सिनेमा :‘लैला’ एक खतरनाक भविष्य को आगाह करती हुई वेब सीरीज/राजू सरकार

                   लैला एक खतरनाक भविष्य को आगाह करती हुई वेब सीरीज

(गूगल से साभार)
मेरा जन्म ही है मेरा कर्ममेरा सौभाग्य है मैंने इस धरती पर जन्म लिया', इन्हीं पंक्तियों के साथ कट्टर धार्मिक मानसिकता पर चोट करते हुए शुरुआत होती है Netflix पर आई सीरीज लैला की कहानी। 2017 में आया प्रयाग अकबर के उपन्यास लैला’  को आधार बना कर बनायीं गयी यह वेब सीरीजभारत के एक बहुत संभावित लेकिन भयावह भविष्य की और संकेत करती है। जहाँ देश की उन्नति के लिए धार्मिक कट्टरता को आदर्श व्यवस्था बनाकर जनता पर थोप दिया जाता है।

लैला की कहानी 2040 के दशक के अंतिम वर्षों के इर्दगिर्द किसी dystopian देश में स्थित है। इस सीरीज में दिखाया गया देश वर्तमान का भारत प्रतीत होता है, जो कट्टर हिन्दुत्ववादी ताकतों के सत्ता में आने के बाद आर्यावर्तमें बदल जाता है। जिसका नेतृत्व जोशीनाम का एक शक्तिशाली व्यक्ति करता है। जोशी कौन? वह तत्कालीन आर्यावर्त का नेता है। जोशी की छवि अर्ध-दैवीय शक्ति के रूप में प्रस्तुत की गयी है। जिसे आर्यावर्त की स्थापना करने के कारण उसके समर्थक भगवान मानते हैं। आर्यावर्त ऐसी जगह है जहाँ हर समुदाय धर्म, जाति और कमाई के आधार पर बटा हुआ है उनके लिए अपने अलग-अलग रहने के क्षेत्र निर्धारित हैं। जो बड़ी-बड़ी दीवारों द्वारा एक-दूसरे से अलग की गई हैं। कानून व्यवस्था पौराणिक हिन्दू मान्यताओं पर आधारित है अर्थात शुद्धता ही कानून है.  

मुख्य किरदार 

हुमा कुरैशी सीरीज में मुख्य किरदार में हैं, जो शालिनी पाठक नाम की महिला का किरदार निभा रही हैं। शालिनी पाठक को मुस्लिम व्यक्ति से शादी के कारण अपनी बेटी लैला से अलग कर दिया जाता है। पूरी सीरीज एक माँ के द्वारा अपनी बेटी को ढूंढे जाने के संघर्ष के इर्दगिर्द घूमती है। सीरीज में राहुल खन्ना, रंग दे बसंती में काम कर चुके सिद्धार्थ, आरिफ ज़कारिया, सीमा बिस्वास, संजय सूरी, अनुपम भट्टाचार्य और आकाश खुराना जैसे अन्य कलाकारों ने भी काम किया है। सभी कलाकारों का काम सराहनीय है। सीरीज में सबसे प्रभावित करने वाला काम सिद्धार्त का लगता है, जो एक गुप्त विद्रोही भानूका किरदार निभा रहें हैं। जिसका मकसद क्रांति कर आर्यावर्त को जोशी के चंगुल से आज़ाद कराना है।

सीरीज में क्या है ख़ास?

लैला एक ऐसी थ्रिलर है जो देखने वाले के मन पर भविष्य के भारत को लेकर कई सवाल छोड़ देती है कि आज जिन चीजों को हम जानते-समझते नजरअंदाज कर रहे हैं, वह भविष्य में व्यापक रूप धारण कर हमारे अस्तित्व के लिए ही खतरा बन सकता है। मिसाल के तौर पर सीरीज में ग्लोबल वार्मिंग के सबसे भयानक रूप को दिखाने की कोशिश की गई है। साथ ही साथ पीने के पानी के जिस संकट से वर्तमान में भारत के कई शहर और गाँव गुज़र रहे हैं उस ओर भी यह इशारा करती है। इसके अलावा सीरीज में एक माँ का संघर्ष भी है। उस माँ का संघर्ष जिस समाज में चल रहा है उसकी वीभत्सता है। काले पानी कि बारिश, वातावरण में ज़हर का रूप ले चुकी ज़हरीली हवा, बहुमंजिला इमारतों के बराबर कूड़े के जलते ढेर, मजदूरी के लिए बंदी बनायीं गयी महिलाएं और ताज महल विध्वंस जैसी कई चीज़े इस सीरीज को भारत में बनायीं गयी किसी भी वेब सीरीज से ज्यादा ख़ास बनाती है। सीरीज में बखूबी दिखाया गया है कि धार्मिक सत्ता चाहे किसी भी धर्म की हो उसमे शोषण का शिकार हमेशा महिलाओं को ही होना पड़ता है.
  
