तुलसीराम विचारों से बहुत स्पष्टवादी थे, वे बिना किसी लाग-लपेट के भारतीय राजनीति विशेषकर
दलित-पिछड़ी राजनीति पर बोलते हैं। उनका मत है कि किस तरह से समाजवादी सरकार ने
दलितों के साथ भेदभाव किया था-"उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार आने के बाद
बरेली के पास ही एक गाँव के मंदिर में दलितों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया
था" यह कृत्य उस समाजवादी विचारधारा की है जो खुद को समाज का ठीकेदार समझती
है। तुलसीराम ने यहीं तक नहीं देखा है उन्होंने यह भी कहा है कि दलितों के राजनीति
में प्रवेश के समय वे हाशियाकृत थे, जब से कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की नींव डाली और जातियों का सम्मलेन शुरू
करने का आह्वान किया तब से दलित सामाजिक आन्दोलन कुंद पड़ता गया और राजनीति हावी
होती गयी।
वे इसका जिम्मेदार मायावती को मानते हैं। उनकी नीतियों को मानते हैं। उन्होंने
कहा कि-"यदि समाज बदलना है तो सामाजिक आन्दोलन बहुत जरूरी है। सामाजिक
आंदोलनों का राजनीतिक आंदोलनों पर वर्चस्व होना चाहिए।" निस्संदेह यदि भारतीय
राजनीतिक परिस्थितियों का गौर से मूल्यांकन करें तो पाते हैं कि डॉ. भीमराव
अम्बेडकर का आन्दोलन उस समय एक सामाजिक आन्दोलन था, जिसने राजनीति को विवश कर दिया अपनी नीतियों में तब्दीली
करने के लिए। उन्होंने लिखा भी कि-"गाँधी, अम्बेडकर की लड़ाई भिन्न थी। गाँधी राजनीतिक आजादी चाहते थे,
अम्बेडकर राजनीतिक आज़ादी के साथ सामाजिक आज़ादी
तथा समानता चाहते थे।" कालान्तर में अम्बेडकर की इस मंशा को उन्हीं के
उत्तराधिकारियों ने बेच डाला।
प्रो. तुलसीराम ने बड़े कड़े शब्दों में इसकी पोल खोलते हुए दिखाया है कि किस
तरह महाराष्ट्र में दलित मूवमेंट ख़त्म हो गया। अम्बेडकर जी की पार्टी 'रिपब्लिक पार्टी आफ़ इण्डिया' सैकड़ों टुकड़ों में बंट गयी। 'दलित-पैंथर' जो अफ्रीका के आन्दोलन से प्रभावित था, उसके लोग बिक गए। उन्होंने स्पष्ट किया कि
आर.पी.आई. के चार धड़े हुए जिनमें, रामदास अठावले-
शिवसेना-बीजेपी, प्रकाश आम्बेडकर-
एन.सी.पी., योगेन्द्र कबाड़े- बीजेपी,
आर.एस. गवई-कांग्रेसी हो गए और सत्ता भोग में
लिप्त हो गए। तुलसीराम की मुख्य चिंता यह रही है कि राजनीति से कभी हाशियाकृत समाज
की स्थिति नहीं सुधरने वाली है, उसके लिए सामाजिक
आंदोलनों की जरूरत पड़ती है जो होने चाहिए। सत्ताधीशों के सिर्फ चेहरे बदलते हैं
चरित्र कभी नहीं बदलता है।
तुलसीराम ने हिन्दू समाज की सबसे बड़ी बुराई धर्म को बताया है। उन्होंने यह कहा
है कि सारे संसार में 350 प्रकार के धर्म
पाए जाते हैं, जिनमें एक मात्र
हिन्दू ऐसा धर्म है जिसके देवी-देवता शस्त्र बद्ध दिखाई पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि
जब ऐसे खूँखार देवता, जिनके पास
अस्त्र-शस्त्र हों तो उनके पूजने वाले कितने खूँखार हो सकते हैं। उन्होंने भारत से
बौद्ध-धर्म के पतन की भी दास्ताँ बतायी है। किस तरह से दक्षिण का शंकराचार्य
आठवीं-नवीं शताब्दी में सारे भारत से बौद्ध-मठों को तहस-नहस करवा के ब्राह्मण धर्म
की प्रतिष्ठा सैनिक के जोर से की थी। बौद्ध-धर्म के द्वारा प्रभावित संत-साहित्य
भी अपने समय में कुरीतियों के खिलाफ मुखर था, जिसके पुरोधा संत कबीर और अन्य संत कवि थे। इन्होंने
हिन्दू-धर्म के भीतर छिपी हुए बुराइयों को बेनकाब करने का काम किया था। जिसका अगला
विस्तार दलित-साहित्य है।
दलित साहित्य पर उनकी बेबाक राय है कि "जाति व्यवस्था के विरोध में लिखा
गया साहित्य ही दलित साहित्य है, वह चाहे कोई भी
