी कल्पना कर सकते हैं। इस कलाकृति को देख कर
आश्चर्यजनक विचार आते हैं।
ऐसा खूसट बूढा क्रांति (1917 की क्रांति) तक ऐसी
किशोरी के साथ बिलकुल ही शादी कर सकता था। क्योंकि हो सकता है कि वह कोई जज (महामहिम)
हो या कोई मंत्री या फिर कोई बहुत बड़ा पेंशनधारक हो, या हो सकता है कि उसका पेंशन
दो सौ से ज्यादा सोने के मुहरें हो और साथ ही बहुत बड़ी जागीर और बग्घी हो। और वह
लड़की गरीब परिवार की रही हो और उसकी माँ ने उसे साफ तौर से उसे कहा हो, “शादी
करो.”
यक़ीनन अब
ऐसा नहीं है। क्रांति के कारण यह सब अब पूराने जमाने की बात हो गई है और अब ऐसा
नहीं होता। अब हमारे यहाँ जवान लड़कियां जल्द ही जवान लड़कों से शादी कर लेती हैं।
कुछ ज्यादा उम्र की औरतें ही, ज्यादा
घिसे-पिटे मर्द के साथ रहती हैं। एकदम बूढे लोग कुछ दूसरी तरह के रुझान पाल लेते
हैं। जैसे कि वे चेकर्स खेलते हैं या नदी किनारे घूमते हैं।
ऐसा भी होता है कि जवान
लड़कियां बुजुर्गों के साथ ब्याह कर लेती हैं, मगर यह बुजुर्ग आमतौर पर बहुत बड़े
डॉक्टर या वनस्पति शास्त्री होते हैं या उन्होंने कोई आश्चर्यजनक आविष्कार किया
होता है या फिर कोई जिम्मेदार अकाउंटेंट होतें हैं जिसके पास देने के लिए बहुत ही
अच्छे आर्थिक साधन होते हैं।
इस तरह का विवाह किसी अप्रिय सोच को आमंत्रण नहीं
देता। इसके अलावा यह भी हो सकता है कि वास्तव में उनमें प्यार हो, या हो सकता है
कि उसमें कोई अच्छी प्रतिभा हो, या वो बहुत अच्छा वक्ता हो या फिर बहुत बड़ा
ज्ञानी हो और उसकी आवाज बहुत ही मोहक हो।
लेकिन इस तरह की घटनाएँ उदहारण के लिए जो ऊपर
तस्वीर में चित्रित की गयीं हैं अब नहीं घटती हैं और अगर इस तरह का कुछ होता भी है
तो वह अचंभे और हंसी का कारण बनती है। उदहारण स्वरूप
हाल ही में इस तरह की एक घटना लेनिनग्राद में घटी।
एक बूढ़े ने, जो कि एक सामान्य कर्मचारी था। इसी
वर्ष अचानक एक जवान लड़की से शादी कर ली। वह बीस वर्ष के आस-पास की बहुत ही खूबसूरत
लड़की थी, जो पेंजा शहर से आई थी और बुड्ढा साठ वर्ष के आस-पास जर्जर हालत में था।
उसका थोबड़ा जिन्दगी के झंझावातों से मुरझाया हुआ और आंखें लगभग लाल-सी थीं। अर्थात
एक ऐसा औसत दर्जे का व्यक्ति, जो कम से कम दस हर ट्राम में दिख जाते हैं।
और उस पर से वह ठीक से देख नहीं सकता था। वह,
अक्ल का मारा, वर्णांधता (रंगों के बीच अंतर न कर पाने वाले आँखों की बीमारी) का
भी शिकार था। वह सभी रंगों के बीच फर्क नहीं कर पाता था। वह मूर्ख हरे रंग को नीला
और नीले रंग को सफ़ेद समझता था और सबसे बड़ी बात यह की वह शादी शुदा था। और इस सब
के अलावा वह अपनी बुढ़िया के साथ एक बेकार से छोटे कमरे में रहता था।
और इन सब कमियों के होते हुए भी उसने अचानक सबको
चौंकाते हुए उस खूबसूरत बाला से शादी कर ली।
उसने अपने पड़ोसियों को इस घटना के बारे में
समझाया कि अब नए युग में बुड्ढे भी जवान और सुन्दर लगते हैं। उन लोगो ने उससे कहा,
”आप आन्दोलन और प्रचार कम ही कीजिए और इसके बजाय आप यह देखने कि कोशिश कीजिए कि वह
आप से क्या चाहती है। ये कहना मजाक ही होगा कि वह आपसे शादी करना चाहती है।”
बुड्ढे ने कहा, “मेरे पास शक्ल-सूरत और आन्तरिक
गुणों के अलावा कोई भी आर्थिक चीज नहीं है। आमदनी थोड़ी है। कपड़ों में सिर्फ एक
जोड़ी पैंट और दो एक फटे हुए रुमाल ही हैं। जहाँ तक आजकल की संपत्ति यानी कमरे की
बात है तो मैं अपनी बुढ़िया के साथ एक छोटे से कमरे में रहता हूँ और उसी में
इकट्ठे रहेंगे। और यह नौ मीटर के कूड़ेदान के सामने है, मैं ख़ुशी से पागल हो अपनी
उस सौगात के साथ रहूँगा जिसे किस्मत ने मुझे इस बुढ़ापे में सौंपा है।”
पड़ोसियों ने कहा, “आप की मति मारी गयी है, आपको
कुछ भी समझाना मुश्किल है।”
उसने कमरे को दो हिस्सों में बाँट दिया, उसकी
सफेदी करायी तथा रंग-रोगन भी करवा दिया और नौ मीटर के रंगीन छोटे कमरे में उसने
अपनी खूबसूरत जवान पत्नी के हाथों में हाथ डाले अपनी इस नयी शानदार जिन्दगी की
शुरुआत की।
देखते हैं, अब आगे क्या हुआ!
