चंद्रदेव यादव की भोजपुरी कविताएं
गीत-1
हम अपने आँगन क माटी
संच के रक्खीला,
माटी ना, पुरखन क थाती
संच के रक्खीला।
कबों-कबों पलकन से छू के
एकर तिलक लगाई,
माँ क ममता, प्यार पिता क
छन भर में पा जाईं।
ई माटी ह राग प्रभापी
संच के रक्खीला।
जानल-अनजानल चीजन क
ऐसे खुसबू आवे,
भूलल-बिसरल पितरन क
ई माटी अलख जगावे।
एम्में ह आपन परिपाटी
संच के रक्खीला
येह में जब-तब तुलसी चौरा
कोहबर क छवि दीखे,
येह में जियन-मरन क छाया
सारे सपन सरीखे।
दियवट पर क दीया-बाती
संच के रक्खीला।
गीत-2
पवन पानी धूप खुसबू
सब हकीकत ह, न जादू!
जाल में जल, हवा, गर्मी
गंध के के बान्ह पाई?
रेत पर के घर बनाई?
हम नदी क धार देखीं
फ़िर आपन बेवहार देखीं
भूमि जल पर आज नइकी
सभ्यता क मार देखीं
जेह दिया से हो उजाला
वोह दिया से घर जराई।
एक भुजा में दर्द होखे
दूसरी तब दर्द होखे,
आँच गुंबद-पर जे आवे
चान-सूरज के मिला के
के सही रास्ता देखाई?
ई हकीकत, ना फसाना
एके जानत ह जमाना
कट के मारी धूर से केहु
गाई ना सुख क तराना।
सात रंग हो, सात सुर त। जग
हमेशा मुस्काई।
गीत -3
जिनगी घर क फुटल-पचकल/ धूँअसल बासन ह
कब से खुसी बदे तरसत/ई चेहरा आपन ह।
लिख के बारहखड़ी समय,फ़िर
एके पचरेला,
सतर खींच, अनलिखा छोड़ के
पल में बिसरेला।
जिनगी खरिहाने में सूखल/पड़ल बढ़ावन ह।
उमिर हवे पगडंडी जह पर
काँट-कूस ह जामल,
ठिल्ली के बेंगा नाईं दुख
घर में ह तावल।
सुख गोहरउले वाला संच के/रक्खल आलन ह।
बहुत जतन कइली सुख-सम्पत
घर में आइल ना,
नादी में क दूध पसर भर
कबों फोफ़ाइल ना
कइसे आई खुसी घरे, जब/फेरल तावन ह।
(प्रोफेसर चंद्रदेव यादव, जामिया मिल्लिया
इस्लामिया में हिन्दी के शिक्षक हैं।)
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 30(अप्रैल-जून 2019) चित्रांकन वंदना कुमारी
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