लिखे।" तुलसीराम की असल चिंता जातीय ध्रुवीकरण की थी। उनका मानना है कि यदि
जातीय आधार मजबूत होता रहेगा तो समाज में समरसता कभी नहीं आ पायेगी अतः जाति के
समीकरण को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। यदि हम इतिहास उठाकर देखें तो पाते हैं कि भारत
में जाति को मजबूत करने का जिम्मा 'शूद्र' कहे जाने वाले लोगों ने ही उठा रखा है। जातियों
और वर्णाश्रमों को पैदा करने वाले ब्राह्मण खुद इनमें विश्वास नहीं करते हैं। जाति
व्यवस्था को संचालित करने वाले वर्ग पर टिप्पणी करते हुए तुलसीराम कहते
हैं-"आप किसी शहर पर परमाणु बम गिरा दीजिये तो वह उसकी एक-दो पीढ़ियों को ही
नष्ट कर पायेगा। लेकिन हमारे समाज पर थोपी गयी जाति व्यवस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी
संभावनाओं का संहार करती आ रही है।" इसीलिये वे अम्बेडकर के हवाले से कहते
हैं कि-"जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म की साँस है।" यदि आप हिन्दू धर्म में
व्याप्त बुराइयों से छुटकारा पाना चाहते हैं और समाज में मानव होकर जीना चाहते हैं
साथ ही इस देश को बचाना चाहते हैं तो इस साँस को बंद करना ही होगा।
हिन्दू-धर्म कई मोड़ों को साथ लेकर चलता है। वह धर्म के द्वारा संस्कृति और
संस्कृति के माध्यम से मिथकों का निर्माण करता है। ये मिथक जन सामान्य में इस तरह
बस गए हैं कि उनसे पार पाना मुश्किल हो रहा है। तुलसीराम ने ज्योतिबा फुले का
उदाहरण देते हुए कहा कि-"एक गरीब ब्राह्मण
इतना ज्यादा अंधविश्वास को फैलाता है, इतना ज्यादा मिथकों को फैलाता है, कितना ज्यादा वो जातिवाद को फैलाता है कि अमीर ब्राह्मण
उसका कुछ नहीं कर सकता जितना कि वह दलित ब्राह्मण।" फुले की 'गुलामगीरी' में गुलाम बनाने के कारण भी उन्होंने गिनाये हैं-
अंधविश्वास, मिथकों का प्रचार,
अशिक्षा। इन तीनों के द्वारा महात्मा फुले को
भी कष्ट उठाना पड़ा था। उन्होंने आज की शिक्षित पीढ़ी को भी सवाल के घेरे में लेते
हुए कहा है कि-"पढ़े-लिखे होने से ही शिक्षित होना नहीं होता है। बल्कि पढ़
लिखकर के जो आदमी एक तरह से अशिक्षितों की तरह व्यवहार करे यानी अन्धविश्वास,
मिथकों में विश्वास करे तो वह पढ़ा-लिखा नहीं
होता।" तुलसीराम ने धर्मकीर्ति के हवाले से मूर्खों की पहचान भी गिनाई है-
वह व्यक्ति जो ईश्वर में
विश्वास रखता है
वह व्यक्ति जो संसार कर्ता किसी अन्य ईश्वर
को मानता है।
वह व्यक्ति जो नदी-नाले में
नहाने को धर्म समझता है।
वह व्यक्ति जो शरीर को कष्ट
देकर व्रत रखता है।
वह व्यक्ति जो जाति पर गर्व
करता है।
इन पाँच लक्षणों से संपन्न जो भी व्यक्ति जड़ता का मारा है वे मूर्ख कहलाते
हैं। भारत में ये पाँच गुण जिस व्यक्ति में होते हैं वह साधु या महात्मा कहलाता
है। जातीय गौरव और अभिमान का पूरा इतिहास ही भरा पड़ा है इस देश का। तुलसीराम की दृष्टि समाज में पायी जाने वाली कुरीतियों की ओर लगी थी। जड़ता,
अंधविश्वास, अशिक्षा, धर्म का अतिशय
प्रचार, राजनीतिक गैर जिम्मेदारी,
सामाजिक आंदोलनों का समाप्त होते जाना एवं
जातिवाद, वर्णाश्रम व्यवस्था का
मजबूत होते जाना। ये कुछ ऐसे कारण बताये हैं जिनके कारण अर्जक समाज आज भी कष्ट
उठाता है और असमानता का शिकार होता है। सामंती समाज होने से समाज में भुखमरी-गरीबी
की हालत बनी हुयी है।
वे पूंजीवादी देशों की कारगुजारियों का भी पर्दाफाश करते हैं। राजनीति विषय के
विद्वान होने के कारण उन्होंने विश्व-स्तर की राजनीति और उसमें अमरीका की दलाली को
भी बेनकाब किया है। उनके मत से इस संसार में पूंजीपति वर्ग की ही देन है आज का
आतंकवाद, नक्सलवाद आदि जिनकी आड़