उसकी नयी जवान पत्नी ने छोटा कमरा किसी के साथ
बदल कर बड़ा कमरा ले लिया। हुआ ऐसे कि एक ऐसा आदमी मिल गया जो ज्यादा किराया नहीं
दे सकता था और वह कानूनी तौर पर मिले हुए पूरे नौ मीटर से ज्यादा नहीं रखना चाहता
था।
इस तरह से वह अपने बुद्धुराम को साथ लेकर एक नए
फ्लैट में चली आती है जहाँ पर उन्हें चौदह मीटर जगह मिल गई थी। वहां पर वह कुछ समय
के के लिए रहती है, और बड़ी मिहनत कर के उसने चौदह मीटर के कमरे को बीस मीटर के
कमरे के साथ बदल लेती है। और फिर से वह इस नए घर में अपने खूसट मूर्ख बुड्ढे के
साथ रहने चली आती है।
यहाँ आने के बाद वह बुड्ढे के साथ झगड़ना शुरू कर
देती है और समाचारपत्र में विज्ञापन देती है, कि बीस मीटर के सुन्दर फ्लैट के बदले
अलग-अलग इलाकों में दो छोटे कमरों की आवश्यकता है।
ऐसे दो लोग मिल ही गए जो साथ में रहने का सपना
देखते थे। उन्होंने ख़ुशी से इस फ्लैट के बदले अपने अलग-अलग इलाकों वाले दोनों
कमरे उन्हें दे दिए।
संक्षेप में, शादी के दो महीने बाद ही हमारा
मूर्ख बुड्ढा, जो शायद ही कुछ समझ पाया था, शहर से बाहर ओज़ेर्की इलाके में एक छोटे
से कमरे में ठूंठ की तरह अकेला पाया गया।
और वह जवान बाला
वसिलेव्सकी टापू पर
बहुत बड़े तो नहीं, मगर एक अच्छे से कमरे में बस गयी और घर पाने के तुरंत बाद ही उसने एक जवान इंजीनियर से शादी कर ली और अब वह बहुत खुश और संतुष्ट है।
मूर्ख बुड्ढा इस धूर्तता के लिए इस जवान बाला पर
मुकदमा चलाना चाहता था और इसके लिए उसने एक वकील से भी बात की। मगर इस वकील ने हंस
कर कहा कि इस केस को धोखाधड़ी साबित करना बहुत ही मुश्किल है, और हो सकता है कि
शुरू में वह सचमुच में आपको पसंद करती हो मगर बाद में नजदीक से जानने पर उसे
निराशा हाथ लगी हो।
हमारा मूर्ख बुड्ढा इस तरह के मीठे-मीठे सपनों से
शांत हो गया। अब रोज रेलगाड़ी पर हिचकोले खाता बहुत देर में ओज़ेर्की से काम पर
पहुँचता है। इस तरह बुड्ढा कुछ भी अनुमान नहीं लगा सका। एक अनुभवी को बच्चे ने मात
दे दी थी। वह भावनाओं और प्यार के सपनों में बह गया था, और इसलिए उसे हरेक तरह की
मुसीबतें झेलनी पड़ीं।
जैसा आप देख ही रहे हैं, प्यार के मोर्चे पर हमें
भी नाकामयाबी झेलनी पड़ती है, मगर यह जवानी के मुकाबले बुढ़ापे मे ज्यादा होती है।
बुढ़ापे में तंग हाथ, लाल और कमजोर आँखें प्यार के अनुकूल नहीं होते।
यह थी लाभ के लिए किये गए प्यार की एक छोटी -सी
कहानी।
( अनुवादक : सुभाष कुमार, शोधार्थी, रसियन भाषा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय)
( अनुवादक : सुभाष कुमार, शोधार्थी, रसियन भाषा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय)
अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-4,अंक-27 तुलसीदास विशेषांक (अप्रैल-जून,2018) चित्रांकन: श्रद्धा सोलंकी
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