जिस तरह गाहे-बगाहे धर्म के आधार पर देश को चलाने की कई लोग सलाह देते है और उसके लिए अपने-अपने तर्क देते है. उन लोगों पर भी यह सीरीज पैना तंज कसती है। सीरीज को देखते समय 2014 से लेकर अब तक बेरोक-टोक चली आ रही मोब लिंचिंग्स और बुद्धिजीवियों को कथिक रूप से देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता कर जेल में डालने जैसी घटनाओ का स्मरण होना भी स्वाभाविक है। यही इस सीरीज की सबसे सराही जानी वाली बात भी है कि लैला कहानी 2040 के दशक की है लेकिन, देखने वाले को बार-बार आज की सच्चाई का बोध कराती है. यह सीरीज अपने आप में अलग इसलिए भी है क्योंकि इससे पहले हिंदी में इस तरह लीक से हट कर किसी ने कुछ नहीं बनाया है।

  इस सीरीज को दीपा मेहता, पवन कुमार और शंकर रमन समेत कुल तीन निर्देशकों ने मिलकर निर्देशित किया है। सीरीज को कुल 6 एपिसोड्स में बनाया गया है। जिसमे पहला एपिसोड कहानी को काफी तेज़ी से बयां करने की कोशिश करता है, वहीं बाकी के एपिसोड दर्शकों को अपने साथ बांधे रखने की कोशिश करता है. सीरीज जिस ‘dystopian’ समाज की बात करती है उसे और बेहतर समझने के लिए एल्य्सियम (Elysium), द मेट्रिक्स (The Matrix) और ओब्लिविओन (Oblivion) जैसी हॉलीवुड फिल्मे देखी जा सकती हैं या फिर The Handmaid's Tale, जॉर्ज ओरवेल की 1984, ब्रेव न्यू वर्ल्ड (Brave New World), Fahrenheit 451 जैसी किताबें भी पढ़ी जा सकती है।

एक झलक उग्र हिन्दू राष्ट्रवाद की

 आपने कभी सोचा है? क्या हो अगर बाबरी मस्जिद की ही तरह ताजमहल को तोड़ दिया जाए? या फिर ग्लोबल वॉर्मिंग इतनी बढ़ जाए की सांस लेना मुश्किल हो जाए, पानी की इतनी कमी हो जाए कि उसके लिए लोग मारकाट पर उतर आयें और जगह-जगह पानी के एटीएम लगा दिए जाएँ और उस पानी के लिए भी आर्थिक आधार पर पक्षपात हो, धर्म के आधार पर देश चलाया जाए और इसका विरोध करने पर नरक जैसी सजा दी जाए, या घर वापसी जैसे कट्टर हिन्दुत्ववादी विचार को सरकार की मान्यता मिल जाए। 

सोच कर ही रूह कापने लगती है न? ठीक ऐसा ही कुछ दिखाने की कोशिश की गयी है वेब सीरीज लैला में। जहाँ हिन्दू राष्ट्र के नाम पर लोगों से उनकी आज़ादी के बदले हिंदुत्व का चोगा ओढ़ने को मजबूर किया जाता है। विरोध करने वाले को दूश’ (अशुद्ध नस्ल) की उपाधि देकर मुख्य शहर से बाहर निकाल दिया जाता है। जहाँ रहने वालों को दूशकहा जाता है। इस भविष्य में गाँधी तो है किन्तु हिंदुत्व के सिपाहियों के सामने उन्हें भी छिपा कर रखना पड़ता है। विडम्बंना यही है कि आर्यावर्त में भविष्य की उन्नत तकनीक तो है किन्तु गाँधी के विचार नहीं। गाँधी के विचारों को वह लोग समेटे बैठे हैं जिन्हें सत्ताधारियों ने दूश की उपाधि देकर शहरों से बाहर निकाल दिया है।

आर्यावर्त एक ऐसा देश है जहाँ स्वतंत्र विचार रखने वाले को मौत या देश निकाला और सत्ता की जी हजूरी करने वाले को चिड़ियाघर के जानवर जैसी ज़िन्दगी मिलती है। आज हम महिला सशक्तिकरण, महिलाओं को संपत्ति में बराबर का अधिकार और समाज में बराबरी के अधिकार के बारे में बात करतें हैं. वहीं सीरीज में बखूबी दिखाया गया है कि कैसे धर्म आधारित सत्ता में महिलाओं को हमेशा एक वस्तु माना गया है और माना जाता रहेगा एवं पुरुषवादी समाज में कैसे महिलाऐं केवल पुरुषो की संपत्ति बनकर रह जाती हैं। 
  
2014 से पहले हम आज़ादी के नारे केवल जम्मू-कश्मीर में सुनते थे। जगह-जगह दीवारे हमें चाहिए आज़ादीके नारों से रंगी नज़र आती है। जो बाद में हर उस व्यक्ति का नारा बन गया जो सत्ता से सवाल पूछने की हिम्मत रखते थे। पर आपने सोचा है कि क्या हो अगर यह नारा पूरे देश का हो जाए? आर्यावर्त में हर स्वतंत्रता प्रेमी और बुद्धजीवी का यही नारा है। वर्तमान में भारत में बुद्धजीवी और अपनी इच्छा से जीने की मांग करने वालो के साथ सरकार का जो तानाशाही रवैया है, उसी का व्यापक रूप प्रस्तुत करती है लैला। लैला की कहानी में जिस डिजिटल भविष्य की कल्पना की गयी है वह आज के कथित रूप से विकास की ओर बढ़ते भारत को नग्न करती नजर आती है। 


राजू सरकार
बी.ए. मास मीडिया,जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 30(अप्रैल-जून 2019) चित्रांकन वंदना कुमारी

Post a Comment

और नया पुराने