में हथियार की सप्लाई, ड्रग्स का
व्यापार, धर्म के धंधे आदि बढ़ रहे
हैं। पी. हंटिगटन की किताब 'द कलैस आफ
सिविलाईजेसन' की थ्योरी के
आधार पर कि "यदि दुश्मन नहीं है तो पैदा करो" की नीति पर चलकर अमेरिका
ने दादागीरी करनी शुरू कर दी। उसकी देखा-देखी पश्चिम के अन्य देशों ने वही राह पकड़
ली है। ऐसे में वे यह मानते हैं कि अब के दौर में सबसे बड़ा खतरा समाजवाद के ऊपर
है।
मार्क्सवाद जिस थ्योरी पर विकसित हुआ था उसके कुछ कारण थे जिनमें फ्रेंच
सोसलिज्म, जर्मन आइडियोलॉजी,
और ब्रिटिश पोलिटिकल इकोनामी। और मार्क्स के
द्वारा सृजित पाँच वे वर्ग जो उनके सिद्धांत के रीढ़ बने थे। अब भूमंडलीकरण के कारण
जब सोवियत संघ का विघटन हो गया तब ऐसे देश जो रसिया को समाजवाद का आइना मानते थे,
उनका क्या होगा? रसिया में समय के साथ हथियारों की होड़ सामने आयी। वह भी
पूंजीवादी देशों के नक्शे-कदम पर चलना शुरू कर चुका है। रसिया में किसानों की जमीन
को सरकारी करने के लिए स्टालिन ने लगभग तीस लाख किसानों को मरवा डाला था। जिसका
उल्लेख शायद कहीं नहीं किया गया है।
आज सबसे बड़ी समस्या उसके सामने ही खड़ी हो गयी है। ऐसे में फासीवाद को बढ़ावा
मिलना ज्यादा आसान हो जाता है। भारत के संदर्भ में समाजवाद की उनकी दृष्टि एकदम
साफ़ है। वे यहाँ के छद्म मार्क्सवादियों के प्रति कठोर विचार भी रखते हैं। तुलसीराम भारतीय राजनीति एवं 'आर. एस. एस'.
और 'विश्व हिन्दू' परिषद् की नीति
पर खुल कर बोलते हैं। उनका मानना है कि "यदि इस देश में फासीवादी ताकतें
मजबूत हुईं तो संसार में कम से कम पचास देश फासीवादी हो जायेंगे।" इसलिए इस
देश को, इस देश के लोकतंत्र को
बचाना है तो समाजवादी विचारधारा के साथ अम्बेडकर के विचारों को और इस देश के कानून
को मजबूत बनाना होगा।
यदि हम तुलसीराम के योगदान की समीक्षा करें तो पाते हैं कि वे ऐसा मुल्क चाहते
थे जिसमें कानून का राज हो, समाज में समानता
हो, मानवतावाद को बढ़ावा मिले,
सबका उचित हक़ मिले, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलें और एक
स्वस्थ और संपन्न राष्ट्र बने। धर्म-अंधविश्वास की तिलस्मी दुनिया से तार्किक आधार
पर संघर्ष हो, वैज्ञानिकता को
बढ़ावा मिले एवं जातीय गौरव को नष्ट किया जाय। व्यक्ति को व्यक्ति समझा जाये।
संदर्भ-सूची
1-भारत डिस्कवरी. 17/03/2019, 4.00 pm
2-बीबीसी हिंदी /प्रो. तुलसीराम प्रोफाइल. 17/03/2019, 6:10pm
3-फेसबुक. कॉम 20/03/201, 8:00am
4-भड़ास फार मीडिया. 20/03/2019, 10:00am
5-समय बुद्धा वर्ड प्रेस/दलित राजनीति का पोस्टमार्टम, प्रो. तुलसीराम 21/03/2019, 11:00 am
6-अपनी माटी डॉट काम 2015/04/ ब्लॉग पोस्ट 30.html.
21/03/2019, 1:00pm
7-एकेड्मिया एजुकेशन. 22/03/2019, 12:00pm
8-फारवर्ड-प्रेस 2018/02/बुद्धा श्रमण-
चिन्तन परंपरा के चिंतक तुलसीराम 22/03/2019,
1:00 pm
9-यूट्यूब .कॉम 22/03/2019, 2:00pm
10-यूट्यूब .कॉम 23/03/2019, 4:00pm
11-यूट्यूब .कॉम 23/03/2019, 5:00pm
12-यूट्यूब .कॉम 24/03/2019, 9:00am
13-यूट्यूब .कॉम 24/03/2019, 11:00am
14-यूट्यूब .कॉम 25/03/2019, 10:00am
15-यूट्यूब .कॉम 25/03/2019, 11:00am
16-यूट्यूब .कॉम 26/03/2019, 10:00am
17-यूट्यूब .कॉम 26/03/2019, 2:00pm
18-यूट्यूब .कॉम 26/03/2019, 11:00pm
अनिल कुमार
शोधार्थी, हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय,हैदराबाद, तेलंगाना
सम्पर्क 8341399496
anilkumarjeee@gmail.com
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 30(अप्रैल-जून 2019) चित्रांकन वंदना कुमारी
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